छत्तीसगढ़ी लोक जीवन में भी उत्तर आधुनिकता का असर : डॉ. चंदेल

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raipur sahitya mahotsav 2014आई एन वी सी न्यूज़
रायपुर,
राज्य के प्रसिद्ध साहित्यकार और समालोचक डॉ. गोरेलाल चंदेल ने कहा है कि आधुनिक समय जा चुका है और अब यह उत्तर आधुनिकता का युग है। छत्तीसगढ़ के परम्परागत लोक जीवन में भी उत्तर आधुनिकता का असर होने लगा है। कहीं रिश्तों में बिखराव आ रहा है, तो कहीं मानवीय मूल्यों में गिरावट आ रही है। पाश्चात्य देशों में यह धारणा पनपने लगी है कि मनुष्य के विचारों की मृत्यु हो चुकी है और इन्सान केवल उपभोग के लिए जीवित है।     उन्होंने कहा कि ऐसी भावनाओं का असर समकालीन छत्तीसगढ़ी कहानियों में भी देखा जा सकता है।

डॉ. चंदेल आज यहां तीन दिवसीय रायपुर साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन मुकुटधर पाण्डेय मंडप में प्रथम सत्र में आयोजित विचार गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। यह विचार गोष्ठी ‘छत्तीसगढ़ के आधुनिक साहित्य में नया भाव बोध’ विषय पर आयोजित की गयी। इसमें सूत्रधार के रूप में खैरागढ़ से आए डॉ. जीवन यदु ‘राही’ ने और वक्ता के रूप में बिलासपुर के डॉ. विनय कुमार पाठक, धमतरी के श्री सुरजीत नवदीप और भाटापारा के श्री मंगत रविन्द्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए। महोत्सव के दूसरे दिन विभिन्न मंडपों में आज साहित्य, लोक साहित्य और रंगमंच को लेकर विद्वानों के बीच सार्थक बातचीत हुई।

छत्तीसगढ़ के आधुनिक साहित्य में नया भाव बोध विषय पर बातचीत के सत्र में डॉ. जीवन यदु राही ने कहा कि छत्तीसगढ़ में उस युग में भी साहित्य सृजन हो रहा था, जब आज की तरह प्रिन्ट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का दौर नहीं था। संगोष्ठी में डॉ. गोरेलाल चंदेल ने कहा कि उत्तर आधुनिक छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा में भी व्यापक रूप से साहित्य सृजन हो रहा है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी कहानी लेखक श्री भाव सिंह हिरवानी और श्री कुबेर साहू की उन कहानियों का विशेष रूप से उल्लेख किया, जिनमें पारिवारिक जीवन के बिखराव के दर्द को अभिव्यक्ति दी गयी है। इसी कड़ी में सूत्रधार के रूप में डॉ. जीवन यदु ‘राही’ ने छत्तीसगढ़ी भाषा की साहित्यिक विशेषताओं को उदाहरण सहित प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी एक मधुर भाषा है। श्री सुरजीत नवदीप छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय कवि स्वर्गीय श्री भगवती लाल सेन की अनेक छत्तीसगढ़ी कविताओं का उल्लेख किया, जिनमें  आज के जीवन के विसंगतियों पर व्यंग्य प्रहार किए गए हैं। इसी कड़ी में उन्होंने श्री रामेश्वर वैष्णव और स्वर्गीय श्री हरिठाकुर के रचनाओं का भी उल्लेख किया। महोत्सव के दूसरे दिन आज मुकुटधर पाण्डेय मंडप में ‘छत्तीसगढ़ी रंगमंच’ को लेकर भी विचार गोष्ठी आयोजित की गयी। इसमें सूत्रधार के रूप में रायगढ़ के रंगकर्मी श्री योगेन्द्र चौबे ने विषय प्रवर्तन किया। इसमें सर्वश्री मिर्जा मसूद और विजय सिंह ने भी अपने विचार प्रकट किए।

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