देश का हिसाब किसके हाथ ?

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– तनवीर जाफरी – 

भारतवर्ष का आम नागरिक 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक की गई नोटबंदी की घोषणा संबंधी उस भाषण को कभी नहीं भूल सकता जिसमें उन्होंने देश की अर्थ तथा कानून व्यवस्था  संबंधी कुछ हवाले देते हुए पांच सौ व एक हज़ार रुपये के नोट के प्रचलन बंद किए जाने का सार्वजनिक रूप से एलान किया था। नोटबंदी के निर्णय के पीछे जो प्रमुख तीन कारण बताए गए थे वे थे काला धन समाप्त करना, जाली नोटों की समस्या पर काबू पाना तथा आतंकवाद के आर्थिक स्त्रोतों को बंद करना। इन घोषणाओं के साथ देश में प्रचलित लगभग 90 प्रतिशत बड़ी करेंसी प्रचलन से बाहर कर दी गई। इसके बाद देश की आम जनता पर क्या कुछ गुज़री यह भी पूरा देश देखता रहा। एटीएम के आगे मात्र दो हज़ार रुपये जैसी छोटी सी रकम निकालने के लिए लोगों की लंबी कतारें,देश के लाखों परिवारों के पास नकदी का खत्म हो जाना,हज़ारों शादियां व बीमारियों पर लोगों का असहाय होना,छोटे व मंझले दुकानदारों को पेश आने वाली नकदी की समस्याएं लगभग डेढ़ सौ लोगों का बैंक की कतार में खड़े होकर अपनी जान गंवा देना,बैंक कर्मचारियों के सिर पर स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा कामकाज का बोझ पडऩा और एक अनुमान के अनुसार लगभग पचास हज़ार औद्योगिक एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का बंद हो जाना तथा करोड़ों लोगों को बेरोज़गारी का सामना करना जैसी मुसीबतें नोटबंदी की घोषणा के बाद देश ने देखीं व झेलीं।

सवाल यह है कि क्या देशवासियों द्वारा इतनी कुर्बानी दिए जाने के बाद सरकार ने वह लक्ष्य हासिल किए जिसके लिए नोटबंदी की घोषणा की गई थी? मोदी सरकार के मंत्रियों व प्रवक्ताओं द्वारा नोटबंदी के समय यह बताया जाने लगा था कि इस फैसले के बाद आतंकवाद में कमी आ गई है और कश्मीर में पत्थरबाज़ों को पंाच सौ व एक हज़ार के नोट न मिल पाने के कारण वहां पत्थरबाज़ी में कमी आ गई है। परंतु आज तो यही नतीजा सामने दिखाई दे रहा है कि भाजपा ने जम्मू-कश्मीर कीे गठबंधन सरकार से स्वयं को अलग ही कर लिया। आिखर क्यों? जब नोटबंदी के सकारात्मक परिणाम घाटी में आतंकवाद कम कर सकते थ,े इससे पत्थरबाज़ों व आतंकवादियों के आर्थिक स्त्रोतों पर नियंत्रण पाया जा सकता था फिर आिखर गठबंधन तोडऩे की नौबत ही क्यों आई? इसी प्रकार सरकार ने नोटबंदी के द्वारा काला धन पर नियंत्रण लगाने की उम्मीद जताई थी परंतु एक हज़ार व पांच सौ के बाज़ार में प्रचलित लगभग सारी की सारी नोट जनता द्वारा बैंक खातों में जमा कर दी गई। अर्थात् जितना धन आम लोगों के पास था लगभग पूरा का पूरा सरकार के हवाले कर दिया गया। यहां भी यही सवाल किया जा रहा है कि जब लगभग 90 प्रतिशत प्रचलित बड़ी नोट बैंकों में वापस आ गई फिर आिखर काला धन बताया जाने वाला धन कहां गया? रहा सवाल जाली नोट के प्रचलन के बंद होने का तो पुरानी करेंसी का प्रचलन भले ही उस समय बंद हो गया हो परंतु सरकार द्वारा चलाई गई दो हज़ार की नई नोट भी एक बार फिर बाज़ार में अपनी जगह बनाती दिखाई दे रही है। दो हज़ार की नकली नोट के कई नेटवर्क पकड़े भी जा चुके हैं।

