दुष्कर्मियों की यह पैरोकार महिलाएं

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India Gang Rape{निर्मल रानी**}
किसी समय में ‘विश्वगुरु’ समझा जाने वाला भारतवर्ष इन दिनों नित नई बदनामियों से रूबरू होता जा रहा है। सांप्रदायिकता,जातिवाद तथा भ्रष्टाचार जैसे लांछन तो हमारा देश दशकों से झेलता ही आ रहा है परंतु ऋषि-मुनियों व संतों की यह भूमि अब बलात्कार जैसे घृणित अपराध को लेकर पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही है। जहां देश के विभिन्न क्षेत्रों से बलात्कार के साथ-साथ वीभत्स हरकतें अंजाम दिए जाने की $खबरें आती रहती हैं वहीं देश के कई संभ्रांत लोगों के नाम भी बलात्कारियों की सूची में शामिल होते दिखाई देने लगे हैं। हद तो यह है कि समाज को सद्मार्ग दिखाने का ढोंग रचने वाले कई प्रसिद्ध तथाकथित साधू-संत, महात्मा तथा उपदेशक आदि भी इस घृणित अपराध में संलिप्त पाए जा रहे हैं। गत् वर्ष दिल्ली में तो बलात्कार की एक ऐसी घटना घटी जिसने पूरे देश के लोगों को हिलाकर रख दिया। ऐसा लगा मानों दिल्ली के ‘दामिनी’ कांड के बाद पूरा देश बलात्कार जैसे जघन्य व घृणित अपराध के विरोध में सडक़ों पर उतर आया हो। एक बड़े वर्ग ने बलात्कारियों को फांसी दिए जाने की मांग की तो कुछ ने बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की सलाह दी। कई बुद्धिजीवियों ने ऐसे मामले फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने व घटना के कुछ ही दिनों के भीतर फ़ैसला सुनाए जाने की सलाह दी। सरकार द्वारा इस दिशा में कई सकारात्मक क़दम भी उठाए गए हैं। इस घृणित अपराध का तथा इसमें शामिल दरिंदों का प्रबल विरोध करने में भारत की महिलाएं ही नहीं बल्कि देश के युवाओं तथा पुरुषों ने भी महिलाओं के स्वर से अपना स्वर मिलाया। दामिनी कांड से लेकर पिछले दिनों मुंबई में महिला $फोटोग्रा$फर के साथ हुई बलात्कार की घटना तक में पुरुष वर्ग बलात्कार जैसे अपराधों व अपराधियों का विरोध करते हुए महिलाओं से आगे नज़र आया।
बलात्कार की घटनाओं के विरोध में होने वाले इन राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों का प्रभाव देश के आम लोगों पर पड़ा या नहीं परंतु स्वयं को अध्यात्मवादी, उपदेशक तथा भगवान का अवतार बताने वाले स्वयंभू पाखंडियों पर तो कम से कम इन प्रदर्शनों अथवा बलात्कार विरोधी शोर-शराबों का कोई प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दिया। पहले भी कई बार यौन शोषण के कई आरोपों का सामना करने वाले कथित संत आसाराम ने कथित रूप से 15 अगस्त अर्थात् देश के स्वतंत्रता दिवस जैसे शुभ दिन को अपने एक भक्त की पुत्री के साथ यौन दुराचार करने के लिए चुना। $खबरों के अनुसार आसाराम ने लगभग डेढ़ घंटे तक उस नाबालिग़ कन्या के साथ यौन क्रीड़ा संबंधी वह अठखेलियां कीं जो इसकी राक्षसी व व्याभिचारी प्रवृति का खुला प्रमाण थीं। पहले भी इस पर यौन दुराचार के कई आरोप लग चुके हैं। तथाकथित संत आसाराम के समर्थकों के अतिरिक्त भारतीय संसद सहित देश के कोने-कोने से इसके विरुद्ध विरोध प्रदर्शन व इसे शीघ्र दंडित किए जाने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। परंतु आसाराम के विरुद्ध समाज में उत्पन्न यह जनाक्रोश एक बार फिर यह प्रश्न छोड़ गया कि कहीं महिलाओं को भोग-विलास की सामग्री मात्र समझने वाले तथाकथित संत आसाराम जैसे पाखंडी धर्मोपदेशक के ऐसे दुष्कर्मों पर पर्दा डालने तथा उनकी पैरवी करने का काम स्वयं महिलाएं ही तो नहीं कर रहीं? और यह भी कि कहीं महिलाओं के अंधविश्वास, उनकी आस्था व समर्पण तथा अनभिज्ञता के चलते ही ऐसे दुष्कर्मी पापियों के हौसले दिनों-दिन बढ़ते तो नहीं जा रहे हैं? ‘औरतों का पीर कभी भूखा नहीं मरता’-यह कहावत कहीं चरितार्थ होती तो दिखाई नहीं दे रही?
