नरेगा : घोटाला ही घोटाला

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दिलीप कुमार सिन्हा

उत्तर प्रदेश के सीतापुर, कौशाम्बी, भदोही, मिर्जापुर और बुलन्दशहर के बाद अब उन्नाव, बुन्देलखण्ड, बांदा, हमीरपुर तथा सोनभद्र में भी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) में करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आया है। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग)। ने भी इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन में भारी अनियमिततओं का खुलासा करके केन्द्र और राज्य सरकार को कटघरें में खड़ा कर दिया है। इस योजना के क्रियान्वयन के प्रति राज्य सरकारें गम्भीर नहीं दिखाई दे रही है तभी तो इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने के बावजूद कोई सख्त कदम नहीं उठाया जा रहा है और न ही कोई कारवाई की जा रही है। उन्नाव में कागजों पर तालाबों का निमार्ण और पौधरोपण के नाम पर लाखों का भुगतान हो गया और कही कोई जांच या निगरानी नहीं की गयी। इस जिले में वृक्षारोपण के नाम पर लाखों डकारने, प्रधान द्वारा जाबकार्ड दबाये रखने और फर्जी नाम से जाब कार्ड बनाने की षिकायते काफी समय से आ रही थी। इन घोटालों में पंचायत सचिव, एडीओ, वीडीओ और प्रधान की संलिप्तता प्रकाश में आयी है। सोनभद्र के चोपन रेंज में नरेगा के पैसों में हेराफेरी करने के आरोप में डाक विभाग के दो और वन विभाग के तीन कर्मचारियों को जेल की हवा खानी पड़ी है। यहां वन विभाग ने मजदूरों से वृक्षारोपण का काम कराया। डाक घर में उनका खाता खुलवाया और डाकघर कर्मियों की मद्द से फर्जी हस्ताक्षर से लाखों रुपये का घोटाला किया था। बांदा, हमीरपुर और बुन्देलखण्ड़ में अधिकारी, प्रशासन, ग्राम प्रधान तथा ग्राम सचिवों की कमीशनखोरी से त्रस्त मजदूर हड़ताल पर है। मजदूरों की किसी को कोई फिक्र नहीं है। दो पाटो के बीच पिस रहे मजदूरों के पास जाब कार्ड तक नहीं है फिर भी वे मजदूरी मिलने की आस में काम करते जा रहे है। गरीब मजदूर और उनका परिवार बिना पैसों के भूख से मर रहे है, लेकिन उनके पेट की आग किसी को दिखाई नहीं दे रही है। नरेगा योजना कागजों पर फल-फूल रही है लेकिन हकीकत में यह घपले, घोटाले, दलाली, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार की योजना बनकर रह गयी है। राजनेता, पक्ष-विपक्ष और राज्य की सरकारें इस बात पर एकमत है कि सरकारी योजनाओं के एक रुपये में से 85 पैसे दलालों की जेब में पहुंच जाते है लेकिन नरेगा के क्रियान्वयन में तो पूरा का पूरा रुपया ही भ्रष्ट अधिकारी-कर्मचारी, दलाल, प्रधान, एडीओ, वीडीओ और पंचायत सचिव मिलजुल कर हजम कर रहे है। इन योजनाओं का कागजों पर क्रियान्वयन दिखाकर लाखों-करोड़ों रुपये का बन्दरबांट हो रहा है। इसके लिये कौन जवाबदेह है नौकरशाही, केन्द्र-राज्य की सरकारें या जनता-जर्नादन? अगर समय रहते नहीं चेता गया तो इस महत्वाकांक्षी योजना का बन्टाधार तय है।

