धर्म, न्याय और बन्धुतत्व की बात करने वाले स्वामी अग्निवेश

0
17

– जावेद अनीस – 

आर्य समाज के नेता स्वामी अग्निवेश जी का 81 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. वे ऐसे धार्मिक नेता थे जो मानते थे कि “संविधान ही देश का धर्मशास्त्र है.” स्वामी अग्निवेश खुद को वैदिक समाजवादी कहते थे. उनका मानना था कि ‘हमारे वास्तविक मुद्दे गरीबी सामाजिक-आर्थिक असमानताएं हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.’ वे कट्टरपंथ, सामाजिक कुरीतियों और अन्य मुद्दों पर खुल कर बोलने के लिये जाने जाते थे. उनका कहना था कि ‘भारत में धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होती है फिर भी हमारा देश घोर गरीबी और अशिक्षा से घिरा हुआ है.’ उनके पहचान और काम का दायरा बहुत बड़ा था जिसमें धार्मिक सुधार के साथ प्रोफेसर, वकील, विचारक, लेखक, राजनेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और शांतिकर्मी जैसी भूमिकायें शामिल हैं.

उनके साथी रह चुके जॉन दयाल ने उनको श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है कि ‘स्वामी अग्निवेश ने राजनीतिक मौकापरस्तों से भगवा रंग को वापस लेने की कोशिश की थी. वे जीवन भर देश के सबसे ज्यादा पीड़ित और वंचित तबकों, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों, रूढ़िवादिता और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष करते रहे करते रहे जिसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा.’ सोशल मीडिया पर उनके एक आर्य समाजी प्रशंसक ने लिखा है कि ‘स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के बाद सबसे ज्यादा गालियाँ हिन्दुओं ने स्वामी अग्निवेश जी को ही दी है.’ अपने उल्लेखनीय कामों और सेवाओं के लिये वे नोबेल की समानन्तर समझे जाने वाले ‘राइट लाइवलीहुड अवॉर्ड’ से सम्मानित हो चुके हैं.

21 सितंबर 1939 को जन्में स्वामी अग्निवेश मूल से दक्षिण भारतीय थे. उनका जन्म आंध्र प्रदेश के  श्रीकाकूलम् जिले में वेपा श्याम राव के रूप में हुआ था. उन्होंने चार साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था जिसके बाद उनकी परवरिश छत्तीसगढ़ के सक्ती नामक स्थान पर उनके ननिहाल में हुई. उन्होंने अपने उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की जहाँ से बी.काम., एम.काम. और एलएल-बी की डिग्री लेने के बाद वे सेंट जेवियर्स कालेज में लेक्चरर के तौर पर पढ़ाने लगे, इसके साथ ही वे कोलकाता हाईकोर्ट में वकालत भी करते थे. अपने छात्र दिनों में ही वे आर्य समाज के प्रगतिशील विचारों के संपर्क में आ गये थे जिसके प्रभाव के चलते 28 वर्ष की कम उम्र में उन्होंने कलकत्ता में अपने लेक्चरर और वकील  के कैरियर को त्याग दिया.1968 में वे आर्य समाज में पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और इसके दो साल बाद उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और कोलकाता से हरियाणा चले आये जो आने वाले कई दशकों तक उनकी कर्मभूमि बनी रही.

लेकिन उनके लिए संन्यास का मतलब पलायनवाद नहीं था. बल्कि उनका मानना था कि ‘राजनीति से समाज को बदला जा सकता है.’ इसलिये हम देखते हैं कि अपने संन्यास के दिन ही उन्होंने स्वामी इंद्रवेश के साथ मिलकर “आर्य सभा” नाम से एक राजनीतिक दल का गठन किया. 1974 में उन्होंने “वैदिक समाजवाद” नामक पुस्तक लिखा जिसे उनके राजनीतिक विचारों का संकलन कहा जा सकता है. उन्होंने कट्टरता, रूढ़ीवाद, अंधविश्वास के बजाये अध्यात्म से प्रेरित सामाजिक और आर्थिक न्याय को अपने दर्शन का बुनियाद बनाया. उनके विचारों पर  स्वामी दयानंद सरस्वती, गांधीजी और कार्ल मार्क्स के प्रभाव को साफतौर पर देखा जा सकता है.

वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण से भी जुड़े थे और आपातकाल के दौरान वे जेल भी गये. 1977 में वे हरियाणा के कुरुक्षेत्र विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए और हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री भी बने. बाद में मजदूरों पर लाठी चार्ज की एक घटना के चलते उन्होंने मंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया था. बाद में वे वीपी सिंह से भी जुड़े रहे और जनता दल से भोपाल लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. स्वामी अग्निवेश अन्ना हजारे की अगुवाई वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से भी जुड़े थे हालांकि कुछ समय बाद वैचारिक मतभेदों के चलते वह इस आंदोलन से दूर हो गए थे.

मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर भी उनका काम उल्लेखनीय रहा. 1981 में स्वामी अग्निवेश ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा नाम के संगठन की स्थापना की थी जिसके माध्यम से उन्होंने बंधुआ मज़दूरों की मुक्ति के लिए एक प्रभावशाली अभियान चलाया था. बंधुआ मुक्ति मोर्चा के प्रयासों से ही 1986 में बाल श्रम निवारण अधिनियम बन सका. सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ भी उन्होंने कड़ा संघर्ष किया. 1987 में उन्होंने एक युवा विधवा के सती होने की वीभत्स घटना के विरोध में दिल्ली के लाल किले से राजस्थान के दिवराला तक 18 दिन की लंबी पदयात्रा का नेतृत्व किया था. जिसके बाद पूरे देश में सती प्रथा के खिलाफ एक माहौल बना और राजस्थान हाई कोर्ट ने सती प्रथा के खिलाफ बड़ा फैसला दिया था, बाद में जिसके आधार पर भारतीय संसद ने सती निवारण अधिनियम 1987 को पारित किया था. जातिवाद के खिलाफ भी मुखर रहे और दलितों के मंदिरों में प्रवेश पर लगी रोक के खिलाफ भी उन्होंने आंदोलन चलाया था. इसी प्रकार से दिल्ली में उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अभियान चलाया, जिसके परिणामस्वरूप इसके खिलाफ कानून बना. वे भोपाल गैस पीड़ितों के लड़ाई के साथ भी खड़े रहे. भोपाल में अपने लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने इसे एक मुद्दा भी बनाया था. कुछ वर्षों पहले ही उन्होंने गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली जैसे विषम लिंगानुपात वाले राज्यों में लड़कियों के भ्रूणहत्या के खिलाफ भी अभियान चलाया था.

धर्म के नाम पर सांप्रदायिकता और असहिष्णुता के खिलाफ लड़ाई में भी वे अग्रिम पंक्ति में डटे रहे. खासकर बहुसंख्यकवादी “हिंदुत्व” विचारधारा के खिलाफ, उनका मानना था कि हिन्दुतत्व की विचारधारा हिंदू धर्म का अपहरण करना चाहता है. 1987 में मेरठ में मुस्लिम युवाओं की हत्या के विरोध में उन्होंने दिल्ली से मेरठ तक एक शांति मार्च का नेतृत्व किया जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल थे. 1999 में उड़ीसा में ऑस्ट्रेलियाई ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टीन और उसके दो बेटों की हत्या के विरोध में भी वे मुखर रूप से सामने आये. 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उन्होंने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पीड़ितों के बीच समय बिताया और इसके लिए जिम्मेदार हिंदू कट्टरपंथी संगठनों और नेताओं की खुले तौर पर निंदा की.

इसके चलते वे लगातार हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर रहे. 2018 में झारखंड में उनपर जानलेवा हमला किया गया जो कि एक तरह से उनके लिंचिंग की कोशिश थी. दुर्भाग्य से इन हमलवारों के खिलाफ कोई ठोस कारवाई नहीं की गयी और ना ही संघ-भाजपा के किसी नेता द्वारा इस हमले की निंदा ही की गयी. इसके कुछ महीनों बाद दिल्ली के भाजपा कार्यालय में जब वो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने गए थे तब भी उन पर हमला किया गया. इस हमले से उनके शरीर पर गंभीर चोटें तो आयी ही साथ ही वे बुरी तरह से आहात भी हुये.

स्वामी अग्निवेश धार्मिक व्यक्ति थे लेकिन धार्मिक कट्टरता के पुरजोर विरोधी भी थे, उनका धर्म तोड़ना नहीं जोड़ना सिखाता था, उनका धर्म राजनीति के इस्तेमाल के लिये नहीं बल्कि राजनीति को सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिये जवाबदेह बनाने के लिये था. जैसा कि योगेन्द्र यादव ने लिखा है ‘स्वामीजी हमें उस वक्त छोड़ गए जब हिन्दू धर्म और भारतीय परंपरा की उदात्त धारा को बुलंद करने की जरूरत सबसे अधिक थी.’

 

___________________

 

परिचय – :

जावेद अनीस

लेखक , रिसर्चस्कालर ,सामाजिक कार्यकर्ता

लेखक रिसर्चस्कालर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, रिसर्चस्कालर वे मदरसा आधुनिकरण पर काम कर रहे , उन्होंने अपनी पढाई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पूरी की है पिछले सात सालों से विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ जुड़  कर बच्चों, अल्पसंख्यकों शहरी गरीबों और और सामाजिक सौहार्द  के मुद्दों पर काम कर रहे हैं,  विकास और सामाजिक मुद्दों पर कई रिसर्च कर चुके हैं, और वर्तमान में भी यह सिलसिला जारी है !

जावेद नियमित रूप से सामाजिक , राजनैतिक और विकास  मुद्दों पर  विभन्न समाचारपत्रों , पत्रिकाओं, ब्लॉग और  वेबसाइट में  स्तंभकार के रूप में लेखन भी करते हैं !

Contact – 9424401459 – E- mail-  anisjaved@gmail.com C-16, Minal Enclave , Gulmohar colony 3,E-8, Arera Colony Bhopal Madhya Pradesh – 462039.

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC  NEWS.

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here