नन्दा राजजात ने दिया पहाड़ वासियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का सन्देश

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3{ मलकेश्वर प्रसाद कैलखुरी } देवभूमि उत्तराखण्ड धार्मिक आस्थाओं का भी प्रतीक है। वर्षभर यहां पारम्परिक रितिरिवाजों के अनुसार विभिन्न धार्मिक आयोजन होते रहते हैं। विषम भौगोलिक स्थिति के वावजूद अपनी मातृभूमि के प्रति लगाव के नाते यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में प्रवासी उत्तराखण्ड वासी अपनी भागीदारी निभाते रहे हैैं। इस वर्ष आयोजित श्री नन्दा देवी राजजात यात्रा में सम्मिलित होने पहुंचे क्षेत्र वासियों की बडी संख्या इस बात का प्रतीक है कि इन पहाडों में उनके पूर्वजों ने जो समृद्व सांस्कृतिक व सामाजिक विरासत की शुरूआत की है, वे उसे आगे बढ़ाने के लिये लालायित हैं।

प्रत्येक 12 वर्ष बाद आयोजित होने वाली इस राजजात यात्रा का सामाजिक व सांस्कृतिक सरोकारों को जोड़ने में बड़ा योगदान है। यद्यपि नन्दा राजजात मुख्यतः देवी नन्दा का अपने मायके से ससुराल जाने की यात्रा है, किन्तु यह यात्रा अपने साथ यात्रा मार्ग व पड़ावों के गांवों को ही नहीं अपितु पूरे उत्तराखण्ड़ के जनमानस को अपने साथ जोड रही है। मुख्यतः गढ़वाल के राजवंश के वंशजों के गांव कांसुवा से 17 अगस्त को आरम्भ हुई यह यात्रा जब अपने कुलपुरोहितों के गांव नौटी पहुंचती ह,ै तभी से क्षेत्र का पूरा वातावरण नन्दा की भक्ति में समाया हुआ है। भक्ति की शक्ति का प्रतीक यह आयोजन अपनी पुत्री को ससुराल के लिये विदा करने की तैयारियों ही जैसा है। सभी क्षेत्रवासी अपनी सामर्थ्य व श्रद्वा के अनुसार 06मां नन्दा की आराधना व सेवा में जुडे है। आज जबकि आधुनिकता के दौर में लोग अपनी परम्पराओं को भूलते जा रहे है ऐसे में श्री नन्दादेवी राजजात यात्रा का पर्व उन्हें अपनी लोक संस्कृति व धार्मिक परिवेश से परिचित कराने में सफल हो रहा है। पलायन पहाड़ की आज बडी समस्या बनी हुई है। हालांकि लगभग तीन चौथायी आवादी बेहतर भविष्य की उम्मीद व आजीविका के लिए शहरों की आवादी का हिस्सा बन गई है। ऐसे में खाली पडे इन गांवों के निवासी अपने गांवों को लौटे हैं, पुराने पडे़ जीर्ण-शीर्ण भवनों को ठीक-ठाक कर रहने लायक बना रहे हैं, मां नन्दा की यह दैविक यात्रा उन्हें अपने पैतृक गांवों में लायी है, इससे कुछ ही समय के लिये सही लगभग सभी गांव आवादी से भरे पडे़ है दशकों बाद लोग एक दूसरे से मिल रहे है अपनी आपबीती व पुरानी यादों को ताजा कर रहे हैं। उम्मीद है मां नन्दा उन्हें अपने गांवों से जुडे रहने का आशीर्वाद देगी ताकि खाली हो रहे गांव पहले की तरह हो सके। यह पर्व महिलाओं के सम्मान से भी जुड़ा है। मातृशक्ति की भक्ति की प्रतीक यह यात्रा देश व दुनियां को महिलाओं के सम्मान का भी सन्देश दे रही है। यह देवी की शक्ति का ही प्रतिफल माना जा रहा है कि यात्रा आरम्भ होने से लेकर आबादी के अपने अन्तिम गांव के पड़ाव तक पहुंचने में न कोई कठिनाई हुई और नही पानी बरसने की विशेष समस्या सामने आयी। इससे हजारों की संख्या में लोगों को इससे जुड़ने का मौका मिला।

