जाग-जाग हे हिन्द बावरे !

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images{अक्षय नेमा**,,}

आजादी के 65 साल गुजर जाने के बाद भी न तो देश की स्थिति सुधरी और न ही देश की भोली-भाली जनता की, स्थितियाँ सुधरी तो केवल और केवल सफेद पोश के उन नेताओं की जिन्होंने न केवल अपनी आत्मा नीलाम की बल्कि देश के आंचल तक को बहशी दरिंदों के हाथों में बैंच दिया। यहां तक की देश को तोड़ने की भरकस कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सकें। एक धर्मनिरपेक्ष देश के होते इन नेताओं ने भारतीय जनता के साथ मजहबीं चालें खेली, जिसमें किसी ने हिन्दुत्व को वोट बैंक बनाया तो किसी ने मुस्लिमों सहित अन्य अल्पसंख्यकों को अपना मोहरा बनाकर पेश किया। अपनी-अपनी रोटियां सैंकनें के बाद किसी ने देश की जनता की कोई सुध नहीं ली। परिणामस्वरूप यह तथ्य सामने आये कि देश की दशा आजादी के पहले के भारत से महज 20 प्रतिशत ही बेहतर हो पाई है। ये 20 प्रतिशत थे खुशहाल जीवन के जिसे भारतीयों ने बिना किसी रोक-टोक के जिये। हां 65 साल में देश की सरकारों ने कुछ उम्दा काम भी किये मगर देश की प्रगति आज भी नाकाफी ही रही। क्योंकि आज भी देश में गरीबी, भुखमरी, शोषण व भ्रष्टाचार मुख्य बिन्दु बने हुए हैं।
bhajpa partyदेश की जनता भी इतनी भोली साबित हुई कि उसे उसी पर खेली गई चालें समझ नहीं आ सकीं या उसने उन्हें समझने का प्रयास भी नहीं किया। नेताओं ने जनता को वोटों की खातिर खरीदना भी शुरू किया और जनता नेताओं के हाथों बिकती चली गई। साथ ही साथ देश में यह भी देखा जाने लगा कि कैसे लोग मुंह देखकर अपना मत देते है। हमारी इसी खोखली राजनीती ने देश को कभी एक नहीं होने दिया। हम हिन्दु बन तो कभी मुस्लिम बन अपने बजूद की लड़ाई लड़ते रहे जिसमें हमने कभी हिन्दु को मिटाना चाहा तो कभी मुसिलम को। हम आपस में लड़ते रहे और फायदा उन लोगों ने उठाया जो भारतीय होकर एक भारतीय के दर्द से अन्जान रहे। उन लोगों ने जिन्होंने लोकतंत्र को राजतंत्र बनाना चाहा, ये वे सफेद पोश के लोग ही थे जिन्होने भारत को कभी पनपने ही नहीं दिया।
aआजादी के 65 सालों में हमने देश को सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में तो पेश कर दिया पर देश की जमीन पर बाकाई लोकतंत्र नहीं लाया जा सका। इसके लिये कोई और नहीं केवल जनता ही जिम्मेदार रही है। वर्षो की गुलामी झेलने के बाद भी जिसकी आदतें आज भी नहीं सुधर सकीं। क्योंकि आज भी जनता उसी तरह सो रही है जिस तरह आजादी के पहले सोया करती थी। जिससे हम तब भी लुटे थे और आज भी बस लुट ही रहे है। भारत को आजाद हुए 65 साल बीत गये लेकिन हमने अपने हक से अपने नेताओं व सरकारों से कुछ नहीं पूछा, कुल मिलाकर हमारा रवैया विशुध्द रूप से नपुंसकों की भांति ही रहा जो थोड़े-थोडे से शोर में तालियां बजाने का काम करते है। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, हमें यह बात सोचनी होगी कि आजादी के 65 सालों के बाद भी सत्ता में बैठे इन सत्ताधीशों ने देश का कितना विकास किया ? भारत का एक-एक नागरिक क्या अपने अधिकारों को प्राप्त कर पाया? क्या उसके साथ उंच-नीच का भेद भाव नहीं रखा गया? और क्या उसके सर्वांणीय विकास के लिये किसी सरकार ने पूर्ण रूप से जिम्मेदारी उठाई हैं? माना हमें 40 साल अपने पैरों पर खड़ें होने में लगे लेकिन फिर भी 20-25 सालों में हमने क्या हासिल किया? यदि कुछ नहीं तो हमें न तो ऐसी सरकारें चाहिये और न ही ऐसे नेता।
images (1)यदि पिछले 20 सालों के इतिहास पर नजर दौड़ाइ जाये तो सामने आयेगा देश की जनता ने अपनी चुनी सरकारों से क्या प्राप्त किया? यदि देखा जाये तो पिछले 20 सालों में देश में गरीबी, भुखमरी, बलात्कार, मंहगाई व आतंक बढ़ा है। बड़े-बडे घोटाले सामने आये है। अभी तक हम जिस आतंकवाद के खौफ में जी रहे थे कि अब हमारे सामने माओवाद की दहशत भी सिर उठाने लगी है। आज भी हमारी सीमा में घुस कर भारतीय सैनिकों की हत्याएं की जाती है, लेकिन हम आज तक कुछ नहीं कर सकें। प्रश्न यह है कि आखिर हम कब तक इनके खौफ में जीते रहेगे, कब तक हमारे देश के लोग भूखे मरते रहेगे।  इसका कारण है हमें आज तक वह नेतत्व प्राप्त नहीं हो सका जिसकी हमें वर्षो से जरूरत रही है। अभी तक जो मिला वो अंधों में काना राजा के सिवाय और कुछ नहीं था। हमारे साथ औपचारिकताओं का खेल-खेला जाता रहा है। लेकिन अब हम भारतीय औपचारिकताओं में नहीं जी सकते। हमारा जीवन, हमारे प्रयास, हमारे वोट, हमारा पसीना महज एक औपचारिकता बस नहीं है यह बात वर्तमान व भावी सरकारों को समझ लेनी चाहिये।
अब हमें एक ऐसा नेता चाहिये जो धर्म भीलू न हो, जिस पर किसी दंगे, किसी घोटाले सहित अन्य कोई भी मामला दर्ज न हो। एक ऐसा नेता जो कम से कम स्नातक की योग्यता रखता हो, और राजनैतिक अनुभव भी। क्योंकि अब हम अंगूठा छाप व किसी घराने विशेष या नव सिखिया नेता बर्दास्त नहीं करेगें। अब तो बस सभी भारतीय भार्इ-बहनों से यही कहा जा सकता है कि बहुत सो लिया अब जागों वरना यू ही लुटते रहोगें।

  जय भारत

*नोट : व्यक्त किये हुए लेखक के अपने विचार है । जरूरी नहीं की आई.एन.वी.सी इन से सहमत हो ।

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