जोधपुर के एक गांव में स्थित अपने आश्रम में बलात्कार तथा यौन उत्पीडऩ के आरोपों के बाद जब ढोंगी आसाराम मीडिया व आम लोगों की नज़रों से अपना मुंह छिपाते हुए इधर-उधर भागते फिर रहा था उस समय ज़ाहिर है मीडिया कर्मी भी इससे मिलने व घटनाक्रम के विषय में इनका वक्तव्य सुनने के लिए बेचैन होकर इसे ढूंढते फिर रहे थे। आ$िखरकार मुंबई में एक विमान के भीतर देश के एक प्रतिष्ठित हिंदी न्यूज़ चैनल के संवाददाता की नज़र बलात्कार का आरोप झेल रहे तथाकथित संत आसाराम पर पड़ गई। कैमरे को देखकर आसाराम ने पहले तो अपनी धोती से अपना मुंह छिपाने की कोशिश की। परंतु जब मीडिया कर्मी आसाराम की ओर सवाल पूछने के लिए आगे बढ़े उस समय उनके साथ चलने वाले उनके सहयोगी दस्ते ने पत्रकार को बलपूर्वक रोकने का प्रयास किया। यहां तक कि कैमरा व कैमरामैन से धक्का-मुक्की भी की। आश्चर्य की बात यह है कि इस बलात्कार का आरोप झेलने वाले इस दुष्कर्मी संत के पक्ष में मीडिया कर्मियों से लडऩे पर उतारू होने वाली कुछ युवतियां ही थी जो आसाराम के पास मीडिया को पहुंचने से रोक रही थीं। यह कैसी विड़ंबना है कि एक ओर तो पुरुष पत्रकार महिला यौन शोषण के आरोपी को बेन$काब करने का प्रयास कर रहा था तो दूसरी ओर महिलाएं ही इस यौन अपराधी के समर्थन में विमान में मीडिया कर्मियों से भिड़ती व उन्हें आसाराम के पास जाने से बलपूर्वक रोकती दिखाई दे रही थीं? यह असहज स्थिति आखिर यौन अपराधियों व बलात्कारियों के हौसले बढ़ाने वाली तथा बलात्कार व यौन अपराधों से पीडि़त महिलाओं की विरोधी है अथवा नहीं?
