चेन्या के बदलाव के चित्र

0
34
शिरीष खरे
‘‘मुंबई तेरी फुटपाथ पर/अनगिनत काम करते ये बच्चे/रात और दिन पसीना बहाते हुए/दौड़ते, भागते/ठहरते, हांफते/फिर भी हंसते हुए/मुसकुराते हुए/रंगीन गुब्बारे या प्लास्टिक की गाड़ी/फिल्मी अखबार या रेल की चौपड़ी/कंघियां काली और लाल, छोटी बड़ी/बच्चे कहने को सामान यह लाए हैं/सच तो यह है कि खुद बिकने को आए हैं।’’
‘मुंबई तेरी फुटपाथ पर’- जावेद अख्तर की इस कविता के उलट, एक बच्चा ऐसा भी है, जो तंग झोपड़पट्टियों और बंद गलियों से पढ़ते हुए, अपने पैरों से चार कदम आगे चलते हुए, कागजों पर नए-नए चित्रों को गढ़ता है। जहां दूसरे बच्चे, गलियों जैसे मोड़ों या मोड़ों जैसी गलियों से गुजरते हुए- गाड़ियों के कई-कई शीशों को धोते हैं, उम्र के मुकाबले ढ़ेरों जख्मों को सहते हैं, वहीं से अपने सीने में जख्मों की बजाय ढ़ेरों मेडल लटकाए, देखो चेन्या नाम का यह बच्चा भी आया है।
चेन्या मुंबई के उस इलाके से है, जिसमें रोज-रोज की छोटी-छोटी ख्वाहिशों की सांसे इन दिनों कुछ ज्यादा ही फूलने लगी हैं- यहां की <5 झोपड़पट्टियों में> <5000 से ज्यादा झोपड़ियों के> <35000 से ज्यादा लोगों> और <उनके बीच 15000 से भी ज्यादा बच्चे> रहते हैं। इतने बड़े और घने हिस्से में <केवल 7 आंगनबाड़ियां> हैं। यानि औसतन <715 झोपड़ियों की> <7000 से ज्यादा आबादी के बीच> <2000 से भी ज्यादा बच्चों> के हिस्से में <केवल 1 आंगनबाड़ी> है। इसके अलावा <बाम्बे महानगर पालिका का 1 स्कूल> है भी तो यहां से <3 किलोमीटर दूर>। मुंबई की ज्यादातर झोपड़पट्टियों में ऐसा ही असंतुलन है। चेन्या मुंबई के उस इलाके से है, जिसमें बच्चों के माता-पिताओं का हाल यह है कि उन्हें <हर रोज खाने के लिए हर रोज काम मिल ही जाए-ऐसा जरूरी नहीं>। ऐसे में <परिवार के गुजारे के लिए बच्चों को काम पर भेजना> जरुरी मान लिया जाता है। इसलिए यहां चेन्या जैसे बच्चों को बेहतर शिक्षा की सहूलियतें पाने के लिए पथरीले रास्तों से गुजरना पड़ता है। कुल मिलाकर एक तरफ <गहरी नींद में डूबी व्यवस्था> है, तो दूसरी तरफ है <गृहस्थी ढ़ोने की भारी जवाबदारी>- और इन दोनों हालातों के बीच बचा है <चेन्या जैसे बच्चे का बचपन>। जो बेवजह खो जाने की बजाय <इंजीनियर बनने का ख्वाब> लिए है, यहां के लिए यह ख्वाब <साधारण नहीं> है।
वैसे तो देश के करोड़ों बच्चों की तरह चेन्या के भी स्कूल जाने में कुछ खासियत नजर नहीं आती। मगर यहां से स्कूल के रास्ते रोकने वाली ताकतों के मजबूत गठजोड़ को देखते हुए चेन्या का स्कूल जाना असाधारण लगता है। 11 साल का चेन्या फिलहाल कक्षा 3 में है। यह वाशीनाका झोपड़पट्टी के बंजारटंडा, भरतनगर में रहता है। यहां से 3 किलोमीटर दूर- नेशनल केमीकल फर्टीलाइजर कालोनी के कैंपस में बाम्बे महानगर पालिका का स्कूल है। इसलिए चेन्या स्कूल आने-जाने के लिए रोजाना कम से कम 6 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही पार करता है। उसके परिवार में उसके माता-पिता के अलावा एक बड़ा भाई भी है। उसके माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, जो हमेशा से अनिश्चिताओं पर टिकी होती है। चेन्या का बड़ा भाई अभी 13 साल का ही है, उसके नन्हें कंधों पर परिवार का आर्थिक बोझा है, जिसे उठाने के लिए उसे पास के रेस्टोरेंट में जाना पड़ता है। उसके चेहरे पर, चेन्या के चेहरे की तरह न तो सुकून झलकता है, न जुनून। 10 साल पहले, यह परिवार रोजीरोटी के चलते कर्नाटक के छोटे से गांव गुलबर्गा से मुंबई आया था।
