‘‘नमो-निया से ग्रसित सेक्युलर गिरोह’’

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rashtriya swayamsevak sangh{संजय कुमार आजाद**,,}
आजकल भारतवर्ष के तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग अवचेतन अवस्था में चले गए हैं । ऐसा ‘नमो-निया’ पकड़ा है जिससे इन गिरोहों के दिल व दिमाग दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ा है।हिन्दू शब्द हीं इस गिरोह को बैसे ही भयभीत करता है जैसे भगवान श्रीकृष्ण का पांचजन्य के शंखनाद से विधर्मियों का दिल कांप उठता और वे रणक्षेत्र से पलायन कर कहीं छिप जाता ।अभी हाल ही में गुजरात राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री और देश के लोकप्रिय राजनेता श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अपने एक साक्षात्कार में अपने को हिन्दू राष्ट्रवादी कहा बस फिर क्या इस देश में भूचाल आ गया,राजनीतिक दलों के साथ-साथ बुद्धिजीवीयों का गिरोह सड़क से लेकर मीडिया रूमों में वो स्यापा मचाया मानों देश में modiआपात्काल (संविधान को बंधक बनाकर 1975 में इन्दिराजी ने आपात्काल लागू किया था) की घोषणा हो गयी हो और श्री नरेन्द्र मोदी इसके लिए दोषी हों। आखिर ‘हिन्दूत्व’इस देश की जीवन पद्धति है, यहां का स्वाभिमान है,यहां की संस्कृति और संस्कार है फिर हमें हिन्दू कहने में शर्म कैसा ?स्मरण रहे कि जबतक यह हिन्दू देश है तभी तक इन राजनीतिक दलों या बुद्धिजीवी गिरोहो को गला फाड़-फाड. कर चिल्लाने की भी छूट है भारत के जिस भी भाग में अपने को हिन्दू मानने बालों की संख्या नगण्य हुई वहां जाकर ऐ बुद्धिजीवी गिरोह की घिग्घी बॅंध जाती सारी हेकड़ी इनकी निकल जाती है।हमें ही नही हर उस देशभक्त नागरिक को भलें हीं उपासना पद्धति कुछ भी हो अपने को ‘हिन्दू’ कहलाने में गर्व महसुस करतें है।हमें गर्व है कि हिन्दू के रूप में इस पवित्र भूमि पर हमने जन्म लिया जिसे हम भोगभूमि के रूप में नहीं पुण्य भूमि के रूप में मातृभूमि के रूप में नित्य प्रति वंदन करते हैं।गर्व से सर उंचा होता है जब हिन्दू, हिन्दूत्व या हिन्दू राष्ट्रवाद की सोधी महक हमें इस पवित्र मिटृी से मिलती है। अपना स्पष्ट मत है कि-
संस्कृति सबकी एक चिरन्तन, खून रगों में हिन्दू है।  एक बड़ा परिवार हमारा, पुरखे सबके हिन्दू हैं।।
जिसे इस पवित्र भूमि के पावन सोधी महक जिसकी आत्मा हिन्दूत्व में है से नफरत है, विद्वेष है,धृणा है वह इस पवित्र मातृभूमि का संतान कभी हो ही नहीं सकता वह भारतीय,इण्डियन या हिन्दूस्तानी कदापि नहीं हो सकता क्योंकि हर वह व्यक्ति जो इस पुण्यभूमि को मातृभूमि मानता वह हिन्दू ही है उसकी पूजा पद्धति चाहे किसी भी धारा की रही हो।तथाकथित बुद्धिजीवियों और वोट के सौदागरों ने इस देश में क्या मनगढ़ंत परिभाषा और घृणित माहौल बना रखा है-आप अपने आपको भारतीय कहो इण्डियन कहो तो साम्प्रदायिक नही किन्तु यदि आाप अपने आपको ‘हिन्दू’ कह दिया तो आप साम्प्रदायिक बन गये आप देश तोड़ने वाले कातिल……. ना जाने कितने घृणित विशेषनों से इन गिरोहों के द्वारा नवाजे जाओगे।तथाकथित बुद्धिजीवियों और वोट के दलालों ने इस देश की आत्मा पर हमेशा प्रहार करने की कुत्सित प्रयास करता आया किन्तु इस देश के नागरिकों ने हमेशा इन देशद्रोहियों को धुल चटाया।डालर, यूरो और चन्द विदेशी अलंकारों के लोभ में यह गिरोह अपना आत्मसम्मान,स्वाभिमान माता और मातृभूमि का सौदा करने में भी नही शर्माते फिर हम आम नागरिक उस गिरोह के लिये क्या मायने रखते।हिटलर के प्रचार मंत्री के संतानों की ये पीढ़ि साम्प्रदायिक और देशद्रोही तत्वों का जमावड़ा है जो हिन्दू और हिन्दूत्व को पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं।सुप्रसिद्ध इतिहासकार श्री रमेशचन्द्र मजूमदार ने 1964 में दुःख के साथ नोट किया था कि-‘‘हमारे बौद्धिक विमर्श में ‘हिन्दू’ शब्द का साकारात्मक प्रयोग करना अपनी हॅंसी उड़ाने का निमंत्रण देना है’’।हॉंलाकि दूनियावाले इस देश के नागरिकों को हमेशा ‘हिन्दू’ हीं कहते आये हैं।स्वयं ‘ कार्ल मार्क्स ’ ने यहां सन् 1857-59 के विद्रोह पर लिखते हुए भारतीयों के लिए निरंतर केवल ‘हिन्दू’ संज्ञा का हीं प्रयोग किया है।
