धर्म : महापुरुषों से समझें शासकों से नहीं

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– तनवीर जाफ़री –          

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अपनी एक सप्ताह की अमेरिका यात्रा पूरी की। वे इस अवसर पर दो बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से भी मिले और विश्व के अनेक प्रमुख नेताओं से भी मुलाक़ातें कीं।राष्ट्रपति ट्रम्प व  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही नेताओं ने एक दूसरे की ख़ूब प्रशंसा की। अनेक मुद्दों पर चर्चाएं भी हुईं परन्तु इन मुलाक़ातों में आतंकवाद के विषय को सबसे अधिक प्रमुखता दी गयी। ख़ास तौर पर ‘इस्लामी आतंकवाद’ का शब्द एक बार फिर इस सर्वोच्च स्तर की वार्ता के बाद ख़बरों की सुर्ख़ियां बना। ‘इस्लामी आतंकवाद’ शब्द पर बार बार इतना ज़ोर दिया गया गोया विश्व को सबसे अधिक ख़तरा उस वैश्विक आतंकवाद से है जो “इस्लाम धर्म से प्रेरित भी है और इस्लाम ही आतंकवाद का जननी धर्म भी है”। हमारे देश में भी गत एक दशक से जब कुछ उदारवादी सोच रखने वाले लोग इस्लाम धर्म के आलोचकों या इस्लाम से नफ़रत करने का सांस्कारिक पूर्वाग्रह रखने वाले लोगों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि कोई भी धर्म आतंकी नहीं होता या किसी धर्म के सभी लोग आतंकवादी नहीं होते। लिहाज़ा सभी मुस्लमान भी आतंकवादी नहीं कहे जा सकते। इस तर्क पर इन्हीं लोगों द्वारा इसी बात को घुमा फिराकर फिर इस तरह से भी पूछा जाता है कि ‘यदि सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होते फिर आख़िर सभी आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होते हैं’।निःसंदेह चौदह सौ वर्षों से भी अधिक पहले की करबला की घटना से लेकर आज के अलक़ायदा,तालिबान,आई एस,दाइश,अलशबाब,जैश,लश्कर,लशकरे झांगवी,सिपाहे सहाबा जैसे संगठनों ने दुनिया को कुछ ऐसा ही सन्देश दिया है जिससे यह समझा जाने लगा कि इस्लामी शिक्षा क़त्लोग़ारत,ख़ूनरेज़ी,हिंसा तथा बर्बरीयत को बढ़ावा देती है। रही सही कसर उन तुर्क,मुग़ल या मुस्लिम शासकों ने पूरी कर दी जिन्होंने ज़रुरत पड़ने पर अपनी सुविधा के लिए धर्म,सिंहासन और सल्तनत का गठजोड़ बनाया । ज़ाहिर है उन शक्तियों को इस्लाम को उसी क़त्लोग़ारत,ख़ूनरेज़ी,हिंसा तथा बर्बरीयत को बढ़ावा देने वाले धर्म के रूप में प्रचारित कर उसे बदनाम करने में काफ़ी आसानी हुई। और यह सिलसिला अथवा ‘मिशन’ इन दिनों भारत सहित पूरे विश्व में काफी तेज़ी से परवान चढ़ाया जा रहा है।
                           जहाँ देखिये ‘इस्लामी आतंकवाद’ का ज़िक्र ढोल पीट पीट कर किया जा रहा है। दुनिया का कोई भी देश ख़ास तौर पर कोई इस्लामी देश भी ‘इस्लामी आतंकवाद’ जैसे निरर्थक शब्द पर कोई आपत्ति करते नहीं सुनाई दिया। और अब तो यह शब्द इतना प्रचलित हो चुका है कि इसका विभिन्न भाषाओँ के शब्दकोशों में शामिल हो जाना भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। विश्व में फैलते इस प्रकार के वातावरण में सैमुएल फ़िलिप्स हटिंगटन की  ‘सभ्यताओं का संघर्ष’ की अवधारणा भी अब सही प्रतीत होने लगी है। हटिंगटन को ‘सभ्यताओं का संघर्ष’ के उनके दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है। हटिंगटन का मानना था कि शीतयुद्ध के पश्चात् दुनिया में संघर्ष का कारण किन्हीं राष्ट्रों के बीच विचारधाराओं के मतभेद नहीं बल्कि बड़ी सभ्यताओं के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक अंतर होगा। उन्होंने जिन बड़ी सभ्यताओं की पहचान की थी, वे हैं-पश्चिमी सभ्यता अर्थात यूरोपीय व अमेरिकी देश, लैटिन अमेरिकी, इस्लामी, अफ़्रीक़ी, आर्थोडाक्स अर्थात रूस व उसके अन्य सहयोगी देश, हिंदू , जापानी और सिनिक  अर्थात चीन, कोरिया और वियतनाम। हटिंगटन ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘द क्लैश ऑफ़ सिविलाइज़ेशन’ और ‘रीमेकिंग ऑफ़ वर्ल्ड आर्डर’ में अपने इस दृष्टिकोण पर विस्तार से प्रकाश डाला है। यदि हम लगभग सभी धर्मों से संबंधित प्राचीन इतिहास में पूरी ईमानदारी के साथ नज़र डालें तो हम यह भी देखेंगे कि दुनिया में अब तक सबसे अधिक हत्याएं भी धर्म के नाम का सहारा लेकर ही की गयी हैं। इन्तेहा तो यह है कि प्रेम,सद्भाव,अहिंसा,परोपकार,परमार्थ,सहयोग,दया,करुणा तथा त्याग व तपस्या की शिक्षा देने वाले वास्तविक धर्मोपदेशकों,संतों,फ़क़ीरों व धर्मगुरुओं को भी धर्म  पर चलते हुए बड़ी से बड़ी क़ुरबानी देनी पड़ी है।

