धर्म व देश के यह मार्गदर्शक

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downloadतनवीर जाफरी**,,

                        भारतवर्ष जहां धर्म व अध्यात्म के क्षेत्र में पूरे विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है वहीं राजनैतिक जगत में भी महात्मा गांधी जैसे महान नेताओं ने विश्व में अपना सिक्का जमाया है। देश को पराधीनता से मुक्त कराने के लिए छिड़े स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अपनी शहादत देकर भारत माता के सैकड़ों वीर सुपूतों ने पूरे विश्व के समक्ष भारत के एक बलिदानी देश होने का प्रमाण प्रस्तुत किया है। इस देश को अशोक सम्राट व चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञों की धरती कहा जाता है। वहीं स्वामी रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद सहित अनेक प्राचीन ऋषियों-मुनियों, साधू-संतो की भूमि के नाम से हमारे देश की पहचान बनी हुई है। परंतु दुर्भाग्यवश अब धर्म,अध्यात्म तथा राजनीति के क्षेत्र में आज के महारथी चूंकि पथभ्रष्ट होते जा रहे हैं इसलिए अब धीरे-धीरे इसी भारतवर्ष की वह प्राचीन पहचान धूमिल होती जा रही है। और अब हमारा देश दुनिया में भ्रष्टाचार,बलात्कार,पाखंड,अंधविश्वास तथा राजनैतिक हा्रस वाले देश के रूप में प्रसिद्ध होता जा रहा है। आिखर कौन है इसका जि़म्मेदार और क्यों होता जा रहा है हमारे दश में धर्माधिकारियों व राजनीतिज्ञों में नैतिकता का पतन? क्योंकर आज के राजनीतिज्ञ व धर्माधिकारी हमारी प्राचीन सम्मानपूर्ण पहचान को कायम व बरकरार नहीं रख पा रहे हैं?

                        जहां तक धर्मक्षेत्र का प्रश्र है तो बीते समय में हमारे देश के धर्मगुरु अपने प्रवचनों,भाषणों तथा अपनी निजी दिनचर्या में जो कुछ भी कहते,करते अथवा संदेश देते थे उन्हीं दिशानिर्देशों तथा बातों का अमल वे अपने जीवन में भी किया करते थे। उदाहरण के तौर पर यदि कल के संत हमें माया मोह त्यागने की शिक्षा देते थे तो निश्चित रूप से अपने निजी जीवन में भी वे मोह माया नहीं रखते थे। उनके भीतर त्याग की भावना होती थी। वे अपने से अधिक अपने अनुयाईयों तथा समाज को खुश व सुखी देखना चाहते थे। अपने भक्तों विशेषकर नारियों,बच्चों व वृद्धजनों का सम्मान करते थे। उनके मुख से सदैव मधुर वाणी निकला करती थी। लालच तथा सांसारिक चकाचौंध से वे दूर रहा करते थे। अपने जीवन का अधिकांश समय वे तप,साधना तथा ईश्वर की आराधना में व्यतीत करते थे। वे सच्चे दिल से देश तथा विश्व की शांति की कामना करते थे और यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जब ऐसे त्यागी,तपस्वी,संत,फकीर व महात्मा अपने भक्तों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते थे तो निश्चित रूप से ईश्वर उनकी प्रार्थना सुनता भी था। परिणामस्वरूप समाज में संतोष व खुशी का वातावरण नज़र आता था और तुलनात्मक दृष्टि से विश्व में अमन व शांति कायम थी।

                        परंतु आज के दौर में हमारा देश,धर्म व राजनीति दोनों ही क्षेत्रों में भारतीय समाज के लिए अपमान का कारण बनता जा रहा है। कभी कश्मीर से यह खबर आती है कि कोई मौलवी कई वर्षों से अपनी उन छात्राओं का यौन शोषण करता रहा जो उसे अपने पिता तुल्य तो समझती ही थी साथ-साथ उससे कुरान की तालीम भी हासिल कर उसे इस्लाम धर्म का मार्गदर्शक भी मानती थीं। यह दुराचारी, पाखंडी इस्लाम का ठेकेदार बना बैठा था तथा श्रीनगर व आसपास के क्षेत्र में केबल नेटवर्क के माध्यम से टेलीविज़न पर प्रवचन देने का ढोंग भी किया करता था। आिखरकार उसके पाप का घड़ा भर गया तथा वह अपनी काली करतूतों के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। इसी प्रकार देश के सबसे बड़े विशिष्ट संत समझे जाने वाले आसाराम से जुड़ी खबरें इन दिनों आम देशवासियों को हतप्रभ कर रही हैं। अभी तक लोगों को इस बात का विश्वास ही नहीं हो पा रहा है कि स्वयं को इतना बड़ा संत व ऋषि-मुनि बताने वाला यह तथाकथित बापू इतना बड़ा व्याभिचारी तथा मासूम बच्चियों का नियमित रूप से देह शोषण करने वाला राक्षस भी हो सकता है। आसाराम के विषय में नए-नए मुकद्दमे देखकर तो निश्चित रूप से ऐसा ही प्रतीत होता है कि यह व्यक्ति जानबूझ कर संतों का वेश धारण संत समाज में दािखल हुआ। जबकि इसका असल मकसद ही अध्यात्म के नाम पर अपने भक्तजनों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करना तथा इसी बहाने धन-संपत्ति व ज़मीन-जायदाद का संग्रह करना और अपने भक्तों की बेटियों पर ही कुदृष्टि डालना मात्र था।

