{ तनवीर जाफ़री } पिछले दिनों हरियाणा में विभिन्न आपराधिक मामलों में गिरफ्तार किए गए एक स्वयंभू धर्मगुरू रामपाल की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर कुछ तथाकथित हिंदू धर्म के शुभचिंतकों द्वारा अपने विचारों के माध्यम से यह पीड़ा जताई जा रही है कि ‘रामपाल को लेकर होने वाला शोर-शराबा हिंदू धर्म को बदनाम करने के लिए जानबूझ कर किया जा रहा है। यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं जितना कि देश के मीडिया द्वारा दिखाया व बताया जा रहा है’। ऐसे ही स्वर कुछ हिंदूवादी नेताओं द्वारा उस समय भी बुलंद किए गए थे जबकि आसाराम व उसके पुत्र नारायण साईं को उनके दुष्कर्मों व अपराधों के लिए गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे कलंकी अपराधियों के घिनौने कारनामों पर पर्दा डालने के उद्देश्य से स्वयं को हिंदू धर्म का शुभचिंतक बताने वालों द्वारा ऐसी घटनाओं के बाद फौरन धर्म का कवच ओढ़ाने का प्रयास किया जाता है। ऐसा करने से न केवल अपराधियों को शह मिलती है बल्कि इससे न्याय व्यवस्था के भी बाधित होने की संभावना बनी रहती है। आश्चर्य की बात है कि जो मु_ी भर लोग धर्म के नाम का सहारा लेकर ऐसे अपराधियों के पक्ष में खड़े नज़र आते हैं वह यह भी नहीं देखते कि उनके ऐसा करने से अपराधियों द्वारा सताया गया तथा उनके ज़ल्म-ो-सितम या कुकर्मों का शिकार पक्ष जो कि स्वयं भी हिंदू है उसके साथ यह लोग कितना अन्याय कर रहे हैं। मुझे नहीं मालूम कि इस प्रकार के अपराधियों व दुष्कर्मियों का पक्षपात करने के पीछे उनका क्या मकसद व स्वार्थ निहित होता है? ऐसे ही लोगों द्वारा एक बात और अक्सर कही जाती है कि केवल हिंदू धर्म के संतों को ही आिखर क्यों बदनाम किया जाता है? किसी अन्य धर्म के धर्मगुरुओं का इस प्रकार ‘मीडिया ट्रायल’ क्यों नहीं किया जाता। देश में जब-जब किसी धर्मगुरु के काले कारनामों से पर्दा हटा है तब-तब इस प्रकार के विचार कभी समाचार पत्रों में आलेखों के माध्यम से,कभी सोशल मीडिया पर तो कभी अख़बार को जारी किए गए वक्तव्यों के माध्यम से तो कभी संबद्ध विषय को लेकर टीवी पर चलने वाली बहस के दौरान सुनने व पढऩे को मिलते रहते हैं।
इसी प्रकार का एक बेतुका सा सवाल यह है कि जब कभी पाकिस्तान में इसी प्रकार के दुष्कर्म की कोई घटना होती है और वहां का मीडिया उसे प्रसारित करता है तो वह केवल मुस्लिम धर्मगुरुओं अथवा मुस्लिम दुराचारियों को ही क्यों निशाना बनाता है? यदि कश्मीर घाटी में इस प्रकार का कोई हादसा पेश आए तो उसमें भी मुस्लिम समुदाय के लोगों के ही शामिल होने की अधिक संभावना क्यों रहती है? ऐसा नहीं है कि बलात्कार,दुराचार तथा अपराध जैसी बातों का किसी धर्म विशेष से ही कोई वास्ता हो। और ऐसा भी नहीं है कि जानबूझ कर किसी धर्म विशेष को बदनाम करने के लिए किसी के विरुद्ध मीडिया ट्रायल किया जाता हो। दरअसल जिस किसी स्वयंभू संत के जितने अधिक अनुयायी होते हैं,उसका जितना बड़ा आश्रम होता है,समाज में उसका जितना बड़ा नाम होता है उसी के अनुसार उसके दुष्कर्मों की बदनामी