                          परन्तु अफ़सोस की बात तो यह है आज के विश्व का शासक वर्ग अपनी सुविधानुसार उन्हीं क्रूर शासकों,लुटेरों या आक्रांताओं का हवाला देकर उनके धर्म को ही धर्म की शिक्षा बताने व प्रचारित करने की कोशिश कर रहा है। ज़ाहिर है इस्लाम भी इसी सोची समझी साज़िश का शिकार है। भारत से लेकर अमेरिका तक ‘इस्लामी आतंकवाद’ शब्द ‘हैलो’ शब्द की तरह एक एक व्यक्ति द्वारा दिन में कई कई बार इस्तेमाल किया जाने लगा है। अब आइये इसी सन्दर्भ में कुछ हक़ीक़तों पर भी नज़र डालते चलें। परमाणु शस्त्रों का प्रयोग अब तक केवल अमेरिका द्वारा जापान के शहरों हिरोशिमा व नागासाकी  में ही किया गया है। 74 साल पहले 6 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर पर अमेरिकी वायु सेना ने परमाणु बम गिराया था। हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम का नाम “लिटिल ब्वाय” था। यह बम अमेरिकी वायु सेना ने गिराया था। इस बम धमाके से हिरोशिमा में  20,000 से अधिक सैनिक मारे गए, लगभग डेढ़ लाख सामान्य नागरिक मारे गए। सुबह आठ बज कर 16 मिनट पर ज़मीन से 600 मीटर ऊपर बम फूटा और 43 सेकंड के भीतर शहर के केंद्रीय हिस्से का 80 फीसदी भाग नेस्तनाबूद हो गया। 10 लाख सेल्शियस तापमान वाला आग का एक गोला तेज़ी से फैला, जिसने 10 किलोमीटर के दायरे में आई हर चीज़ को राख कर दिया। शहर के 76,000 घरों में से 70,000 तहस-नहस या क्षतिग्रस्त हो गए। 70,000 से 80,000 लोग उसी क्षण मारे गए। हमले के कारण शहर के 90 फ़ीसदी डॉक्टर मारे गए थे इस कारण घायल होने वालों का इलाज जल्द से जल्द संभव नहीं हो पाया था, इस वजह से मरने वालों की संख्या में भी इज़ाफ़ा हुआ। इसी तरह नागासाकी पर हुए दूसरे परमाणु हमले में लगभग 74 हज़ार लोग मारे गए थे और इतनी ही संख्या में लोग घायल हुए थे। इस हमले के बाद लाखों लोगों पर आज भी रेडिएशन का असर बाक़ी है। क्या किसी ने इस हमले को ईसाई आतंकवाद का नाम दिया ?मानवता के विरुद्ध हुए विश्व के इस सबसे बड़े आक्रमण को क्या विश्व के लोगों ने ‘ईसाईयत’ की सीख से प्रेरित हमले की संज्ञा से नवाज़ा ? निश्चित रूप से ऐसा होना भी नहीं चाहिए था। ईसा मसीह की शिक्षाएं करुणा,दया,क्षमा,प्रेम आदि की शिक्षाएं देती हैं ऐसे मानवता विरोधी हमले की शिक्षाएं नहीं देतीं। परन्तु ईसाइ देशों ख़ास तौर पर अमेरिका की सेनाओं ने ही अब तक दुनिया में सबसे अधिक नरसंहार किये हैं और यह सिलसिला अफ़ग़ानिस्तान,इराक़,सीरिया जैसे कई देशों में आज तक जारी है। इन आक्रमणों या सैन्य घुसपैठ को हटिंगटन की  ‘सभ्यताओं का संघर्ष’ की अवधारणा के बावजूद किसी तरह के धर्मयुद्ध अथवा सभ्यताओं के संघर्ष का नाम नहीं दिया जा सकता। यह सब सत्ता के वर्चस्व,विश्व में सर्वशक्तिमान नज़र आने, सत्ता पर अपना नियंत्रण रखने और इसी मक़सद के तहत दुनिया को अलग अलग बाँटने का एक कुत्सित  प्रयास मात्र है।

