टूटते सयुँक्त परिवार, राह भटकते बच्चे! जिम्मेदार कौन**

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पंडित हरि ओम शर्मा**,,
संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, बच्चे राह भटक रहे हैं, इतने पर भी माता-पिता की आँखे नहीं खुल रही है। नादान बच्चे संस्कारों के अभाव में राह भटक रहे हैं। आखिर कौन देंगे इनको संस्कार?  कौन दिखायेगा इनको रास्ता? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? `दादा-दादी´, `माता-पिता´ या स्वयं बच्चे? आज यह एक ऐसा अहम मुद्दा है कि इस वि”ाय पर चर्चा-परिचर्चा होनी अतिआव’यक है। किन्तु दुख की बात यह है कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है और न ही इस वि”ाय को कोई गम्भीरता से ले रहा है। क्या वास्तव में संयुक्त परिवारों की उपयोगिता समाप्त हो गई है\ क्या वास्तव में माता-पिता को राह भटकते बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं? क्या वास्तव में दादा-दादी, नाना-नानी, नाती-नातियों व पोते-पोतियों के साथ रहना पसन्द नहीं करते हैं? यदि ऐसा नही है तो फिर संयुक्त परिवार क्यों टूट रहे हैं? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? `दादा-दादी´, `माता-पिता´ या स्वयं बच्चे? क्योंकि बच्चे तो बेचारे असहाय हैं, अज्ञानी हैं, अबोध हैं, जब कोई सही राह नहीं दिखाई देगी तो यह नादान बच्चे तो राह भटक ही जायेंगे। इसमें इन बेचारों का क्या दो”ा है। पानी के अभाव में पौधा सूख जाये तो अपराध तो माली का है, पौधे का क्या अपराध? बालक भी एक पौधे की तरह है, प्यार दुलार के अभाव में उसका राह भटकना स्वाभाविक है। पहले बच्चा अपने दादा-दादी की गोद में पलता-पोसता था, आज `आया´ की गोद में पल रहा है। ज्यादातर बच्चे `क्रेंच´ में पल रहे हैं जो किसी एक जेलखाने से कम नहीं है। `दादा-दादी´, `नाना-नानी´ की गोद में बैठकर परियों की कहानी, त्याग, तपस्या, ईमानदारी की कहानी, राजा हरि’चन्द्र, राजा मोरध्वज व भक्त श्रवण कुमार की कहानियाँ सुनने वाला बालक आज टी0वी0 पर अर्धनग्न बालाओं की तस्वीरों, दि’ााभ्रमित व गुमराह करने वाले गंदगी से भरे, फूहड़ सीरियलों को देख रहा है तो बालक जैसा देखेगा, वैसा ही बनेगा। कुल मिलाकर तथा सब मिलकर बालक का दोहन ही तो कर रहे हैं, उसके कोमल मन-मस्ति”क में मार-धाड़, अपराध व सेक्स ही तो भर रहे हैं, तो बालक तो राह भटकेगा ही! `बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से खाय´, जैसा बोओगे वैसा ही तो काटोगे! जब बच्चा राह भटक कर आगे बढ़ जाता है और वह इतनी दूर निकल जाता है कि फिर वहाँ से उसका लौट पाना असम्भव होता है, तब सभी मिलकर बालक का दो”ा देते हैं।
मैने कई ऐसे `दादा-दादी´ व `नाना-नानी´ से बातचीत की जिनकी औलादें बहुत ही ऊँचे पदों पर पदासीन है किन्तु वह अकेले ही रह रहे हैं। इन सबकी समस्याये अलग-अलग हैं। किसी की औलादे अपने साथ रखना पसन्द नहीं करती है तो कोई अपमान जनक व्यवहार के कारण रहना पसन्द नहीं करते हैं। एक `क महोदय´ बुजुर्ग दम्पति की बात सुनकर मैं चौंक गया। बड़े ही गुस्से में बोले यह नालायक औलाद हम दोनों को जीते जी ही अलग-अलग करना चाहते है। कहते हैं मम्मी मेरे साथ रहेगी और पिताजी बड़े भइया के साथ रहेंगे! मैंने कह दिया, चले जाओ यहाँ से, हम दोनों को कोई भी जीते जी अलग नहीं कर सकता है। हम दुख-सुख सह लेंगे लेकिन रहेंगे