तुषा शर्मा की कविता

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दुनिया से कर सके तो मुहब्बत अटूटकर,

लेकिन हर एक स्वार्थ के बंधन से छूटकर !

पत्थर पे नाम खौद रही थी मैं प्यार का

आईने दाद देने लगे टूट टूटकर !

ऊंचे मकान वाले छतों पर तो चढ़ गए,

लेकिन कभी दिखाएँ सितारों को लूटकर !

ये किसके पाँव हैं जिन्हें छूने की चाह में,

राहों में फूल आए हैं शाखों से टूटकर !

थामें हुए खड़ी हूँ ‘तुषा’ अपने दिल को मैं,

आईना क्या गिरा मेरे हाथों से छूटकर !

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poet Tusha Sharma , Tusha Sharmaतुषा शर्मा
मानवता फाउंडेशन में कार्यरत
निवास  मेरठ

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