नरेगा में घपले-घोटाले उजागर होने के बाद केन्द्र सरकार कुछ गम्भीर दिखाई दे रही है, लेकिन राज्य सरकार किन्चित भी दिलचस्पी नहीं ले रही है। केन्द्र ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेकर नरेगा परिचय पत्र को अधिकृत दर्जा दे दिया है और अब इस कार्ड का इस्तेमाल बैंक खाता खोलने में भी किया जा सकेगा। भविष्य में नरेगा परिचय पत्र- पासपोर्ट, पैनकार्ड और डाइविंग लाइसेंस जैसा महत्वपूर्ण हो जाने की प्रबल सम्भावना है। उधर उत्तर प्रदेश सरकार नरेगा योजना के अन्तर्गत दिए गए धन का मात्र 40 प्रतिशत ही उपयोग कर सकी है। प्रदेष के अधिकांश जिलों में इस योजना के क्रियान्वयन में धांधली, भ्रष्टाचार, दलाली और घोटाले सामने आने के बाद बसपा सरकार कुम्भकर्णी नींद से जागी है। सरकार ने अनन-फानन में इसके कामकाज में तेजी लाने के लिये ”कनवर्जन” व्यवस्था को बढ़ावा देने और गांव पंचायत स्तर तक नरेगा का शत-प्रतिशत ”सोशल आडित” कराने का फैसला किया है। इसके लिए जिला, क्षेत्र एवं पंचायतों का कैलेंडर तैयार करके शीघ्र काम शुरू होने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है। राज्य सरकार का कहना है कि अब नरेगा के तहत होने वाले कामों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए निपुण विभागों की भागीदारी बढ़ाने, शिकायतों को गम्भीरता से लेने तथा उनका निस्तारण शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर करने की प्रकिया में तेजी लायी जायेगी। नरेगा में चिन्हित कुछ काम ऐसे है जिसमें पंचायतों को तकनीकी जानकारी नहीं रहती और इसी के मद्देनजर यह कदम उठाया जा रहा है। सरकार यह मान रही है कि नरेगा में  शिकायतों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है लेकिन उसका कारण सरकार की उदासीनता नहीं बल्कि पंचायत व्यवस्था का मजबूत न होना मानती है। नरेगा गरीबों को रोजगार प्रदान कर सम्मानजनक राहत प्रदान करने वाली योजना है। इसके कानून में इस बात का प्रावधान है कि प्रत्येक कार्ड धारक को या तो काम देना होगा या बेरोजगारी भत्ता। जो प्रदेश इसे देने से इंकार करेंगे उन्हें लिखकर कारण स्पष्ट करना होगा। नरेगा के अन्तर्गत जाब कार्डधारकों को काम दिलाने के लिए राज्य सरकारों को प्रधानों पर शिकंजा कसना होगा। यह अधिनियम केन्द्र सरकार का है अतएव इसमें हस्तक्षेप करने का किसी को अधिकार नहीं है। नरेगा के क्रियान्वयन में राज्यों को अपने कामकाज में और सुधार तथा गति लाने की जरूरत है। अभी लंबा सफर तय करना है। देश भर के राज्यों में इस योजना के कामकाज में असमानता है। कुछ राज्यों ने अच्छे परिणाम जरूर दिखाये हैं, लेकिन कुछ राज्य अभी भी बहुत पीछे चल रहे हैं। इसकी समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय में संबंधित मंत्रालय के साथ मिलकर एक निगरानी इकाई भी काम कर रही है। अब सांसदों को भी आने वाले समय में ग्रामीण विकास के मोर्चे पर जिम्मेदारी सौपने की तैयारी चल रही है। केन्द्र सरकार ने ग्रामीण विकास की सभी योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी समिति का अध्यक्ष सांसदों को बनाने, नरेगा के तहत होने वाले कार्यों के सामाजिक अंकेक्षण और इसके निष्कर्षों को वेबसाइट पर प्रकाशित करने की योजना बनायी है।

हर जरूरतमंद हाथ को काम देने के उद्देश्य से शुरू की गई नरेगा के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी के कारण साल 2008.2009 में मात्र पैंसठ लाख परिवारों ने ही एक सौ दिन का काम पूरा किया है, जबकि 2009.2010 में जुलाई तक 4.72 लाख परिवारों ने एक सौ दिन काम किया है। इन आंकड़ों को देखते हुए केन्द्र सरकार की मंशा है कि नरेगा का लाभ हर जरूरतमंद व्यक्ति उठाए। इसके लिए जल्द ही देश भर में जागरूकता अभियान शुरू किया जायेगा। केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज्य मंत्री डॉ. सीपी जोशी ने नरेगा के कार्यान्वयन में तेजी लाने और योजना की जानकारी निचले स्तर तक पहुंचे के लिए जल्द पूरे देश का दौरा करने का ऐलान किया है। यह एक सराहनीय कदम है, लेकिन यह कितना कारगर साबित होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। वैसे नरेगा के क्रियान्वयन और इसका लाभ सबसे अधिक जरूरतमंदों तक पहुंचाने में आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जबकि राजस्थान दूसरे स्थान पर है। आंध्र प्रदेश में नरेगा योजना के तहत भुगतान विधि, काम करने वाले श्रमिकों की पहचान, भ्रष्टाचार पर अकुंश लगाने समेत अन्य कई बेहतर कदम उठाए गए हैं। यही वजह है कि योजना के कार्यान्वयन में आंध्र प्रदेश सबसे आगे है।

