{ निर्मल रानी }
भारतीय मतदाताओं ने पहली बार दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाली भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ विजयश्री दिलाई है। इन ऐतिहासिक चुनाव परिणामों में न केवल देश के सबसे विशाल व पुराने राजनैतिक संगठन कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह से पराजय का सामना करना पड़ा बल्कि कई क्षेत्रीय दलों के समक्ष भी अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। परंतु राजनैतिक दलों की हार-जीत के उतार-चढ़ाव के बीच सबसे अधिक आश्चर्य वाली बात रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को भी अन्य राजनैतिक दलों की ही तरह जनता द्वारा समर्थन न दिया जाना। गोया मतदाताओं द्वारा भ्रष्टाचार तथा वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के विरुद्ध अपनी सबसे ऊंची व सबसे अलग आवाज़ बुलंद करने वाली पार्टी की अनेदखी किया जाना। यदि पंजाब से आम आदमी पार्टी के चार सांसद विजयी न हो पाते तो संभवत: अरविंद केजरीवाल को अपने मिशन तथा अपने राजनैतिक दल के भविष्य के बारे में बहुत गहन चिंतन-मनन करना पड़ता। सलाम है जनादेश 2014 में भाग लेने वाले उन मतदाताओं का जिन्होंने एक बार फिर देश की लोकसभा के लिए जहां सैकड़ों होनहार,ईमानदार,अनुभवी तथा राजनैतिक सूझबूझ रखने वाले सांसदों को भेजा वहीं इसी संसद में लगभग 160 से अधिक अपराधी तथा विभिन्न आरोपों में नामज़द लोगों को भी निर्वाचित किया। परंतु अरविंद केजरीवाल,मेधा पाटकर,राजमोहन गांधी,योगेंद्र यादव,मीरा सान्याल,मयंक गांधी तथा शाजि़या इल्मी जैसे आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को इन्हीं मतदाताओं ने $खारिज कर दिया।
यदि हम कुछ माह पूर्व के राजनैतिक दिनों के पन्ने पलटकर देखें तो अरविंद केजरीवाल व उनकी राजनैतिक मुहिम को पूरे विश्व के मीडिया द्वारा सराहा गया था। यही आम आदमी पार्टी अपने अस्तित्व में आने के मात्र एक वर्ष के भीतर ही दिल्ली की सत्ता भी हासिल कर चुकी थी। अपने मात्र 49 दिनों के दिल्ली सरकार के कार्यकाल में अरिविंद केजरीवाल ने अनेक ऐसे $फैसले भी लिए थे जो बेहद चौंकाने वाले तथा लोकहितकारी थे। परंतु जनलोकपाल विधेयक पर कांग्रेस व बीजेपी का समर्थन न मिलने के कारण या फिर इस मुद्दे को बहाना बनाकर केजरीवाल ने 16वीं लोकसभा के आम चुनावों में कूद पडऩे के लिए अपनी सरकार का त्यागपत्र देने का जो ऐतिहासिक $फैसला किया उससे देश के मतदाताओं में सभवत: सकारात्मक संदेश नहीं पहुंच पाया। केजरीवाल सरकार के त्यागपत्र के बाद ही बड़े ही नियोजित तरी$के से कांग्रेस,भाजपा तथा इनके साथ देश के इलेक्ट्रानिक मीडिया ने इन पर ‘भगोड़ा’ होने का ठप्पा लगा दिया। और इस दुष्प्रचार ने अरविंद केजरीवाल की सरकार चलाने की सलाहियत पर सवाल खड़े कर दिए। इस बार के चुनाव प्रचार में विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा पानी की तरह से पैसा बहाया गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कुछ ही मिनटों के बाद अपने विज्ञापन को दोहराने के अलावा बोर्ड,$फ्लेक्स,सोशल मीडिया, नुक्कड़ नाटक, डीवीडी, चाय पर चर्चा,पोस्टर व बिल्ले आदि सभी साधनों का इस्तेमाल किया गया। और इस बेहद $खर्चीले चुनाव प्रचार में आम आदमी पार्टी कहीं भी नहीं ठहर सकी। ज़ाहिर है अरविंद केजरीवाल द्वारा घोषित भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडा ही ऐसा था जिसे कारपोरेट घरानों से लेकर छोटे-मोटे व्यवसायियों तथा उद्योगपतियों तक से कोई भी आर्थिक सहयोग मिलने की उम्मीद ही नहीं थी।
