– के के कपिला –
दिल्ली में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत परिवहन है और शहर के प्रदूषण में इसका 18 से 39 फीसदी योगदान है। दिल्ली में वायु प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा कारण सड़कों की धूल है, जिसकी प्रदूषण में हिस्सेदारी 18 से 38 फीसदी तक है। इसके बाद उद्योग दिल्ली के वायु प्रदूषण में 2 से 29 फीसदी और बिजली संयंत्र 3 से 11 फीसदी योगदान करते हैं। पांचवां सबसे बड़ा स्रोत निर्माण कार्य है, जो 8 फीसदी वायु प्रदूषण फैलाता है।
कंसल्टिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की इन्फ्रास्ट्रक्चर कमेटी के चेयरपर्सन और भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) की इन्फ्रास्ट्रक्चर कमेटी के को-चेयरपर्सन की हैसियत से मैं दोनों संस्थाओं की ओर से दिल्ली सरकार और उसके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नुकसानदेह वायु प्रदूषण से निपटने के कुछ व्यावहारिक और कारगर उपाय सुझाना चाहता हूं।
भावी पीढ़ियों के लिए यह ग्रह रहने लायक बना रहे, यह सुनिश्चित करने के लिए स्थिति से निपटने के फौरी उपाय करने के बजाय प्रदूषणकारी तत्वों को उनके स्रोत पर ही खत्म कर देना चाहिए। वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिए ढेर सारी योजनाएं बनाने की नहीं बल्कि अपनाए गए उपायों को ठीक तरह से लागू करने और उनकी निगरानी करने की जरूरत है। प्रभावी तथा टिकाऊ समाधान के लिए दिल्ली तथा उसके पड़ोसी राज्यों के बीच तालमेल बेहद जरूरी है।
परिपक्व और अनुभवी प्रशासक और पेशेवर होने के नाते अब प्राथमिकता वाले उपाय शुरू करने के लिए उत्प्रेरक का काम करने का समय आ गया है। इन उपायों में जीवाश्म ईंधन (पेट्रोल, डीजल आदि) का इस्तेमाल करने तथा विद्युत एवं सौर ऊर्जा में निवेश करने के रास्तों और साधनों को बढ़ावा देना भी शामिल है।
अधिक प्रदूषणकारी वाहनों को शहरों से दूर रखना और उन्हें समाप्त करने की योजना बनाकर उसे लागू करना।
सुनियोजित तथा क्रियान्वित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, जिसमें मेट्रो तथा बस सेवाएं शामिल हों। सड़कों का बेहतर रखरखाव तथा यातायात प्रबंधन ताकि यात्रा में कम समय लगे।
टेल पाइप ट्रीटमेंट तकनीक अपनाकर बिजली संयंत्रों से वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन पर नियंत्रण करना। इसे फौरन शुरू करने और प्राथमिकता के साथ लगभग छह महीने में पूरा करने की जरूरत है। ईंट भट्ठों को तय अवधि – मान लीजिए एक वर्ष – में जिगजैग तकनीक अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना। जो ऐसा नहीं करें, उन्हें बंद कर दिया जाए।
अधिक प्रदूषण वाले स्थानों को पहचानकर (प्रायोगिक परियोजना के रूप में) स्मॉग टावर लगाना। प्रदूषण नियंत्रण के उपाय नहीं करने वाले निर्माण स्थलों पर जुर्माना लगाना। सभी प्रकार के कचरे के लिए कुशल कचरा प्रबंधन, उसके लिए जरूरी प्रशिक्षण एवं बजट प्रदान करना, कचरा जलाने पर भारी जुर्माना लगाया जाए। इसे सबसे प्राथमिकता के साथ अगले 6 से 9 महीने में शुरू करना।
प्रदूषण करने वाले उद्योगों पर समुचित एवं प्रभावी नियंत्रण करना तथा तकनीकी समाधान में उनकी मदद करना और समाधानों का क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करना। इसके लिए कम ब्याज दर पर वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए। जो उद्योग इन उपायों को नहीं अपनाए, उसे बंद कर दिया जाए।
कृषि क्षेत्र में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देना ताकि उन्हें खेतों में बची पराली जलाने से रोका जा सके। इन तकनीकों का इस्तेमाल करने वालों को उचित तरीके से पुरस्कृत किया जाए, कंपोस्ट संयंत्र लगाने में मदद की जाए। कुल मिलाकर सभी का फायदा करने वाले विकल्प तलाशे जाएं।
सड़कों के किनारे हरित गलियारे बनाए जाएं, ऊंची इमारतों पर वर्टिकल गार्डन लगाए जाएं।
वायु प्रदूषण बढ़ने पर अधिक पार्किंग शुल्क वसूला जाए ताकि गंभीर स्थिति होने पर लोग वाहनों का प्रयोग कम करें।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित सर्वश्रेष्ठ उपाय अपनाए जाएं, जैसे कंजेशन प्राइसिंग यानी मांग बढ़ने पर अतिरिक्त शुल्क। साथ ही वायु प्रदूषण की लगातार निगरानी करने और उसे काबू में रखने के लिए समुचित एवं प्रभावी रणनीतियां अपनाई जाएं। करोल बाग बाजार की तर्ज पर वाहन मुक्त क्षेत्र पहचाने और बनाए जाएं।
सूचना या जानकारी की पारदर्शिता होने पर समाज के सभी तत्वों को स्वच्छ हवा के पर्यावरणीय उद्देश्य प्राप्त करने में सहभागिता का मौका मिलेगा। पर्यावरण संरक्षण के उपायों को मजबूती देने और अधिक स्वच्छ तथा अधिक हरित एनसीआर बनाने में मदद करने के लिए जनता और सभी हितधारकों को साथ लिया जाए।
हमें यकीन है कि ऊपर बताए गए उपायों को एक साथ लागू करने तथा उन पर लगातार नजर रखने से दिल्ली एनसीआर की वायु गुणवत्ता में बहुत सुधार होगा।
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About the Author
K K Kapila
Author & Consultant
Co-Chairperson, FICCI Infrastructure Committee And Chairperson, Infra Committee,Consulting Engineers Association of India (CEAI) And Former Chairman, Geneva based International Road Federation (IRF) .
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