देशहित में नहीं है आतंकवादियों का प्रोत्साहन *

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jl{ तनवीर जाफरी ** }
भारतवर्ष में सक्रिय राजनैतिक दल व इनके नेता यह कहते हुए नहीं थकते कि हमारा राष्ट्र अखंड है तथा यहां अनेकता में एकता का वह दर्शन होता है जो दुनिया में कहीं भी नहीं दिखाई देता। परंतु जब इन्हीं राजनीतिज्ञों को आपस में एक-दूसरे को नीचा दिखाना होता है या वोट बैंक का सहारा लेकर कुछ लोगों को $खुश करने के लिए दूसरे राजनैतिक दलों पर बढ़त हासिल करने का समय आता है उस समय यही नेता कुछ ऐसे $कदम उठाने से व ऐसे बयान देने से भी नहीं हिचकिचाते जो सीधे तौर पर देश की एकता व अखंडता के लिए $खतरा साबित हो सकते हैं। इतना ही नहीं बल्कि इन्हें अपने राजनैतिक स्वार्थ साधने के लिए आतंकवाद या आतंकवादियों को समर्थन देने में भी कोई दि$क्$कत महसूस नहीं होती। संभव है इस प्रकार के अवसरवादी व क्षेत्रीय राजनीतिज्ञों को स्थानीय स्तर पर तत्कालिक रूप से कुछ लाभ अवश्य मिल जाता हो और उन्हें स्थानीय सत्ता भी प्राप्त हो जाती हो परंतु राष्ट्रहित के परिपेक्ष्य में ऐसी बातें या ऐसे $कदम किसी भी $कीमत पर उचित नहीं ठहराए जा सकते। ऐसी बातों से देश की एकता व अखंडता पर $खतरा मंडराने लगता है। जम्मु-कश्मीर,पंजाब,पूर्वोत्तर तथा अब तमिलनाडु जैसे राज्य उसी श्रेणी में गिने जा सकते हैं।
21 मई 1991 को श्रीपेरंबदूर में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या श्रीलंका के तमिल आतंकवादियों द्वारा एक आत्मघाती हमले में कर दी गई थी। इस मामले में स्थानीय अदालतों से लेकर उच्चतम न्यायालय तक की सभी अदालतों ने राजीव गांधी के हत्यारों को सज़ा-ए-मौत दिए जाने का आदेश बर$करार रखा था। इन्हें सज़ा-ए-मौत दिए जाने का सबसे अंतिम आदेश उच्चतम न्यायालय द्वारा 11 मई 1999 को जारी किया गया था जिसमें इस हत्याकांड में शामिल अपराधियों की फांसी की सज़ा बर$करार रखी गई थी। परंतु गत् 21 जनवरी को उच्चतम न्यायालय ने देश की विभिन्न जेलों में मौत की सज़ा पाए तथा लंबे समय से फांसी के फंदे की प्रतीक्षा कर रहे 15 $कैदियों की सज़ा-ए-मौत को उम्र $कैद में परिवर्तित किए जाने का आदेश दे दिया। इनमें वे तीन $कैदी संतन,मुरुगन और पोरारीवल्लन भी शामिल हैं जो राजीव गांधी हत्याकांड के दोषी हैं। इनमें से संतन और मुरुगन श्रीलंकाई तमिल हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए इस निर्णय के बाद जहां केंद्र सरकार तथा कांग्रेस पार्टी को $खासतौर पर गहरा झटका लगा वहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने इस अदालती $फैसले को अपने लिए ‘राजनीति’ करने का बेहतरीन अवसर मान लिया। जयललिता ने उच्चतम न्यायालय के इस $फैसले की तारी$फ करते हुए कहा कि चंूकि यह आरोपी 23 वर्ष जेल में बिता चुके हैं लिहाज़ा राज्य सरकार ने इन $कैदियों को रिहा करने का $फैसला किया है।
जयललिता के इस $कदम से पूरे देश की राजनीति में हलचल पैदा हो गई। चारों ओर से जयललिता के इस बयान की आलोचना की जाने लगी। इसी बीच गत् 20 $फरवरी को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश पी सदाशिवम की अध्यक्षता वाली एक तीन सदस्यीय न्यायपीठ ने तमिलनाडु सरकार को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश जारी कर जयललिता के राजनैतिक इरादों पर पानी फेर दिया। इस पूरे विवादपूर्ण घटनाक्रम को लेकर देश में एक अच्छी-$खासी बहस छिड़ गई है कि क्या नेताओं द्वारा अपने निजी व क्षेत्रीय राजनैतिक स्वार्थ साधने मात्र के लिए इस प्रकार से हत्यारों व आतंकवादियों की सहायता करना और उन्हें प्रोत्साहित करना मुनासिब है? क्या ऐसे नेताओं के ऐसे विघटनकारी $कदम देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक नहीं हैं? नेताओं के ऐसे दुष्प्रयासों का $खामियाज़ा आज देश के कई राज्यों को भुगतना भी पड़ रहा है।
ग़ौरतलब है कि जयललिता कीे पहचान तमिलनाडु राज्य में एक लिट्टे विरोधी नेता की रही है। जबकि उनके धुर विरोधी एम करुणानिधि को लिट्टे के प्रति नर्म रु$ख रखने वाले दल के नेता के रूप में जाना जाता है। देश की दो ध्रुवीय राजनीति के बीच पिछले दिनों जब वामपंथी दलों के नेताओं ने जयललिता से मुला$कात कर तीसरे मोर्चे के गठन की दिशा में अपने $कदम आगे बढ़ाने शुरु किए उसी के बाद उनके समर्थकों द्वारा तमिलनाडु में जयललिता को केवल राज्य का ही नहीं बल्कि देश की भावी नेता के रूप में प्रचारित किया जाने लगा। ऐसे में जयललिता को भी इस बात की ज़रूरत महसूस हुई कि राष्ट्रीय राजनीति के $फलक पर अपनी मज़बूती दर्शाने के लिए राज्य से अधिक से अधिक समर्थन उनके पक्ष में नज़र आना बेहद ज़रूरी है। और यही वजह है कि लिट्टे विरोधी अपने रु$ख के लिए जानी जाने वाली जयललिता ने अचानक अपनी सोच में परिवर्तन लाते हुए यह ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेल डाला। यहां एक बात और बताता चलूं कि अभी पांच माह पहले मैं तमिलनाडु गया था। वहां मुझे कई टैक्सी,रेस्टोरेंट, लोगों की प्राईवेट कारें व कई निजी बसें ऐसी नज़र आईं जिनपर प्रभाकरन की टाईगर छाप वर्दी वाले स्टीकर व उसे महिमामंडित करने वाले पोस्टर लगे हुए हैं। कहा जा सकता है कि ठीक उसी तरह जैसेे कि पंजाब में आज लाखों लोग जरनैल सिंह भिंडरावाला का $फोटो या उसके स्टिकर अपनी कारों व अन्य स्थानों पर लगाए हुए नज़र आ जाते हैं। अपराधियों व आतंकवादियों को इस प्रकार से महिमामंडित किए जाने का सीधा सा अर्थ है कि उसके समर्थक उसके प्रति अपना गहरा लगाव रखते हैं। अब ऐसे में सवाल यह है कि देश की एकता और अखंडता की दुहाई देने वाले राजनेताओं का आ$िखर फजऱ् क्या है?
