नारी के मन का अनगूंजता गीत

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आई एन वी सी ,

न जाने क्यों आज मन किया
कलाई से कुहनी तक पहन लूँ
हरे कांच की रेशमी चूडियाँ
भर ऐड़ी कलकतिया महावर
पूरा पांव चटख लाल रंग वाला
लगा के बिस्तर की सफ़ेद चादर पर
छाप दूँ ढेरों पाँव के निशान
–जैसे पहले करती थी –और फिर
खूब बजनी पाजेब भी पहन लूँ
ढेर सारे घुंघरू वाली —-
और हाँ घुंघुरू वाले बिछुए भी
वो भी तीनो उँगलियों में डाल कर
लाल हरी बांधनी चुनरी पहन –
किसी ट्रक या ट्रैक्टर की ट्राली
पर लदे पुआल के ढेर पर खड़े हो कर
अपना आंचल हवा में उड़ाते हुए
जोर जोर से गाऊं —
तोड़ के बंधन बाँधी पायल
न जाने क्यूँ जब भी फिल्म के
गीत में नायिका को देखती
तो कल्पना में खुद को वहाँ पाती
पायल बिछिया कंगन चूड़ी
जब बजते तो मन के सात सुर बज उठते
यह बंधन नहीं मन के तार है जरा सुनो तो
तुम ने हाथ पकड़ भर लिया और चूडियाँ धीमे से खनक उठी
मानो कह रहीं हो छोडो न मेरा हाथ अब जाने दो
और जब गुस्सा आता है तो जोर से जता देती है
पर न जाने क्यूँ तुम्हें नहीं पसंद इनके बोल
जब भी मै छम छम पायल पहन के चलती
और छनक जाते घुंघरू या भरे हाथों की चूडियाँ
खनखनाती तो झुझला उठते तुम आखिर क्यूँ ?बोलो न
तुम्हारा तो चुभता हुआ बस एक ही वाक्य
तीर की तरह लगता सीधे दिल पर
लगता है बंजारों की बस्ती से आई है
तभी तो कितने गंवारू शौक है —
उस पर जब यह भी बोल कर हंस भर देते तुम
सुनो ये लाल सडक क्यूँ बना रखी है सर पर
तो जलभुन जाती मन ही मन —- फिर तो
मै दे मारती गुस्से में एक जोरदार डायलॉग
सुनो -एक चुटकी सिंदूर की कीमत
क्या तुम नहीं जानते बाबू
इतना श्रिंगार करने की आज़ादी
तो मिलती ही है न —-वरना माँ कब
करने देती ये सब —-उफ़ वो बचपन ही तो था
फिर एक दिन सब उतार के फेंक दिया
रोज ही सुनना पड़ता बंजारन हो क्या
ढेरों लाल हरी चूडियों की जगह बस
एक कड़ों ने ली पाज़ेब के घुंघरू मौन हो गये
आज वो बंद पिटारी सब दिख गया
और पायल उठाने पर जब घुंघरू बजे
तो मन के तार फिर झनझना गए
काश की तुम समझते
यह न तो गँवारपन न ही बंधन है
यह तो नारी मन का संगीत है
जो उसकी हर हलचल पर बजता है
पायल बिछुए चुडियों के मधुर स्वर
नारी मन में अनगूंजता गीत है
———-दिव्या ————-

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