दिल्ली की सरकार – जनता के आम के आम गुठलियों के दाम ?

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aap{सोनाली बोस**}
इन दिनोँ राजनैतिक परिवेश कुछ बदला बदला सा नज़र आता है। आज आम आदमी का किरदार सर्वोपरी हो चुका है। भारतीय संविधान में जनता का असली रोल अब शायद सही मायनोँ में नज़र आने लगा है। अपने नागरीक होने के कर्तव्य और दायित्व को तो हम सभी हर आम चुनावोँ में पूरा करते आ रहे हैं लेकिन अब असल और शाब्दिक अर्थ में आम आदमी की  राजनैतिक भागीदारी को ”आम आदमी पार्टी” ने दिल्ली विधानसभा चुनावोँ के आधे अधूरे परिणाम के बाद एक नये कलेवर में परिभाषित किया है। विधानसभा चुनाव में 28 सीटेँ हासिल करने वाली ‘आप’ ने उप राज्यपाल के सरकार बनाने के न्योते को यह कहकर फिलहाल हाशिये पर रख दिया है कि वो अपने सरकार बनाने या ना बनाने के फैसले को अकेले नहीं लेगी।इस अहम मुद्दे में वो अपने समर्थकोँ और उन्हेँ चुनने वाले वोटरोँ का भी रोल चाहती है। कांग्रेस या  भाजपा से किसी भी तरह का  समर्थन लेने या देने से गुरेज़ करने वाली ”आप” को जब कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देने का  फैसले किया है तभी से इस पार्टी की असमंजस की हालत देखते ही  बनती है।

Sheilaलेकिन एक बात तो ये भी है कि जहाँ आज आम आदमी राजनीति के प्रति उदासीन है वहीँ इस मायूसी के दौर में आम आदमी पार्टी की जीत अच्छाई की जीत है। हमने अक्सर हमारे बचपन में बुराई पर अच्छाई की जीत वाली कहानियां भी सुनी हैं। ”आप” की जीत जातीय समीकरणों के मायने और अहमियत को बताती है। ये हम हमेशा से सुनते आये हैं कि राजनीति का खेल गंदगी, पैसे और बाहुबल का है, ईमानदारी और पारदर्शिता का नहीं। और हमारे बुज़ुर्ग कहते भी आये हैं कि राजनीति अच्छे लोगों के लिए नहीं है।  हमारे देश का चुनावी इतिहास ऐसी मिसालों से पटा हुआ है कि कैसे अच्छे उम्मीदवार हारने के लिए इलेक्शन में खड़े होते हैं।शायद इसी तरह के उदाहरणोँ ने इस देश के पढ़े लिखे और युवाओँ को सियासत में आने से हमेशा रोका। लेकिन अपने पहले ही चुनाव में व्यापक जनसमर्थन हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी ने इस परंपरागत रुझान को बदल डाला है और फिर से इस खेल की बाज़ी को जीतने के नियम क़ायदे बदल डाले हैं। ”आप” ने हासिल किया है ये रूतबा दिलेरी, ईमानदारी, युवाओँ की भागीदारी, आदर्श, और जनता के मुद्दोँ को सर्वोपरी रख कर।

