तालिबान से हुआ अमेरिका का शांति समझौता

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अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर शनिवार को मुहर लग गई। समझौते के बाद अमेरिका का लक्ष्य होगा कि वह 14 महीने के अंदर अफगानिस्तान से सभी बलों को वापस बुला ले। यह समझौता कतर के दोहा में हुआ। दोनों पक्षों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इस कार्यक्रम का साक्षी बनने के लिए दुनियाभर के 30 देशों के प्रतिनिधियों को भी बुलाया गया, इनमें भारत भी शामिल है।अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ का कतर के अधिकारियों ने स्वागत किया। उनके साथ अमेरिका के मुख्य वार्ताकार ज़लमय खलीलजाद भी मौजूद थे। यह समझौता पोम्पिओ की मौजूदगी में हुआ। तालिबानी प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई मुल्ला बिरादर कर रहा है।
 
दोहा पहुंचे अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा कि हम तालिबान पर करीबी नजर रखेंगे कि क्या वह अपनी बातों पर टिका रह पाता है। हम ये सुनिश्चित करेंगे कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का ठिकाना ना बने।
 

 

कतर में भारत के दूत पी कुमारन भारत की तरफ से दोहा में यूएसए-तालिबान शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह पहला मौका है जब भारत तालिबान से जुड़े किसी मामले में आधिकारिक तौर पर शामिल हुआ। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ समझौते पर हस्ताक्षर करने के गवाह बने। अमेरिका और तालिबान के बीच ऐतिहासिक समझौते से पहले अधिकारियों से मिलने के लिए नाटो प्रमुख जेन्स स्टोल्टनबर्ग शनिवार को अफगानिस्तान पहुंचे।

नाटो ने एक बयान में बताया कि स्टोल्टनबर्ग अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ शनिवार शाम काबुल मीडिया सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इसमें अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर भी मौजूद होंगे। स्टोल्टनबर्ग देश में अमेरिका और नाटो बलों के प्रमुख जनरल स्कॉट मिलर से भी मुलाकात करेंगे।

अफगानिस्तान में शांति के लिए हुए समझौते का भारत ने किया स्वागत

अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए अमेरिका और तालिबान में हुए समझौते को लेकर भारत ने खुशी जाहिर की है। विदेश मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि हमें लगता है कि अफगानिस्तान के पूरे राजनीतिक वर्ग ने इस मौके का स्वागत किया है। उम्मीद है कि इस समझौते से देश में शांति और स्थायित्व आएगा।

विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि भारत हमेशा से ही अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थायित्व लाने के समर्थन में रहा है। पड़ोसी होने के नाते हम आगे भी सरकार और अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन करते रहेंगे।

अफगान सरकार और तालिबान के बीच 10 मार्च को बैठक

अफगानिस्तान में शांति बहाली के प्रयासों में अफगान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधि 10 मार्च को नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में बैठक होगी। 9/11 के हमले के बाद शायद यह पहला ऐसा मौका होगा जब इन दोनों के बीच आमने-सामने की बैठक होगी।

अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की संख्या घटकर 8,600 होगी

तालिबान के साथ हुए समझौते के मुताबिक अमेरिका अफगानिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या घटाकर 8,600 करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अधिकारियों ने कहा कि अगर अफगान पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में नाकाम रहता है तो अमेरिका अपने सैनिकों की वापसी के लिए बाध्य नहीं है।

अफगानिस्तान में अभी करीब 14,000 अमेरिकी सैनिक हैं। नाम ना जाहिर करने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘हमारी वापसी इस समझौते से जुड़ी है और शर्तों पर आधारित है। अगर राजनीतिक समझौता विफल होता है, अगर वार्ता नाकाम होती है तो ऐसी कोई बात नहीं है कि अमेरिका सैनिकों की वापसी के लिये बाध्य है।’

अमेरिका-तालिबान समझौते का भारत की सुरक्षा पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े: कांग्रेस

कांग्रेस ने अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते की पृष्ठभूमि में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपेक्षा है कि अमेरिका-तालिबान शांति समझौते का भारत की सुरक्षा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि भारत को अपने हित, अपनी सुरक्षा को अनदेखा नहीं करना चाहिए। ये पार्टी की सलाह है क्योंकि तालिबान को दिया जा रहा समर्थन मौलाना मसूद अजहर को ही मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘इसके मद्देनजर देखें कि किसी भी तरह का प्रतिकूल प्रभाव भारत की सुरक्षा पर ना पड़े। हम प्रधामनंत्री से ऐसी अपेक्षा करते हैं।’plc.

 

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