देश में आपातकाल लगाने की तैयारी

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apatkal{संजय राय**}
आज देश आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। देश की इस हालत के लिए केंद्र सरकार और उसकी  नीतियां जिम्मेदार हैं। हम केवल केंद्र सरकार को ही दोषी मानकर नहीं छोड़ सकते, दोषी विपक्षी दल भी हैं, जोकि संसद के सत्र के दौरान विभिन्न मुद्दों को लेकर संसद को नहीं चलने देते। संसद के अंदर जब देश की आर्थिक स्थिति व विदेश नीति पर कोई चर्चा ही नहीं होगी तो आम जन इसमें पिसेगा ही। देश के इस हालात के लिए सरकार के सलाहकार व योजना आयोग जिम्मेदार हैं। रुपए की कीमत प्रतिदिन गिर रही है। एक समय वह भी आएगा, जब एक डॉलर की कीमत 100 रुपए होगी तथा सैंसेक्स में आ रही गिरावट सोने के दामों में उछाल, अनाज व सब्जियों में महंगाई। वहीं, दूसरी तरफ किसानों द्वारा जमाखोरी कर प्याज के दामों में बेतहाशा वृद्धि किए जाने की साजिश, जिसमें विपक्षी दल, उनके संरक्षक बन सरकार को केवल घेरने के नाम पर अव्यवस्था फैला रहे हैं। विपक्षी दलों ने ठान रखा है कि आम जन के मुद्दों को घोटाले व अन्य बेमतलब मुद्दों में उलझा कर सरकार को घेरे व उसका ध्यान आर्थिक क्षेत्रों मेें आ रही गिरावट व अव्यवस्था की तरफ न जाकर विपक्षी दलों को मनाने में ही रहे। संसद के अंदर खाद्य सुरक्षा बिल पर कोई चर्चा न होना, संसद को व संसद की गरिमा को विश्व पटल पर गिराया जाए व छोटे राज्यों की मांग व उनके विरोध को लेकर गतिरोध उत्पन्न करना, इन विरोधी दलों का एकमात्र उद्देश्य रह गया है। उत्तर प्रदेश सरकार भी साम्प्रदायिक आग को भडक़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। वहीं, केंद्र सरकार अपने घोटालों को उजागर करने वाले समाचार पत्रों व मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए विभिन्न तरह के हथकंडे अपना रही है। केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने छोटे व मध्यम समाचार पत्रों को दी जाने वाली सुविधाओं व विज्ञापनों को पूर्णतया बंद करने की ठान ली है। मीडिया कर्मी अगर ईमानदारी से काम कर रहे हैं तथा खबरों को सच्चाई व ईमानदारी से अपने संस्थानों में प्रसारित करने का दबाव बनाते हैं तो उन्हें आर्थिक मंदी के नाम पर छंटनी कर निकाला जा रहा है। इसी प्रकार का उदाहरण आईबीएन-7 से 350 कर्मियों को एक ही दिन एक ही झटके में निकाल दिया गया तथा उन्हें धमकी भी दी गई कि अगर आप विरोध करोगे तो कहीं नौकरी लायक नहीं बचोगे।
छोटे व मझोले समाचार पत्रों के कई संगठन जो देश में अपनी दुकानदारी चला रहे हैं वे ही चुप हैं क्योंकि उन्हें भी सरकार से विज्ञापन से लेकर अन्य सुविधाएं जो मिलती हैं, उन्हें बंद किए जाने का डर सता रहा है। पत्रकार दूसरों की लड़ाई लड़ रहे हंै। सरकार की गलत नीतियों का विरोध करते हैं। वहीं, अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लडऩे के लिए साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। देश में राजनेता पूर्णतया अराजकता फैलाकर आपातकाल जैसी स्थिति बनाकर देश की दुर्दशा कर रहे हैं। हमें जागना होगा, इनके खिलाफ लडऩा होगा व सरकार व विपक्ष को अपनी गलत नीतियों को दरकिनार कर देशहित में सोचना होगा। सरकार, मीडिया और मीडिया कर्मियों पर शिक्षा व प्रतियोगी परीक्षाओं को लादने का जतन करने जा रही है, जिसका चहुं ओर विरोध हो रहा है। इसमें उन पत्रकारों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा, जिनके पास उनका अनुभव ही शिक्षा है तथा शिक्षा का कोई प्रमाण पत्र उन्होंने किसी सरकार द्वारा प्रायोजित या सरकार द्वारा उनके नुमाइंदों के पत्रकारिता विद्यालय से पुन: शिक्षा प्राप्त करना व सरकार के व्यवसायीकरण की नीति के कारण खत्म हो जाएगा। सरकार क्यों नहीं नेताओं के लिए कोई ऐसी नीति बनाती कि वे भी प्रतियोगी परीक्षाओं से ही चुनकर आते और चुनाव क्षेत्र में कूदते?
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sanjay rai*संजय राय
वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक ईशान टाइम्स समाचार पत्र समूह
फोन:-9953138266,9814826555
**लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।

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