छत्तीसगढ़ में खेती अब फायदे का व्यवसाय

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1300-Rajesh_lekh-1-(2)cccc_0छत्तीसगढ़ में खेती अब फायदा का व्यवसाय बन गयी है।’खुशहाल किसान-खुशहाल छत्तीसगढ़’ इसी ध्येय को लेकर मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ने खेती को फायदे का व्यवसाय बनाने के लिए समग्र कृषि विकास की ठोस बुनियाद रखी है। खेती-किसानी की लागत को कम करने के लिए अनेक लाभकारी योजनाएं शुरू की गई। इन योजनाओं के खेत खलिहानों तक पहुंचने से किसानी और किसानों की हालत सुधरी है। राज्य सरकार के समन्वित प्रयासों से खेती-किसानी की दिशा और किसानों की दशा मे सुधार आया है। छत्तीसगढ़ को सर्वाधिक चावल उत्पादन के लिए वर्ष 2010 और 2012 के लिए राष्ट्रीय कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। इन पुरस्कारों से साबित होता है कि छत्तीसगढ़ वास्तव में ’धान का कटोरा’ बन गया है। प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013 में किसानों के लिए अपने घोषणा पत्र में किए गए सभी वायदे पूरे कर किसानों का दिल जीत लिया है। समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान में तीन सौ रूपए प्रति क्विटल बोनस तथा किसानों को ब्याज मुक्त ऋण देने का वायदा सात महीने में ही पूरा हो गया।

कृषि विकास को महत्व देते हुए प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013-14 में पहली बार अलग से कृषि बजट प्रस्तुत किया। किसानों को फसलों की बोआई से लेकर कटाई तक विभिन्न कार्यों के लिए नगद राशि की जरूरत पड़ती है। फसलों की बोआई के समय बीज और खाद की व्यवस्था के साथ ही शुरू हो जाती है किसानों की जरूरतें। पहले किसानों को 14 प्रतिशत ब्याज पर कृषि मिलता था। सरकार ने किसानों की समस्याओं को देखते हुए कृषि ऋण की दर घटाते हुए 14 प्रतिशत से तीन प्रतिशत किया। उसके बाद एक प्रतिशत करने का निर्णय लिया।  अब  किसानों को ब्याज मुक्त कृषि ऋण दिया  जा रहा है। पिछले साल लगभग एक हजार 339 करोड़ रूपए का ऋण किसानों को दिया गया। इस वर्ष लगभग दो हजार चार सौ करोड़ रूपए का ऋण देने का लक्ष्य रखा गया है। लघु और सीमांत किसानों के कालातीत ऋण को माफ कर हजारों किसानों को राहत पहुचाई गई। सरकार ने मानसून की अनिश्चितता की स्थिति में किसानों को सहारा देने के उद्देश्य से इस साल मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू की है। इस बीमा के दायरे में सात प्रमुख फसलों धान,मक्का, अरहर, सोयाबीन, मूंगफल्ली, मंूग और उड़द को लाया गया है। किसानों की आर्थिक हालत सुधारने के लिए जब हम नगद और बहुफसलीय व्यवस्था पर जोर देते हैं तो सबसे पहले जरूरी है बिजली की समुचित और सुचारू आपूर्ति। प्रदेश सरकार ने इस दिशा में भी कारगर निर्णय लेते हुए किसानों का अनेक सहूलियतें दी हैं। किसानों को खेती के लिए 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने के मामले में छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य बन गया है। करीब तीन लाख किसानों के कृषि पंपों को बिजली से जोड़कर ऐतिहासिक काम किया गया है। पंपों के उर्जीकरण के लिए 75 हजार रूपए तक की सहायता दी जाती है। राज्य सरकार की  किसान हितैषी नीति से किसानों को मीटर किराया, फिक्स चार्ज और विद्युत उपकर से मुक्ति मिल गई है। पांच हार्स पावर तक के कृषि पंपों के लिए 7 हजार 500 यूनिट निःशुल्क बिजली के रूप में सरकार ने किसानों को एक बड़ी सौगात दी।
प्रदेश में वन भूमि प्राधिकार पत्र प्राप्त आदिवासी परिवारों को खेती के लिए निःशुल्क खाद और बीज दिया जा रहा है। किसानों को खेती के लिए निःशुल्क बीज और खाद देने की व्यवस्था की गई है। खेती की जमीनों को बंजर होने से बचाने के लिए जैविक खेती आज की प्रमुख जरूरत के रूप में सामने आयी है। इसके लिए प्रयोग के बतौर राज्य के पांच जिलों कांकेर, कोरिया, रायगढ़, रायपुर और दंतेवाड़ा में जैविक खेती मिशन चालू किया गया है। सभी विकास खण्ड मुख्यालयों में कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जहां से किसानों को  किराए पर कृषि उपकरण दिए जाते हैं। किसानों को उनके खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता और प्रकार की जानकारी देने मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड वितरण योजना चालू की जा रही है। इसके तहत आगामी पांच साल में प्रदेश के सभी 37 लाख किसानों को मिट्टी स्वास्थ्य कार्ड दिए जाएंगे। किसानों के लिए राज्य सरकार की किसान समृद्धि योजना भी वरदान साबित हुई। इसमें किसानों को अलग-अलग वर्गवार ट्यूब वेल खनन के लिए अनुदान किया जाता है। इस योजना से 75 हजार से अधिक किसानों ने लाभ लिया है। इनके अलावा कृषक समृद्धि योजना, रामतिल उत्पादन प्रोत्साहन योजना, राज्य गन्ना विकास योजना, दलहन बीज प्रोत्साहन योजना, भू-जल संवर्धन योजना,लघुतम सिंचाई योजना, शकम्भरी योजना, सूक्ष्म सिंचाई योजना , खलिहान अग्नि दुर्घटना राहत योजना, बलराम कृषि यांत्रिकीकरण प्रोत्साहन योजना , पैडी ट्रांसप्लांटर पर राज्य शासन की अतिरिक्त अनुदान योजना, कम्बाईन हार्वेस्टर पर अतिरिक्त अनुदान योजना, कृषि श्रमिकों के दक्षता उन्नयन योजना, ग्रीष्मकालीन धान के बदले दलहन, तिलहन एवं मक्का फसल को प्रोत्साहन देने की योजना, कृषि सुधार के लिए विस्तारण कार्यकम, राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई योजना,राष्ट्रीय कृषि विकास योजना हरित कांति विस्तार योजना, लघु प्रोत्साहन योजना,कृषि यांत्रिकीकरण प्रोत्साहन योजना,केन्द्र क्षेत्रीय बीज योजना आदि से किसानों के लिए खेती-किसानी सुविधाजनक हुई।