Dr Harshvardhanफिर भी एक बात बार बार दिमाग में कौंधती है कि सरकार बनाने के मुद्दे पर आज आम आदमी पार्टी को फिर से जनता के पास क्योँ जाना पड़ रहा है? ‘जन राय’ या जनता की राय जानने के लिये आज ‘आप” उसी जनता के पास फिर पहुंची है जिसने उसपर भरोसा कर 28सीटो पर क़ाबिज़ किया था। क्या अब हर कदम पर जनता की राय लेने का ये तरीका आगे भी ”आप” के सिस्टम में रहेगा या फिर अपने शुरूआती लड़खड़ाए हुए कदमो को संभालने और खुद के नाम को सार्थक करने के लिये आम आदमी पार्टी आम आदमी के पास जा रही है, क्या अपने लोकलुभावन वादोँ को पूरा ना करने का डर और हर लम्हे की कड़ी परीक्षा से आज वो अपने ही जाल में फंसती भी नज़र आ रही है। ऐसा क्यूँ हुआ है? किसी भी दल से समर्थन ना लेने देने के अपने अटल इरादे से आज आप क्यूँ पसोपेश में है? क्यूँ ”आप” अपने ही उसूलोँ के खिलाफ़ जाने को बाध्य हुई है? क्या अब जनता के सवालोँ की मार से बचने के लिये ये पार्टी खुद जनता को इसीलिये शामिल करना चाहती है ताकि उसके हर कदम और हर निर्णय की कामयाबी या नाकामयाबी के लिये दोनोँ ही समान रूप से उत्तरदायी होँ? क्या अपने चुनावी वादोँ को पूरा करने की इस पार्टी की हिम्मत जवाब देती नज़र आ रही है या ये नवगठीत पार्टी गंदी सियासी चालो की ना चाहते हुए भी शिकार होती जा रही है?

aam admiसरकार बनाने को लेकर जनता के बीच गई आम आदमी पार्टी को अभी तक लाखोँ लोग अपनी अपनी राय दे चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने या ना बनाने के फैसले पर आम जनता से राय मांगी है। ”आप” रविवार तक जनता से राय ले रही है। इसके लिए उसने एसएमएस, कॉल और इंटरनेट का सहारा लिया है। इसके साथ ही वो जनता के बीच जाकर भी जवाब मांग रही है। ”आप” को अभी तक एसएमएस, सीधी बातचीत और इंटरनेट के ज़रिए लाखोँ लोगों की प्रतिक्रिया मिली है।  रविवार की शाम तक इनका विश्लेषण किया जाएगा, तथा सोमवार को फैसला सुनाया जाएगा। लेकिन एक सवाल बार बार ज़हन में आता है कि इस तरह के सर्वे और सलाहोँ का आखिरकार कितना विश्वास किया जाये? क्योंकि जो भी हो इस तरह के सर्वे की विश्वसनियता पर संदेह करना लाज़मी भी है। क्योंकि आप किसी भी तरह ये मालूम कर ही नहीं सकते कि सर्वे में अपनी राय दाखिल करने वाला आखिर है किस दल का समर्थक। ”आप” को उनके ही खेल में हराने के लिये और उनकी सरकार बनाने के लिए इस ‘हाँ’ का समर्थन उनकी विरोधी पार्टीयाँ भी तो कर सकती हैं।

ख़ैर इन सभी बातोँ और अटकलोँ पर बहुत मुमकिन है कि सोमवार तक पूर्ण विराम लग जायेगा। अपनी सबसे बड़ी ताक़त ‘आम आदमी’ के बलबूते पर केजरीवाल दिल्ली में सरकार बनाने के लिये मानसिक तौर पर तैयार हो चुके हैं। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि सरकार चलाना कोई चांद पर जाने जैसा नहीं है और जनता को चांद नहीं चाहिए। केजरीवाल ने कहा, हम सरकार बनाएंगे भी और विरोधी दलों की इस सोच को भी गलत ठहराएंगे कि हमें सरकार चलाने में दिक्कत आएगी। हम सरकार चलाकर दिखाएंगे, इनसे अच्छी तरह चलाकर दिखाएंगे और ठोक-बजाकर चलाकर दिखाएंगे।

”आप” और केजरीवाल जी के आगे के राजनैतिक सफ़र के लिये उन्हेँ शुभकामनाएँ देते हुए यही बात दिमाग में आती  है कि शायद अब कोई बदलाव भारतीय राजनीति के पटल पर ज़रूर परिलक्षित होगा और आम जनता को एक नये राजनैतिक सूरज की धूप का सुखद एहसास होगा और भ्रष्टाचार और बिजली के बढ़े हुए दामोँ से उसे मुक्ति मिलेगी। अगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आती है तो इसका बेहद गहरा प्रभाव अगले साल होने वाले आम चुनाव के परिणामोँ पर ज़रूर होगा।

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*सोनाली बोस

लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक –  अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम

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