थोक के भाव बच्चे: खुदा की रहमत या ‘ज़हमत’ *

0
14

{तनवीर जाफरी **} पृथ्वी पर हो रहे जनसंख्या विस्फ़ोट को लेकर पूरा विश्व चिंतित है। भूमंडल पर दिनोंदिन बढ़ते तापमान का भी यही एक मुख्य कारण है। ज़ाहिर है प्रत्येक व्यक्ति को सुख-सुविधा तथा $खुशहाली चाहिए एवं अपने जीने की सभी आवश्यक वस्तुएं भी उसे ज़रूर चाहिए। और इन सबके लिए विकास की दरकार है तथा मानव जाति और उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए होने वाला विकास तथा औद्योगिकरण ही प्रदूषण तथा ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण है। 2011 के आंकड़ों के अनुसार पूरी पृथ्वी की जनसंख्या लगभग 7 अरब थी। इनमें अकेले चीन की आबादी एक अरब पैंतीस करोड़, भारत की एक अरब पच्चीस करोड़ तथा पाकिस्तान की 2011 में आबादी लगभग साढ़े सत्रह करोड़ की थी। मात्र दो वर्षों में अर्थात् 2013 में भारत की आबादी एक अरब 27 करोड़ हो चुकी है। जबकि पाकिस्तान की जनसंख्या आज की तारी$ख में लगभग 18 करोड़ 33 लाख के पार हो चुकी है। भारतवर्ष में शिशु जन्म दर प्रति एक मिनट में 51 बच्चों के $करीब है। आंकड़ों के अनुसार 2013 तक 65 करोड़ आबादी पुरुष वर्ग की थी जबकि 61 करोड़ महिलाएं थीं। अर्थात् लगभग एक हज़ार पुरुषों के मु$काबले में 940 महिलाएं आंकी गईं। भारत में 2012 में जनसंख्या का आंकड़ा लगभग 1.22 करोड़ था। अनुपात के अनुसार आज भारतवर्ष की 50 प्रतिशत से अधिक आबादी 25 वर्ष आयु वर्ग के नीचे की है जबकि 65 प्रतिशत जनसंख्या में 35 वर्ष तक की आयु के लोग आते हैं।
सवाल यह है कि भारत व पाकिस्तान जैसे देश ही जनसंख्या वृद्धि के मामले में दुनिया में सबसे आगे जाते क्यों नज़र आ रहे हैं? विकसित देशों के आंकड़े जनसंख्या वृद्धि को लेकर आ$िखर इतनी तेज़ी से क्यों नहीं बढ़ रहे हैं? कहीं यही बेतहाशा बढ़ती आबादी भारत व पाकिस्तान जैसे प्रगतिशील देशों की तर$क्$की में बड़ी बाधा तो नहीं बन रही? दरअसल जनसंख्या वृद्धि का सीधा संबंध किसी धर्म विशेष से नहीं बल्कि अशिक्षा तथा जहालत से है। आज भी मुस्लिम समुदाय में तमाम ऐसे अशिक्षित परंतु धर्मपरायण लोग मिल जाएंगे जिनके दस-पंद्रह या बीस बच्चे होंगे। और वह अपने बच्चों को अल्लाह की देन कहकर मजबूरीवश प्रत्येक परिस्थिति का सामना करते दिखाई देंगे। पिछले दिनों पाकिस्तान की बढ़ती जनसंख्या संबंधी एक मीडिया रिपोर्ट देखने को मिली जो बच्चों को स्कूल भेजने, शिक्षित व आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से तैयार की गई थी। इस रिपोर्ट में पाकिस्तान के $खैबर प$ख्तून $ख्वाह क्षेत्र के एक व्यक्ति बहराम $खां का संक्षिप्त साक्षात्कार प्रसारित किया गया। बहराम $खां  के 19 बच्चे हैं। जिनमें अधिकांश लड़कियां हैं। इसका एक भी बच्चा स्कूल नहीं जाता। बहराम $खां $खुद इसका कारण $गरीबी तथा बच्चों की शिक्षा का प्रबंध न कर पाना बताता है। हालांकि अपने 19 बच्चों की परवरिश से परेशान बहराम $खां यह ज़रूर कहता था कि उसे इस बात का ज्ञान ही नहीं था कि वह बच्चों के जन्म को नियंत्रित कैसे करे। इस रिपोर्ट से यह भी पता चला कि वहां और भी तमाम ऐसे लोग हैं जिनके 18-20 और 22 बच्चे तक हैं।
