धर्मनिरपेक्षता ही भारतीय समाज का स्वभाव

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invc news ,tanveer jafri{  तनवीर जाफरी } भारतवर्ष में पहली बार कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाला राजनैतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी देश की स्वतंत्रता के 67 वर्षों बाद पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता ज़रूर हासिल कर चुकी है परंतु इसका अर्थ यह कतई नहीं लगाया जा सकता कि देश ने अपना धर्मनिरपेक्ष मिज़ाज बदल दिया है अथवा पूरा देश कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी विचारधारा के हवाले हो गया है। पिछले दिनों देश में हुए लोकसभा चुनावों में मतदान के आंकड़े स्वयं इस बात के गवाह हैं कि भारतीय जनता पार्टी को पूरे देश से लगभग 31 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों के पक्ष में 69 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया है। भाजपा के पक्ष में जिन 31 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया है उनमें भी अधिकांश मतदाता वे थे जिन्होंने पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए)सरकार के शासनकाल में बढ़ती मंहगाई तथा भ्रष्टाचार से दु:खी होकर सत्ता के विकल्प के रूप में भारतीय जनता पार्टी को चुना। परंतु भाजपा के सत्ता में आने का श्रेय कभी नरेंद्र मोदी के तथाकथित चमत्कारिक व्यक्तित्व को दिया जा रहा है तो कभी अत्यधिक उत्साही दक्षिणपंथी लोग इस राजनैतिक सत्ता परिवर्तन को यह कह कर परिभाषित कर रहे हैं कि देश अब धर्मनिरपेक्ष नहीं रहा बल्कि कट्टर हिंदुत्ववाद की राह पर चल पड़ा है। कुछ लोग इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सक्रियता का परिणाम बता रहे हैं तो कुछ कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व की कमज़ोरी। बहरहाल,जो भी हो परंतु हकीकत आज भी वही है जो सदियों पहले से थी यानी भारतीय लोगों का स्वभाव पहले भी धर्मनिरपेक्षतावादी ही था और आज भी है। हां इतना ज़रूर है कि आम लोगों के इस सेकुलर स्वभाव को झकझोरने तथा उन्हें दक्षिणपंथी सोच की राह पर लाने की भरपूर कोशिश ज़रूर की जा रही है। बड़े पैमाने पर दक्षिणपंथी विचारधारा के लेखक,पत्रकार तथा भाजपा से संबंध रखने वाले विचारक देश के लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारतवर्ष का हित तथा भविष्य हिंदुत्ववादी विचारधारा के अंतर्गत् ही सुरक्षित है।

सवाल यह है कि धर्म व संप्रदाय की राजनीति करने वाले देश कट्टरपंथ की राह पर चलते हुए अिखर क्या हासिल कर पा रहे हैं। चाहे वह अफगानिस्तान,पाकिस्तान,बंगला देश,श्री लंका,बर्मा,इराक,सीरिया अथवा हिंदू राष्ट्र की कशमकश में लगा पड़ोसी देश नेपाल हो या इन जैसे दूसरे कई देश? उपरोक्त सभी देशों में क्या कुछ घटित हो चुका है और क्या हो रहा है यह सब पूरा विश्व देख indias_heritageरहा है। कुछ चतुर बुद्धि रखने वाले राजनैतिक लोग मात्र सत्ता पर अपना नियंत्रण पाने के लिए धार्मिक उन्माद फैलाने का काम करते हैं। परिणामस्वरूप साधारण लोग जो अपनी मेहनत से अपनी रोज़ी-रोटी कमाने में लगे रहते हैं उन्हें इस धार्मिक उन्माद की आंच का शिकार होते हुए देखा जा सकता है। उन्हें कभी अपनी जान व माल का नुकसान उठाना पड़ता है तो कभी घर से बेघर होते हुए शरणार्थी बनकर एक जगह से दूसरी जगह पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जबकि हकीकत यही है कि प्राय: ऐसे सभी देशों के लोग भी स्वभावत: धर्मनिरपेक्ष ही होते हैं। जबकि कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार व प्रसार करने हेतु तथा इसकी आड़ में ज़हरीला सांप्रदायिक वातावरण बनाने हेतु गिने-चुने लोग तथा इनके द्वारा संचालित कुछ संगठन ही जि़म्मेदार होते हैं। भारतवर्ष में भी गत् 6 दशकों से यही खेल खेला जा रहा है। कुछ संगठन यदि कट्टरपंथी हिंदुत्ववाद की अलख जगाए हुए हैं तो उसके जवाब में कई राजनैतिक दल अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों का भय दिखाकर तथा उनकी रक्षा के नाम पर अपने राजनैतिक हित साधने में लगे हुए हैं। अंग्रज़ों ने भारतवर्ष में शासन पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए बांटो और राज करो की जो नीति अिख्तयार की थी उसी नीति पर भारतीय राजनैतिक दल भी चल रहे हैं। न तो कोई न्याय की बात करता दिखाई देता है न ही किसी को जन समस्याओं की िफक्र नज़र आती है। केवल और केवल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल खेला जा रहा है।

