*जि़म्मेदार शख्सियतों के गैऱ जि़म्मेदाराना बयान !

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तनवीर जाफरी*


भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में अपने भक्तों व शिष्यों को शांति व प्र्रेम का सबक सिखाने वाले आर्ट ऑफ लिविंग यानी जीने की कला नामक मिशन के संस्थापक श्री श्री रविशंकर इन दिनों एक ऐसे विवाद मे उलझ गए हैं जिससे उनका बाहर निकल पाना मुश्किल हो रहा है। निश्चित रूप से इनका मुस्कुराता चेहरा, प्रेम का संदेश देने का उनका तरीका, उनकी अपनी मीठी वाणी तथा उनकी धर्मनिरपेक्ष सोच उनके व्यक्तित्व को चार चांद लगाती है। पिछले दिनों श्री श्री ने इस्लामाबाद में अपनी संस्था द आर्ट ऑफ लिविंग के आश्रम का उद्घाटन किया। वहां उन्होंने बड़े हैरत अंगेज़ ढंग से तालिबान जैसे क्रूर व कट्टरपंथी संगठन से बात चीत करने का प्रस्ताव भी दे डाला। श्री श्री ने पकिस्तान में कहा कि वे शांति का परचम लेकर पाकिस्तान पहुंचे हैं और केवल मानवता की ही बात करने आए हैं। क्योंकि मानवता ही सबसे अधिक ज़रूरी है। वहां उन्होंने बिना किसी पुर्वाग्रह के खुले मन, विचार व दिल से तालिबान व अन्य चरमपंथी संगठनों से बात चीत करने के लिए अपनी इच्छा भी जताई। श्री श्री के इस कदम से नि:संदेह विश्वशांति का प्रचार करने की उनकी सच्ची भावना को बल मिला।

परंतु यही आध्यात्मिक गुरू भारत में सरकारी स्कू लों के प्रति इतना दुराग्रह पूर्व बयान देंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। गौरतलब है कि पिछले दिनों श्री श्री ने जयपुर में एक निजी स्कू ल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में यह कह दिया कि ‘देश के समस्त सरकारी स्कू ल व कॉलेज के संचालन की जि़म्मेदारी किसी निजी संस्था को दी जानी चाहिए। उनके अनुसार निजी संस्थानों के छात्र व शिक्षक दोनों ही आदर्श व्यवहार वाले होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे नक्सलवाद और हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। इसलिए सरकार को पूरे स्कूल तंत्र को निजी हाथों में सौंप देना चाहिए। सरकार को कोई स्कूल नहीं चलाना चाहिए क्योंकि सरकारी स्कू लों से पढ़े जाने वाले बच्चे ही नक्सलवाद व हिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ते हैं’। मैं व्यक्तिगत रूप से श्री श्री रवि शंकर के व्यक्तित्व तथा उनके शांति प्रयासों का कायल हूं। मैंने उनके कार्यक्रम में शिरकत कर उनके विचार भी सुने हैं। शांति, प्रेम व सद्भावना का संदेश देने का उनका तरीका वास्तव में काबिल-ए- तारीफ है। शायद यही वजह है कि दुनिया के सभी धर्म व संप्रदाय के लोग उनके आश्रम में आते हैं तथा उन्हें अपने-अपने देशों में आमंत्रित कर वहां भी जीने की कला सिखाने का आश्रम शुरू करने का निमंत्रण देते हैं। पाकिस्तान जैसे अशांत देश में उनका जाना तथा वहां अपना आश्रम खोलना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। आमतौर पर राजनेताओं को भी श्री श्री रविशंकर पर नकारात्मक टिप्पणी करने व उनपर बेवजह निशाना साधने से भी परहेज़ करते देखा गया है।

