छोटे शहरों के मेलों से उम्‍मीदें और आकांक्षाएं

0
29

*विद्या भूषण अरोड़ा

अपने हस्‍तनिर्मित जूते और चप्‍पलों के लिए बड़ी दुकान लेकर सूक्ष्‍म उद्यमी अशोक चवाड़े अब बहुत खुश हैं। राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम (एनएससीएफडीसी) से छह साल पहले लिए एक लाख रुपए के कर्ज की मदद से चवाड़े ने बड़ी दुकान ली और चमड़े की बेहतर ट्रिमिंग के लिए नई रापी मशीन भी खरीदी। इस मदद से वह पहले की तुलना में ज्‍यादा फुटवियर बना पा रहे हैं। उनके लिए कहीं ज्‍यादा संतोषजनक तथ्‍य यह है कि एनएससीएफडीसी से मिले इस कर्ज की शर्तें बेहद आसान हैं। इस कर्ज को 20 सालों में लौटाना है। इंटरमीडिएट पास अशोक महाराष्‍ट्र के नागपुर जिले के छोटे परंतु सुंदर शहर रामटेक से हैं। यहां की आबादी 50 हजार से भी कम है। यहां स्थित अनेक मंदिरों को देखने यहां अच्‍छी संख्‍या में पर्यटक आते हैं। अपने कारोबार के विस्‍तार के बारे में चवाड़े कहते हैं, ‘‘यदि उचित कोशिश हो तो इस शहर में अच्‍छी पर्यटन क्षमता है।’’ इनके फुटवियर 100 से 600 रुपए के दायरे में होने के चलते ये इसे बड़ी संख्‍या में बनाते हैं।

भारत निर्माण के तहत कार्यान्वित की जा रही विकास योजनाओं के प्रदर्शन के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा आयोजित जनसूचना अभियान के अंतर्गत रामटेक में लगाए गए स्‍टॉल पर अशोक चवाड़े ने अपने उत्‍पादों को प्रस्‍तुत किया। राज्‍य सरकार या संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही केंद्रीय योजनाओं के अन्‍य लाभान्वितों ने भी चवाड़े का साथ दिया।

उदाहरणार्थ, नागपुर के निकट के ही एक छोटे से शहर नगरधाम की एक महिला उद्यमी ने इस तीन-दिवसीय मेले में लाए चमड़े के अपने सभी थैलों को मेला शुरू होने के कुछ ही घंटों में बेच दिया। अब वह तेजी से तिरपाल या अन्‍य सामग्रियों से बने थैलों का कारोबार कर रही है। गांवों के गरीबों को स्‍वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित कर उन्‍हें स्‍वरोजगार मुहैया कराने वाले एकीकृत कार्यक्रम स्‍वर्णजयंती ग्राम स्‍वरोजगार योजना के तहत नगरधाम में गठित रानी लक्ष्‍मी महिला बचत गुट की सदस्‍य करुणा अनंत पौनिकर इसके बारे में बड़े आत्‍मविश्‍वास से बताती हैं। करुणा को इस योजना के बारे में पंचायत समिति की सहयोगिनी नन्‍दा खड़से से जानकारी मिली, जिसने उसे स्‍वयं सहायता समूह से जुड़ने और अपना उद्यम शुरू करने को प्रोत्‍साहित किया। संकोची स्‍वभाव की करुणा ने अपने इस मार्गदर्शक के कहने पर 10 हजार रुपए का छोटा कर्ज लेकर वॉशिंग पाउडर, फिनाइल आदि बनाना शुरू किया। उसे जल्‍द ही इस छोटे उद्यम की क्षमता का अहसास हो गया और उसने 60 हजार रुपए के दूसरे ऋण से अपने उद्यम के उत्‍पादों का विस्‍तार किया। उसने तरह-तरह के थैले बनाने वाली एक छोटी इकाई की स्‍थापना की। अब उसके यहां आठ से दस महिलाएं अनुबंध पर थैले और अन्‍य उत्‍पाद बनाती हैं।

