निर्धारित हों अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मापदं

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तनवीर जाफ़री**,,

वर्तमान कठिन दौर में जबकि लगभग सारा संसार अपने जीविकोपार्जन हेतु संघर्षरत है,दुनिया में मंहगाई,बेरोज़गारी तथा कुपोषण बढ़ता जा रहा है। उधर प्रकृति भी तथाकथित मानवीय विकास से नाराज़ नज़र आ रही है तथा पृथ्वी पर प्रलयरूपी कोई न कोई तांडव समय-समय पर करती रहती है। दुनिया के मौसम तेज़ी से परिवर्तित हो रहे हैं। बर्फ पिघल रही है। कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा पडऩे की संभावना तो कभी पृथ्वी पर जल संकट गहराने की आशंका आए दिन व्यक्त की जा रही है। इन विषम परिस्थितियों में बजाए इसके कि मानव जाति के तथाकथित रहनुमा इन समस्याओं से मानव को निजात दिलाने हेतु वैश्विक स्तर के कारगर उपाय करें। इसके विपरीत ऐसा देखा जा रहा है कि विश्व पर राज करने की जि़म्मेदारी संभालने वाले यही लोग अपने तर्कों व कुतर्कों द्वारा जनमानस की भावनाओं को आहत कर पूरी दुनिया को संघर्ष की राह पर ले जाने का काम कर रहे हैं। यानी कुछ सकारात्मक या रचनात्मक करने के बजाए नकारात्मक या विध्वंसात्मक गतिविधियों में ज़्यादा दिलचस्पी दिखाई जा रही है। स्वयं को शिक्षित कहने वाले यह लोग अपनी आपत्तिजनक हरकतों से गोया बारूद के ढेर में पलीता लगाने का काम कर रहते हैं। उसके बाद वे स्वयं तमाशाई बनकर स्वयं दूर व सुरक्षित खड़े होकर दुनिया को जलते हुए देखते रहते हैं।

दुर्भाग्यवश आम जनों की भावनाओं को आहत करने के इस प्रकार के काम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किए जा रहे हैं। निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है तथा इसका संरक्षण भी किया जाना चाहिए। परंतु क्या किसी दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को विशेषकर धार्मिक भावनाओं को आहत करना, किसी धर्म के पैगंबर,उसके धर्मग्रंथ, देवी-देवताओं, भगवान, राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रगान जैसी आम लोगों की भावनाओं से जुड़ी चीज़ों को अपमानित करना, उसका मज़ाक उड़ाना या उसे हास्य या व्यंग्य के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करना आखिर यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे कही जाएगी? यहां एक बात यह भी काबिले गौर है कि अलग-अलग धर्म व समाज के लोगों की धार्मिक सहिष्णुता अथवा राष्ट्रीय सहिष्णुता के मापदंड अलग-अलग हो सकते हैं? परंतु इसका अर्थ यह भी नहीं कि कोई एक वर्ग किसी दूसरे वर्ग को अपने जैसा सहिष्णुशील होने की सीख देने लग जाए। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों मैं दिल्ली के लाल कि़ले में अपने परिवार के साथ घूमने गया था। वहां मैंने देखा कि एक अंग्रेज़ अपने पैर के टखने के पास क्रॉस का टैटू बनवाए हुए था। और वह हाफ पैंट पहने बड़ी शान से अपने उस टैटू की परवाह किए बिना मौज-मस्ती कर रहा था। उसके साथ उसके और भी कई अंग्रेज़ साथी थे। अब इस मामले को यदि हम अपने ऊपर या अपने समाज पर लागू करके देखना चाहें तो हम यह पाएंगे कि कम से कम हमारे देश के किसी भी धर्म या समुदाय का कोई व्यक्ति अपने धर्म के किसी सम्मानित या पूजनीय प्रतीक को इस प्रकार अपने पैरों से जोडक़र नहीं रख सकता। अब यदि समाज का एक वर्ग सम्मानवश ऐसा नहीं कर सकता तो क्या उसे ऐसा करने वाला दूसरा वर्ग यह समझा सकता है कि तुम्हारे भीतर चूंकि असहिष्णुता वास करती है इसलिए तुम ऐसा नहीं करते?