हालांकि श्री श्री ने सरकारी स्कू लों के संबंध में दिए गए अपने बयान को बाद में बदलने व उसमें सुधार करने की कोशिश भी की। परंतु सार्वजनिक रूप से उन्होंने सरकारी शिक्षण संस्थाओं के बारे में अपने जो विचार व्यक्त कर दिए थे वह सरकारी स्कूल व्यवस्था के पक्षधर लोगों को अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए पर्याप्त थे। मैं नहीं समझता था कि श्री श्री जैसे गंभीर आध्यात्मिक गुरु को कभी उनके अपने विवादास्पद बयान के चलते इस प्रकार की गंभीर व अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ेगा।

मानवाधिकार संगठन के कार्यकर्ताओं ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई किए जाने की मांग तक कर डाली है। देश में कई जगह सरकारी स्कूलों के छात्रों ने उनके विरुद्ध ज़ोरदार प्रदर्शन किए तथा उनके चित्र व पुतले जलाए। शिक्षक नेताओं ने उनके बयान को समस्त अभिभावकों,शिक्षकों व छात्रों का अपमान बताया। यही नहीं बल्कि आलोचना करने वाले तमाम प्रमुख लोगों ने रविशंकर को निजी स्कूल प्रबंधकों के हाथों में खेलने, पूंजीपतियों का पक्ष लेने तथा शिक्षा के निजीकरण के पक्ष में वातावरण तैयार करने तक का आरोप लगाया। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने तो यह तक कह डाला कि ऐसी बातें वही व्यक्ति कह सकता है जिसका मानसिक संतुलन ठीक न हो। सिब्बल सहित देश की और भी तमाम प्रमुख हस्तियों ने यह कहा कि वे स्वयं सरकारी स्कूलों से पढक़र आए हैं और वे लोग नक्सली हरगिज़ नहीं हैं।

आध्यात्मिक गुरु को इस प्रकार का बयान देने से पहले हमारे देश की बहुसंख्य आबादी की आर्थिक स्थिति के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए था। ऐसा माना जाता है कि किसी भी राष्ट्र या समाज के पिछड़ेपन का कारण अशिक्षा ही होती है। भारत में गरीब लोगों को शिक्षित करने के मद्देनज़र ही शिक्षा के अधिकार का कानून बनाया गया है। सर्वशिक्षा अभियान व प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम शुरु किए जा चुके हैं। कन्या शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु तमाम प्रकार की लुभावनी योजनाएं शुरु की गई हैं। शिक्षा प्राप्त करने हेतु सरकार बच्चों व अभिभावकों को ऋण सुविधा तक मुहैया करा रही है। ज़ाहिर है यह सबकुछ सरकार के प्रयत्नों द्वारा व सरकारी तंत्र का प्रयोग कर सरकारी स्तर पर ही किया जा रहा है। यह सरकारी स्कूलों की शिक्षा का ही परिणाम है जिसने भारत को पंडित मदनमोहन मालवीय व लाल बहादुर शास्त्री से लेकर आज तक के तमाम बड़े से बड़े राजनेता,वैज्ञानिक,बुद्धिजीवी,चिंतक, शिक्षक, साहित्यकार, लेखक, कलाकार यहां तक कि श्री श्री के अपने समाज के तमाम धर्मगुरु पैदा किए हैं। ऐसे में आंख मूंदकर सरकारी स्कूल के बच्चों को नक्सलवादी मार्ग पर चलने वाला बता देना निश्चित रूप से निहायत गैर जि़म्मेदाराना, निंदनीय व अक्षम्य बयान है। मैं स्वयं सरकारी स्कूल का छात्र रहा हूं। इलाहाबाद के गवर्नमेंट कालेज में मैंने शिक्षा प्राप्त की है। मेरे स्वर्गीय पिता जी भी गवर्नमेंट कॉलेज में ही अध्यापक से लेकर प्रधानाचार्य तक रहे हैं। मैंने कभी नहीं देखा कि मेरे पिता द्वारा शिक्षित किया गया अथवा मेरा कोई अपना सहपाठी किसी अपराध अथवा नक्सलवाद के मार्ग पर चला हो। मूझे नहीं पता कि श्री श्री जैसे सज्जन प्रतीत होने वाले धर्मगुरु के मस्तिष्क में अनायास इस प्रकार के दुर्भावनापूर्ण विचार कैसे आए?

