कवरेज करने की मिली सजा – इलाज कराने के लिए बेचा प्लाट – घोषणा करके भूली घोषणावीर सरकार
घायल पत्रकार को डेढ़ साल बाद भी नहीं मिला इलाज – मंत्री, महापौर सबने तोड़ा वायदा
आई एन वी सी ,
भोपाल
मीडिया जगत में बेईमान पत्रकारों की बात कोई नई नहीं है। चाहे विज्ञापन के नाम पर वसूली की बात हो या चापलूसी की खबरें छापने के बाद दान दक्षिणा से अपनी जेब हरी करने की नीयत। ऐसे भ्रष्ट पत्रकारों की कारगुजारियों से लगभग सभी वाकिफ हैं। लेकिन क्या किसी ने कभी सोचा भी है कि जिस मीडिया की साख के नाम पर इन लोगों की दुकानें चलती हैं, असल में उस मीडिया जगत की प्रतिष्ठा और प्रमाणिकता बनाने के लिए हमारे कई जाबांज और सच्चे ईमानदार पत्रकारों की जान भी दांव पर लग जाती है।
भोपाल
मीडिया जगत में बेईमान पत्रकारों की बात कोई नई नहीं है। चाहे विज्ञापन के नाम पर वसूली की बात हो या चापलूसी की खबरें छापने के बाद दान दक्षिणा से अपनी जेब हरी करने की नीयत। ऐसे भ्रष्ट पत्रकारों की कारगुजारियों से लगभग सभी वाकिफ हैं। लेकिन क्या किसी ने कभी सोचा भी है कि जिस मीडिया की साख के नाम पर इन लोगों की दुकानें चलती हैं, असल में उस मीडिया जगत की प्रतिष्ठा और प्रमाणिकता बनाने के लिए हमारे कई जाबांज और सच्चे ईमानदार पत्रकारों की जान भी दांव पर लग जाती है।
ऐसे ही एक हादसे की मार झेल रहा है भोपाल का एक युवा पत्रकार। एक कवरेज के दौरान न सिर्फ इस पत्रकार ने अपने जबड़े और एक दर्जन दांत गवां दिए, बल्कि हादसे के बाद शादी भी टूट गई। इतने पर भी तकदीर का दिल नहीं भरा और अपने इलाज के लिए अब इस युवा पत्रकार को अपनी जमापूंजी से खरीदा हुए एकमात्र प्लाट भी बेचना पड़ा, तक कहीं जाकर आगे का इलाज हो रहा है। इस दर्दनाक दांस्ता को अपनी जिंदगी में जी रहे पत्रकार का कुसूर सिर्फ इतना सा था कि वह ईमानदारी से अपना कवरेज कर रहा था और इस कोशिश में था कि लोगों तक सच्ची और सटीक रिपोर्ट पहुंच सके। पर किसे पता था कि वो खुद ही खबर बनने वाला था। आज घटना को डेढ़ साल बीत चुका है। और वो पिछले डेढ़ साल से रोटी का एक निवाला खाने को तरस रहा है। जबकि उसके इलाज का पूरा वायदा कर चुके मध्यप्रदेश के मंत्रियों और भोपाल नगर निगम महापौर इस सब से बेपरवाह होकर चैन की नींद सो रहे हैं।
घटना भोपाल के आनंद नगर की है। 22 नवंबर 2012 को भोपाल में नगर निगम द्वारा लापरवाही से ब्लास्ट करके टंकी गिराते समय मौके पर कवरेज कर रहे मीडियाकर्मी, नगर निगम कर्मचारी और कुछ स्थानीय लोग घायल हो गए थे। इसके सबसे ज्यादा चोट दबंग दुनिया के पत्रकार नरेंद्र शर्मा को आई थी। हादसे में उनका जबड़ा टुकड़े टुकड़े हो गया। हादसे की गंभीरता को देखते हुए और मीडिया में अपनी किरकिरी होते देख तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर और भोपाल नगर निगम की महापौर श्रीमती कृष्णा गौर ने नर्मदा अस्पताल पहुंचकर नरेंद्र का अच्छे से अच्छा इलाज शासन द्वारा कराए जाने की घोषणा की थी। इसके अगले दिन यानि 24 नबंवर को नगर निगम भोपाल की परिषद की बैठक में आदेश पारित हुआ कि हादसे में घायल पत्रकारों का पूरा इलाज कराया जाए और इसके लिए अतिशीघ्र अलग से बजट निधार्रित किया जाए। लेकिन सब झूठ निकला। नरेंद्र के दो आपरेशन होने थे, जिसमें से एक तो कर दिया गया, लेकिन हालत नाजुक होने की वजह से डाक्टरों ने दूसरा आपरेशन छह महीने बाद करने का फैसला लिया। छह महीने तो क्या अब डेढ़ साल बीत चुका है।
इस दौरान नरेंद्र ने अधिकारियोंं, मंत्रियों और सभी से अपने इलाज की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने ठोस इंतजाम नहीं किया। नाउम्मीद होकर अब नरेंद्र ने अपना प्लाट बेच दिया है और बोनस ग्राफटिंग करा रहा है। इस आपरेशन में उसके कूल्हे की हड्डी निकालकर जबड़ा बनाया जाएगा।
इस दौरान नरेंद्र ने अधिकारियोंं, मंत्रियों और सभी से अपने इलाज की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने ठोस इंतजाम नहीं किया। नाउम्मीद होकर अब नरेंद्र ने अपना प्लाट बेच दिया है और बोनस ग्राफटिंग करा रहा है। इस आपरेशन में उसके कूल्हे की हड्डी निकालकर जबड़ा बनाया जाएगा।
परेशानी और भी हैं