‘‘ नमो-निया’’ से ग्रसित तथाकथित बुद्धिजीवियों और वोट के सौदागरों ने भारतवर्ष में सेक्युलर का जो फैशन शो आयोजित कर रखा है उस फैशन शो के कैटवाक में एक से बढ़कर एक अपने को सेक्युलर घोषित करवाने में लगे हैं और वे लोग सेक्युलर का प्रमाणपत्र के लिये अपना सबकुछ बदलने केा तैयार है।इस सेक्युलर शब्द का 1950 से 1975 तक भारतीय संविधान में कहीं नामोनिशान नहीं था। किन्तु यह कुख्यात शब्द का प्रचलन लााशों की ढ़ेर पर राजनीति करने वाली देश में आतंकवाद तथा दहशतगर्द को संरक्षण और संवर्द्धन करने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कारकूनों ने वर्ष 1975 में संविधान का 44 वॉं संशोधन कर इस नाजायज शब्द को जायज बनाया। स्मरण रहे कि उस समय देश में आपत्काल लागु कर सारे विपक्षी नेताओं को जेलों में या उन्हे नजरबन्द कर दिया गया था, मीडिया पर सेन्सरशीप लागु थी नागरिकों के मौलिक अधिकार छिन लिये गये थे लोकतंत्र एक पार्टी की रखैल बनी थी संविधान तार-तार हो रहा था ऐसे में यह देशद्रोही शब्द लोकतंत्र के हत्यारों के द्वारा हमारे संविधान निर्मातायेंा के मूॅंह पर एक तमाचा है।आज का संविधान 1950 का संविधान जो हमारे राष्ट्र मनीषियों के द्वारा इस देश को मिला था वह नही है ।आज का संविधान आतंकवाद तथा दहशतगर्द को संरक्षण और संवर्द्धन करने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 1976 में जबरदस्ती थोपी गयी संविधान का विभत्स रूप है जिसका खामियाजा भारत का हर नागरिक आज तक भुगत रहा है।भारत में सेक्युलर पर चीखने बाले और हिन्दूत्व पर स्यापा करने वाले मार्क्स-मुल्ला-मैकाले और नेहरूवादियों के मानसपुत्रों को महान देशभक्त और राष्ट्रवादी भारतरत्न खान अब्दुल गप्फार खान ने राष्ट्रवाद का उदाहरण देते हुए कहा था कि-‘‘ हम पठान लोग पहले आर्य, फिर बौद्ध और अब मुसलमान हो गये किन्तु हमारी राष्ट्रीयता तो भारतीय हीं रहेगी।’’ वस्तुतः हिन्दू समाज को भरमाए रखना तथाकथित बुद्धिजीवियों और वोट के सौदागरों एवं पतित हिन्दूद्रोहियों का अंतिम लक्ष्य है क्योंकि यदि ये जाग्रत हुआ तो इस्लामी आतंकवाद, मिशनरी विस्तारवाद और मार्क्सवादी राष्ट्रोह को कुचल कर सशक्त भारत का निर्माण कर देगा, किन्तु कुछ पतित हिन्दू जो जयचन्दी राजनीति के आधुनिक प्रतिनिधि हैं अपनें चन्द स्वार्थ और सिक्के के लिए अपने संस्कार ,संस्कृति और आत्मसम्मान को बेचकर तमगा हासिल करने की होड़ में लगा है।इन तथाकथित बुद्धिजीवियों और वोट के सौदागरा को स्मरण रखना चाहिए कि जिसने भी हिन्दू और हिन्दूत्व को मिटाने का प्रयास किया वह स्वयं इस उदात् परम्परा में विलीन होकर इस परम्परा का वाहक बना । इतिहास साक्षी है कि हम भारत जैसे पवित्रभूमि पर पैदा हुए पले और बढ़े हैं और हमारा मस्तक गर्व से उठता है कि मैं हिन्दू हू देशभक्त हिन्दू हू जिसके रग-रग में हिन्दू राष्ट्रवाद का रक्त का संचार हो रहा है क्योंकि-
हम कचंन हैं कांच नहीं हिन्दू ही हैं ले लो अग्नि परीक्षा ।
सुख की नही देशहीत कष्ट सहने की हमने ली है दीक्षा।।
हम हारे इन्सान नहीं है हम हैं वीर विजेता।
क्रांति रक्त में बहती है हम हैं इतिहास सृजेता।।
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photo** लेखक- संजय कुमार आजाद, प्रदेश प्रमुख विश्व संवाद केन्द्र झारखंड एवं बिरसा हुंकार हिन्दी पाक्षिक के संपादक हैं |
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची
834002
मो- 09431162589

*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है *लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी  का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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