नवनीत पाण्डेय की कविताएँ

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नित्यानन्द  गायेन की टिप्पणी : कवि नवनीत पाण्डेय की कविताओं में एक गहराई है . ये कविताएँ कवि का अनुभव है, नदी की गहराई, उसका दर्द मौजूद हैं इन कविताओं में. बिना अनुभव नहीं रची जाती ऐसी कविताएँ !

 

नवनीत पाण्डेय की कविताएँ

1.नदी क्या है

नदी के भीतर
बहती हैं कितनी नदियां
सिर्फ नदी जानती है

एक नदी के भीतर
उफनती है कितनी नदियां
सिर्फ नदी जानती हैं

एक नदी के भीतर
सूखती है कितनी नदियां
सिर्फ नदी जानती है

नदी देखने में
मनोहारी लगती है
सब देखते हैं

लेकिन
लेकिन नदी के भीतर
नदी क्या है
कोई नहीं जानता

2.नदी- समंदर

नदियां
नदियां हैं
और बताती भी हैं
कि वे नदियां हैं

तो
समंदर को
किस बात का जौम है
क्यों नहीं बताता
वह वाकई समंदर है

क्यों नहीं वह
शांत कल-कल
निर्मल मीठा नदी सा

क्यों है
हर पल
खारा ही खारा

दहाड़ता
सुनामियों
प्रलय की
संभावनाओं से भरा

3.कंगूरे

नींव से
एक- एक ईंट
जुड़ती जाती है
खड़े करती हैं
गगनचुंबी
कंगूरे
(महिनों-बरस लगते हैं)

नींव से
एक साथ कई ईंटे
हटती है
ढहा देती है
गगन चुंबी
कंगूरे
(मात्र कुछ पलों का खेल है)

4.सनद रहे

एक दिन
न होंगे तुम
न ही मैं
मर जाएंगे दोनों

जैसे मर गए हैं
हमारे पूर्वज
हमारे अग्रज
मृत्य नियति है
जीवन की

मर जाएंगी
हमारे साथ ही

हमारी
लालसाएं
कामनाएं
महत्त्वाकांक्षाएं
भागमभाग

सारे
राग-द्वेष
सम्मान
पुरस्कार
दांवपेंच
सपनें
अपनें

सिर्फ बचे रहेंगे शब्द!

शब्द
जो मैंने कहे, लिखे
शब्द
जो तुमने कहे, लिखे

हम अभिभावक हैं
शब्दों के
शब्द बच्चे हैं हमारे
हमारी आनेवाली पीढ़ी

हमारे बाद
हमारे शब्द ही
भरेंगे हमारी हाजिरी
इस विराट में
अगर बचे रहे….
सनद रहे!


5.रास्तों में कांटे बोते हैं

जो
जितनी दूर
देर तक
फिरते हैं
उतनी दूर
उतनी देर
चरते हैं

जो
अपने घर की
देहरी तक नहीं लांघते
रोते हैं
ईर्ष्या में
मन मसोसते हैं
घर से निकले के
हाथों थमे
सफलता के फूलों की
पंखुड़ियां
खुश्बुएं नोचते हैं
रास्तों में कांटे बोते हैं

6.अपने अंगूठे नहीं देने हैं

हम तो
उन्हें भी
सदा पसंद करते रहे
जिन्हें
शुरु ही से
हम थे
सख्त नापसंद

उन पर भरोसे
किए रहे
यह जानते हुए
कि हम उनके
भरोसे के नहीं हैं

चलते रहे सदा
कहे उन के
उस राह
जिस राह
जानते हुए कि
वे खोदते थे
उन राहों खड्डे
हर बार
हमारे लिए
आंखे खुली होते भी
हम गिर पड़ते थे
भरोसे के धक्के से
अंध आदर भाव के मारे

चमक उठती थी
उनकी आंखें
नीरो, सिकंदर,
हिटलर की तरह
हमें खड्डों में गिरे देख
उनकी कुटिल हंसी
जैसे बोलती थी
मछली अच्छी फंसी

जैसे होती है
हर जुल्म की इंतेहा
हमारी भी हुयी
पीर आखिर पर्वत
हमारी भी हुयी
लेकिन हमारे पास
नहीं था
कोई हिमालय
जिससे निकल पाती
कोई गंगा
कर पाती
नंगे को नंगा

होती भी तो
क्या कर लेती बेचारी
वह तो खुद ही रही है
मैलों के मैल से
दुखियारी

लेकिन फिर भी
अब हम खुद ही संभल रहे हैं
खड्डों से निकलने के लिए
अपने घुटने सीधे कर
खड्डों से निकल रहे हैं

तय पाया है!!!

अब हक
मांगने नहीं
छीन लेने हैं
किसी अर्जुन के लिए
भावनाओं में बह
इन बेईमान द्रोणों को
अपने अंगूठे
हरगिज, हरगिज
नहीं देने हैं

प्रस्तुति
नित्यानन्द गायेन
Assitant Editor
International News and Views Corporation

 

navnit pandey, poet navnit pandey on invc newsपरिचय 

नवनीत पाण्डे

शिक्षाः एम. ए.(हिन्दी), एम.कॉम.(व्यवसायिक प्रशासन), पत्रकारिता -जनसंचार में स्नातक। हिन्दी व राजस्थानी दोनो में पिछले पच्चीस बरसों से सृजन।

सभी प्रतिनिधि पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन।

प्रकाशनः हिन्दी- सच के आस-पास (कविता संग्रह) यह मैं ही हूं, हमें तो मालूम न था (लघु नाटक) प्रकाशित व जैसे जिनके धनुष (कविता संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य, राजस्थानी- लुकमीचणी, लाडेसर (बाल कविताएं), माटीजूण (उपन्यास), हेत रा रंग (कहानी संग्रह), 1084वें री मा – महाश्वेता देवी के चर्चित बांग्ला उपन्यास का राजस्थानी  अनुवाद।

पुरस्कार-सम्मानः लाडेसर (बाल कविताएं) को राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का ‘जवाहर लाल नेहरु पुरस्कार’ हिन्दी कविता संग्रह ‘सच के आस-पास’ को राजस्थान साहित्य अकादमी का ‘सुमनेश जोशी पुरस्कार’ लघु नाटक ‘यह मैं ही हूं’ जवाहर कला केंद्र से पुरस्कृत होने के अलावा ‘राव बीकाजी संस्थान-बीकानेर’ द्वारा प्रदत्त सालाना साहित्य सम्मान।

संप्रतिः भारत संचार निगम लिमिटेड- बीकानेर कार्यालय में कार्यरत .

सम्पर्कः ‘प्रतीक्षा’ 2- डी- 2, पटेल नगर, बीकानेर- 334003 मो.न. 9413265800 e-mail : poet.india@gmail .com

2 COMMENTS

  1. विचारों की प्रौढ़ता, परिपक्वता इन कविताओं को समय सापेक्ष बनाती हैं…नित्यानंद गायेन ने इस बहाने नवनीत पाण्डेय की बेहतरीन कवितायेँ पढने को उपलब्ध कराई…वाह

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