…..ताकि बचा रहे पानी*

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डॉ. सुमन गुप्ता**,,

              एक गांव जो पानी की किल्लत से जूझ रहा था। वहां वर्षा भी कम होती थी । वहां के खेत बंजर हो चुके थे जिसमें अन्न पैदा होने की संभावना लगभग खत्म हो चुकी थी। ये गांव है अहमदनगर जिले का रालेगांव सिद्धी। इसे अब आदर्श गांव कहकर बुलाते हैं। ये गांव ख्याति प्राप्त समाजसेवी अन्ना हजारे का है। अन्ना हजारे ने जल संरक्षण के विभिन्न उपायों का इस्तेमाल कर गांव की जो तस्वीर बदली आज वह गांव  विश्व मानचित्र पर अलग पहचान रखता है।

                      आज के हमारे समाज की दुखद तस्वीर ये है कि पहले हम समस्याएं पैदा करते हैं-जब वो समस्याएं हद को पार कर जाती हैं तब उसके उपाय खोजे जाते हैं। गर्मी शुरू हो चुकी है। जून के महीने में तालाब, पोखर, नहरें और नदियां सूखने लगते हैं। पानी की किल्लत इतनी कि मरने-मारने तक की नौबत आ जाती है। फिर खबर बनती है और सरकार मरहम लगाने वाली घोषणाएं करके अपना कोटा पूरा कर लेती है।

                     पानी की कमी को लेकर हर साल हाय तौबा मचती है। सरकार उस पर लाखों रूपये खर्च करती है लेकिन उसके अगले साल फिर वही रोना। जानकारों की मानें तो जल संग्रहण के जो उपाय अब तक खोजे गए हैं उसके प्रति लोगों को जागरूक भर कर देने से बहुत बड़ी समस्या अपने आप हल हो सकती है। बहुत से एनजीओ इस तरह के काम में लगे भी हैं लेकिन इसे देशव्यापी रूप देने के लिए योजना बनाकर लागू करने का काम तो सरकार को ही करना होगा। जल सरंक्षण, खासकर वर्षा जल संरक्षण के निम्न उपायों पर ध्यान देकर जल की कमी से एक हद तक निपटा जा सकता है-

              जैसे-जैसे लोगों को पानी की कमी से जूझना पड़ रहा है वैसे-वैसे वैज्ञानिक भी जल संग्रहण की नई-नई तकनीक से लोगों को परिचित करा रहे हैं। वर्षा जल एकत्रीकरण की नई प्रणाली घरों की छतों पर वर्षा जल को रोककर सही जगह पहुंचाने की है। घर की छतों पर गिरने वाले वर्षा जल को जमीन में बनीं टंकियों से जोड़ दिया जाता है ताकि बारिश का पानी इधर-उधर बहकर बर्बाद होने की बजाय सीधे टंकी में जाए। इस प्रकार एकत्रित जल का प्रयोग सामान्य घरेलू उपयोग के अलावा भू-जल स्तर बढ़ाने में किया जाता है। जल संचयन की ये नई तकनीक शहरी आबादी के लिए अधिक लाभकारी साबित हो सकती है।

                                                                                                               

                वर्षा जल को तालाब बनाकर सहेजने की परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। आज के समय में जरूरत इस बात की है कि उन तालाबों को नई तकनीक के सहारे किस प्रकार और कारगर बनाया जाए। वर्तमान समय में तालाबों की अहमियत को देखते हुए सरकारें भी वर्षा जल के संचय, जलस्रोतों के पुनर्भरण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। नए तालाबों के निर्माण के साथ-साथ पुराने तालाबों को वर्षा जल संग्रहण के अनुकूल बनाये जाने की आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र हर बार पानी की कमी की वजह से खबर बनता हैं। इस क्षेत्र में जल संग्रहण के प्रति ना तो लोगों में कोई जागरूकता है और ना ही सरकार की ओर से कोई ठोस कदम उठाए गए। कहा जाता है यह इलाका पहले से ही पानी की कमी से जूझता रहा है लेकिन चंदेल राजाओं ने इससे निपटने के लिए छोटे-छोटे करीब तीन सौ तालाबों के अलावा छह बड़े तालाबों का निर्माण करवाया था। आज इन 12 सौ साल पुराने तालाबों का वजूद खत्म होने की कगार पर है। ना तो इन तालाबों के पुनर्निमाण की सरकार को चिंता और ना ही लोगों को। जल संग्रहण के प्रति अभी तक लोगों में चेतना नहीं आई है। ये योजनाएं जब तक लोगों की भावनाओं से नहीं जुड़ेंगी अपेक्षित परिणाम आने में काफी वक्त लगेगा। तालाबों के निर्माण और संरक्षण में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिया जाए तो यह कार्य और सहज और व्यवस्थित रूप से सम्पन्न हो सकता है।

               सामान्यत: तालाब दो प्रकार के हैं। पहले प्रकार के तालाब का पानी रिसकर जमीन के भीतर जला जाता है जो भूजल स्तर को बढ़ाने में मदद करता है। रिसने वाले तालाब कम गहराई वाली जमीन पर बनाए जाते हैं जिससे वर्षा जल एकत्र होकर कुछ समय के अंदर ही रिसकर जमीन में चला जाए। दूसरे प्रकार के तालाब जो जल संग्रहण के लिए बनाये जाते हैं ऐसे तालाबों की तलहटी में काली चिकनी मिट्टी की अपारगम्य परत होती है जिसके कारण पानी के निचली सतहों से रिसकर जाने की संभावना कम रहती है। अधिक समय तक पानी भरा रहने के कारण इसका उपयोग सिंचाई और पशुओं के उपयोग में लाया जाता है। जल संग्रहण के लिए बनाए गए तालाब की लंबाई, चौड़ाई या गोलाई को कम करके गहराई को अधिक रखा जाता है। इससे एकत्रित जल की खुली सतह का क्षेत्रफल कम हो जाता है और पानी के भाप बनकर उड़ने की मात्रा भी कम हो जाती है।

             तालाबों में जलसंग्रहण जल समस्या से निपटने का बड़ा कारगर उपाय है। तालाबों में जल संग्रहण के पीछे उद्देश्य सिर्फ सिंचाई के लिए पानी इकट्ठा करना भर नहीं है। तालाबों में पानी होगा तो भू-जलस्तर में वृद्धि होगी और ऐसा होने से आसपास के अन्य तालाब, कुएं, पोखरों, ट्यूबेल और हैंडपम्प का जल स्तर अपने आप बढ़ जाएगा और पूरे साल पेयजल और खेती दोनों को फायदा होगा। अन्ना हजारे का गांव रालेगण सिद्धि जल संग्रहण के इन्हीं उपायों के कारण आज अपनी अलग पहचान बनाए हुए है।

लेखिका- डॉ. सुमन गुप्ता असिस्टेंट प्रोफेसर (पर्यावरण अध्ययन), बनस्थली यूनिवर्सिटी बनस्थली टोंक, राजस्थान- 304022 Disclaimer: The views expressed by the author in this article are her own and do not necessarily reflect the views of  INVC.

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