देश का अगला प्रधानमंत्री कौन?

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narender modi and rahul gandhi{तनवीर जाफ़री ** } संविधान के अनुसार वर्तमान लोकसभा का कार्यकाल 31 मई 2014 को पूरा हो रहा है। ज़ाहिर है इससे पूर्व सोलहवीं लोकसभा का गठन करने हेतु पूरे देश में आम संसदीय चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो जानी भी तय है। यदि हम वर्तमान अर्थात् पंद्रहवीं लोकसभा में सत्तादल तथा विपक्ष की स्थिति पर नज़र डालें तो हमें नज़र आता है कि सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए ने 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में 37.22 प्रतिशत मत अर्जित कर 262 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। कांग्रेस यूपीए का सबसे बड़ा घटक दल था और कांग्रेस के ही नेतृत्व की यूपीए सरकार में डा० मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। उधर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अथवा एनडीए ने उन्हीं चुनावों में 24.63 प्रतिशत मत प्राप्त किए और 159 सीटों के साथ एक मज़बूत विपक्ष की भूमिका में सामने आया। अब जैसे-जैसे सोलहवीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनावों का समय करीब आता जा रहा है वैसे-वैसे अगले प्रधानमंत्री की दावेदारी व उम्मीदवारी को लेकर भी राजनैतिक घटनाक्रम काफी दिलचस्प होते जा रहे हैं।
कुछ राजनैतिक पंडितों का यह कहना है कि प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति का पद देकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक तीर से दो शिकार खेले हैं। एक तो वरिष्ठता के आधार पर मुखर्जी को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद से नवाज़ कर सोनिया गांधी ने उन्हें गांधी परिवार व पार्टी के प्रति लंबे समय तक की गई व$फादारी तथा सेवा का पुरस्कार दिया है। साथ-साथ उन्होंने प्रणव मुखर्जी जैसे कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता को राष्ट्रपति पद देकर प्रधानमंत्री पद की उनकी भविष्य की संभावित दावेदारी से भी हमेशा के लिए निजात पा ली है। गोया अब यदि सोनिया गांधी पुन:मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे रखती हैं या परिस्थितियां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में होती हैं इन दोनों ही हालात में कम से कम प्रणव मुखर्जी जैसे पार्टी के वरिष्ठतम नेता का नाम अब आड़े नहीं आएगा। कांग्रेस में ही जहां राहुल गांधी के नाम को प्रधानमंत्री पद के लिए आगे रखने हेतु एक बड़ा वर्ग सक्रिय है वहीं वित्तमंत्री पी चिदंबरम द्वारा अपने नाम के लिए इंकार करने के बावजूद उनकी दावेदारी की खबर भी चर्चा में है। कांग्रेस में बेनी प्रसाद वर्मा जैसे कुछ नेता ऐसे भी हैं जो गांधी परिवार को खुश करने तथा इसी बहाने अपनी कुर्सी पक्की रखने की गरज़ से यहां तक कहते सुनाई दे रहे हैं कि -मैं राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाकर ही मरूंगा। यह तो रही कांग्रेस के भीतर की सुगबुगाहट जो इस शर्त पर अमल में आती दिखाई दे सकती है जबकि 2014 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए को पुन:बहुमत प्राप्त हो।
ठीक इसके विपरीत विपक्ष का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अर्थात् एनडीए देश में बढ़ती हुई मंहगाई तथा गत् पांच वर्षों में हुए रिकॉर्ड स्तर के घोटालों के चलते इस बात को लेकर का$फी आशान्वित है कि 2014 के चुनावों में एनडीए को बहुमत प्राप्त होगा। ज़ाहिर है एनडीए के सहयोगी दलों में चंूकि भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ा घटक दल है इसलिए भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री के पद की दावेदारी सबसे मज़बूत समझी जा रही है। हालांकि भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अगले महीने पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के नाम की घोषणा करने की बात कही है। परंतु भाजपा की भीतरी गतिविधियां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सक्रियता तथा रणनीति व हिंदुत्ववादी मतों के मंथन किए जाने की पार्टी की कोशिशों को देखकर यही प्रतीत होता है कि भाजपा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के पद के दावेदार के रूप में पेश कर सकती है। उधर भाजपा में ही एक वर्ग ऐसा भी है जो नरेंद्र मोदी के बजाए लाल कृष्ण अडवाणी को एक बार पुन: प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित करना चाहता है।