भी उसके हिस्से में ज़रूर आती है। उदाहरण के तौर पर इसी टेलीविज़न ने एक-दो नहीं बल्कि कई बार यह दृश्य दिखाए जबकि अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री होते हुए आसाराम के प्रवचनों के दौरान उनके मंच पर पहुंचे तथा उसे झुककर प्रणाम किया। आसाराम ने भी एक ‘महान आत्मा’ के रूप में अपने सिंहासन पर बैठे-बैठे आशीर्वाद की मुद्रा में उनका अभिवादन किया। आसाराम का तथा इन जैसे कई संतों का महिमा मंडन समय-समय पर मीडिया करता रहता है। इस महिमामंडन का अर्थ भी यह नहीं होता कि वह खासतौर पर किसी हिंदू धर्म के धर्मगुरू का महिमा मंडन कर रहा है। बल्कि वह एक समाचार के रूप में उस आयोजन को तथा उसमें प्रधानमंत्री या अन्य राष्ट्रीय नेताओं की शिरकत को व उस संत के प्रति उनकी श्रद्धा को दिखाने का प्रयास करता है। और जब दुर्भाग्यवश वही संत बलात्कारी,दुराचारी व पाखंडी निकल आए तो मीडिया आिखर क्योंकर पीछे रहे? ज़ाहिर है जिसका उसने समय पडऩे पर महिमामंडन किया है उसी को बेनकाब करना भी मीडिया का ही काम है।
रहा सवाल इस बात का कि हिंदू धर्म के संतों पर ही मीडिया प्रहार क्यों करता है तो निश्चित रूप से भारतवर्ष हिंदू बहुसंख्या वाला देश है। यहां संख्या के अनुपात में सबसे अधिक धर्मगुरु,धर्मस्थान,आश्रम हिंदू समुदाय से ही संबद्ध हंै। इस देश में सबसे अधिक त्यौहार हिंदू धर्म से ही संबंधित हैं। सबसे अधिक सांसद,विधायक,अधिकारी,कर्मचारी,व्यापारी,उद्योगपति सभी बहुसंख्या में हिंदू धर्म से ही संबंधित हैं। अब यदि समाज से जुड़ा उपरोक्त वर्ग ही बहुसंख्या में है तो निश्चित रूप से चोर-उचक्के,बलात्कारी,भिखारी,ठग,अपराधी आदि वर्ग के लोग बहुसंख्या में किसी अन्य धर्म या समाज से जुड़े तो नहीं होंगे? साफ है कि जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी। हमारे देश में हिंदू बहुसंख्या वाले राज्यों में पाखंडी व दुराचारी स्वयंभू संतों का जब-जब नाम आया तो कभी आसाराम का नाम सुनाईदिया तो कभी नित्यानंद का। कभी रामपाल का नाम तो कभी किसी इच्छाधारी दयानंद का। परंतु जब ऐसा ही समाचार कश्मीर से सुनाई दिया तो वहां की बहुसंख्या के मुताबिक एक मुसलमान मौलवी का नाम उसके दुष्कर्मों के लिए उजागर हुआ।
गौरतलब है कि मई 2013 में गिरफ्तार किया गया गुलज़ार अहमद भट्ट उर्फ सैय्यद गुलज़ार संभवत: हमारे देश के व्याभिचारी व दुऱाचारी व स्वयंभू संतों की श्रेणी में अब तक का सबसे बड़ा अपराधी मौलवी था। यह व्यक्ति बडग़ाम जि़ले के खानसाहब क्षत्र में कन्याओं का एक धार्मिक आवासीय शिक्षण संस्थान चलाता था। वह दुनिया को दिखाने के लिए इस शिक्षण संस्थान में बच्चियों को इस्लाम और कुरान की शिक्षा देता था। परंतु वास्तव में इसने अपनी शारीरिक हवस को पूरा करने मात्र के लिए ही यह संस्थान तथा इसका आवासीय भवन बनवाया था। इस आवासीय भवन में लगभग 500 लड़कियां रहती थीं। स्वयं को पीर साहब बताने वाला यह राक्षस शकीला नाम की एक महिला को अपने शस्त्र के तौर पर इस्तेमाल करता था। शकीला ही हॉस्टल की बच्चियों के पास जाती और उन्हें समझाती कि यदि तुम