कैग ने अपनी रपट में उत्तर प्रदेश में नरेगा योजना के क्रियान्वयन एवं उसके कार्यों की निरीक्षण व्यवस्था में भारी अनियमितताओं का खुलासा किया है। रिपोर्ट कहती है कि इस योजना में ग्रामीण गरीबों को नौकरी की गारंटी न मिलने, फर्जी भुगतान, समय पर काम न होने और मजदूरों को देर से भुगतान जैसी अनियमितताओं की भरमार है। यह योजना कार्यक्रम का निर्वहन ब्लाक स्तर पर समर्पित कार्यक्रम अधिकारियों की नियुक्ति और ग्राम पंचायतों में रोजगार सेवकों की तैनाती न होने से बुरी तरह प्रभावित हुई है। सीतापुर के मिश्रिख विकास खण्ड में कपटपूर्ण तरीके से फर्जी ग्राम पंचायत को नहर की सिल्ट सफाई में 37 मजदूरों को 47 हजार रुपए का भुगतान कर दिया गया जबकि इन ग्राम पंचायत के मस्टर रोल में उन व्यक्तियों के नाम ही नहीं थे। इसी कार्य में 194 श्रमिकों में से 187 को एक ही दिन दो-दो और सात को तीन-तीन जगहों पर काम करते दिखाया गया है। फतेहपुर जिले की ग्राम पंचायत में 51 मजदूरों को 374 कार्य दिवसों का 32 हजार रुपए का भुगतान बिना दस्तखत या अंगूठा लगाए कर दिया गया। महालेखा परीक्षक ने मजदूरों को कम भुगतान, प्रस्तावित 80.100 रुपयों के बजाए 58 रुपए की दर से भुगतान करने, रिकार्ड्स को खराब तरह से सुरक्षित रखने, निर्धारित समय सीमा में जाब कार्ड जारी न करने, मांग के अनुरूप रोजगार उपलब्ध न कराने, बेराजगारी भत्तो की जांच न करने, मस्टर रोल में हेराफेरी, कपटपूर्ण भुगतान, बिना दस्तखत के भुगतान, एक ही श्रमिक को उसी दिन एक से अधिक स्थानों पर भुगतान एवं कई मामलों में मजदूरी भुगतान में तीन से 286 दिनों तक के विलंब सहित अनेक अनियमितताओं की ओर इशारा किया है। योजना के सुचारू संचालन के लिए प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक रोजगार सेवक की नियुक्ति की जानी थी, पर अभिलेखों की जांच से पता चलता है कि 33 चयनित विकास खण्डों की 2230 ग्राम पंचायतों में से एक तिहाई से अधिक 711 ग्राम पंचायतों और तकनीकी सहायकों की आवश्यक संख्या के विपरीत केवल 68 प्रतिशत की ही नियुक्ति की गई।

अभी तक किसी भी राज्य ने सभी पंजीकृत ग्रामीण परिवारों को 100 दिन का रोजगार नहीं दिया है फिर भी केंद्र रोजगार के दिन बढ़ाने पर भी विचार कर रहा है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया कहते है कि यह देखना होगा कि 100 दिन की सीमा (नरेगा के तहत रोजगार के दिन) पर्याप्त है या नहीं। यदि यह पर्याप्त नहीं है तो अस्थायी तौर पर इसे बढ़ाया जा सकता हैं। नरेगा के तहत सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को कानूनन साल में कम से कम 100 दिन का रोजगार देने के लिए बाध्य है। नरेगा को फरवरी 2006 में 200 जिलों में लांच किया गया था। 2007.08 में 130 और जिलों में इसका विस्तार किया गय। है। अब यह कार्यक्रम सभी 593 जिलों में लागू है। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में नरेगा के तहत 2008.09 में करीब 4.49 करोड़ (44940870) परिवारों को रोजगार प्रदान किया पर इनमें 14 .48 फीसदी को ही इस कानून के तहत 100 दिनों का रोजगार प्रदान किया गया। आंकड़ों के मुताबिक 2007.08 के दौरान पंजीकृत परिवारों से सिर्फ 10 .62 फीसदी को ही 100 दिन का रोजगार मिल सका। 2006.07 के दौरान 20983491 पंजीकृत परिवारों में से 10 .29 फीसदी और 2007.08 में 33889122 करोड़ में से 10 .62 प्रतिशत परिवारों को ही 100 दिन का रोजगार मिला है।