हालांकि पूरे देश में 400 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करने के बाद मात्र 4 सीटों पर ही अपनी जीत दर्ज कराने वाली आम आदमी पार्टी ने देश के मतदाताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित नहीं किया, ऐसा भी नहीं है। ‘आप’ के लक्ष्य व इसकी आयु के मुताबि$क चुनाव मैदान में उतरने के लिए लगभग पूरे देश में इसे अच्छे उम्मीदवार भी मिले तथा हज़ारों होनहार व देशभक्त कार्यकर्ता भी साथ जुड़े। चुनाव पूर्व स्वयं अरविंद केजरीवाल के अपने चुनाव लडऩे की दहशत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्वयं नरेंद्र मोदी को भी दो स्थानों से चुनाव लडऩा पड़ा। वाराणसी के चुनाव अभियान के दौरान अरविंद केजरीवाल को मिलने वाला भारी समर्थन भी इस बात की ओर बार-बार इशारा करता रहा कि नरेंद्र मोदी को केजरीवाल द्वारा बड़ी चुनौती दी जा रही है। परंतु आ$िखरकार केजरीवाल चुनाव हार गए। याद कीजिए जिस समय केजरीवाल वाराणसी की जनता से यह पूछने के बहाने बेनिया बा$ग के मैदान में जनसभा कर रहे थे कि वे वाराणसी से चुनाव लड़ें या न लड़ें, उसी समय से उन्होंने नरेंद्र मोदी के विरुद्ध आरोपों की एक लंबी सूची अपनी पहली जनसभा के माध्यम से ही वाराणसी के लोगों के बीच रख दी थी। और इन बेहद संगीन आरोपों का प्रचार वे पूरे चुनाव अभियान के दौरान मतदाताओं के घर-घर जाकर अपनी सभी नुक्कड़ सभाओं तथा रोड शो में भी करते रहे। इन आरोपों में अदानी जैसे उद्योगपति से नरेंद्र मोदी के गहन संबंध, अपने चुनाव प्रचार में उनके विमान का इस्तेमाल करने का औचित्य, तेल व गैस की $कीमतें बढ़ाए जाने के बारे में मोदी का रु$ख,मोदी के गुजरात मंत्रिमंडल में भ्रष्ट व अपराधी लोगों का शामिल होना,अंबानी परिवार के दामाद को राज्य का मंत्री बनाए जाने का औचित्य,गुजरात में होने वाली किसानों की आत्महत्याएं, भूमि अधिग्रहण को लेकर गुजरात सरकार द्वारा बरती जा रही कथित दोहरी नीतियां तथा गुजरात के ही तथाकथित विकास के परोपेगंडे से संबंधित कई महत्वपूर्ण आरोप लगाए जा रहे थे।
इतना ही नहीं बल्कि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी को सार्वजनिक रूप से बहस करने की चुनौती भी दे डाली थी। उन्होंने सा$फतौर पर घोषणा की थी कि नरेंद्र मोदी अपनी सुविधा,समय व स्थान के अनुसार जहां और जब चाहें मैं बहस के लिए तैयार हूं। परंतु मोदी की ओर से अरविंद केजरीवाल की चुनौती के संबंध में कोई जवाब नहीं दिया गया। परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठने वाली आवाज़ तथा मुद्दों पर की जाने वाली चर्चा के बजाए हर-हर मोदी,घर-घर मोदी,और अब की बार मोदी सरकार तथा मुझे गंगाा मां ने बुलाया है और सरकार ने मुझे गंगा मां की आरती नहीं करने की इजाज़त जानबूझकर नहीं दी,मुझे बेनिया बा$ग में जनसभा क्यों नहीं करने दी, रोडशो की इजाज़त केजरीवाल और राहुल गांधी को तो दी पर मुझे क्यों नहीं दी,सेवक को वोट दीजिए शहज़ादे को नहीं जैसी बातें चुनाव में निर्णायक साबित हुईं। मतदाताओं के ऐसे रु$ख के बाद यह सवाल न केवल देश के भ्रष्टाचार विरोधी विचार रखने वाले लोगों के