ज़रूरत नोटबंदी पर श्वेत पत्र लाने की

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–   तनवीर जाफरी –

देश के लोग 8 नवंबर 2016 की वह रात कभी नहीं भूल सकेंगे जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक अत्यंत महत्वपूर्ण राष्ट्र संबोधन के द्वारा देश में प्रचलित एक हज़ार व पांच सौ रुपये की करेंसी नोट को बंद किए जाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में नोटबंदी की घोषणा करते समय जो सर्वप्रमुख बातें की थीं वह उन्हीं के शब्दों के अनुसार….‘भ्रष्टाचार,कालाधन और आतंकवाद ऐसे नासूर हैं जो किसी भी देश को अंदर ही अंदर खा जाते हैं। सरहद पार से आतंकवाद और जाली नोटों का कारोबार देश को तबाह कर रहा है। कैश का काला कारोबार देश में मंहगाई पर बड़ा असर डालता है। देश को कालेधन और भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया जाना बहुत ज़रूरी हो गया है।’ नोटबंदी के यह कारण बताकर तथा हज़ार व पांच सौ रुपये की नोट जमा कराने व दूसरी नई करेंसी निकालने के संबंध में कुछ दिशानिर्देश देकर प्रधानमंत्री ने अपनी इस महत्वपूर्ण घोषणा की इतिश्री कर दी। प्रधानमंत्री अगले ही दिन जापान यात्रा पर निकल गए और पूरा देश बैंकों की कतारों में खड़ा हो गया। गत् 8 नवंबर 2017 को जब विपक्षी दलों तथा आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा नोटबंदी के बीते एक वर्ष का हिसाब मांगा गया तो केंद्र सरकार ने नोटबंदी के पक्ष में कई नई दलीलें पेश करनी शुरु कर दीं। हालांकि दलीलें बदलने का काम तो नोटबंदी लागू होने के कुछ ही दिनों बाद शुरु हो गया था। भ्रष्टाचार,काला धन और आतंकवाद जैसी परिस्थितियों से निपटने के लिए उठाया जाने वाला कदम कभी कैशलेस की ओर लडख़ड़ाते देखा गया तो कभी लेसकैश की ओर डगमगाया। और होते-होते नोटबंदी के फायदों में केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद द्वारा देह व्यापार में कथित रूप से आई कमी भी शामिल कर दी गई।

गत् 8 नवंबर को जहां मोदी सरकार ने अपने दर्जनों वरिष्ठ मंत्रियों को देश के प्रमुख नगरों व महानगरों में भेजकर नोटबंदी के समर्थन में दलीलें पेश करने की हिदायत दी थी वहीं सरकार द्वारा पूरे देश में सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर नोटबंदी की सफलता का जश्र मनाने की कोशिश भी की गई। समाचार पत्रों में जो विज्ञापन दिए गए थे उनकी शब्दावली यह थी-‘125 करोड़ भारतवासियों ने लड़ी भ्रष्टाचार और काले धन के िखलाफ सबसे बड़ी लड़ाई और विजयी हुए। नोटबंदी की व्यापक और ऐतिहासिक सफलता’ इन पंक्तियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुस्कुराता हुआ चित्र भी प्रकाशित किया गया था। यहां यह सवाल उठना ज़रूरी है कि यदि देश की 125 करोड़ जनता प्रधानमंत्री के इस फैसले में उनके साथ थी तो आिखर उन्हें नोटबंदी की पहली वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रीय स्तर पर काला धन विरोधी दिवस के नाम से इतना बड़ा दिखावा करने की आिखर ज़रूरत ही क्यों महसूस हुई? क्यों देश के महत्वपूर्ण मंत्रियों का बहुमूल्य समय व जनता का धन खराब कर उन्हें नोटबंदी के पक्ष में तरह-तरह की दलीलें पेश करने के लिए देश के विभिन्न नगरों व महानगरों में भेजा गया? रहा सवाल विपक्ष के 8 नवंबर 2017 को काला दिवस के रूप में मनाने की बात तो विपक्ष का तो काम ही सरकार की नीतियों की आलोचना करना है? परंतु दरअसल केंद्र सरकार द्वारा विपक्षी दलों के दबाव में आने मात्र के लिए ही इस प्रकार की सफाई नहीं दी गई बल्कि इसके पीछे मुख्य कारण यही है कि सरकार अब तक स्वयं ही यह समझ नहीं पाई है कि उसने नोटबंदी जैसा कदम उठाकर देश की अर्थव्यवस्था के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ किया है।