क्या ऐसे अलगाववादी,अपराधी तथा आतंकवादी विचारधारा रखने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए? बेगुनाह लोगों की हत्याओं में शामिल यह लोग चाहे वे कथित रूप से अपने धर्म,समाज, क्षेत्र या बिरादरी के लिए कितने ही कल्याणकारी क्यों न नज़र आ रहे हों परंतु हत्या जैसे अपराधों में उनका शामिल होना उनकी महानता का परिचायक $कतई नहीं हो सकता। कश्मीर में अक्सर यही देखा जाता है कि स्वयं को कश्मीरियत व कश्मीर का हितैषी बताने वाला व अलगाववादी विचारधारा रखने वाला संगठन हुर्रियत कांफ़्रेंस प्राय: खुलकर सशस्त्र कश्मीरी आतंकवादियों के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है। आतंकियों को समथर््ान दिए जाने की राजनीतिज्ञों के इस स्वार्थपूर्ण $कदम का प्रभाव यह होता है कि ऐसी ज़हरीली विचारधारा के लोगों के हौसले बुलंद होते हैं। परिणामस्वरूप अलगाववादी विचारधारा और अधिक परवान चढ़ती है। और इसके नतीजे में हिंसा के और अधिक बढऩे की संभावना प्रबल हो जाती है। ज़ाहिर है ऐसी परिस्थितियां राजनीतिज्ञों के ऐसे ही विघटनकारी $कदमों के परिणामस्वरूप पैदा होती हैं। जैसाकि जयललिता द्वारा राजीव गांधी के हत्यारों के पक्ष में उठाते हुए देखा गया है।
हालंाकि उच्चतम न्यायालय ने $िफलहाल जयललिता के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। परंतु उनके इस $कदम की गंूज 2014 के संसदीय चुनाव तक ज़रूर सुनाई देगी। संभव है वे इस प्रकार का वक्तव्य देने के बाद लिट्टे समर्थक तमिलों को अपना संदेश देने में सफल भी हो गई हों तथा उन्हें इस का कुछ लाभ भी चुनावों में मिलता दिखाई दे। पंरतु इतना ज़रूर है कि वामपंथियों के साथ मिलकर तीसरे मोर्चे के गठन की जो $कवायद उनके साथ शुरु हुई थी उसे राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा झटका ज़रूर लग सकता है। संभव है कि लिट्टे समर्थक तमिलों को $खुश कर जयललिता राज्य में अधिक से अधिक संसदीय सीटें जीतने में सफल भी हो जाएं। परंतु देश की एकता और अख्ंाडता जैसे देश को एक सूत्र में बाधने वाले विषय को प्रमुखता से उठाने वाले राजनैतिक दलों की नज़रों में वे आतंकवादियों व हत्यारों की पैरवी करने वाली एक नेता के रूप में ही गिनी जाएंगी। केवल जयललिता ही नहीं बल्कि देश के सभी ऐसे संवेदनशील राज्यों में जहां स्थानीय राजनीतिज्ञ क्षेत्रवाद को हवा देकर तथा क्षेत्रीय स्तर पर आम लोगों की भावनाओं को भडक़ा कर क्षेत्रीय सत्ता हासिल करने जैसा संकुचित व सीमित $कदम उठाते रहते हैं, स्थानीय लोगों को चाहिए कि वे ऐसे नेताओं से $खबरदार रहें। भले ही वे देखने में स्थानीय लोगों के शुभचिंतक नज़र आ रहे हों परंतु राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में वे देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा $खतरा हैं। अनेकता में एकता का अर्थ पूर्वाग्रह,टकराव या अलगाववाद नहीं बल्कि देश का एक ऐसा गुलदस्ता रूपी स्वरूप होना चाहिए जिसमें नाना प्रकार के फूल राष्ट्र रूपी गुलदस्ते में अपने अलग-अलग रंग व अलग-अलग $खुश्बू संयुक्त रूप से बिखेरते हों परंतु अपने निजी सत्ता स्वार्थ के लिए अलगाववादियों या हत्यारों को प्रोत्साहित करना हरगिज़ मुनासिब नहीं है।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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