ऐसे में क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनकी पार्टी के नेताओं व सलाहकारों से जनता का यह सवाल मुनासिब नहीं कि वे 8 नवंबर 2016 के नोटबंदी के अपने फैसले पर देश की जनता को स्पष्टीकरण दें? वे बताएं कि नोटबंदी के बाद नोटबंदी लागू करने के बार-बार कारण बदलते रहने के बावजूद आिखर किसी एक लक्ष्य में भी उन्हें सफलता मिली या नहीं? कैशलेस या लेसकैश जैसे फार्मूले कितने सफल हुए? आज इस संबंध में भी जो हकीकत है वह भी बहुत चौंकाने वाली है। आंकड़ों के मुताबिक इस समय पहले से कहीं अधिक नकदी का लेन-देन हो रहा है। बैंकों की लाईनों में लगे लोगों का विश्वास बैंक से उठ जाने की वजह से तथा नित नए नियम लागू होने के भय से लोगों ने बैंकों से पैसे निकाल कर अपने पास रखने शुरु कर दिए हंै। इस प्रकार के अविश्वास,भय व हताशा का कारण आिखर क्या है? क्या आर्थिक क्षेत्र में इस प्रकार के वातावरण देश की अच्छी अर्थव्यवस्था का संकेत देते हैं? इस प्रकार की खबरों से अलग कुछ खबरें ऐसी भी आईं जिनसे यह भी पता चला कि नोटबंदी,लंबी कतारें,लोगों का कतार में मरना या दिन-भर भूखे-प्यासे लाईन में लगे रहना जैसी बातें तो केवल आम लोगों के लिए ही थीं। नोटबंदी लागू होने के तत्काल बाद ही कर्नाटक में भाजपा नेता रेड्डी बंधुओं के परिवार में एक शादी आयोजित हुई जिसमें दो हज़ृार व पांच सौ रुपये की नई नोट का भरपूर उपयोग किया गया। बताया जाता है कि लगभग पांच सौ करोड़ रुपये इस विवाह समारोह पर खर्च किए गए परंतु कोई किसी से पूछने वाला नहीं । इसी प्रकार केंद्रीय मंत्रियों नितिन गडकरी व अरूण जेटली के बच्चों की शादियां भी उसी दौरान संपन्न हुईं। किसी को नोटबंदी की वजह सेआर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ा।

नोटबंदी के दौरान ही यह खबर भी आई थी कि 8 नवंबर से मात्र तीन-चार दिन पहले ही पश्चिम बंगाल की भाजपा शाखा द्वारा करोड़ों रुपये बैंक में जमा कराए गए थे। परंतु यह आरोप भी शोर-शराबे में दब कर रह गया। अब एक बार फिर एक आर टी आई कार्यकर्ता द्वारा दी गई एक याचिका के जवाब में एक इतना बड़ा चौंकाने वाला खुलासा हुआ है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है। आर टी आई याचिका के उत्तर के अनुसार नोटबंदी की घोषणा के पांच दिनों के भीतर अहमदाबाद जि़ला सहकारी बैंक (एडीसीबी) में 745.59 करोड़ के प्रतिबंधित नोट जमा किए गए थे। खास बात यह है कि इस बैंक के निदेशक भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हैं जो गत् कई वर्षों से इस बैंक के निदेशक का पद संभाले हुए हैं। सन् दो हज़ार में वे इसी बैंक के अध्यक्ष भी थे। इस सहकारी बैंक में इतनी बड़ी रकम जमा होने के संदर्भ में एक बात और भी अत्यंत चिंताजनक है कि नोटबंदी के फैसले यानी 8 नवंबर 2016 के मात्र पांच दिन बाद ही अर्थातृ 14 नवंबर 2016 को सरकार की ओर से यह निर्देश भी जारी किया गया था कि किसी भी सहकारी बैंक में नोट नहीं बदली जाएगी। यह निर्देश इसी आशंका के तहत जारी किए गए थे कि काले धन को सफेद करने के लिए ऐसे बैंकों का दुरुपयोग हो सकता है। परंतु या तो यह निर्देश एडीसीबी में जमा किए गए लगभग 750 करोड़ रुपये जमा हो जाने के बाद दिए गए या फिर सरकार के निर्देशों का उल्लंघन कर एडीसीबी ने नोट जमा किए?

एक ओर तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के लगभग सभी नेता नोटबंदी के लाभ तथा इस कवायद के पीछे की असली मंशा बताने से घबरा रहे हैं तो दूसरी ओर विपक्षी दलों का सरकार पर इस विषय को लेकर किया जाने वाला हमला लगातार तेज़ होता जा रहा है। विपक्ष इसे स्वतंत्र भारत का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला बता रहा है तथा यह सवाल कर रहा है कि एडीसीबी की ही तरह गुजरात राज्य में भाजपा नेताओं द्वारा संचालित 11 जि़ला सहकारी बैंकों में नोटबंदी के दौरान केवल पांच दिनों के भीतर लगभग चौदह हज़ार तीन सौ करोड़ रुपये जमा कराए गए थे आिखर उस धन का स्त्रोत क्या था? इसी प्रकार महाराष्ट्र के भी कुछ ऐसे ही बैंकों से ऐसे ही समाचार प्राप्त हो रहे हैं। इन सवालों के बीच निश्चित रूप से 2019 के आम चुनावों में देश की जनता भाजपा नेतृत्व से नोटबंदी के फायदे व नुकसान संबंधी हिसाब ज़रूर मांगेगी।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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