जारी है किसानों की आत्महत्या, नजरें अदालत पर

0
27

आई.एन.वी.सी,,
दिल्ली,,
इलाहाबाद हाई कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद बैंक और वित्तीय संस्थान कर्ज में डूबे किसानों से वसूली के लिए सख्त रवैया अपना रहे हैं। कर्ज में डूबे किसान अपनी जमीन गवां देने के बाद आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं। बैंक और वित्तीय संस्थानों के अलावा साहूकारों की दोगुना से ज्यादा ब्याज की मार किसानों पर अलग से पड रही है। सरकारी आंकडों के अनुसार सन 2010 में 583 किसानों ने आत्महत्या की। कारण उनका कर्ज अदा नहीं करना और अपनी जमीन गवां देना था। पिछले साल आत्महत्या का आंकडा छह सौ को पार कर गया। सन 2010 में बुदेलखंड के किसानों पर 3613 करोड़ रुपए के ऋण बकाया थे जो पिछले साल बढ कर 4370 करोड़ रुपए हो गए। किसानों के आत्महत्या की लगातार आ रही खबरों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और बैंकों को वसूली के लिए सख्त कदम नहीं उठाने के आदेश दिए। आकलन के अनुसार बुंदेलखंड के किसान पचास हजार से आठ लाख रुपए के कर्जदार है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या पर खुद संज्ञान लेकर कार्रवाई की और संभवत: अगले सप्ताह इस मामले की सुनवाई होगी। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को दिए आदेश में कहा कि वह कोई ऐसी नीति बनाए जिसमें कर्ज के कारण किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर नहीं होना पडे। राजनीतिक कारणों से ही सही केन्द्र सरकार ने बुंदेलखंड में विकास की कई योजनाएं चलाईं और विशेष पैकेज भी दिया। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में पार्टी की जमीन को मजबूत करने के लिए बुंदेलखंड को ही चुना और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से विशेष पैकेज की घोषणा के लिए जनसभा करने की भी गुजारिश की। सिंह ने जनसभा में पैकेज की घोषणा की। बुंदेलखंड बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती और राहल गांधी के बीच राजनीतिक द्वंद्व का अखाडा बन गया था। विधानसभा चुनाव के बाद सत्तारूढ़ हुई समाजवादी पार्टी ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में किसानों का पचास हजार रुपए तक का कर्ज माफ करने का वायदा किया था। हालांकि इसे अभी अमली जामा नहीं पहनाया गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार में बुंदेलखंड इलाके से कोई मंत्री नहीं है। सपा के झांसी से दो और बांदा तथा चित्रकूट से एक-एक विधायक जीत कर विधानसभा में पहुंचे हैं। कर्ज माफी के वायदे के अलावा किसानों की उम्मीद अब इलाहाबाद हाई कोर्ट पर भी टिकी है। बांदा के बबेरू प्रखंड के संतोष सिंह चार बीघा जमीन के मालिक थे। उन का कर्ज ब्याज बढने के साथ 80 हजार रुपए तक पहुंच गया था। उन्होंने तुलसी ग्रामीण बैंक से कर्ज लिया था। कर्ज अदा करने में असमर्थ 45 साल के संतोष ने पिछले मई में आत्महत्या कर ली। संतोष के परिवार में उनकी विधवा के अलावा पांच लडकियां हैं जिनके सामने अब भूखमरी की स्थिति है। संतोष का परिवार अब अपने पेट की आग बुझाने के लिए चार बीघा जमीन को बेचने की सोच रहा है। चित्रकूट के कर्वी प्रखंड के रसीन गांव के भानुमति के परिवार की हालत तो और खस्ता है। रसीन बांध बनाने के लिए उसकी बारह बीघा जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया और उसे कोई मुआवजा नहीं दिया गया। हताश भानुमति के बेटे ब्रज मोहन ने आत्महत्या कर ली। भानुमति, ब्रज मोहन की विधवा और उसके एक साल के बेटे के सामने भी भुखमरी की हालत है। भानुमति ने पेट पालने के लिए अपनी डेढ़ बीघा जमीन गिरवीं रख बैंक से पचास हजार रुपए का कर्ज लिया था। दिलचस्प यह कि दोनों परिवार के सदस्यों को महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत जाब कार्ड भी मिले हैं लेकिन उन्हें काम नहीं दिया गया लिहाजा कोई भुगतान भी नहीं हुआ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here