ज़ाहिर है जब इतने अधिक बच्चे पैदा करने वाले अशिक्षित माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं करा सकते तो उनके सामने एक ही चारा है कि वे बचपन से ही अपने बच्चों को किसी रोज़गार से लगा दें। आज तमाम $गरीबों के बच्चे भारत-पाक जैसे देशों में मात्र चार-पांच अथवा आठ साल की उम्र में ही मेहनत मज़दूरी अथवा अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार काम करते दिखाई दे जाएंगे। गोया ऐसे $गरीब बच्चे अपने मां-बाप की अज्ञानता तथा $गलतीवश अपने मासूम बचपन के दौर से ही अपने माता-पिता तथा परिवार के जीविकोपार्जन की जि़म्मेदारियां संभालने लग जाते हैं। ऐसे में मज़दूरी कर रहे इन मेहनतकश बच्चों के उज्जवल भविष्य अथवा इनकी पारिवारिक तर$क्$की की आ$िखर क्या उम्मीद की जा सकती है। ऐसे ही परिवारों में अधिकांशत: कमसिन व नाबालिग़ बच्चों की शादियां भी कर दी जाती हैं। यहां भी माता-पिता की अशिक्षा व अज्ञानता की बहुत बड़ी भूमिका होती है। एक अनुमान के अनुसार गत् वर्ष 2012 में पूरे विश्व में लगभग 6 करोड़ नाबालिग़ बच्चियों की शादियां की गईं। कितने आश्चर्य की बात है कि इनमें केवल पाकिस्तान की 42 प्रतिशत लड़कियां ब्याही गई। वहां तमाम बच्चियां ऐसी हैं जो स्वयं आठवीं,नवीं या दसवीं कक्षा में पढ़ रही हैं और उनकी अपनी गोद में भी अपने बच्चे हैं। पाकिस्तान मामलों के तमाम जानकार यहां तक कहते हैं कि पाकिस्तान की तर$क्$की में जहां इस समय सबसे बड़ी बाधा आतंकवाद है वहीं जनसंख्या वृद्धि की भूमिका भी इससे कम नहीं। जबकि कुछ विश£ेषक तो पाकिस्तान की सबसे बड़ी समस्या ही जनसंख्या वृद्धि को मानते हैं।
भारत में भी स्थिति इससे कुछ ज़्यादा अलग नहीं है। यहां भी समाज का अनपढ़ वर्ग चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों न हो आबादी बढ़ाने में माहिर है। तभी भारत वर्ष में प्रत्येक वर्ष लगभग एक करोड़ की जनसंख्या वृद्धि होती देखी जा रही है। सवाल यह है कि जनसंख्या बढ़ोत्तरी के इस सिलसिले पर नियंत्रण कैसे किया जाए? रेडियो, टेलीविज़न,अ$खबार तथा समाजसेवी संगठनों को माध्यम बनाकर जनसंख्या को नियंत्रित किए जाने का निश्चित रूप से का$फी प्रभाव हुआ है। आज लोगों में का$फी जागरूकता आई है। पहले के मु$काबले जन्म दर भी कम हुई है। परंतु इसे अभी और भी नियंत्रित किए जाने की ज़रूरत है। इसके लिए जहां जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रचार माध्यमों का उपयोग ज़रूरी है वहीं धरातलीय स्तर पर भी कई महत्वपूर्ण  $कदम उठाए जाने की ज़रूरत है। इनमें सरकार की ओर से उठाए जाने वाले $कदमों के अंतर्गत जहां बढ़ती आबादी के रोज़गार के लिए पर्याप्त संसाधन मुहैया कराने,उन्हें शिक्षित करने हेतु मु$फ्त, बेहतर और अधिक से अधिक शिक्षा सुविधा उपलब्ध कराने की ज़रूरत है। वहीं सामाजिक स्तर पर भी जागरूकता लाना भी बेहद ज़रूरी है। सामाजिक स्तर पर जागरूकता लाने के लिए मस्जिदों के इमाम,मौलवी, मंदिरों के महंत,पंडित, धर्मगुरु, कथावाचक,स्कूल