साथ-साथ। इनकी बात सुनकर मैं `श्रीमान ख महोदय´ के पास पहुँचा, उनसे बात हुई तो उनकी इनसे भी गंभीर समस्या है। कहते हैं मेरी पत्नी का तो स्वर्गवास हो गया है। मेरे तीन बेटे हैं और तीनों ही बड़े अधिकारी हैं। तीनों चार-चार महीने बाँटकर अपने-अपने पास रखते हैं। समय पूरा होने पर ड्राइवर द्वारा दूसरे भाई के घर भिजवा देते हैं। बस इसी तरह व”ाZ पूरा हो जाता है। अब मरने की घड़ियाँ गिन रहा हूँ। इन महोदय से मिलकर जब मैं `ग महोदय´ से मिलने आगे बढ़ा तो इन बुजुर्ग दम्पत्ति से बातचीत हुई तो कहने लगे भइया कहाँ जायें, बेटे के पास छोटी सी नौकरी है, दो कमरे का मकान है, कहाँ हमको रखे और कहाँ खुद रहे। सो हम भार नहीं बनना चाहते हैं किसी के ऊपर! और फिर यहाँ भी तो एक घोसला (मकान) बनवा लिया है इसकी देख-रेख कौन करे। उनके यह साित्वक विचार सुनकर आगे बढ़ा तो सामने से `घ महोदय´ आते हुए दिखाई दिये। कु’ाल-क्षेम पूछने के बाद जब मैंने कहा कि आप तो अपने बेटे के पास गये थे, वापस क्यों आ गये\ इतना सुनते ही तपाक से बोले भइया हम कोई कैदी तो हैं नहीं कि खाना खा लिया औरपड़े रहें बंद काल कोठरी में। न कहीं जा सकते हैं, न कहीं आ सकते हैं, यहाँ न बैठो, वहाँ न बैठो, इससे बात न करो, उनसे बात न करो। हद तो तब हो गई जब बहू ने बच्चों से बात करने पर भी रोक लगा दी। अब तुम्हीं बताओ क्या जरूरत है वहाँ हमारी\ हम तो रहेंगे स्वछन्द, पूर्ण स्वतंत्रता के साथ विचरण करेंगे। श्रीमान घ महोदय की कहानी सुनकर आगे बढ़ा ही था कि `च महोदय´ से मुलाकात हो गई। ि’ाक्षा विभाग से रिटायर हुए हैं। यह पूछने पर कि आप बच्चों के साथ क्यों नहीं रहते हैं, बोले, बच्चों को हमारे ‘ारीर से गंध आती है। आने जाने वाले मेहमानों से मिलवाने में डरते हैं। सोचते हैं कि मिलवा देंगे तो उनकी ‘ाान में बट्टा लग जायेगा। इसी डर से घर के पिछवाड़े एक कमरा दिया था रहने के लिए। ऐसी अपमानजनक स्थिति से भूखों मरना ही अच्छा है।
लगभग सभी बुजुर्गो की यही आत्म कथायें है। इसमें इनका दो”ा कम और इनकी औलादों का दो”ा अधिक नजर आ रहा है। का’ा! इनकी औलाद यह समझ पाती कि माता-पिता के साथ रखने से दो पीढ़ियों का कल्याण होता है। एक तो अपना जीवन सँभलता है, दूसरे बच्चों का जीवन सँभलता है। घर में माता-पिता की मौजूदगी मात्र से ही सब बला टल जाती है। आइये! दूसरे पक्ष का भी मन टटोले कि आखिर खामी है कहाँ\
इन बच्चों के माता-पिता की अपनी समस्याये हैं। इनमें से कुछ का कहना है कि हम तो अपने माता-पिता को साथ रखना चाहते हैं किन्तु वह खुद ही रहना नहीं चाहते हैं, रूिढवादी हैं, अपना घर छोड़ने को तैयार नही है। कुछ माता-पिता का कहना है कि देखिये ‘ार्मा जी हम भी बाल बच्चेदार है, हम पल्लू से बंधकर तो नहीं रह सकते हैं, अपने माता-पिता के। आखिर हमारी भी तो कोई जिम्मेदारी है हम पहले बच्चों को देखें या उनको देखें! वह यहाँ आ जायें, रहे आराम सेे, हमें तो कोई परे’ाानी नही है। हाँ एक बात अव’य है कि उनकी टोका-टाकी अब अच्छी नहीं लगती है और चुपचाप वह रह नहीं सकते हैं इसलिए हमारी उनसे पटरी नही खाती है। दूसरे माता-पिता दम्पति से जब उनसे इस वि”ाय पर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि ‘ार्मा जी हम दोनों पति-पत्नी नौकरी करते हैं। बच्चे स्कूल चले जाते हैं अब हम माता-पिता की अधिक सेवा तो नहीं कर सकते हैं। अब जब वह यहाँ रहते हैं तो फिर अकेला ही उन्हें