नरेगा का नया नामकरण : गांधीवादी विचारों का सम्मान

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नीरेन्द्र देव

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक ओर जहां गरीबी और रहन-सहन की दशाओं के प्रति चिंतित रहते थे, वहीं वे सदैव भरत के ग्रामीण सौंदर्य और सहनशीलता की शक्ति को बनाये रखने की आकांक्षा करते थे । उनका चिर-परिचित मुहावरा था -असली भारत गांवों में रहता है । इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम (नेशनल रूरल एम्प्लायमेंट गारंटी एक्ट) का नाम उन्हीं (महात्मा गांधी) के नाम पर ही रखा । देश में पंचायती राज संस्था के कार्य संचालन के 50 वर्ष पूरे होने के लिए भी यह शुभ अवसर है । सन 1959 में 2 अक्तूबर को ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने राजस्थान के नागौर में पंचायती राज का श्रीगणेश किया ।

 जैसा कि हम जानते हैं, असली भारत गांवों में बसता है और यह सर्वविदित तथ्य है कि स्वतंत्रता का अभ्युदय होने के समय से ही ग्रामीण लोगों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए सतत प्रयास किये जाते रहे हैं । सभी पंचवर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन और प्रगति की समेकित अवधारणा ग्रामीण विकास का प्रमुख सिध्दांत रही । परम्परागत रूप से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में, ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा की सुविधाओं जैसे स्कूल, स्वास्थ्य केन्द्र, सड़कों , पर्याप्त पेय जल और बिजली की सुविधाओं को प्रमुखता दी गई । कृषि उत्पादकता में सुधार लाने, स्वास्थ्य सुधार जैसी सामाजिक सेवा में और शिक्षा, सामाजिक आर्थिक विकास, ग्रामीण उद्योग को प्रोत्साहन देने और ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराने जैसे कार्यक्रमों को भी इनमें शामिल किया गया ।

 ये सभी कार्यक्रम सुधारू रूप से चल रहे थे । लेकिन पिछले छ: दशकों में प्रगति की रपऊतार, विशेषकर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का जीवन स्तर उतना संतोषजनक नहीं हो पाया जिनकी की अपेक्षा थी । इसलिए 2005 में सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया जो भारतीय गांवों के जीवन में परिवर्तन लाने वाला एक मोड़ सिध्द हुआ । सरकार ने 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरंटी अधिनियम नाम से कानून बनाया जिसमें यह उल्लिखित है कि कोई भी अकुशल व्यक्ति जो न्यूनतम वेतन पर हाथ का काम करना चाहता है, उसे आवेदन करने के 15 दिन के अंदर किसी स्थानीय सार्वजनिक कार्य में रोजगार प्राप्त करने का हक है ।

 इसमें यह  भी प्रमुख मार्गनिर्देश है कि यदि 15 दिन के अंदर ऐसे आवेदक को रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता तो ऐसे आवेदक को बेरोजगार भत्ता पाने का हक है -शुरू के 30 दिनों के दौरान उसे न्यूनतम वेतन का कम से कम एक चौथाई वेतन और उसके बाद का कम से कम आधा वेतन दिया  जाएगा । पिछले पांच वर्षों में नरेगा की सफलता की दर इतनी अधिक रही है कि इस बारे में बहुत मामूली विवाद रह जाता है कि इस कानून ने आर्थिक रफ़्तार में कुछ कमी आने के बावजूद पिछले कुछ महीनों के दौरान बहुत से भारतीयों को सहायता पहुंचाई है। आंकड़े और सर्वेक्षण इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि नरेगा ने शहरों और महानगरों की ओर से लोगों को गांवों की ओर जाने के लिए प्रेरित किया ।

 अन्य बातों के साथ-साथ नरेगा ने मौसमी प्रवास और तनाव कम करने के मामले में भी पर्याप्त सफलता अर्जित की है । केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डा0 सी पी जोशी ने बताया कि नरेगा ने ग्रामीण तथा अर्ध्द-नगरीय लोगों, तथा विशेषकर नरेगा ने श्रमिकों की क्रय शक्ति बढाने में सहायता की है । वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के प्रावधानों को शामिल करते हुए इसने ग्रामीण विकास परियोजनाओं को प्रमुख रूप से प्रोत्साहन दिया ।

 नरेगा पर विशेष ध्यान देते हुए 144 प्रतिशत की वृध्दि करते हुए उन्होंने उसके लिए 39 ,100 करोड़ रूपये निर्धारित किया और बताया कि कार्यूसूची को व्यापक बनाने की चुनौती है ताकि उसमें विकास को सम्मिलित किया जा सके और समुदाय का कोई भी व्यक्ति या कोई भी क्षेत्र विकास के परिणामों से वंचित न रहने पाये । अधिकारियों ने बताया है कि वर्ष 2008-09 में नरेगा के तहत 4.49 करोड़ कुटुम्बों में रोजगार उपलब्ध कराया गया और 216 करोड़ व्यक्तियों को दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया गया है । 2009-10 वित्तीय वर्ष के जुलाई महीने तक 2.53 करोड़ कुटुम्बों को और 87.09 करोड़ कार्य दिवस का रोजगार उपलब्ध कराया गया ।