                                    दक्षिण भारत से भी स्वामी नित्यानंद नामक एक युवा संत के काले कारनामे उजागर हो चुके हैं। इस तरह के समाचार गत् वर्ष नई दिल्ली से भी प्राप्त हुए जबकि द्विवेदी नाम का एक इच्छाधारी ढोंगी संत लड़कियों के देह व्यापार से जुड़ा हुआ पाया गया। अब तो ऐसी खबरों का यह आलम हो गया है कि इस प्रकार की खबरें आम लोगों के लिए कोई विशेष महत्व ही नहीं रखती। ऐसी खबरों ने समाज में दूसरे शरीफ व सज्जन धर्मगुरुओं की मान-प्रतिष्ठा को भी ठेस पहुंचाई है। जो तथाकथित संत यौन शोषण में नहीं भी पकड़ा गया तो उसे धन-संपत्ति या माया मोह का चस्का लगा हुआ है। हमारे देश में ऐसे ही एक चरित्र का नाम है योग गुरु बाबा रामदेव। इनका भाषण सुनकर तो एक बार ऐसा ही प्रतीत होगा कि इनसे बड़ा राष्ट्र हितैषी,देशभक्त,मार्गदर्शक तथा अध्यात्म व राजनीति का रखवाला देश में शायद कोई दूसरा है ही नहीं। परंतु यह महाशय भी जायज़ या नाजायज़ तरीकों से जैसे भी हो अपने साम्राज्य का विस्तार करने में लगे हुए हैं। इन्हें भी कहीं अपना आश्रम खोलने के लिए ज़मीन चाहिए तो कहीं अपनी फार्मेसी स्थापित करने के लिए। दूसरों पर उंगली उठाने वाले रामदेव स्वयं यह नहीं देखते कि उनके द्वारा ली जाने वाली कोई भी ज़मीन वैधानिक रूप से उनके लेने योग्य है भी अथवा नहीं। यह महाशय अपने उत्पाद बेचने में भी इतने निपुण हैं कि इन्हें देश के अन्य करोड़ों टैक्स चोरों की तरह खुद भी टैक्स देने की िफक्र नहीं रहती। पिछले दिनों एक बार फिर सौंदर्य प्रसाधन तैयार करने वाली रामदेव की कंपनियों पर केंद्रीय उत्पाद व सीमा शुल्क विभाग ने छापामारी की। निरीक्षण के दौरान यह तथ्य उजागर हुआ कि रामदेव अपनी फैक्ट्रियों में साबुन,शैंपू जैसे कई सौंदर्य प्रसाधन भी निर्मित करते हैं जबकि ऐसी सामग्री पर उत्पाद शुल्क में किसी प्रकार की कोई भी छूट नहीं है। इस छापामारी में रामदेव की कंपनी पर 20 करोड़ रुपये के उत्पाद शुल्क की चोरी का मामला पकड़ा गया है। क्या ऐसे व्यक्ति द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध भाषण झाडऩा अथवा धर्म व अध्यात्म की शिक्षा देना न्यायोचित समझा जा सकता है?

                        हमारे देश के रखवाले समझे जाने वाले राजनीतिज्ञों का भी कमोबेश ऐसा ही हाल है। सत्ता की भूख ने इन्हें बुरे से बुरे आचरण करने पर मजबूर कर दिया है। धन-दौलत व संपत्ति के संग्रह ने इनकी आंखों पर बेशर्मी व बेहयाई का पर्दा डाल दिया है। अशोक सम्राट,रानी लक्ष्मी बाई, सुभाष चंद्र बोस, तथा महात्मा गांधी जैसे महान सपूतों की धरती पर आज के दौर में राजनीति करने वाले पाखंडी व भ्रष्टाचारी आज रिश्वत,भ्रष्टाचार,हत्या, फिरौती तथा सांप्रदायिकता व धार्मिक उन्माद फैलाने जैसे दुव्र्यसनों से जुड़े देखे जाते हैं। सांसदों अथवा विधायकों की बात क्या करनी अब तो मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री स्तर के नेता भी देश को लूट कर खाने के आरोपों में जेल की सलाखों के पीछे धकेले जाने लगे हैं। अपनी सत्ता की खातिर सांप्रदायिक दुर्भावनाएं फैलाई जा रही हैं। दंगे-फसाद व कत्लोगाऱत की राजनीति गोया वर्तमान समय की ज़रूरत बन चुकी हो। कानून के निर्माता बने बैठे लोग स्वंय कानून की अवहेलना करते देखे जा रहे हैं। हमारे देश का लोकतंत्र भीड़तंत्र में परिवर्तित होता जा रहा है। राजनीतिज्ञ लोग समाज को सही दिशा देने के बजाए समय व स्थिति के अनुसार अपने निजी स्वार्थ के मद्देनज़र अपने समर्थकों को गुमराह कर रहे हैं। अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देश को स्वतंत्र कराने व देश को विश्व में सम्मानित व मर्यादित स्थान दिलाने वाले हमारे स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेताओं के इस देश में अब भ्रष्ट,बलात्कारी, रिश्वतखोर,अपराधी,संसद में पैसे लेकर प्रश्र पूछने वाले तथा सदन में बैठकर ब्लू िफल्में देखने वाले अथवा सदन का माईक एक-दूसरे के सिर पर मारने वाले एवं अपनी धन-संपदा को दिन दुगनी और रात चौगुनी की गति से बढ़ाने वाले नेताओं का बोलबाला होता जा रहा है।

                        इन परिस्थितियों में हमें यह समझने में अधिक परेशानी नहीं होनी चाहिए कि देश व धर्म के पतन के वास्तविक जि़म्मेदार हमारे आज के यही धर्म व देश के मार्गदर्शक हैं जो कहते कुछ और हैं और करते कुछ और। अत: धर्म व देश को ऐसे दोमुंहे,पाख्ंाडी व चरित्रहीन राजनेताओं व धर्मगुरुओं तथा अध्यात्मवादियों से बचाए रखने की ज़रूरत है।

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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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