जब नववर्ष पर ज़िन्दा जलाई जाए पुलिस परिवार की बहू **

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निर्मल रानी*,,

नारी उत्पीडऩ की दास्तान गोया हमारे देश की ‘प्राचीन परंपराओं में एक प्रमुख स्थान ले चुकी है। इन दिनों भी पूरा देश नारी उत्पीडऩ विशेषकर महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार व छेड़छाड़ को लेकर व्यापक विमर्श में जुटा हुआ है। परंतु इस संघर्षपूर्ण वातावरण में भी महिलाओं का उत्पीडऩ किए जाने के हादसे हैं कि कम होने का नाम ही नहीं लेते। बल्कि ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाओं के उत्पीडऩ के समर्थन में उठने वाली राष्ट्रीय स्तर की आवाज़ के बाद तो शायद महिलाओं पर अत्याचार किए जाने की घटनाओं में बढ़ोतरी सी हो गई है। इन दिनों जहां प्रतिदिन अनेक स्थानों से बलात्कार, ज़ोर-ज़बरदस्ती व महिलाओं की इज़्ज़त-आबरू पर हमले होने की लगातार $खबरें आ रही हैं वहीं दहेज के नाम पर अपनी बहुओं को तंग किए जाने यहां तक कि उन्हें जान से मार दिए जाने के समाचार भी बराबर सुनने को मिल रहे हैं। कानून का पालन करने को बाध्य आम लोगों की बात तो क्या करें कानून के रखवाले बने बैठे पुलिस परिवार की बहुओं को भी दहेज की बलि-बेदी पर चढ़ते देखा जा रहा है।
ऐसी ही एक हृदयविदारक घटना पिछले दिनों हरियाणा के अंबाला जि़ले में घटी। इस घटना में एक 24 वर्षीय विवाहिता को कथित रूप से उसके पति और उसके ससुर ने जोकि हरियाणा पुलिस में एएसआई है, ने जलाकर मार डाला। इस पूरे घटनाक्रम में एक और दु:खद पहलू यह भी है कि पुलिस परिवार की इस बहू को ज़िन्दा  जलाए जाने का हादसा 1 जनवरी 2013 को उस दिन पेश आया जबकि देश और दुनिया के लोग एक-दूसरे को नववर्ष की बधाईयां दे रहे थे तथा दुनिया नववर्ष के जश्न मनाने में व्यस्त थी। पूरा घटनाक्रम कुछ इस प्रकार है कि अंबाला के बराड़ा कस्बे की निवासी 24 वर्षीय निशा पुत्री स्वर्गीय सतपाल सिंह का विवाह अक्तूबर 2008 में अंबाला के ही 26 वर्षीय विशाल नामक युवक से हुआ था। विशाल का पिता इस समय हरियाणा पुलिस में बतौर सहायक सब इंस्पेक्टर कार्यरत है तथा अंबाला शहर में ही तैनात भी है। निशा का एक भाई संदीप राणा है जोकि ज़मींदार है तथा केवल खेतीबाड़ी के पेशे से ही अपने परिवार का पालन-पोषण करता है। संदीप राणा ने बताया कि उसकी बहन निशा का 2008 में जब विवाह हुआ उस समय भी उसने अपनी बहन के विवाह पर अपनी हैसियत से बढक़र पैसे $खर्च किए थे। यहां तक कि नगद,ज़ेवर व दहेज का अन्य तमाम सामान देने के बाद तथा बारातियों की सेवा पर लाखों रुपये खर्च करने के बावजूद एक कार भी अपने दामाद को दहेज में दी थी। बताया जाता है कि शादी के मात्र एक वर्ष के भीतर ही दामाद विशाल दहेज में मिली उस कार को भी बेचकर खा गया। विशाल ने शादी के $फौरन बाद से ही निशा पर मायके जाकर पैसे लाने का बार-बार दबाव डालना शुरु कर दिया था।