नरेगा को ग्रामीण इलाकों के बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के साथ ही नक्सल प्रभावित अंचलों में लोगों को रोजी रोटी का सम्मानजनक अवसर दिलवाकर नक्सलवाद की धार कुन्द करने के औजार के रूप में देखा जा रहा है लेकिन इसके विपरीत उत्तार प्रदेश के तीन नक्सल प्रभावित जिलों में कम उत्साह है। इन जिलों में इस योजना के तहत काम पाने वालों का औसत प्रदेश के मुकाबले 25 प्रतिशत ज्यादा है। प्रदेश में कुल पंजीकृत एक करोड़ सत्रह लाख 36891 परिवारो में से 2009.10 के पहले तीन महीनों अप्रैल से जून तक कुल 14 लाख 88748 परिवारों ने काम की मांग की और उन्हें प्रति परिवार औसतन 36 .15 दिन का काम उपलब्ध हुआ। इसी दौरान प्रदेश के तीन नक्सलवाद प्रभावित जिलों- चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र में कुल पंजीकृत 584835 परिवारो में से 154787 परिवारों ने काम की मांग की और उन्हें प्रति परिवार औसतन 44 .36 दिन का काम उपलब्ध हुआ। बंदरों और कुछ अन्य जानवरों के आतंक से त्रस्त हिमाचल प्रदेश सरकार ने भी केन्द्र से बंदर पकड़ने वाले लोगों को भी नरेगा में शामिल करने का आग्रह किया है और सरकार इस पर गम्भीरता से विचार कर रही है। एक अनुमान के अनुसार राज्य भर में करीब तीन लाख बंदर हैं।

नरेगा के तहत देश के सिर्फ 9 जिलों में ही सौ दिन का काम दिया जा सका है और ये सभी जिले पूर्वोत्तार के हैं। इसके तहत काम उपलब्ध कराए जाने के आंकड़े चौंकाने वाले हैं और तीन साल पूरे होने पर भी राज्य सरकारें इसे पूरी तरह क्रियान्वित नहीं कर पाई हैं। पश्चिम बंगाल में 2006.07 के दौरान औसतन 14 दिन, 2007.08 के दौरान 25 दिन और 2008.09 में सिर्फ 26 दिन ही काम मांगने वालों को काम उपलब्ध कराया जा सका है जबकि उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड और त्रिपुरा में ऐसे लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया गया है। 2006.07 में कुल चार लाख 75 हजार रुपए बेरोजगारी भत्तो के तौर पर दिए गए हैं। केंद्र ने इस योजना के लिए पैसे की पूरी व्यवस्था कर रखी है और यह राज्यों पर निर्भर है कि वे कितनी सक्रियता से इस योजना का कार्यान्वयन करते हैं। अप्रैल 2008 से 30 जून 2009 के दौरान नरेगा के तहत कुल 438 शिकायतें मिली हैं। सौ दिन काम हासिल करने वाले घरों की संख्या 2006.07 में 21 लाख 42 हजार 728, 2007.08 में 36 लाख एक हजार 926 और 2008.09 में 65 लाख 10 हजार 373 रही। 2009.10 में अब तक एक लाख 10 हजार 910 परिवार काम पा चुके हैं। नरेगा के तहत काम देने के लिए व्यक्तियों या परिवारों के चयन का प्रावधान नहीं है और जिन्हें काम की जरूरत है उन्हें अपना पंजीकरण कराना होता है।

अगर पंचायती राज और नरेगा प्रभावी तरीके से काम करे तो प्रत्येक व्यक्ति को इसका लाभ मिल सकता है, लेकिन इसके लिये राज्य सरकारों को योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता, सतर्कता, निगरानी और सावधानी बरतना जरूरी है साथ ही उसकी कार्यप्रणाली पर पैनी नजर रखनी होगी, ताकि भविष्य में इस योजना को भ्रष्टाचारियों, दलालों और नौकरशाही के चंगुल से मुक्त कराया जा सकें।

2 COMMENTS

  1. Implement of nrega can be very easy if malafied began to punished by court. All state gov. is now-a-days is involve in diff. type of corruption. so in order to
    get the objective of nrega state gov.moraly must be responsbility’
    ….

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