आज देश के बड़े से बड़े अर्थशास्त्री,अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ,भारतीय रिज़र्व बैंक के कई वरिष्ठ अधिकारी यहां तक कि भाजपा के ही कई वरिष्ठ नेता व अर्थशास्त्री नोटबंदी को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक गहरा धक्का बता चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो एक वर्ष पहले ही अपने ज्ञान एवं अनुभव के बल पर यह भविष्यवाणी कर दी थी कि इस आत्मघाती कदम से देश की सकल घरेलू उत्पाद दर में दो प्रतिशत की गिरावट आएगी और ठीक वैसा ही हुआ भी। इसीलिए डा० सिंह ने नोटबंदी की घटना को संगठित लूट की संज्ञा दी। डा० मनमोहन सिंह को किसी तार्किक व संतोषजनक उत्तर देने के बजाए अपनी भाजपाई शैली में वित्तमंत्री अरूण जेटली ने यह कहा कि संगठित लूट तो 2जी,कोयला घोटाला तथा कॉमनवेल्थ आदि थी। भाजपा नेताओं के जवाब देने का यह अंदाज़ चिरपरिचित है लिहाज़ा इसे असहज रूप में लेने से कुछ हासिल नहीं। परंतु इतना तो ज़रूर है कि भाजपा सरकार जिन 125 करोड़ भारतीयों के सिर पर नोटबंदी की कथित व्यापक व ऐतिहासिक सफलता का सेहरा बांधने का प्रयास कर रही है उस जनता को कम से कम यह जानने का अधिकार तो है ही कि इस पूरे घटनाक्रम की जड़ें कहां से शुरु होती हैं और खत्म कहां पर होंगी?

उदाहरण के तौर पर नोटबंदी की आलोचना करने वालों का एक सनसनीखेज आरोप यह भी है कि चूंकि भारतीय बैंक सरकार के चहेते उद्योगपतियों को ऋण देकर तथा उस अकूत धनराशि की वापसी न हो पाने के कारण कंगाली की हालत पर पहुंच गए थे लिहाज़ा नोटबंदी का पूरा खेल केवल इसीलिए खेला गया ताकि जनता के पैसे रिज़र्व बैंक में पहुंचाए जाएं और रिज़र्व बैंक उन मृतप्राय होते जा रहे बैंकों को जनता की यही धनराशि देकर उन्हें ऑक्सीजन देने की कोशिश करे। दूसरा सवाल देश की जनता यह भी जानना चाहती है कि एक ओर तो देश के अरबपतियों द्वारा बैंकों से ऋण लेकर उन्हें वापस भी नहीं किया जाता दूसरी ओर उनका खमियाजा भुगतने के लिए देश की आम जनता को लगभग तीन महीनों तक लाईनों में खड़ा रखने का औचित्य क्या था? क्या उन कतारों में खड़े होकर मरने वाले सैकड़ों लोग उन 125 करोड़ भारतीयों में शामिल नहीं जिनके नाम पर सरकार द्वारा अपनी कथित ऐतिहासिक सफलता के इश्तिहार लगवाए जा रहे हैं? नोटबंदी के कारण लाखों लोग बेरोज़गार हुए लाखों लघु उद्योग धंधे बंद हो गए। यह सब भारतमाता की संतानें नहीं हैं क्या? क्या इन्हें यह जानने का कोई हक नहीं कि इस फैसले का कारण वास्तव में क्या था और अब सफलता के नाम पर क्या गिनाया जा रहा है? देश की जनता को बताया जा रहा है कि नोटबंदी के बाद कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में कमी आई है और पत्थरबाज़ी की घटनाएं भी कम हुई हैं। सवाल यह है कि इन घटनाओं में कमी का श्रेय नोटबंदी के बजाए सुरक्षा बलों की चौकसी तथा विभिन्न गुप्तचर एजेंसियों की तत्परता व उनकी कुशल कार्यशैली को क्यों नहीं दिया जाना चाहिए? उधर जाली नोटों का प्रचलन भी कम हाने का नाम नहीं ले रहा है।

पूरा देश नोटबंदी के एक वर्ष पूरे होने के अंतराल में इस संबंध में हुई अलग-अलग घोषणओं,कारणों,तर्कों-वितर्कों को भलीभांति देख व सुन चुका है। इन सबसे बचने तथा देश की जनता को उसके अपने खून-पसीने की कमाई के पैसों का हिसाब देने का एकमात्र तरीका यही है कि सरकार नोटबंदी पर एक श्वेत पत्र जारी कर सभी सिलसिलेवार कदमों का विस्तृत रूप से जि़क्र करे और पूरे तर्कों व आंकड़ों के साथ यह बताए कि जिस मकसद को हासिल करने के लिए यह कवायद की गई थी उसमें सरकार को कितनी सफलता मिली है? अन्यथा देश की जनता को सत्तापक्ष तथा विपक्ष की बातों में उलझाने का कोई लाभ नहीं है। इस प्रकार के आतंकवाद व कालेधन से लेकर देह व्यापार व कैशलेस या लेसकैश जैसे भ्रमित करने वाले तर्क देश के जि़म्मेदार राजनेताओं पर से जनता का विश्वास खत्म कर सकते हैं।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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