भाजपा नेताओं की यह खिचड़ी भी तभी पक कर तैयार होगी जबकि एनडीए कम से कम अपने वर्तमान स्वरूप में बरकऱार रहे। और आगामी चुनावों में अपनी स्थिति पहले से अधिक मज़बूत करते हुए देश के मतदाताओं में सफलतापूर्वक यह संदेश दे सके कि वह वर्तमान यूपीए सरकार के विरुद्ध पूरी मज़बूती से संगठित है। भारतीय जनता पार्टी के भीतर ही प्रधानमंत्री पद के लिए हिंदुत्ववादी अथवा धर्मनिरपेक्ष चेहरे को सामने रखने को लेकर संघर्ष छिड़ा हुआ है। जहां नेरंद्र मोदी पार्टी के हिंदुत्ववादी चेहरे के रूप में देश में घूम-घूम कर हिंदुत्ववादी मतों को पार्टी से अधिक अपने पक्ष में संगठित करने की कोशिश कर रहे हैं वहीं एक दशक पूर्व तक भाजपा में कट्टर हिंदुत्ववादी राजनीति का प्रतीक समझे जाने वाले लाल कृष्ण अडवाणी अब नरेंद्र की तुलना में धर्मनिरपेक्ष दिखाई देने लगे हैं। उनकी छवि में यह परिवर्तन उनकी पाकिस्तान यात्रा के बाद तथा मोहम्मद अली जिन्ना की $कब्र पर जाकर उन्हें धर्मनिरपेक्ष नेता बताने के बाद आया था। जबकि देश में एक बड़ा वर्ग अडवाणी को अब भी उसी हिंदुत्ववादी नेता के नज़रिए से देखता है। अडवाणी व मोदी की इस छवि संबंधी उठा-पटक के बीच एक तीसरा नाम मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी उभर कर सामने आ रहा है। पिछले दिनों चौहान ने सैकड़ों मुस्लिम युवक-युवतियों का सामूहिक विवाह कराया तथा स्वयं को बड़े गर्व के साथ उन मुस्लिम वर-वधू का मामा कहकर संबोधित किया। भले ही मध्यप्रदेश में भाजपा के नेतृत्व वाली चौहान सरकार संघ के एजेंडे पर काम क्यों न कर रही हो परंतु जहां तक छवि का प्रश्र है तो चौहान ने अपने राज्य में अल्पसंख्यकों के बीच कम से कम वैसी छवि तो हरगिज़ नहीं बनाई जो नरेंद्र मोदी की 2002 के दंगों के बाद अल्पसंख्यकों में स्थापित हो चुकी है।manmohan singh and nitish kumar
परंतुृ क्या राजग देश के मतदाताओं को अपनी मज़बूती,विस्तार तथा संगठित होने का संदेश दे पाने में सफल होगा? कम से कम राजग के दूसरे सबसे बड़े सहयोगी दल जनता दल युनाईटेड के तेवरों को देखकर तो ऐसा $कतई नहीं लगता। कुछ राजनैतिक विश्लेषक तो यहां तक कह चुके हैं कि जेडीयू ने तो एनडीए से अपना नाता लगभग पूरी तरह से तोड़ लेने का मन बना लिया है। अब केवल इस आशय की अधिकारिक घोषणा करनी बाकी रह गई है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी के नाम से $फासला बनाए रखने के बहाने बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार राज्य में अल्पसंख्यकों में अपनी छवि एक मज़बूत धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में और अधिक संवारना चाह रहे हैं। वहीं वे लालू प्रसाद यादव तथा रामविलास पासवान को समर्थन देने वाले अल्पसंख्यकों को भी मोदी विरोध के नाम पर अपने साथ जोडऩा चाह रहे हैं। अब यदि 2014 तक जेडीयू व भाजपा के बीच की सगाई टूटती है तथा जेडीयू अपने दम पर तथा राज्य में अपनी सत्ता का लाभ उठाते हुए पहले से कुछ बेहतर कर दिखाती है तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नितीश कुमार स्वयं एक धर्ममनिरपेक्ष नेता के रूप में उभरकर सामने आएं एवं एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए ख़ुद  अपनी दावेदारी पेश करें। यदि नितीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू बिहार में बेहतर प्रदर्शन करता है तो ऐसा भी संभव है कि राजग के सहयोगी संगठन जोकि धर्मनिरपेक्ष राजनीति पर विश्वास करते हैं वे भी नितीश कुमार का समर्थन करें।
यूपीए व एनडीए से अलग हटकर एक तीसरा मोर्चा बनाए जाने की भी राजनैतिक खिचड़ी पक रही है। इस संभावित तीसरे मोर्चे के गठन के लिए सबसे अधिक प्रयासरत समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायमसिंह यादव नज़र आ रहे हैं। गत् वर्ष उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों में भारी विजय प्राप्त करने के बाद जब उन्होंने अपने पुत्र अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े व संवेदनशील राज्य के मुख्यमंत्री पद की जि़म्मेदारी सौंपी थी उसी समय इस बात का आभास हो गया था कि मुलायम सिंह अब पूरी फ़ुर्सत के साथ केंद्रीय राजनीति में न केवल दिलचस्पी लेंगे बल्कि इसे कुछ नई दिशा देने का भी प्रयास करेंगे। मुलायम सिंह का यह अभियान इन दिनों अपने चरम पर है। नितीश कुमार की ही तरह वे भी उत्तर प्रदेश में सत्ता में  बने होने का लाभ उठाते हुए 2014 के चुनावों में अधिक से अधिक सीटें समाजवादी पार्टी की झोली में डालने के लिए प्रयासरत हैं। पिछले दिनों उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुख्य रूप से दो बातें कहीं। एक तो उन्होंने राज्य में कम से कम 60 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित किया। दूसरे पार्टी कार्यकर्ताओं को पूरी मज़बूती के साथ चुनाव लडऩे हेतु ‘एक बूथ सौ यूथ’ का नारा देकर उनमें जोश,आत्मविश्वास तथा अपनी जीत सुनिश्चित करने का मंत्र दिया। अब यदि मुलायम सिंह यादव की रणनीति सफल रही तथा वे अपने साथ ममता बैनर्जी व वामपंथी पार्टियों को जोड़ पाने में सफल रहे तो मुलायम सिंह यादव का नाम भी अगला प्रधानमंत्री बनने वाले लोगों की सूची में शामिल हो सकता है।
उपरोक्त परिस्थितियां ऐसी हैं जिन्हें देखकर बड़े से बड़े राजनैतिक पंडितों द्वारा इस बात की भविष्यवाणी करना क़तई आसान नहीं है कि 2014 में होने वाले 16वीं लोकसभा के चुनावों के बाद किस दल की सरकार गठित होगी तथा उस सरकार का नेतृत्व कौन सा राजनैतिक दल करेगा तथा सत्तारूढ़ दल का प्रधानमंत्री के रूप में नेतृत्व कौन सा नेता करेगा?

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tanveer jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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