संभव है हर एक के सहिष्णुता व सहनशीलता के मापदंड अलग-अलग हों। एक अंग्रेज़ ईसाई उसी क्रॉस को गले में लटकाता है, उसी के सामने नतमस्तक होता है और उसी का टैटू पैरों पर गुदवाता है। हो सकता है उसकी अपनी सभ्यता के अनुसार यह कोई कड़ी बात न हो पर कम से कम हमारा समाज तो ऐसी बातों की इजाज़त हरगिज़ नहीं देता। शायद यही वजह है कि इस समय लगभग आधी दुनिया विशेषकर मुस्लिम जगत अमेरिका में तैयार की गई इनोसेंस ऑफ द मुस्लिम नामक फिल्म के विरुद्ध विश्वव्यापी प्रदर्शन कर रहा है। इस फिल्म में इस्लाम धर्म के पैगंबर हज़रत मोहम्मद रूपी किरदार को घोर आपत्तिजनक स्थिति में दिखलाया गया है। दो वर्ष पूर्व इसी प्रकार न्यूयार्क में एक पादरी द्वारा कुरान शरीफ जलाए जाने का सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के व्यक्तिगत् हस्तक्षेप के बाद कुछ समय के लिए तो रोक दिया गया था परंतु बाद में उस पादरी ने कुरान शरीफ की प्रतियां जला कर ही दम लिया। कभी डेनमार्क के जीलैंड पोस्टेन में हज़रत मोहम्मद के आपत्तिजनक कार्टून प्रकाशित किए जाते हैं तो अब ताज़ातरीन खबरों के अनुसार फ्रांस की एक पत्रिका चार्ली हेबदू में भी इसी प्रकार की हज़रत मोहम्मद का चित्र दर्शाती हुई लगभग 20 कार्टून रूपी आपत्तिजनक तस्वीरें प्रकाशित की गई हैं। फ्रांस की चार्ली हेबदू पत्रिका में जो विवादित कार्टून प्रकाशित हुए हैं उनका उद्देश्य अमेरिका में हज़रत मोहम्मद पर बनी विवादित अमेरिकी फिल्म इनोसेंस ऑफ द मुस्लिम के विरुद्ध दुनिया के कई देशों में हो रहे अमेरिका विरोधी प्रदर्शनों का मज़ाक उड़ाना है।

सवाल यह है कि ऐसे नाज़ुक समय में जबकि लगभग आधी दुनिया पहले ही विवादित अमेरिकी फिल्म के विरोध में सडक़ों पर उतरी हुई है इसी बीच $फ्रांस में इस प्रकार के आपत्तिजनक विवादित कार्टून प्रकाशित कर जलती आग में घी डालने का आखिर कारण क्या है। अब तक इस विवादित फिल्म के विरुद्ध हो रहे प्रदर्शनों में लगभग 40 लोग मारे भी जा चुके हैं जिनमें लीबिया में अमेरिकी राजदूत क्रिस्टोफर स्टीफेंस भी शामिल हैं। तमाम आतंकी संगठन भी इन विरोध प्रदर्शनों को हिंसक प्रदर्शन में बदलनें में अपनी पूरी सक्रियता दिखाने लगे हैं। तालिबान ने नाटो सेनाओं पर अपने हमले तेज़ कर दिए हैं। ऐसे में ज़रूरत तो इस बात की थी कि इस बिगड़ते हुए हिंसक वातावरण को नियंत्रित करने के प्रयास किए जाएं। बजाए इसके अमेरिकी फिल्म के बाद फ्रांस में विवादित कार्टून प्रकाशित कर दिए जाते हैं और फ्रांसीसी प्रधानमंत्री ज़्यो मार्क एराऊल सहित वहां के और कई मंत्री इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संज्ञा देते हैं। प्रधानमंत्री एराऊल के अनुसार जिस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता फ्रांस का मौलिक सिद्धांत है उसी प्रकार इसमें धर्मनिरपेक्षता व सभी धर्मों का सम्मान करना भी शामिल है। सवाल यह है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का और सभी धर्मों के सम्मान के मध्य परस्पर सामंजस्य कैसे कायम किया जाए? जो विषय किसी एक पक्ष के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है तो वही विषय यदि दूसरे की धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है या दूसरे धर्म या धर्मग्रंथ या अवतार, देवता या पैगंबर को अपमानित कर रहा है तो यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मापदंड का निर्धारण आ$िखर कैसे किया जाए।