हालांकि इस मेले की अन्‍य भागीदार रेणुका बिदकर, अशोक चावड़े और करुणा अनंत पौनिकर से बहुत अलग है, 39 साल की रेणुका पोलियोग्रस्‍त हैं और उन्‍हें चलने के लिए व्‍हीलचेयर की जरूरत पड़ती है। लेकिन अपनी अक्षमता को उसने किसी तरह बाधक नहीं बनने दिया। उसने जीवन की बड़ी चुनौतियों को स्‍वीकार किया और कारोबार में सफलता हासिल की। राष्‍ट्रीय विकलांगता वित्त विकास निगम (एनएचएफडीसी) से छोटा कर्ज लेकर उसने मोमबत्तियां, अगरबत्तियां, चॉक, तरल साबुन, सॉफ्ट खिलौने आदि बनाना शुरू किया। रेणुका ने जल्‍द ही अपना लोन चुका दिया। यही नहीं, उसने लोगों की भर्ती कर अपने उद्यम का विस्‍तार किया। उसने अपने उद्यम में जहां तक संभव हो सका विकलांगों को मौका दिया। रेणुका अब विकलांगों के उत्‍थान के लिए एक संस्‍था भी चलाती है और उन्‍हें रोजगार दिलाने में मदद या स्‍वरोजगार के लिए मार्गदर्शन देती है। रेणुका विश्‍वास से कहती है, ‘‘अब मेरे जीवन का वृहत उद्देश्‍य अपनी बुनियादी जरूरतें भी पूरी करने में अक्षम रहने वाले विकलांगों की मदद करना है।’’

दीपक वारकड़े इस मेले में आने वाले आकस्मिक आगंतुक नहीं थे। वह अपने घर के नजदीक अपना कॅरियर शुरू करने के लिए मदद की तलाश में मेले में आए थे। उसने हाल ही में अपने घर रामटेक से हजारों मील दूर मध्‍यप्रदेश के एक शहर में 4,000 रुपए प्रतिमाह की नौकरी छोड़ दी है। डोमिसाइल प्रमाणपत्र न होने के चलते किसी राज्‍य प्रायोजित व्‍यावसायिक कोर्स में अनुसूचित कोटे से नामांकन पाने में विफल रहे दीपक भी इस मेले में मौजूद थे। वह यहां ऋण के लिए जरूरी पात्रता या व्‍यावसायिक प्रशिक्षण के बारे में जानकारी लेने आए थे। वह कहते हैं, ‘‘डोमिसाइल प्रमाणपत्र पाना बहुत मुश्किल काम है।’’ दीपक से जब कहा गया कि कॅरियर गाइडेंस के लिए उसे किसी सिफारिश की जरूरत नहीं होगी तो वह थोड़े सशंकित थे, पर कई स्‍टॉलों पर बातचीत करने के बाद वे शायद संतुष्‍ट होकर लौटे।

कृत्रिम अंग निर्माण निगम (अलिमको) के सहायक उत्‍पादन केंद्र ने भी इस मेले में अपना स्‍टॉल लगाया था। इसके स्‍टॉल पर तकनीशियन और सलाहकार कृत्रिम अंगों के संबंध में विकलांगों या उनके अभिभावकों को सलाह दे रहे थे। प्रोस्‍थेटिक एंड ऑर्थोटिक इंजीनियर आर. एस. दास जरूरतमंदों की समस्‍याओं को समझते हुए उन्‍हें आवश्‍यक सलाह दे रहे थे।

भारत निर्माण या अन्‍य कार्यक्रमों से जुड़ी विकास योजनाओं के बारे में सूचना देने के लिए बैंकों सहित विभिन्‍न सरकारी संस्‍थानों के प्रति‍निधि इस मेले में मौजूद थे, जो स्‍टॉल पर आए आगंतुकों की समस्‍याओं के उत्‍साहपूर्वक समाधान में व्‍यस्‍त दीखे। आगंतुकों ने भी स्‍टॉल पर मौजूद सूचना पुस्तिकाओं को चाव से पढ़ा और उसे एकत्र किया। पूरा माहौल उत्‍साह और उम्‍मीद से सराबोर प्रतीत हुआ। कोई भी इन गरीबों की उम्‍मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करना और उन्‍हें सशक्‍त बनाना चाहेगा, ताकि ये सभी भारत उत्‍थान के अभियान में शामिल हो सकें।

—————————————————————————————

*लेखक पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्‍ली में उपनिदेशक (एमएंडसी) हैं। ये हाल ही में रामटेक (महाराष्‍ट्र) में आयोजित जनसूचना अभियान से लौटे हैं।


LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here