निशा भी अपने पति व ससुर के दबाव में आकर बार-बार अपने मायके बराड़ा जाती तथा कभी पांच हज़ार तो कभी दस, कभी बीस हज़ार तो कभी पचास हज़ार यहां तक कि कभी-कभार एक लाख रुपये भी लेकर अपने ससुराल वापस आ जाती। यह सिलसिला 2008 से लेकर 2012 के अंत तक चलता रहा। यहां तक कि निशा के पति विशाल व उसके ससुर पुलिस कर्मी सुरिंद्र राणा ने दिसंबर 2012 के अंतिम सप्ताह में अपनी बहु से पांच लाख रुपये मायके से मांग कर लाने को कहा। इस बार भी निशा ने अपने मायके जाकर अपने इकलौते भाई संदीप राणा से पांच लाख रुपये की मांग की। परंतु तत्काल इतने पैसों का प्रबंध न होने के कारण संदीप अपनी बहन निशा को एकमुश्त इतनी र$कम नहीं दे सका। फिर भी 24 दिसंबर 2012 को संदीप ने पचास हज़ार रुपये देकर तथा बाद में और पैसे दिए जाने की बात कहकर निशा को उसकी ससुराल के लिए इज़्ज़त के साथ बिदा कर दिया।
परंतु इस परिवार को पांच लाख रुपये के बजाए पचास हज़ार की रक़म घर में आती अच्छी नहीं लगी और उसी के बाद इन दोनों बाप-बेटे ने अपनी घर की इस बहू को और अधिक प्रताडि़त करना शुरु कर दिया। और निशा को उत्पीडि़त किए जाने का सिलसिला इस हद तक पहुंचा कि संदीप के अनुसार इन दोनों बाप बेटे ने मिल कर अपने घर की इस सुशील, होनहार तथा गृहस्थी के कामों में निपुण बहू को दिन-दहाड़े अपने ही घर में ज़िन्दा जला दिया। बताया जाता है कि पहली बार में ही मिट्टी का तेल छिडक़ कर उसके शरीर को इस बुरी तरह से जलाया गया कि वह 90 प्रतिशत से अधिक जल चुकी थी।
इसी पीड़ादायक स्थिति में पांच जनवरी को उस अबला ने अपने प्राण त्याग दिए और भारत वर्ष में दहेज की बलिबेदी पर चढक़र अपनी जान न्यौछावर करने वाली महिलाओं की सूची में उसने अपना नाम भी दर्ज करा लिया। निशा को जलाए जाने के पश्चात जब उसके मायके वालों को किसी पड़ोसी द्वारा इस हादसे की सूचना दी गई उस समय से लेकर उसकी मृत्यु तक तथा बाद में उसके संस्कार व क्रियाक्रम तक के सारे कार्य निशा के भाई व अन्य परिजनों द्वारा अदा किए गए। बताया जाता है कि जिस समय इस पुलिसिया परिवार की बहू के साथ उसे जलाए जाने का हादसा पेश आया उस समय से लेकर गिर$फ्तार होने तक निशा के कातिल पति व उसके पुलिसकर्मी ससुर की सहायता भी एक पड़ोसी पुलिस परिवार द्वारा ही की जा रही थी।
इस पूरे घटनाक्रम में भारत में होने वाले अपराध व उनकी श्रेणी को यदि हम देखें तो दहेज के लिए किसी बहू की हत्या किया जाना, उसे ज़िन्दा जलाकर मार डालना या किन्हीं अन्य तरी$कों से अपने घर की बहुओं पर ज़ुल्म ढाना निश्चित रूप से कोई नई बात या कोई आश्चर्यजनक बात नहीं प्रतीत होती है। परंतु उपरोक्त घटनाक्रम में दो बातें तो अवश्य बहुत ही शर्मनाक व दुर्भाग्यपूर्ण हैं। एक तो यह कि यह हादसा एक पुलिस कर्मी की बहू के साथ उसी पुलिस कर्मी के घर में पेश आया। जगज़ाहिर है कि भारत में या अन्य सभी देशों में पुलिस का काम आम लोगों से $कानून की पालना कराना, अपने-अपने क्षेत्रों में अमन-शांति $कायम कराना, हिंसा को न होने देना, अपराध रोकना तथा अपनी अनुशासित सेवा के द्वारा समाज व देश का कल्याण करना ही होता है। यही पुलिस हमारे देश में दहेज संबंधी आपराधिक मामलों का समाधान करती है तथा ऐसे अपराध मे संलिप्त दोषियों को सज़ा दिलाने का काम करती है।