नरेगा का पुन: नामकरण
 केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने पहली अक्तूबर को एक बैठक में पुन: फैसला किया कि महात्मा गांधी के नाम पर नरेगा का नाम रखा जाय ।  अगले दिन नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित शानदार समारोह में नरेगा का पुन: नामकरण किया गया – महात्मा  गांधी नेशनल रूरल एम्प्लायमेंट गारंटी एक्ट (एम जी आर ईजीए) । प्रधानमंत्री ने संपूर्ण वर्ष को ग्रामसभा वर्ष के रूप में मनाने की भी घोषणा की । प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बताया कि सरकार ने राष्ट्र पिता की 140वीं वर्षगांठ पर नरेगा को पुन: सम्मान देकर महज अपनी विनम्र श्रध्दांजलि अर्पित की है । केन्द्रीय पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास मंत्री डा0 जोशी ने बताया कि यह समय की पुकार है कि पंचायती राज संस्थाएं विकास की प्रक्रिया में अपनी सक्रिय भूमिका निभायें ।

गांधीवादी विचार
 प्रशासन के बारे में महात्मा गांधी के दर्शन का मुख्य उद्देश्य वृध्दि को सुनिश्चित करना है । यह वह क्षेत्र है जहां पुराने नाम नरेगा ने सीमांत ग्रुप के लोगों के लिए विशेष रूप से रोजगार मुहैया कराया है । वर्ष 2008-09 में अनुसूचित जातिअनुसूचित जनजाति की भागीदारी का प्रतिशत 55 प्रतिशत था और जुलाई 2009 तक अनु.जातिअनुजनजाति का 53 प्रतिशत था । अधिकारियों का यह भी कहना है कि कार्यरत महिलाओं की भागीदारी ने 33 प्रतिशत निर्धारित संवैधानिक न्यूनतम सीमा रेखा भी पार कर ली है । वित्तीय वर्ष 2008-09 के दौरान महिलाओं की भागीदारी 48 प्रतिशत थी जो इस वर्ष बढक़र 52 प्रतिशत तक हो गई ।

तेजी से आगे बढना
 अभी तक कानून बहुत अच्छी तरह चल रहा है । लेकिन इसके कार्यान्वयन में कहीं-कहीं बाधाएं पड़ जाती हैं । डा0 जोशी ने स्वयं बताया है, नरेगा के लिए अनेक प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं, इसके अमल के लिए कई योजनाएं बताई जाती हैं परन्तु इस पर अमल कने वाली पंचायतों के पास इस पर अमल करने के लिए समुचित स्थान नहीं है । सरकार ने इसे ध्यान में रखते हुए तीन वर्षों के दौरान देश की 2.5 लाख पंचायतों में राजीव गांधी सेवा केन्द्र खोले हैं । मंत्री महोदय ने बताया , नरेगा परियोजनाओं पर कार्यान्वयन के लिए ये लघु सचिवालयों का काम करेंगे ।

 इस बारे में सरकार ने डा0 जोशी से भी विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू कर दी हे । डा0 जोशी ने समाज के विभिन्न वर्गों और राजनीतिक नेताओं से विचार विमर्श शुरू कर दिया है । इस तरह की अनेक बैठकों के बाद संसद में राष्ट्रपति के भाषण में उल्लेख किया गया है कि नरेगा में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी । अनेक क्षेत्रीय दलों ने भी सुझाव दिया है कि केन्द्र सरकार नव- नामित महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के दायरे का विस्तार करे और इसमें नये प्रकार के कार्य शामिल करे और इसके कार्यान्वयन के लिए और अधिक पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित करे ।

 लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि इस प्रशासन प्रणाली के अंतर्गत जनता ही भाग्य निर्माता है और वही अपने विकास कार्यों की भी निर्माता है । यह एक ऐसी बात है जिस पर महात्मा गांधी ने हमेशा जोर दिया था ।

 ग्रामीण भारत के लोग, उनका कल्याण और कृषि में सुधार और ग्रामीण भारत के अन्य आयाम उन्हें हृदय से प्रिय थे । भारत हमेशा गांवों में रहता है और अब भी हमारा समाज ग्राम आधारित है । लेकिन तेजी से बदलती दुनिया और शहरीकरण का बढता दबाव प्राय: सैकड़ों लोगों को खेतों और गांवों से दूर हटा ले जाता है । शायद अधिकांश भारतीयों के लिए खेती की ओर चलाे का तर्क कठिन हो सकता है परन्तु सरकार का लक्ष्य ग्रामीण जीवन में इतना सुधार लाना है कि वह भी पर्याप्त अनुकूल रहे । अब हमारे सामने है -एम जी आर ईएमए (म्गरेमा )- परिवर्तन का सुसंवाहक ।

13 COMMENTS

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