नागरिकता की ‘जंग ‘ में दम  तोड़ते जनसरोकार के मुद्दे

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– तनवीर जाफ़री – 

                                   

पूरा देश इस समय नए संशोधित नागरिकता क़ानून व राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की बहस में उलझा दिया गया है। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि देश के विभिन्न राज्यों व शहरों में इंटरनेट सेवाएं बंद की जा चुकी हैं,कई जगह स्कूल व कॉलेज बंद कर दिए गए हैं तो कहीं धारा 144 लगाकर प्रशासन द्वारा जनता को एकत्रित होने से रोकने की कोशिशें की जा रही हैं। हालाँकि संशोधित नागरिकता क़ानून व राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का विरोध करने वालों की पहचान प्रधानमंत्री ने उनके कपड़ों से किये जाने जैसी  ‘बेशक़ीमती सलाह ‘जनता व प्रशासन को ज़रूर दी थी परन्तु यह आंदोलन अब ‘कपड़ों’ की कथित पहचान से बाहर निकल कर एक बड़ा जन आंदोलन बन चुका है। कई लोग इस आंदोलन में अपनी जानें भी न्योछावर कर चुके हैं। यानी साफ़ हो चुका है कि संशोधित नागरिकता क़ानून व राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर का विरोध अब किसी एक धर्म,एक राज्य या एक समुदाय से जुड़ा विषय नहीं बल्कि यह विषय प्रत्येक भारतीय से संबंधित विषय है। वैसे भी स्वयं को अत्याधिक बुद्धिमान समझने की ग़लतफ़हमी पालने वाले सत्ताधारियों के इस फ़ैसले से न केवल पूरा देश बल्कि सारा संसार आश्चर्यचकित है कि नरेंद्र मोदी सरकार एक ओर तो अफ़ग़ानिस्तान,पाकिस्तान व बंगलादेश के अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए अपने देश के द्वार खोल रही है। अर्थात जिनके पास भारतीय होने के घोषित रूप से कोई सुबूत व दस्तावेज़ होने का सवाल ही नहीं हैं उन्हें तो भारतीय नागरिक बनाए जाने की योजना है दूसरी तरफ़ जिन भारतीयों के बाप दादा भारत में ही जन्मे व यहीं की मिट्टी में समा गए उन्हें अपनी नागरिकता प्रमाणित करने हेतु 50-60 वर्ष पुराने दस्तावेज़ दिखाने के लिए बाध्य किया जा रहा है? यह कैसा क़ानून है और इस तरह के क़ानून बनाकर सरकार देश को किस रास्ते पर ले जाना चाह रही है यह बड़े बड़े कूटनीतिज्ञों की समझ से परे है।
                                    ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उपरोक्त दोनों ही क़ानूनों में सरकार स्वयं उलझ कर रह गयी है। हालांकि सरकार की तरफ़ से यह सन्देश देने की कोशिश भी जारी है कि संशोधित नागरिकता क़ानून लागू होकर ही रहेगा और  राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर भी अमल में लाया जाएगा। परन्तु ऐसी स्थिति में जबकि देश के लगभग 16 ग़ैर भाजपा शासित राज्य उपरोक्त क़ानून से असहमत होकर इन्हें अपने अपने राज्यों में लागू करने से इंकार करते हैं तो ऐसी स्थिति में मोदी सरकार के पास क्या उपाय हैं। क्या वह इस दिशा में अपने क़दम और आगे बढ़ाते हुए इन क़ानूनों को लागू न करने वाली निर्वाचित राज्य सरकारों को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए बर्ख़ास्त कर देगी? और यदि केंद्र सरकार ऐसा करने का दुःसाहस करती भी है तो वह कितनी राज्य सरकारों को बर्ख़ास्त करेगी ? और यदि ऐसा होता है तो भारतीय राजनीति में केंद्र व राज्य सरकारों के टकराव का यह कितना बड़ा उदाहरण साबित होगा और इस टकराव का अंत क्या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता। भारतीय नागरिकों से अपने बाप दादा के समय के दस्तावेज़ दिखाने जैसा तुग़लकी फ़रमान जारी करने पर पूरा देश आशचर्यचकित है। इस देश में करोड़ों ग़रीब लोग ऐसे हैं जिनके पास अपने मकान ही नहीं हैं। करोड़ों के तन पर कपड़े नहीं,घर गृहस्थी के कोई सामान नहीं। क्या ऐसे ग़रीब बेघर व भूमिहीन देशवासियों विशेषकर मज़दूरों,ग़रीब कामगारों,किसानों,वनवासियों व आदिवासियों से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे  सरकार के मांगने पर अपनी भारतीय नागरिकता संबंधित दस्तावेज़ सरकार को दिखा सकें? वह भी ऐसे दौर में जबकि बड़े बड़े राजनेता अपने शिक्षा संबंधी दस्तावेज़ व डिग्रियां दिखा पाने में असमर्थ हों? वह भी तब जबकि कई सरकारी कार्यालय ,अदालतें यहाँ तक कि सरकार के कई मंत्रालय तक गुप्त सरकारी दस्तावेज़ संबंधित फ़ाइलों की रक्षा कर पाने में असमर्थ हों और ऐसी अनेक महत्वपूर्ण फ़ाइलें ग़ाएब हो चुकी हों ?