ऐसे में सवाल यह ज़रूर खड़ा होता है कि 2008 से लेकर 2012 तक जब विशाल द्वारा निशा से मायके जाकर बार-बार पैसे लाने के लिए कहा जाता था तो क्या उसमें उसके ससुर सहायक उपनिरीक्षक हरियाणा पुलिस सुरिंद्र राणा की सहमति नहीं रही होगी? क्या बिना अपने पिता के संज्ञान में डाले हुए विशाल अपनी पत्नी से बार-बार पैसे मंगवाया करता था? क्या उसने बिना अपने पिता की जानकारी के दहेज में मिली कार को बेच दिया होगा? दूसरी बात यह कि इस घटना के घटित होने के बाद जिस प्रकार एक दूसरे पड़ोसी पुलिस परिवार द्वारा मानवता का साथ दिए जाने के बजाए तथा पीडि़ता व उसके परिवार की मदद करने के बजाए अपने विभागीय साथी होने के चलते हत्या के एक मुजरिम को पनाह देने तथा उसे बचाने का प्रयास किया गया वह भी निहायत अफसोसनाक है। यदि निशा के मायके वालों की माने तो यदि कोई अंजान पड़ोसी उनके घर फोन पर सूचित न करता तो शायद कई दिनों तक उन्हें इस घटना का भी पता न चलता। निशा के मायके वालों का यहां तक आरोप है कि निशा के ससुर सुरिंद्र राणा ने पड़ोसी पुलिस कर्मी परिवार के सहयोग से एक जनवरी को निशा के साथ हुए हादसे के फौरन बाद घटना स्थल की पूरी सफाई बाकायदा साबुन तथा वाईपर के साथ केवल सुबूतों का निशान मिटाने की गरज़ से कर डाली।
बहरहाल इस समय निशा का पति विशाल तथा ससुर सुरिंद्र राणा उपरोक्त जुर्म के आरोप में जेल भेजे जा चुके हैं। और उसकी एकमात्र तीन वर्षीय पुत्री के सिर पर से इसी छोटी सी आयु में मां का साया उठ चुका है। निश्चित रूप से निशा कभी दोबारा जीवित नहीं हो सकती। परंतु अपनी मौत के बाद वह यह एक अहम सवाल ज़रूर छोड़ गई है कि हमारे देश में जब कानून के रखवालों व समाज को $कानून की पालना कराने का जि़म्मा उठाने वालों के घरों में उनकी बहुएं स्वयं सुरक्षित नहीं हैं तथा वे भी दहेज की बलि चढ़ जाया करती हैं तथा इस प्रकार क्रूरतापूर्ण तरी$के से मिट्टी का तेल छिडक़ कर ज़िन्दा जला दी जाती हैं ऐसे में उन आम परिवारों की बहुओं की सुरक्षा की गारंटी कैसे ली जा सकती है जो न तो $कानून के जानकार होते हैं न ही $कानून के रखवाले? लिहाज़ा इस समय महिला उत्पीडऩ को लेकर छिड़े आंदोलन में जहां दोषियों को सख्त सज़ाएं दिए जाने की व्यवस्था किए जाने की मांग हो रही है वहीं इसी क्रम में यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यदि $कानून का जानकार या समाज में अपनी जि़म्मेदार हैसियत अथवा संवैधानिक पद रखने वाला कोई व्यक्ति अपराध करे तो उसे सामान्य से अधिक सज़ा दिए जाने का भी प्रावधान हो।
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Nirmal Rani,निर्मल रानी*निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana 

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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