                     इसी प्रकार भारत  में भी,विश्व के सामने बातें चाहे हम शांति दूत ‘महात्मा बुध’ की क्यों न करें परन्तु यही भारतवर्ष महाभारत की धरती भी है। राम-रावण युद्ध से लेकर अशोक- कलिंगा की लड़ाई तक इस धरती पर लाखों लोग मरे गए। हर जगह सत्ता व साम्राज्य की लड़ाइयां थीं। आज भी विजय दशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयंसंघ के लोग पूरे भारत में शस्त्र पूजा करते हैं। लाठी भंजन जैसा हिंसक प्रदर्शन इनके प्रशिक्षण का मुख्य हिस्सा है। देश में जगह जगह त्रिशूल दीक्षा या शस्त्र चलने की शिक्षा सत्ता से जुड़े संगठनों द्वारा दी जा रही है। परन्तु इन्हें सांस्कृतिक आयोजन कार्यक्रम बता दिया जाता है जबकि मदरसों को आतंकवादी पाठशाला प्रचारित किया जाता है।देश में महात्मा गाँधी की हत्या इस्लाम प्रेरित हत्या तो  नहीं थी? गत कुछ वर्षों से तो मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम का नाम लेकर सैकड़ों लोगों को मारा गया व हमले किये गए। इस हिंसा के लिए निश्चित रूप से न भगवन राम ज़िम्मेदार हैं न उनकी शिक्षाएं न ही हिन्दू धर्म। बल्कि यह सब सत्ता के खेल हैं जो बहुसंख्य समाज को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शातिर राजनेताओं द्वारा खेले जा रहे हैं। अन्यथा क्या इस्लामी आतंकवाद तो क्या हिन्दू या ईसाई आतंकवाद,इस तरह के शब्दों के जनक ही दरअसल वे शातिर लोग हैं जो सत्ता व सम्रज्य्वादी विस्तार या मज़बूती के लिए ऐसे शब्दों को गढ़ते रहते हैं। यदि किसी धर्म के मर्म को समझना है तो उस धर्म के शासक या राजा अथवा बादशाह के चाल चलन से नहीं बल्कि उस धर्म के महापुरुषों,संतों,फ़क़ीरों,त्यागी व बलिदानी लोगों के आचरण व उनके उपदेशों से समझना चाहिए।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

 

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

 

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

 

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

 

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