                                     पिछले दिनों सरकार द्वारा हिंसा प्रभावित राज्यों के कई समाचार पत्रों में प्रथम पृष्ठ पर एक विज्ञापन जारी किया गया। इस विज्ञापन के माध्यम से सरकार यह बताना चाह रही थी कि ‘नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर ग़लत सूचनाएं दी जा रही हैं तथा अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं’ अधिकांशतः उर्दू अख़बारों में दिए गए इस विज्ञापन के माध्यम से देश के मुसलमानों को ख़ास तौर पर संबोधित करने की कोशिश की गयी थी।ख़बरें तो यह भी हैं कि सरकार अब धर्मगुरुओं की शरण में भी पहुँच रही है ताकि उनसे शान्ति की अपील जारी करवाकर स्थिति पर नियंत्रण पाया जा सके। परन्तु सरकार के यह उपाय भी अपर्याप्त ही साबित होंगे क्योंकि अब यह आंदोलन किसी एक धर्म से संबंधित धर्मगुरु तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि यह आंदोलन छात्रों के ग़म और ग़ुस्से का रूप धारण कर चुका है। छात्र समुदाय किसी तथाकथित धर्म गुरु या गुरुघंटालों से नियंत्रित नहीं होता। छात्र समुदाय हमेशा अपने व देश के भविष्य को मद्दे नज़र रखते हुए ही आंदोलनरत होता है। देश का छात्र व आम जनता नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी फ़ैसले का हश्र भली भांति देख चुकी है। देश ने भुक्तभोगी के रूप में वो सारा नज़र झेला है जबकि महीनों तक पूरा देश बैंकों से अपने ही पैसे   निकलवाने या जमा करवाने हेतु किस तरह धुप व गर्मी में लंबी लंबी क़तारों में खड़ा रहा। और जनता की इस तपस्या से देश को कुछ हासिल होने के बजाए उल्टा देश की अर्थ व्यवस्था चौपट हो गयी। सैकड़ों लोग इन लंबी क़तारों में लगकर इस तथाकथित “राष्ट्रीय यज्ञ ” में अपनी जानों की आहुति भी दे चुके।
                                   अब पूरा देश एक बार फिर अपनी नागरिकता साबित करने के लिए किसी भी लाइन में लगने के लिए किसी भी क़ीमत पर तैय्यार नहीं है। अब तक असम राज्य में कई इज़्ज़तदार लोग व कई ग़रीब लोग इसी एन आर सी की बारीकियों से तंग आकर और नागरिकता प्रमाणित करने हेतु ज़रूरी बताए गए सम्पूर्ण दस्तावेज़ उपलब्ध न करा पाने के चलते आत्म हत्या तक कर चुके हैं। देश का करोड़ों नागरिक आज इस स्थिति में नहीं है कि वह अपने व अपने बाप दादा के भारतीय नागरिकता सम्बन्धी ज़रूरी दस्तावेज़ सरकार के मांगने पर मुहैय्या करा सके। तो क्या ऐसे लोगों की जगह सरकार ने क़ैदख़ाने में निर्धारित की हुई है ?या आत्महत्या करना ही उनके सामने एक चारा रह गया है? बहरहाल,देश इस समय पूरी तरह बेचैन हो उठा है। नोटबंदी के बाद अब दोबारा यह देश अपनी भारतीयता साबित करने के लिए किसी पंक्ति में खड़ा होना नहीं चाहता। देश जानता है कि अपरिपक्व मोदी सरकार की नागरिकता संबंधी नीति भी नोटबंदी जैसी ही असफल नीति साबित होगी।  परन्तु सरकार को इस तरह के अतिविवादित मुद्दे उठाने का फ़ायदा यह हो रहा है कि नागरिकता की इस ‘जंग ‘ में जनसरोकारों से जुड़े मुद्दे दम तोड़ते जा रहे हैं। जिस प्याज़ की क़ीमत बढ़ने पर दिल्ली की राज्य सरकार ने कभी सत्ता गँवा दी थी उसी प्याज़ की क़ीमत रिकार्ड स्तर पर जा चुकी है। 100 रूपये से लेकर 150 रूपये किलोग्राम तक प्याज़ बेची जा रही है परन्तु किसी समाचार चैनल के लिए यह खबर महत्वपूर्ण नहीं।बढ़ती बेरोज़गारी,चौपट होते व्य्वसाय,देश की अर्थव्यवस्था में आ रही गिरावट, रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चीज़ों का लागतार मंहगा होना, क़ानून व्यवस्था की बद से बदतर होती जा रही स्थिति,महिला शोषण व उत्पीड़न के बढ़ते मामले जैसे  जनसरोकारों से संबंधित मुद्दे गोया गौण अथवा महत्वहीन हो चुके हैं। निश्चित रूप से स्वतंत्र भारत के इतिहास में देश कभी भी इतना व्याकुल व विचलित नहीं हुआ जितना नोटबंदी के समय हुआ था और अब संशोधित नागरिकता क़ानून व राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को लेकर हो रहा है।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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