इसी प्रकार आसाराम पर लगने वाले यौन शोषण के आरोप के तत्काल बाद उनके समर्थन में सबसे पहला वक्तव्य देने वाली भारतीय जनता पार्टी की नेत्री उमा भारती थीं। सबसे पहले उमा भारती ने आसाराम को क्लीन चिट देने का काम किया। उनके वक्तव्य के बाद विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगडिय़ा तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भारतीय जनता पार्टी के कई नेतागण एक के बाद एक आसाराम के पक्ष में खड़े होते दिखाई देने लगे। उमा भारती सहित इन सभी ने आसाराम को श्रेष्ठ चरित्र प्रमाण पत्र बिना मांगे जारी कर डाला। सवाल यह है कि तथ्यों को समझे-परखे तथा पीडि़त युवती से बात किए बिना उमा भारती जैसी साध्वी महिला नेत्री को आसाराम को क्लीन चिट दिए जाने की आखिर क्या ज़रूरत थी? जब उमा भारती जैसी जि़म्मेदार महिलाएं ऐसे पाखंडियों व दुराचारियों के पक्ष में खड़ी होने लगेंगी फिर आखिर यौन शोषण का शिकार होने वाली महिलाएं अपने पक्ष में खड़े होने की उम्मीद किस से करेंगी? आखिर किन परिस्थितियों, किन मजबूरियों के कारण उमा भारती ने आसाराम को क्लीन चिट दी? इसी प्रकार यह खबरें भी आईं कि पीडि़त युवती व उसके परिवार को आसाराम के विरुद्ध और सक्रिय न होने तथा यौन शोषण का शिकार युवती को मनाने के लिए व उसे आसाराम के विरुद्ध बयान न देने के लिए बाध्य करने हेतु आसाराम के चेलों की जो टीम पीडि़ता व उसके परिवार से मिलने पहुंची उनमें भी दुर्भाग्यवश कई महिलाएं शामिल थीं। कहा यह जा रहा है कि आसराम अपनी वासना की पूर्ति के लिए जिस कन्या अथवा युवती को अपना निशाना बनाता है उसे उसके इर्द-गिर्द रहने वाले महिलाएं ही झूठ-सच बोलकर तथा तरह-तरह के प्रलोभन देकर यहां तक कि भगवान व स्वर्ग के दर्शन कराने जैसी लुभावनी बातें बताकर इसके बिस्तर तक पहुंचाने की भूमिका अदा करती हैं।
यदि सही मायने में देखा जाए तो ऐसे ढोंगी,दुष्कर्मी व पाखंड का पर्याय बने बैठे ऐसे तथाकथित संतो को $फर्श से अर्श तक पहुंचाने की जि़म्मेदार भी पुरुष कम बल्कि महिलाएं ज़्यादा हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि ऐसे ढोंगियों के कथित सत्संग में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से अधिक होती है। बल्कि यही महिलाएं अपने परिवार के पुरुषों को भी अपने साथ ऐसी जगहों पर ‘प्रवचन’ सुनने हेतु चलने के लिए बाध्य करती हैं। बिना किसी ठोस बात के अथवा बिना किसी प्रसंग के महिलाओं द्वारा ऐसे ढोंगी संतों के प्रवचन के बीच में तालियां बजाना, इनका झूमना यहां तक कि भरी भीड़ में खड़े होकर नाचने लग जाना ऐसे ढोंगियों को बल व स्फूर्ति प्रदान करता है। और यही महिलाएं आगे चलकर ऐसे ढोंगियों को केवल गुरु अथवा श्रेष्ठ व्यक्ति का नहीं बल्कि अवतारी पुरुष अथवा भगवान तक का दर्जा दे बैठती हैं। और ज़ाहिर है जब किसी व्याभिचारी प्रवृति के व्यक्ति को समाज की महिलाएं भगवान अथवा ईश्वरीय अवतार समझने लग जाएं फिर किसी दुष्कर्मी को महिलाओं को भोग अथवा यौन क्रीड़ा की वस्तु मात्र समझने में आखिर दिक्कत क्या होगी? लिहाज़ा कहा जा सकता है कि हमारे देश में यौन दुराचार तथा बलात्कार जैसी बदनामियों का सामना कर रहे दुष्कर्मियों का हौसला बढ़ाने, उनकी पैरवी करने तथा उनके अपराधों पर पर्दा डालने के लिए महिलाएं भी कम जि़म्मेदार नहीं हैं।
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Nirmal Rani**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728
*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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