उदाहरण के तौर पर किसी धर्मस्थल पर बेवजह,बेवक्त और तीव्रगति के साथ यदि लाऊडस्पीकर बजता है और पड़ोस के लोगों को इस शोर-शराबे से आपत्ति होती है तो न्याय की बात तो यही है कि सभी को मिलजुल कर इस प्रकार से लाऊडस्पीकर का शोर-शराबा बंद करवा देना चाहिए। परंतु इसके बजाए सांप्रदायिक शक्तियां यह देखती हैं कि मंदिर पर लाऊडस्पीकर बजाए जाने का विरोध क्यों किया जा रहा है और मस्जिद पर लाऊडस्पीकर बजने का विरोध क्यों नहीं किया जा रहा।और यही बात जि़द की शक्ल अिख्तयार करती है तो मामला सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले विशेषज्ञों के हाथों में चला जाता है। परिणामस्वरूप कांठ(उत्तरप्रदेश)जैसी घटना सामने नज़र आती है। यही स्थिति गौहत्या,गौमांस के कारोबार तथा गौवंश की तस्करी के संबंध में भी है। प्राय: ऐसी रिपोर्ट आती रहती है कि तथाकथित गौरक्षा समितियों द्वारा गौ तस्करों के हाथों गाय बेची गई। कभी यह खबर आती है कि किसी गौशाला द्वारा ऐसी गायों को लाने-ले जाने हेतु प्रमाणपत्र दिया गया। कभी हिंदू समुदाय के लोग गौमांस को लाते-ले जाते अथवा दूध न देने वाली गायों को गौमांस का कारोबार करने वाले लोगों के हाथों अथवा मांस का निर्यात करने वाले कत्लखानों के सुपुर्द करने के समाचार सुनाई देते हैं। कुछ वर्ष पूर्व झज्जर में ऐसी ही घटना में आक्रोशित भीड़ ने हिंदू युवकों को जि़ंदा जला दिया था। परंतु जब भ्ी गौवंश के संबंध में बहस छिड़ती है तो उपरोक्त सभी धरातलीय तथा वास्तविकता रखने वाली बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए गौहत्या व गौमांस के कारोबार का सीधा जि़म्मेदार मात्र अल्पसंख्यक समुदाय को ही ठहरा दिया जाता है। इस विषय पर कोई गौर करने की कोशिश नहीं करता कि गौहत्या करने वाले लोगों के हाथों में गाय आिखर आती कहां से है? दूध न दे पाने वाली गाय आिखर बेची ही क्यों जाती है?

इन सब बातों का एक वाक्य में सीधा परंतु बेहद कड़वा उत्तर तो ज़रूर है परंतु राजनीतिज्ञ इस बात को स्वीकार करने का साहस दिखाने के बजाए घुमा-फिरा कर इस मुद्दे पर केवल सांप्रदायिकता की राजनीति करने की ही कोशिश करते हैं। वास्तविकता तो यह है कि मंहगाई के इस दौर में जब व्यक्ति अपने जन्मदाता माता-पिता को रोटी खिलाने तथा उनकी देखभाल कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हो तथा स्वार्थपूर्ण जीवन जीने के लिए मजबूर हो ऐसे वातावरण में बिना दूध देने वाली गाय को आिखर कौन पालना चाहेगा? आम व्यक्ति की या पेशेवर गौपालकों की बात तो दूर बड़े-बड़े धर्मस्थानों की गौशालाओं में पलने वाली गाय जब दूध देना कम कर देती है या बंद कर देती है तो उस धर्मस्थान के संचालक अथवा धर्माधिकारी स्वयं उन गायों को बदल कर उनके स्थान पर अधिक दूध देने वाली गाय लाकर बांध दिया करते हैं। क्या इन लोगों को यह मालूम नहीं कि जिस गाय को उन्होंने कम दूध देने या दूध बंद करने के कारण अपनी गौशाला से बाहर कर दिया है उसका रास्ता आिखर किस ओर जा रहा है?

उपरोक्त विषय पर आम नेताओं की तो बात क्या करनी स्वयं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी कारोबार के नाम पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में चुनावों के दौरान अपने भाषणों में देश के सीधे-सादे व साधारण लोगों की नब्ज़ पर हाथ रखने का सफल प्रयास किया। उन्होंने यूपीए सरकार को मांस के कारोबार का जि़म्मेदार ठहराते हुए गुलाबी क्रांति की निंदा की तथा इसे गलत ठहराया। आज मोदी को सत्ता में आए हुए 6 माह बीत चुके हैं। आिखर क्योंकर देश के कत्लखाने बंद नहीं किए जा रहे?  हिंदुत्ववाद का दम भरने वाली सरकार मांस के निर्यात के कारोबार को बंद क्यों नहीं कर रही है? क्या यह मुद्दा केवल भाषण देकर लोगों की भावनाओं को भडक़ाने मात्र के लिए ही था? निश्चित रूप से ऐसा ही है चाहे वह नरेंद्र मोदी द्वारा गुलाबी क्रांति के नाम पर जनता को उकसाने की बात हो या आदित्यनाथ योगी द्वारा समुदाय विशेष के विरुद्ध ज़हर उगलने की या मुज़फ्फरनगर के दंगों में शामिल लोगों को मंत्रिमंडल में शामिल करने की या फिर गिरीराज सिंह जैसे भ्रष्ट व्यक्ति को मंत्रिमंडल में जगह देने की? हर जगह केवल एक ही बात दिखाई देती है और वह है सांप्रदायिकता के नाम पर समाज का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करना और इसी रास्ते पर चलकर सत्ता हासिल करना। निश्चित रूप से अंकगणित के अनुसार दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी लोगों को वरगला कर,गुमराह कर,झूठे वादे कर तथा भविष्य के सुनहरे सपने दिखला कर सत्ता में ज़रूर आ चुकी है। परंतु भाजपा के पक्ष में पड़े मात्र 31 प्रतिशत मत इस बात का पुख्ता सुबूत पेश कर रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता भारतवासियों के स्वभाव का एक अभिन्न अंग था,है और भविष्य में भी रहेगा।

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Tanveer-Jafriwriter-Tanveer-Jafriinvc-newsTanveer Jafri

columnist and AuthorAuthor Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Email : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628

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4 COMMENTS

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