किसानों के लिए खेती के साथ पशुपालन और मछली पालन आय का अतिरिक्त जरिया होता है। प्रदेश सरकार की समग्र कृषि विकास की नीति में पशुपालन और मछली पालन को बढ़ावा देना भी शामिल है। सरकार की योजनाओं के सहयोग से आज अनेक किसान इन दोनों रोजगार मूलक काम-धंधों को अपनाकर उन्नति की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। परंपरागत पशु पालकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से एक प्रतिशत ब्याज दर पर एक लाख रूपए ऋण देने की योजना गत वर्ष शुरू की गई थी, इस वर्ष ऋण राशि को बढ़ाकर दो लाख रूपए की दी गई है। पशुधन  विकास के लिए कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। प्रदेश के अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों में लाखों परिवार अतिरिक्त आमदनी के लिए मुर्गीपालन को अपनाते है। प्रदेश सरकार ने  नक्सल प्रभावित जिला दंतेवाड़ा में नवीन कुक्कुट पालन प्रक्षेत्र की स्थापना करने का निर्णय लिया है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों   में हजारों परिवारों ने मछली पालन को अपना व्यवसाय बनाया है।

प्रदेश सरकार ने मछली पालन को आगे बढ़ाने के लिए भी अनेक प्रोत्साहन योजनाएं शुरू की गई। छत्तीसगढ़ में मछली पालन के लिए उपलब्ध एक लाख 635 हेक्टेयर जल क्षेत्र में से 94 प्रतिशत क्षेत्र को मछली पालन के लिए विकसित कर दो लाख से अधिक मछुआरों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। छत्तीसगढ़ आज मछली बीज आपूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है। वर्ष 2013-14 में एक करोड़ 22 लाख मत्स्य बीज का उत्पादन किया गया है। अंतर्देशीय मत्स्य उत्पादन की क्षेत्र में छत्तीसगढ़ छठवां बड़ा राज्य है। मछुआरों के कल्याण के लिए मछुआ कल्याण बोर्ड का गठन किया गया है। प्रदेश के कबीरधाम जिले के मुख्यालय कवर्धा में प्रथम मात्स्यिकी महाविद्यालय की स्थापना की गई है। प्रदेश के पांच प्रमुख जलाशयों में मछली पालन की क्षमता बढ़ाने के लिए केजकल्चर की स्थापना की जा रही है।

छत्तीसगढ़ में उद्यानिकी फसलों की भी व्यापक संभावनाएं है। इन संभावनाओं को मूर्त रूप देने के लिए राज्य मेें फलों, साग-सब्जियों और मसाला फसलों की खेती के लिए हर संभव सहायता किसानों को मिल रही है। उद्यानिकी फसलों का रकबा पिछले दस साल में आठ गुना बढ़ा है। वर्ष 2003-04 में उद्यानिकी फसलों का कुल रकबा 92 हजार 176 हेक्टेयर था, जो बढ़कर वर्ष 2013-14 में सात लाख 25 हजार 29 हेक्टेयर हो गया है। राज्य सरकार की टपक सिंचाई योजना, सूक्ष्म सिंचाई योजना और स्पिं्रकलर योजना से साग-सब्जी और मसाला फसलों का रकबा और उत्पादकता बढ़ाने में खासी मदद मिली है। स्प्रिंकलर योजना के तहत 38 हजार 995 तथा टपक सिंचाई योजना के तहत नौ हजार किसानों को फायदा पहुंचाया गया है। उद्यानिकी के किसानों की हितग्राही मूलक योजना के तहत पिछले साल लगभग 16 लाख 984 किसानों को अनुदान राशि दी गई है।

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