नन्दा राजजात यात्रा ने पहाड़वासियों को अपनी जड़ों से जुड़ने का सन्देश भी दिया है। इस यात्रा का सुखद 1पहलू यह भी रहा कि यात्रामार्ग के सीमान्त गांवों में लोग अभी भी अपने पूर्वजों की परम्पराओं को संजोये हुए हैं। गावों की महिलायें हो या पुरूष अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक परिवेश को बनाये हुए है। नौटी ईड़ाबधाणी से लेकर आखिरी गांव वाण तक की यात्रा में विभिन्न पड़ावों व आसपास के ग्राम वासियों ने तन-मन-धन से जिस प्रकार यात्रा की अगवानी की तथा अपनी-अपनी परम्परा व रीतिरिवाजों के साथ देवी नन्दा से आत्मीयता से जुडे़, यह वास्तव में यहां की समृद्व सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत का परिचायक है। तमाम दुश्वारियों के बावजूद भी अपनी जमीन से जुडे़ रहने, अपनी परम्पराओं के निर्वहन में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिली। पहाड़ के लगभग हर गांव में शिव व देवी के मंदिर है। ये मन्दिर उन्हें जीवन की कठिनाइयों से उबरने की प्रेरणा देते हैं। यहां के गांवों में भादो का महिना यद्यपि प्रतिवर्ष नन्दामय रहता है। सभी गांवों में देवी नन्दा की पूजा होती है। उसके अपने मायके से ससुराल जाने की परम्पराओं का धार्मिक आयोजन होता रहता है, किन्तु प्रत्येक 12 वर्ष बाद आयोजित होने वाली इस राजजात यात्रा का अपना विशेष महत्व है। यह यात्रा पहाड़ वासियों के लिए आपसी एकता का सन्देश लेकर आयी है। इस यात्रा में जुडे़ लोग धार्मिक यात्रा का साक्षी बनने के साथ ही यहां की सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, लोकजीवनशैली तथा लोक संस्कृति से भी रूबरू हुए हैं। इस यात्रा में प्रकृति प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरण विद, जैव व भूविज्ञानी, छायाकार, पत्रकार, वृत्तचित्र निर्माता व सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग अपने-अपने उदे्श्यों की प्राप्ति के लिये यात्रा का हिस्सा बने रहे। aaसाहसिक पर्यटन भी इससे जुड़ा है। बडी संख्या में लोग इससे भी जुडे है। यहां का सुरभ्य प्राकृतिक वातावरण हिमालयी चोटियां व घाटियां सुन्दर मखमली बुग्यालों का आकर्षण उन्हें बार-बार यहां आने की प्रेरणा निश्चित रूप से देंगे। यात्रा में अपने परिवेश, अपने अतीत, अपनी विरासत व युवाओं के अपनों से जुड़ने का अद्भुत मिलन निश्चित रूप से पहाड़ के हित के लिये शुभ संकेत है।

यह यात्रा किसी को आध्यात्मिक शान्ति तो किसी को साधना का मार्ग प्रशस्त कर गई है। प्रकृति का यह अनुपम क्षेत्र आत्मिक शान्ति की राह भी लोगों को दिखा गई है। कहा जा सकता है कि इस यात्रा ने प्रवासियों को अपनी माटी से जुड़ने का अवसर दिया, तो बीती आपदा से सहमे लोगों के मन में साहस की नई उमंग भी भरी। अपनी आराध्य देवी अपनी लाड़ली (ध्याणी) के इस उत्सव में जिस तरह आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा उसके चलते यह राजजात वर्षो-वर्षो तक याद रहेगी।
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Photo of M P Kailkhuri, Assistant Directorपरिचय -:

मलकेश्वर प्रसाद कैलखुरी

 

देहरादून में उत्तराखंड सरकार में कार्यरत हैं और  सहायक निदेशक (सूचना) के पद पर नियुक्त हैं !
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2 COMMENTS

  1. मलकेश्वर प्रसाद कैलखुरी जी आपने लिखा शानदार हैं ! साथ ही आपने एक बात तो कम से कम धर्षण करने के लियें आतुक कर दिया हैं ! साधुवाद

  2. शानदार , बहुत दिनों से इच्छा थी इस जानकारी के लियें ! अगले साल ज़रूर आउंगा

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