दलितों की कहानी ‘ छाया चित्रों ’ की जुबानी-दलितों के जीवन की गाथा बताती प्रदर्शनी – समाज निर्माण में पंथों की महत्वपूर्ण भूमिका

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छाया चित्रप्रवीण राय,
आई एन वी सी,
इलाहाबाद,
हिन्दी साहित्य में 14वीं-15वीं शताब्दी के आस-पास के काल को भक्तिकाल माना जाता है। यह समय न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से वरन भारतीय समाज के ताने-बाने को समेकित करने में भी महत्वपूर्ण रहा है। भक्तिकाल के इन्हीं पंथों व दलितों की कहानी कहने वाली  छाया प्रदर्शनी गोविन्द बल्लभ पंत संस्थान के दलित रिसोर्स सेंटर द्वारा ‘दृश्यलोकः लोकप्रिय पंथ एवं दलित’ नाम से लगायी गयी है। भक्ति काल के संतों ने न केवल भारतीयों को भक्ति जैसे अद्भुत मार्ग से जोड़ा अपितु इन्होंने सामाजिक भूमिका निभाते हुए भारतीय समाज के दबे-कुचले वर्ग को भी समाज की मुख्य धारा में लाने का महत्वपूर्ण प्रयास किया। प्रदर्शनी में तत्कालीन पांच पंथों कबीर, रविदास, शिवनारायणी, सतनाम व महिमा धर्म जैसे पंथों ने  सामाजिक ढांचे  को बदलने और दलितों की चेतना को जागृत कर उनमें आत्मविश्वास जगाने का महत्वपूर्ण काम किया ताकि समाज का एक बड़ा वर्ग समाज की धारा से विलग न होने पाये। प्रदर्शनी में पांच पंथों के योगदानों को उजागर करने के साथ ही साथ दलितों के जीवन की मार्मिक गाथा का प्रस्तुतिकरण छाया चित्रों के माध्यम से किया गया है। प्रदर्शनी की खास बात यह है कि इसमें एक तरफ तो संतो द्वारा दलितों को सामूहिक रूप से एक करने व विविध कार्यकलापों द्वारा इन्हें जोड़ने का चित्रण किया गया है तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़ व उड़ीसा के दलितों के जीवन का चि़त्रण खूबसूरती के साथ करने का प्रयास किया गया है। चित्र प्रदर्शनी में दलितों की वास्तविक स्थिति को टूटे-फूटे घर के आगे रखी बैलगाड़ी, चारपाई की छाया में मिट्टी के बर्तन बनाते कुंभकार, टोकरी बनाती महिला, परंपरागत चूल्हे पर आधुनिकता के बावजूद खाना बनाती दलित महिला के चित्रों द्वारा समझा जा सकता है तो वहीं उपली पर सुखाए जाने वाले कपड़े कहीं न कहीं दलितों की वर्तमान की स्थिति को ही वयंा करते हैं। दूसरी ओर प्रदर्शनी के चित्रों में पंथों द्वारा समाज से कटे वर्ग को जोड़कर सत्संग, भजन, भ्रमण व छोटे-मोटे कार्यक्रमों द्वारा जोड़ने का प्रयास किया गया है। कुल मिलकार प्रदर्शनी में दलित जीवन की रोज की कठिनाइयों को छाया चित्रों द्वारा कुशलता से उकेरने का प्रयास किया गया है तो वहीं दूसरी तरफ लोकप्रिय संप्रदायों के योगदान को भीें बताया गया है। चित्र प्रदर्शनी की विचार परियोजना गोबिन्द बल्लभ पंत संस्थान के प्रो. बद्रीनारायण  ने बनायी है जबकि छाया चित्र दलित रिसोर्स सेंटर की शोध छात्रा निवेदिता द्वारा लिये गये हैं।

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