लिए बल्कि स्वयं अरविंद केजरीवाल व उनकी पार्टी के नीति निर्धारकों के लिए चिंता का विषय बन गया है कि क्या भारतीय मतदाता स्वतंत्रता के 6 दशकों के बाद भी तथा राजनीतिज्ञों द्वारा देश की की जा रही दुर्दशा के बावजूद अभी भी लोक लुभावने तथा जनता को निरर्थक रूप से उत्तेजित करने वाले व भावनाओं में बहा ले जाने वाले मुद्दों पर मतदान करते रहेंगे? क्या देश के पारंपरिक राजनैतिक दलों व उनके द्वारा चलाई जा रही सरकारों में व्याप्त घोर भ्रष्टाचार देखने व सुनने के बावजूद जनता अब भी उन्हीं भ्रष्ट व अपराधी $िकस्म के उम्मीदवारों को निर्वाचित किए जाने के पक्ष में है? और यदि वास्तव में ऐसा है तो देश में पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर चली व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराही गई यह भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम और इसकी ध्वजावाहक बनी आम आदमी पार्टी का वजूद क्या संकट में पड़ चुका है? या फिर देश के एक ही राज्य पंजाब से जीतकर आने वाले आप के 4 सांसद लोकसभा में अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए का$फी हैं।
हमारे देश में प्रचलित इन कहावतों से सभी लोग भलीभांति परिचित हैं। जैसे सौ में से नब्बे बेईमान फिर भी मेरा भारत महान। एक कहावत यह भी प्रचलित है कि देश में ईमानदारी मात्र दाल में नमक के बराबर रह गई है। अब इन कहावतों को यदि हम जनादेश 2014 के पैमाने पर रखकर देखें तो 543 सदस्यों की लोकसभा में 4 सांसदों का आपा पार्टी से चुनकर आना उपरोक्त कहावतों की तसदीक़ करता है। परंतु साथ-साथ यह चुनाव परिणाम अरविंद केजरीवाल व उनके रणनीतिकारों के लिए एक बहुत बड़ा सब$क भी है। सब$क इस बात का कि चुनाव प्रचार बिना अकूत धन-संपत्ति के बहाए हुए नहीं किया जा सकता। मीडिया को अपना दुश्मन बनाकर आपकी स्थिति वैसी ही रहेगी जैसकि जल में रहकर मगरमच्छ से बैर। सब$क इस बात का भी कि आप भले ही पूरी ईमानदारी,त्याग,तपस्या, हौसले व जज़्बे के साथ देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने,देश की पंगु व्यवस्था को पूरी तरह बदलने जैसी लोकहितकारी बातें क्यों न करें परंतु यदि आप धर्म,वर्ग,जाति आदि जैसी बातें नहीं करते और आपके पास लोकलुभावनी बातें करने के $फार्मूले नहीं हैं या आप लोगों की भावनाओं को भडक़ाने व उन्हें भुनाने की क्षमता नहीं रखते तो जनता की नज़र में आप भी $खारिज,आपका नेतृत्व भी $खारिज तथा आपके प्रत्याशी बनाए गए
होनहार,योग्य,त्यागी,ईमानदार व समर्पित सभी उम्मीदवार भी नाकारे। निश्चित रूप से इस जनादेश 2014 ने कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह पराजित कर आम लोगों को इतना अधिक आश्चर्यचकित नहीं किया जितना कि मुहिम केजरीवाल को झटका देकर किया है। नि:संदेह देश के सामने अब फिर यह प्रश्र खड़ा है कि क्या भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम व उसकी झंडाबरदार आम आदमी पार्टी हमेशा के लिए $खत्म हो जएगी या इसके 4 सांसद लोकसभा में अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराते हुए पूरे देश में अपनी आवाज़ पहुंचाने में सक्षम साबित होंगे?
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*निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
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