श्री श्री के इस बयान ने मुझे उन्हें एक सलाह देने पर भी विवश किया है। उनके बयान से लगता है कि वे भारत में फैले हिंसक नक्सलवाद को एक बड़ी समस्या मानते हैं। नि:संदेह हमारे देश के लिए यह एक गंभीर चुनौतीपूर्ण समस्या है भी। दूसरी ओर वे पाकिस्तान जाकर तालिबानों से शांति संबंधी बातचीत करने के भी इच्छुक हैं। श्री श्री को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने शांति व प्रेम संबंधी मिशन को फैलाने से पहले अपने ही देश की इस नक्सल संबंधी समस्या से अपने तरीके से निपटने के उपाय करने चाहिए। यदि उन्हें विश्वास है कि सरकारी स्कूल नक्सलवाद की नर्सरी हैं तो उन्हें अपना पूरा ध्यान देश के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में निजी शिक्षण संस्थान खुलवाए जाने की ओर देना चाहिए। यही नहीं बल्कि उन्हें तालिबान जैसे खूंख्वार व चरमपंथी विचारधारा रखने वाले लोगों से मिलकर शांति वार्ता की कोशिश करने के बजाए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर अपने आश्रम खोलने, नक्सलियों को अपने शिविरों व आश्रमों में आमंत्रित करने, उनकी समस्याओं को सुनने-समझने व उनका समाधान करने की दिशा में काम करना चाहिए।

जहां तक निजी शिक्षण संस्थाओं का प्रश्न है तो निश्चित रूप से देश की भारी जनसंख्या तथा लोगों के शिक्षा की ओर बढ़ते रुझान को देखते हुए इनकी भी काफी अहमियत है। देश के विकास में निजी शिक्षण संस्थाओं के योगदान को कतई नकारा नहीं जा सकता। परंतु इसी के साथ-साथ यह बात भी अपनी जगह पर बिल्कुल सत्य है कि शिक्षा के नाम पर इस देश में चलने वाले तमाम निजी विद्या मंदिर ऐसे भी हैं जो समाज में धर्र्म व संप्रदाय के नाम पर ज़हर फैला रहे हैं व कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने की नर्सरी हैं। कई संप्रदायों से जुड़ी तमाम शिक्षण संस्थाएं नफरत फैलाने वाले ऐसे अनेक शिक्षण संस्थान चला रही हैं। इन निजी स्कूलों के बच्चों को आदर्श व्यक्ति के रूप में उन ‘महापुरुषों’ के बारे में जानकारी दी जाती है जिन्होंने धर्म, संप्रदाय या जाति विशेष के लिए कुर्बानियां दी हैं या संघर्ष किया है। जबकि सरकारी स्कूलों के बच्चों को उन महापुरुषों से प्रेरणा प्राप्त करने की शिक्षा दी जाती है जिन्होंने मानवता तथा देश की भलाई के लिए या देश की आज़ादी हेतु अपनी कुर्बानियां दी हैं अथवा इसके लिए संघर्ष किया है।

सरकारी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में ऐसा कोई अध्याय शामिल नहीं किया जाता जो सांप्रदायिक विद्वेष, हिंसा अथवा हिंसक नक्सलवाद की प्रेरणा देता हो। मुझे दु:ख है कि विवादों से आमतौर पर दूर रहने वाले श्री श्री रविशंकर जैसे आध्यात्मिक गुरु को अपने इस अत्यंत विवादस्पद बयान के चलते घोर आलोचना व निंदा का सामना करना पड़ रहा है। उनके इस गैर जि़म्मेदाराना बयान से निश्चित रूप से देश के सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों व इन विद्यालयों से शिक्षा प्राप्त कर रहे व कर चुके छात्रों का भी अपमान हुआ है। मुझे नहीं लगता कि श्री श्री का यह विवादित बयान निकट भविष्य में शीघ्र उनका पीछा छोड़ सकेगा।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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