दूसरा आपरेशन तो नरेंद्र ने अपनी संपत्ति बेचकर कराने की व्यवस्था कर ली है, लेकिन इतने भर से परेशानी खत्म नहीं होने वाली। अभी इसके बाद करीब साढ़े पांच से छह लाख रुपए और खर्च होगा। क्योंकि बोनस ग्राफटिंग के बाद ही हादसे में टूटे 11 दांतों को फिर से लगाया जा सकेगा। नरेंद्र की आंखों में यह सवाल अभी से दिखने लगा है कि आगे के छह लाख रुपए कहां से आएंगे। जिस सरकार और उसके मंत्रियोंं की खबरे छापकर तथा शासन की योजनाओं और मंत्रियों की घोषणा पर कभी यह पत्रकार खबरें लिखा करता था, अब उन्हीं सब की असलियत सामने हैं। अरबों खरबों का बजट निर्धारित करने वाली सरकार और उसके रहनुमाओं के पास शायद संवेदना कम पड़ गयी हैं जो पिछले डेढ़ साल से सामान्य जिंदगी जीने का सपना लिए जी रहे इस पत्रकार की पीड़ा का एहसास इन लोगों को नहीं हो पा रहा है।
मंत्री जी दे रहे सिर्फ आश्वासन
हादसे के वक्त पूरा इलाज कराने का वायदा करने वाले मंत्री बाबूलाल गौर और महापौर कृष्णा गौर से आपरेशन कराने के लिए आग्रह किया, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। दिया जा रहा है तो सिर्फ झूठा आश्वासन। कभी आचार संहिता के नाम पर तो कभी मुख्यमंत्री सहायता कोष को चिटठी लिखने का आदेश देकर बात को टाला जा रहा है। गृह मंत्री श्री गौर जनवरी 2014 में इस मामले में एक पत्र मुख्यमंत्री को लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ रहे हैं, जबकि इस वायदे के भी छह महीने तक इंतजार करने के बाद नरेंद्र ने जिंदगी भर की जमापंूजी से खरीदा प्लाट बेचकर दो लाख रुपए जुटाए हैं। इससे वह बोन ग्राफटिंग सर्जरी कराकर दोबारा जबड़ा बनवाने की तैयारी कर रहा है।
छह लाख का खर्च और
बोन ग्राफटिंग सर्जरी यदि सफल हो जाती है तो इसके बाद भी नरेंद्र की परेशानी कम नहीं होंगी। क्योंकि इसके बाद हादसे में अपने 11 दांत गंवा चुके नरेंद्र को फिर से 11 इंप्लांट लगाए जाएंगे। इसका कुल खर्च करीब साढ़े पांच से छह लाख रुपए बताया जा रहा है।
हैरानी की बात यह है कि इस घटना में जहां एक और पूरे प्रदेश की मीडिया की नजर रही थी, वहीं लगभग सभी राष्ट्रीय अखबार तथा न्यूज चैनलों ने प्रमुखता से खबर दिखाई थी। बावजूद इसके अब तक न तो घटना की एफआईआर दर्ज की गई और न ही घायलों के लिए शासन संवेदनशील है। ऐसे में प्रदेश की जनता का तो भगवान ही मालिक लगता है।
हैरानी की बात यह है कि इस घटना में जहां एक और पूरे प्रदेश की मीडिया की नजर रही थी, वहीं लगभग सभी राष्ट्रीय अखबार तथा न्यूज चैनलों ने प्रमुखता से खबर दिखाई थी। बावजूद इसके अब तक न तो घटना की एफआईआर दर्ज की गई और न ही घायलों के लिए शासन संवेदनशील है। ऐसे में प्रदेश की जनता का तो भगवान ही मालिक लगता है।
पत्रकार नरेद्र शर्मा को आज मदद की दरकार हैं आप चाहे तो नरेद्र शर्मा से सीधा संपर्क साध कर उनकी मदद कर सकते हैं !
नरेद्र शर्मा का नम्बर हैं – 09827867862
cm sivraj singh chuhan kabhi mama to kabhi khud ko beta batate hai. kya patrakar bhai ki pida nahi dikhti. sharm karo….
kai poorv patrakar m.p hai wah sarkar ka dhayan nahi dilate to auro se umid bekar hai
सरकार से निवेदन इनके ऊपर ध्यान दें
पत्रकार हमारे देश के जनता के लिए तीसरी आँख का काम करते है , जिस खवर से हमलोग अनभिज्ञ होते हैं उस खवर से उस हालत से लोगो को जानकारी देते है , पर अगर ऐसी हालत रही तो लोग पत्रकारिता क्यों करेंगे ?
व्यवस्था की कमियों को उजागर करने में किन परेशानियों से जूझना पड़ता है ये मैं बखूबी जानता हूँ क्यूंकी मैं खुद ऐसी परेशानियों से रूबरू होता आ रहा हूँ…. पत्रकारिता जब तक जुनून नहीं बनेगी तब तक सच सामने नहीं आ सकता…
अजीब विडंबना है हमारे देश की सच को निष्ठा के साथ कर्तव्य मानकर सामने लाने वाले लोग ही दुर्दशा का शिकार होते हैं l
siyasatdano se kisi bhi prakar ki koi ummeed karna bekar hain. inki juban ki bhi koi keemat nahi inse behtar to vaishyain hai jo kam se kam apna vachan nibhane ke liye apna jishm beachkar vachan nibhati hain. patrkaron ko bhi seekh leni chahiye ki yeh saale neta kisi ke sage nahi hote hai. yeh to randiyon se bhi badtar hote hain