पीर साहब के पास जाकर उन्हें ‘खुश’ करोगी तो तुम्हें जन्नत में जगह मिलेगी। शकीला के कहने पर लड़कियां उस जहन्नुमी स्वयंभू पीर के पास जातीं तो वह उन लड़कियों से कहता कि ‘शादी कोई ज़रूरी चीज़ नहीं है। वह कहता कि मैं तुम्हारे जिस्म के जिन-जिन हिस्सों को छू लूंगा उन हिस्सों को जहन्नुम की आग भी नहीं जला सकती। क्योंकि मैं नूर हंू तुम आग हो। और जब नूर आग से मिलेगा तो तुम्हारा पूरा जिस्म नूर बन जाएगा’। 1993 में अपनी पत्नी को तलाक देने के बाद इस पूरी तरह अनपढ़ मौलवी ने अपना यह घिनौना साम्राज्य स्थापित किया। यह खबीस मौलवी अपनी एशगाह को हुज्र-ए-पाक कहता था। और कश्मीर के जिन स्थानीय छोटे-बड़े समाचार पत्रों में यह दुराचारी शैतान मौलवी अपनी शिक्षण संस्थाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन प्रकाशित करवाता था उन्हीें अखबारों ने इस ढोंगी की पोल खुलने पर इसकी जमकर धज्जियां उड़ाईं। यह शख्स घाटी में अपना एक टीवी चैनल भी संचालित करता था। इसकी पोल खुलने के बाद लगभग 200 मासूम लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले इस मौलवी के विरुद्ध घाटी के स्थानीय मौलवी भी एकजुट हो गए थे।
इसी प्रकार चेन्नई में 14 साल की एक लडक़ी के साथ बलात्कार करने वाला एक पाखंडी मौलवी समाचार पत्रों की सुिर्खयों में रहा। जनवरी 2013 में पाकिस्तान में एक वहाबी मौलवी ने 6 वर्ष की एक लडक़ी को अपनी हवस का शिकार बनाया और पाकिस्तान के मीडिया ने कई दिनों तक उसकी जमकर खिंचाई की। कहने का तात्पर्य यह कि स्वयं को धर्म विशेष का शुभचिंतक कहने वालों पर यह कतई शोभा नहीं देता कि वह किसी अपराधी,दुराचारी,बलात्कारी व हत्यारे तथा पाखंडी धर्मगुरू के अपराधों के बेनकाब होने के बाद उस घटना को धर्म व समुदाय के चश्मे से देखना शुरु करें। उसे उसके दुष्कर्मों व अपराधों के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि इन चंद पाखंडी व दुराचारी स्वयंभू धर्मगुरुओं की काली करतूतों से हिंदू या मुसलमान अथवा कोई अन्य धर्म बदनाम होने लग जाए। धर्म का एक विशाल व असीम अस्तित्व होता है। चंद लोगों के कुकर्मों से धर्म लांछित व बदनाम नहीं होता बल्कि मैं तो यह कहूंगा कि ऐसे लोगों की पोल जितनी जल्दी खुल जाए यह उसके अपने धर्म व समाज के लिए बेहतर ही है। ऐसे लोगों के कुकर्मों से पर्दा हटाने के बाद दूसरे लोग भी सचेत हो जाते हैं तथा ऐसी कोशिश करते हैं कि वे ऐसा कोई कर्म न करें जिससे कि उनके धर्मपर आंच आने पाए। उधर दूसरी ओर भक्तजन भी ऐसी घटनाओं के बाद बहुत सोच-समझ कर व ठोक-बजा कर अपना गुरु धारण करने की कोशिश करते हैं। लिहाज़ा किसी भी दुराचारी,अपराधी व पाखंडी व्यक्ति को उसके कुकर्मों के अनुसार ही देखना चाहिए न कि उसके धर्म व समुदाय के लिहाज़ से। —————–
Columnist and AuthorAuthor Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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आपने लेख में जो लिखा हैं उसने चर्चा के मंच को बदल दिया हैं ! साभार
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