दिनेश ठक्कर बापा की रचनाएँ

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रचनाएँ

1-  वतन की खातिर बोल सको तो बोलो

गुस्से से लाल हैं वतन के दुश्मन
दहशतगर्द आकाओं की मौत पर
जिंदा हैं अब भी उनकी हैवानियत
इसे बेख़ौफ़ मिटा सको तो बोलो
अवाम का बहुत गरम है माहौल
बगावती जुबां उगल रही है आग
झुलस रहा है यहां का अमन चैन
इस आग को बुझा सको तो बोलो
सच बोलने से तकलीफ तो होगी
इसके बावजूद बोल सको तो बोलो
वे लोग आमादा हैं जुबां काटने पर
अपना मुंह खोल सकते हो तो बोलो
दुश्मनों के कई हैं कच्चे-झूठे चिट्ठे
इसे सच्चाई से खोल सको तो बोलो
उनके चाहने से बदलेगी नहीं हकीकत
भीतरी आवाज सुन सकते हो तो बोलो
यहां हैं जितने गुस्से से हुए लाल मुंह
उतनी हो रही हैं इन दिनों दोगली बातें
सच्चाई बयां करता मेरा मुंह बंद करा कर
सिर उठा कर सच बोल सकते हो तो बोलो
चौतरफा मचा हुआ है यहां कुतर्कों का शोर
गद्दारों की इस भीड़ में खुद को बुलंद कर
तर्कों के साथ आवाज उठा सको तो बोलो
दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे सको तो बोलो
खरीद फ़रोख्त के इस सियासी बाजार में
हर कोई चाहता बोलना फायदे मुताबिक़
नफा नुकसान की सोच से ऊपर उठ कर
वतन की खातिर बोल सकते हो तो बोलो !

2- मां कभी साथ नहीं छोड़ती

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मां कभी साथ नहीं छोड़ती
दिल दिमाग से दूर नहीं होती
संतान के संग वह सदैव रहती
सजीव साक्षात हो या स्वप्न
कुदरत की है वह निराली देन
संबंधों की नाल सदा सुदृढ़ रहती
गर्भनाल पोषण का जरिया बनती
अंश की उपस्थिति दोनों में रहती
ममत्व के संग रिश्ता जोड़े रखती
कोशिकाओं का होता आदान प्रदान
शरीर में बना रहता मां का अंशदान
मां के आगे झुका चिकित्सा विज्ञान
मां नहीं है मात्र एक शब्द और देह
ईश्वर का है इंसानी रूप यह
समाहित है उसमे समूची सृष्टि
ब्रम्हांड में दिव्य है उसकी दृष्टि
प्राण की परवाह किए बगैर वह
ममत्व को जन्म देती
जान बचाने जान देने से न डरती
त्याग की अनूठी मिसाल बनती
हर आफत में वह ढाल बन जाती
मां के स्पर्श दुलार में ऊर्जा रहती
नवजात की थमी सांसें लौट आती
दर्द में वह स्वयं भी दवा बन जाती
परवरिश में रात दिन एक कर देती
मां की गोद देती है स्वर्गिक आनंद
लोरी, थपकी सुलाती चैन की नींद
भूख शांत कराती खुद भूखे रह कर
पोषित करती है अपने गम खाकर
चिड़ियों की मानिंद दाना चुगाती
सिंहनी की तरह सुरक्षित रखती
आंसू पोछती है अपने आंसू पीकर
अनकहे बोल को भी समझ जाती
अनपढ़ होकर भी पाठशाला होती
शक्ति संपन्न बनाने जरिया बनती
कदम लड़खड़ाते ही वह थाम लेती
अशक्त होते हुए भी चलना सिखाती
अंधेरे को चीर कर राह रोशन करती
जमीन पर पकड़ बनाना सिखाती
आकाश को मुट्ठी में लेना सिखाती
जिंदगी की धूप में छांव बन जाती
परछाई साथ छोड़ भी देती
परन्तु मां कभी साथ नहीं छोड़ती !

3- आस्तीन के सांप

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सच तो यह है
कि जब वे
सियासी सपेरों के कब्जे में होंगे
तब निर्ममता से तोड़ दिए जाएंगे
उनके विष के दांत
गुलामी के पिटारे में वे कैद हो जाएंगे
जन प्रदर्शन के जीव बना दिए जाएंगे
तब वे केवल
स्वार्थ की बीन के आगे
फन उठा कर
फूंफकार कर
अपना सर्प धर्म निभाएंगे
और
आकाओं की भूख मिटाएंगे !

4- तवा गरम है सेंक लो रोटी

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कुर्सी के भूखे आपस में जुट गए
स्वार्थ का चूल्हा जलाने के लिए
गिले शिकवे भूल गले मिल गए
दुश्मनी छोड़ कर हाथ मिला लिए
आग लगाने हथकंडे अपना लिए
देशद्रोह की कुल्हाड़ी हाथों में लिए
भविष्य का हरा पेड़ काटने लग गए
आजादी का चमन उजाड़ने लग गए
बली बनाने लगे बकरा बलि के लिए
आग लगाई तवा गरम करने के लिए
बदली में लाल सूरज की राह देखने लगे
धुंध में भी धूप की उम्मीद करने लगे
काली घटाओं से सूरज जब बाहर आया
परछाई में कद लम्बा देख भ्रम हो गया
खुद को खलनायक से नायक बना पाया
तिरंगा लेकर देशभक्ति का नारा लगाया
बोलवचनों से आम आदमी को भरमाया
सियासी जमीं में नियोजित कदम बढ़ाया
चुनावी फसल काटने हेतु हंसिया उठाया
कुर्सी की भूख मिटाने ईंधन अन्न जुटाया
स्वार्थ के चूल्हे में अब भड़क उठी है आग
चूल्हे के लिए जुबां भी उगलने लगी आग
तवा गरम है सेंक लो रोटी
बलि के बकरे की खा लो बोटी बोटी
कुर्सी की भूख मिटा लो तोंद है मोटी
लोकतंत्र की तंग गलियां हैं बहुत छोटी
ज्यादा नहीं चल पाओगे तुम चालें खोटी
हिसाब चुकता करेगी मेरे देश की माटी !

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दिनेश ठक्कर बापा लेखक एवं जर्नालिस्टपरिचय – :

दिनेश ठक्कर बापा

लेखक एवं जर्नालिस्ट

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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