पश्चिमी देशों में वैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर दूसरे धर्मों व समुदायों के लोगों का मज़ाक उड़ाने की कुछ ज़्यादा ही परंपरा है। अभी कुछ समय पूर्व चप्पलों व अंडर गारमेंटस पर हिंदू देवी-देवताओं के चित्र छपे होने का मामला सामने आया था। पाकिस्तान सहित कई देशों में गैर मुस्लिम समुदाय के आराध्य देवताओं का मज़ाक उड़ाने की परंपरा है। कभी कॉमेडी तो कभी गीत-संगीत तो कभी हास्य-व्यंग्य के डायलॉग के नाम पर दूसरे धर्म का मज़ाक उड़ाया जाता रहा है। यह सब कुछ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर होता रहता है। भारतीय मूल के विवादास्पद लेखक सलमान रुश्दी ने पिछले दिनों अपने एक ताज़ातरीन साक्षात्कार में पुन: यह बात दोहराई है कि ‘मेरे किसी लेख या किसी पुस्तक से सहमत या असहमत होना दूसरे व्यक्ति की समस्या है उनकी नहीं’। वे कहते हैं कि यदि किसी को उनके विचार या उनकी पुस्तक पसंद नहीं तो उसे न पढ़े जाने का पूरा अधिकार उसके पास है। परंतु उनके अपने विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता तो कम से कम उन्हें मिलनी ही चाहिए। और अपनी इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में उन्होंने सेटेनिक वर्सेस नामक वह विवादित पुस्तक लिख डाली जिसमें कुरान शरीफ की आयतों को तथा हज़रत मोहम्मद के चरित्र को अपमानजनक तरीके से पेश किया गया है। और रुश्दी को पश्चिमी देश न केवल सम्मानित करते रहे हैं बल्कि वह उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हीरो भी मानते हैं।

लिहाज़ा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का बाकायदा निर्धारण किए जाने की ज़रूरत है। दुनिया को संचालित करने वाले राजनेताओं, बुद्धिजीवियों तथा शिक्षाविदें को इस विषय पर अपनी गंभीरता व सक्रियता दिखाने की यथाशीघ्र ज़रूरत है। अन्यथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस प्रकार दूसरे धर्मों व समाज के लोगों व उनके आराध्यों की खिल्लियां उड़ाए जाने का सिलसिला दुनिया को तबाही की ओर ले जा सकता है। जैसा कि अमेरिकी विवादित फिल्म के निर्माण के बाद तमाम देशों में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों के बीच अमेरिकी रक्षामंत्री लियोन पनेटा ने कहा भी है कि अमेरिका मुस्लिम देशों में फैले विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने हेतु अमेरिकी सेना की तैनाती किए जाने पर गौर कर रहा है। क्या पनेटा का यह बयान या अमेरिका का पनेटा के बयान पर अमल करना दुनिया को तबाही की ओर ले जाने का एक और बड़ा क़दम नहीं होगा? लिहाज़ा कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि दुनिया को ऐसे दिन ही न देखने पड़ें कि किसी शांतिपूर्ण वातावरण में अशांति पैदा हो और आम लोगों का सामान्य जीवन फौजी टैंको की गडग़ड़ाहट की भेंट चढ़ जाए। इसलिए बेहतर है कि अभिव्यक्ति की स्वंतंत्रता का संरक्षण किये जाने के साथ-साथ बाकयदा इनकी सीमाएं भी निर्धारित की जाएं।

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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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