‘‘ नया दिन नयी रात हो, जीवन खुशियों की सौगात हो‘‘

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विशाल शर्मा *,,

जीवन संघर्ष की एक मिसाल है। जहाँ सफलताओं ओर विफलताओं के अपने-अपने मायने है अपने-अपने तौर तरीके है। इंसान अपनी छोटी सी जिन्दगी मे अगर दो पल की खुशी भी अपने लिए नही सहेज पा रहा है तो सफलता की ऊँचाई कितनी ही बडी क्यों ना हो नीरसता से ही भरी हुई होगी। हर आदमी अपनी जिंदगी मे खुशियाँ चाहता है मगर उसे पाता किसे रूप मे है, ओर उसके लिए किस हद तक एवं किस दिशा मे प्रयास करता है यह एक विचारणीय प्रश्न बनता है। खुशियों के कोई मानक तो निहित नही किये जा सकते, ना ही उन्हें किसी व्यक्ति विशेष के साथ जोडा जा सकता है और ना ही किसी एक निश्चित दायरे मे उन्हे पाया जा सकता है।

एक मशहूर चित्रकार से एक रोज मैने सवाल किया कि आप हर दिन इतनी अच्छी और रंग बिरगीं चित्रकारी कैसे कर लेते है तो उन्होने बडा सीधी सी भाषा मे मेरी जिज्ञासा शान्त कर दी। उन्होने कहा एक पंक्ति मै हमेशा गुनगुनाता रहता हूँ ओर वो हर रोज अपनी नवीनता से मैरे शरीर मे ऊर्जा का संचार कर देती है । ‘‘ नया दिन नयी रात हो, जीवन खुशियों की सौगात हो‘‘ इससे जितनी बार भी मैने अपने आप को इस सोच के साथ के साथ आत्मसात किया गया कि कुछ नया है जो होने वाला है या हो रहा है परिणाम बढते आत्मविश्वास के रूप मे परिलक्षित हुआ ओर मेरी मेहनत अपना असर दिखानी लगी। मेरा इस बात को कहने का तात्पर्य यह नही है कि आप अपने कार्यक्षेत्र से तौबा कर ले और बस नये पन की तलाश मे इधर उधर भागे, या फिर सिर्फ विचारों मे ही खोये रहे। हमारे लिए होना चाहिए कि हम जिस क्षेत्र मे सक्रिय है अगर उसी क्षेत्र मे रोजाना हर चीज को जो विकास के लिए हमे अग्रसर करती हो चाहे वो विकास किसी भी स्तर का हो, अगर उसमे नवीनता जाग्रत करेगें तो निःसदेंह ऊँचाईयों के उत्कर्ष पर खुशियां बाँहे फैलाकर हमारे स्वागत के लिए आतुर रहेगी। और ऐसा एक बार ही नही हर बार होगा क्योकिं सच्चे मन ओर लगन से किया गया कार्य सफलता को सिर्फ पाता ही नही बल्कि वह जहाँ कही भी छिपी हो उसे वहीं से खींच लाता है। सफलता पाने के लिए हमे बाहर से कुछ नही माँगना होता वरन् अपने अंदर अपने आप को जगाना होता है। अपनी क्रियात्मकता और रचनात्कमता को अपनी ताकत बनाकर उसे बस अमली जामा पहनाना भर होता है। ‘‘ थ्री इडियट‘ फिल्म का एक डाॅयलाग था कि ‘ काबिल बनो सफलता झक मार कर तुम्हारे पास आयेगी ‘ जो इस बात को पूरी तरह से चरित्रार्थ करता है कि अपनी ताकत को पहचाँनो, उसे सही दिशा मे लगाओ ओर सफलता को कदम चूमने के लिए छोड़ दो।