के शिक्षक, पारिवारिक डॉक्टर, प्रत्येक गली-मोहल्ले व ग्राम पंचायत के शिक्षित लोगों आदि जि़म्मेदार लोगों का दायित्व है कि वे अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को विशेष कर समाज के अनपढ़ वर्ग को जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप होने वाले नु$कसान तथा इनके $खतरों से अवगत कराएं। इसके अतिरिक्त इसी सामाजिक स्तर पर लड़कियों की शिक्षा पर भी अधिक से अधिक ज़ोर दिया जाए। निश्चित रूप से यदि माताएं शिक्षित होंगी तो वे अपने बच्चों को भी अवश्य शिक्षित करेंगी। और कोइ भी शिक्षित परिवार प्राय: अधिक बच्चे पैदा करना पसंद नहीं करेगा। विश्व के आंकड़े भी यही बताते हैं कि दुनिया के जिन-जिन देशों में शिक्षित महिलाओं की संख्या अधिक है वहां-वहां जनसंख्या अन्य देशों की तुलना में कम है। सामाजिक स्तर पर धार्मिक लोगों को जनसंख्या नियंत्रण हेतु शामिल किए जाने का प्रयोग मिस्र व बंगला देश जैसे देशों में किया गया है जहां इसके परिणाम बहुत सकारात्मक देखे गए हैं। इन देशों में मौलवियों, मस्जिद के इमामों,धर्मगुरुओं, स्कूली शिक्षकों तथा पारिवारिक डॉक्टर्स आदि ने विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर जनसंख्या नियंत्रण के पक्ष में इतना ज़बरदस्त अभियान चलाया कि आज यह दोनों देश जनसंख्या नियंत्रण करने वाले देशों में एक उदाहरण बन गए हैं।
पृथ्वी पर रहने वाले सभी देशों व सभी धर्मों के प्रत्येक व्यक्ति का यह दायित्व है कि वह अपनी जीवनदायनी धरा को सा$फ-सुथरा,आकर्षक, लाभदायक तथा प्रदूषण व अन्य दूसरे संकटों से मुक्त पृथ्वी के निर्माण में अपना योगदान दे। और जनसंख्या को नियंत्रित करना ही इस दिशा में किया गया सबसे बड़ा योगदान होगा। लिहाज़ा जनसंख्या वृद्धि जैसे विस्$फोटक हालात का सामना करने के लिए आरोप-प्रत्यारोप करने या उसे किसी धर्म या समाज विशेष से जोडऩे अथवा राजनीति करने के बजाए इसके वास्तविक कारणों पर नज़र डालने की ज़रूरत है। प्रत्येक व्यक्ति को केवल उतने ही बच्चे पैदा करने चाहिए जितने बच्चों का वे ठीक ढंग से पालन-पोषण कर सके तथा उनकी शिक्षा का पूरा प्रबंध कर सके । बेतहाशा बच्चे पैदा करने को $खुदा की रहमत समझने वालों को भी अब यह भलीभांति समझ  लेना चाहिए कि अत्यधिक बच्चे अल्लाह की देन या उसकी रहमत नहीं बल्कि उनके परिवार,उनके देश यहां तक कि पूरी पृथ्वी व मानवता के लिए कष्ट या ‘ज़हमत’ के सिवा और कुछ नहीं हैं।

*******

______________________________________________________________________

Tanveer-Jafri-columnis-Author-Tanveer-Jafri-Former-Member-of-Haryana-Sahitya-Academy-Shasi-ParishadTanveer-Jafri-writer-columnist-based-in-Haryana1**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
1622/11, Mahavir Nagar
Ambala City. 134002
Haryana
phones
098962-19228
0171-2535628

________________________________________________

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely

his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here