रहना पड़ेगा। अब मैं पहुँचा एक अन्य परिवार में जहाँ बेटों का अपने पूज्य पिताजी के साथ मल्लयुद्ध चल रहा था साथ ही गालियों का वाकयुद्ध भी चल रहा था। मैं दंग रह गया पिता पुत्र का यह महाभारत देखकर! इन बुजुर्ग दम्पति के दो बेटे हैं। दोनों ही बेटे उसी घर में अलग-अलग रहते हैं, किन्तु अलग-अलग कमरों में! एक दूसरे से बोलचाल भी नहीं है। अक्सर घर में झगड़ा होता रहता है। सो आज घर में कलह पिता की पें’ान के लिए हो रही है। दोनों ही पिता की पें’ान लेना चाहते हैं, पिता की दाल रोटी की किसी को चिन्ता नहीं है। पें’ान की चिन्ता दोनों को है। अब ऐसे संयुक्त परिवार होने से क्या लाभ! दो बड़ों की लड़ाई में पिसता है बच्चे का भवि”य। माता-पिता को इतनी भी चिन्ता नहीं है कि आज जो व्यवहार हम अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं, कल हमारे बच्चे भी हमारे साथ यही व्यवहार करेंगे तब क्या होगा\ तब वही होगा जो आप कर रहे हैं। क्या यह स्थिति ठीक रहेगी\ दूसरे आज जो आपके बच्चे राह भटक रहे हैं, संस्कार हीन बन रहे हैं, दि’ााभ्रमित हो रहे हैं क्या वह ठीक है\
आज आधुनिक `माता-पिता´ इस भौतिकतावादी संस्कृति में ऐसे रम गये हैं कि न तो इनको पूर्व पीढ़ी की चिन्ता है और न ही अपनी भावी पीढ़ी की चिन्ता है। एक पीढ़ी इनके बदलते व्यवहार से व्यथित है तो दूसरी पीढ़ी एकाकी जीवन की पीड़ा से `सिसक´ रही है। दोनों ही पीढ़ी के साथ आप अन्याय कर रहे हैं। इस नमक, तेल, लकड़ी के नाम पर दिन रात दौड़ रहे हैं। एक नही, दोनों माता-पिता दौड़ रहे हैं। इनको न तो अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य याद रह गये हैं और न ही अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य याद रह गये हैं। बस अच्छे स्कूल में एडमी’ान, ट्यूटर, रिक्’ाा, बस की व्यवस्था, घर में टी0वी0 और िफ्रज का प्रबन्ध कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ रहे हैं। न इनके पास अपने माता-पिता से बातचीत का समय है और न ही अपने बच्चों से बातचीत का समय है। यह स्थिति ठीक नहीं है। अत: अभी भी समय है, चेत जाइये, जग जाइये! अपने माता-पिता को अपने साथ रखिये। खूब मन से उनकी सेवा करिये। फिर आप देखेंगे कि वही माता-पिता जिन्हें आप `रूिढवादी मानसिकता´ का व बेकार समझ बैठे हैं, आपके लिए सबसे अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे। जब यह आपको पढ़ा-लिखाकर, पाल-पोसकर बड़ा कर सकते हैं तो फिर आपके बच्चों को क्यों नहीं कर सकते हैं\ आप माता-पिता को साथ रखकर उनकी सेवा करके तो देखिये, आपकी तीनों पीढ़ी सुखी हो जायेगी। आपके `माता-पिता´ सुखी रहेंगे, साथ ही आप जो तनाव में जी रहे हैं, तनावमुक्त हो जायेंगे व सुखी हो जायेंगे साथ ही आपके बच्चे राह भटकने से बच जायेंगे और सही रास्ते पर चलकर आपका नाम रो’ान करेंगे। इससे भावी पीढ़ी भी सुखी हो जायेगी। तो फिर आप अभी भी क्या सोच रहे हैं\ देरी क्यों कर रहे हैं, अपनी खातिर न सही तो भावी पीढ़ी की खातिर, संयुक्त परिवार की महत्ता को समझिये। प्लीज! बचा लीजिए अपने मासूम बच्चों के भवि”य को! अन्यथा राह तो वह भटक ही गये हैं उसमें आपको कुछ भी करने की आव’यकता नहीं है।
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(हरि ओम शर्मा)
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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