आपकी मेहनत ओर आपका प्रयास ही आपको सफलता दिलाता है। जिस काम के लिए संद्यर्ष जितना ज्यादा होगा यकीन मानिये उसके पूर्ण होने पर उसकी सफलता की खुशी भी उतनी ही बडी होगी बशर्ते काम वही हो जिसमे आपका दिल ओर दिमाग पूरी तरह से लग सके ओर हर दिन जिसमे कुछ नया करने का जज्बा आपके अन्दर हो। हाँ पर वह जज्बा लोलुपता से परे ही होना चाहिए नही तो लोलुपता के कारण उससे मिलने वाली खुशी आपकी पूर्ति नही कर पायेगी ओर आप उन अनमोल पलों को भी यूँ ही बेकार मे जाया कर देगें। ऐसा इसलिए कि एक आदमी जो पूरे दिन जी तोड मेहनत करके चार पैसे कमाता है और अपने परिवार के खर्चो कीे पूर्ति करके आराम से चैन की नींद सोता है वहीं इसके विपरीत अगर किसी ने ज्यादा कमा लिया ओर कमाई के चक्कर मे अपनी खुशी भी ना साझा कर सका तो वह बडे ही नीरस पल होगें। आखिर ऐसी कमाई का क्या फायदा जो आपको दो पल की खुशी के लिए भी मोहताज कर दे। एक अमीर आदमी एक मजदूर या उस रिक्शे वाले की नींद से चिढता है जो उसे गरीबी मे भी इतनी उन्मुक्तता के साथ मिलती है जिसे एक अमीर अपनी दौलत के दम पर शायद ही कभी खरीद पायें। अगर उस गरीब की आमदनी सीमित है परन्तु वह संतुष्टता के साथ जीवन जी रहा है चाहे वह भले ही कितना कष्टकारी क्यों ना लगे तो उसकी ज्यादा महत्व रखती है क्योकिं वह आपाधापी की लम्बी दौड मे तो कम से कम शामिल नही है। वह अपनी जरूरतों के हिसाब से मेहनत करता है ओर उसी मे खुश रहता है चाहे कोई उसके बारे मे कुछ भी क्यों ना कहे पर उसकी बेफ्रिकी सबको निरूतर कर देती है।

खुशियों को तभी महसूस किया जा सकता है जब इच्छाओं पर हमारा अंकुश हो। परन्तु इच्छाओं को अंकुश के दायरे मे लाना थोडी सी टेढी खीर होती है, पर इतनी नही कि आदमी के वश से बाहर हो। संयमित जीवन, मजबूत इच्छाशक्ति और संकल्पित भावना के आधार पर यह सम्भव है। हमारा स्वर्णिम इतिहास इस बात का गवाह है कि इच्छाशक्ति के आधार पर किसी संकल्प किस प्रकार पूरा किया जा सकता है। इच्छायें कभी भी खत्म ना होने वाली प्रकिया है । अक्सर लोग कहते है कि इच्छायें खत्म तो मनुष्य खत्म पर क्या ये वास्तव मे सही कथन है ? इच्छायें होना अच्छी बात है पर हमारा उन पर अंकुश होना नितान्त आवश्यक है। नही तो जो मेहनत से जो सींच कर पाया है उससे अपने आपको खुशी दिलाना तो दूर की बात है और पाने की अती मे हम मिले हुए पलों को भी खो देगें। जो मिला है हमेशा उससे संतोष करना चाहिए। उसकी कामयाबी का जश्न मनाना चाहिए कि यह बडी मेहनत का फल है और अभी के लिए पर्याप्त है । फिर उसे बुनियाद बनाकर अगले कदम के लिए पाँव बढाना चाहिए तब शायद ये ज्यादा गतिशील होकर कामयाबी के नये आयामों को स्पर्श करेगा। मास्टर ब्लास्टर सचिन तैंदुलकर ने जब तक सांैवा शतक नही लगाया तब तक क्रिकेट की क ख ग को भी ना जानने वालो तक का भी एक ही सवाल होता था – आखिर कब होगा सौंवा शतक, लोग वाकायदा उस पर चर्चा परिचर्चा करने लगे लाख सवाल उनकी शैली पर उठने लगे और दलील ऐसी ऐसी कि अगर सांैवा शतक ना लगाया तो अब तक का कर धरा सब बेकार और जब सौंवा शतक लगा तो फिर सवाल कि अब इसके बाद क्या और उस खिलाडी का सर्मपण देखिये जो कहता है कि जो मिला है पहले इसे तो महसूस कर लूँ। इसे कहा जाता है महानता । कितना संयमित जबाब था ओर कितना अद्भुत भी। इच्छाओं की पूर्ति तो शायद ही किसी के लिए संभव हो पर जो प्राप्त हुआ अगर उसे सही से जी लिया जायें तो वह आने वाले कल को और स्वर्णिम बना देगा। ऐसा इसलिये भी कि नया दिन नये लक्ष्य के लिए हमेशा इंगित करता है बस जरूरत है उसे पहचानने की, दृढ संकल्प की, और उस ऊर्जा की जो हमे सकारात्मता की ओर अग्रसर कर सकें। ऐसा होने से निश्चित ही हम कामयाबी को प्राप्त कर पायेंगे और उसे जी भी पायेगें।

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

विशाल शर्मा
स्वंतत्र पत्रकार एवं अध्यनरत
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय
लखनऊ
फोनः 09411667299


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