तानसेन समारोह का इतिहास

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tansen samarohआई एन वी सी न्यूज़

दिल्ली,
तानसेन समारोह हिन्दुस्तानी संगीत का शीर्ष समारोह है। इस समारोह के आयोजन का शुरूआती प्रमाण ग्वालियर रियासत के मुख पत्र ’’जयाजी प्रताप’’ के 18 फरवरी 1926 के अंक में प्रकाशित समारोह की विस्तृत रिपोर्ट से मिलता है।  उसमें लिखा गया है कि मरहूम हुजूर महाराजा साहब के हुक्म की तामील में मियां तानसेन का उर्स 7, 8 और 9 फरवरी को हुआ और जो कामयाबी इस पहली साल हुई उसे देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि वह दिन जरूर आयेगा जब हिन्दुस्तान के मशहूर वाकिफ कारान फन-ए-मौसिकी की उर्स के मौके पर यहां हाजिर होकर बादशाह मौसिकी तानसेन के आस्ताने पर खिराजे फन पेश करेंगे। आज यह सच साबित हो रहा है।

तानसेन के इस मुबारक आस्ताने के उर्स ने अपने सफर को लगातार जारी रखा है। रियासतों और रसिकों के बाद आयोजन का जिम्मा भारत शासन और फिर मध्यप्रदेश शासन ने उठाया है। तानसेन समारोह के नाम से अब यहां लगातार तीन दिनों तक पांच सभाओं में अनेक कलाकार अपने फन का बेहतर मुजाहिरा पेश करने का प्रयास करते हैं। समारोह की एक सभा ग्वालियर नगर के पास बेहट जिसे मियां तानसेन की जन्म स्थली भी माना जाता है में होती है। समारोह की परम्परागत शुरूआत संगीत के महान महर्षि की समाधि पर हरिकथा और माीलाद के आयोजन से होती है। बरसों इस आयोजन की शुरूआत के लिए ग्वालियर के पुराने शहनाई नवाज अपनी पैतृक परम्परा का भी शहनाई वादन से निर्वाह करते हैं। पहले समारोह में शिरकत के लिए देश के शीर्षस्थ कलाकार अपने खर्चे पर यहां पहुंचते थे और अपनी स्वरांजलि प्रस्तुत कर वापस अपने घरों को लौट जाया करते थे। समारोह के आयोजन के लिए स्थानीय रसिक समुदाय का उत्साह और सौजन्यता की बड़ी प्रतिष्ठा थी। धीरे-धीरे मत मतान्तरों और व्यवहारिक दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए समारोह का सम्पूर्ण दायित्व मध्यप्रदेश शासन द्वारा संभाल लिया गया है। अब समारोह के दौरान हिन्दुस्तानी संगीत के शीर्ष कलाकार को उसकी संगीत के प्रति सघन सेवा और परम्परा के निर्वाह के लिए 1980 से ’’तानसेन सम्मान’’ का आयोजन भी समारोह के अवसर पर किया जाने लगा है। तानसेन संगीत समारोह वर्तमान में मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग का एक प्रतिष्ठा आयोजन बन चुका है साथ ही यह संगीत प्रेमी श्रोताओं के लिए भी आनन्द पर्व।

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