चेन्या के आजकल
चेन्या के भीतर सुंदर संदेश देने वाले बहुत सुंदर-सुंदर चित्रों को बनाने की बेजोड़ कला है। बीते 2 सालों में उसने बहुत सारी इंटर स्कूल प्रतियोगिताओं में भागीदारी करके बहुत सारे पुरस्कार और मेडल पाए हैं। इस साल भी उसने इंटर स्कूल प्रतियोगिताओं में भागीदारी करते हुए 3 पुरस्कार पा लिए हैं। उसके शिक्षकों का कहना है कि चेन्या के भीतर चित्रकला की ही तरह पढ़ने-लिखने की भी खूब लगन है। इस स्कूल का वह एक अच्छा और होनहार छात्र है।
चेन्या के ज्यादातर चित्रों में उसके आसपास की दुनिया के दृश्यों के साथ-साथ कल्पना के पुट भी दिखाई देते हैं- जैसे घर के चित्र को ही लो तो ज्यादातर बच्चे घपड़ों की छत और घासपूस की दीवारों वाला ऐसा घर बनाते हैं जो गांव से दूर एक पहाड़ी पर होता है, जिसके आसपास कोई दूसरा घर होने की बजाय एक नदी, एक जंगल, एक मंदिर, एक सड़क और सूरज का नजारा मिलता है। जबकि चेन्या अपने झोपड़े और उसके आसपास की पट्टी को हू-ब-हू उभार देता है। ऐसा करते हुए वह अपनी कल्पना के घोड़े को दौड़ाता है और कुछ दृश्यों को अनुपात से बड़ा, तो कुछ दृश्यों को अनुपात से छोटा कर देता है, जैसे कि एक जगह पर रेड लाईट से टकराता चांद, लगता है मानो दोनों के बीच किसी बात को लेकर धक्कामुक्की चल रही हो। चेन्या के चित्रों में शहरी सभ्यता का हर रुप और उसमें शामिल चीजें जैसे ऊंची ईमारतें, मोटर, कार, रेल, हवाईजहाज, सिनेमाहाल, होर्डिंग्स, लाइटिंग, ट्राफिक और भीड़ दिखाई तो देती हैं, मगर जब वह अपनी रचनात्मकता से ऐसी चीजों के आकार या आकृतियों को बदलता है तो लगता है कि उनमें कोई गहरे भाव छिपे हैं। उसे अपने हुनर में रंगों की भी अच्छी मिलावट करना आता है। तेजी से चित्र बनाने वाले चेन्या के नन्हें हाथों को देखकर सुखद आश्चर्य होता है।
चेन्या के चित्रों की और एक खासियत है- उनमें कई बार तरह-तरह की मशीनें दिखाई देती हैं। दिलचस्प यह भी है कि वो ऐसी मशीनों के चित्र बनाते वक्त उनमें अपने हिसाब से कुछ जोड़ता-घटाता है। वह कहता है कि बड़ा होकर मशीनों का इंजीनियर बनना चाहता है। वह घर की गरीबी दूर करने और अपने दोस्तों की मदद करने की बात भी कहता है। फिलहाल चेन्या के गालों पर पड़ती मुसकुराहट से उदासी और अंधरे किनारे लगते हैं। यहां के लिए वह हकीकत के पंखों पर सवार एक सपना जैसा है, जो आजकल बार-बार अपने पंख फड़फड़ाने को बेताब रहता है।
चेन्या जैसे दोस्तों के लिए
चेन्या के पीछे छिपे कलाकार को सामने लाने और उसे लगातार बढ़ावा देने के लिए ‘समता मित्र मंडल’ और ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ जैसी संस्थाओं ने भरपूर साथ दिया है। यह दोनों संस्थाएं मिलकर- यहां की 3 झोपड़पट्टियों में, बच्चों के अधिकार और उन्हें प्रभावित करने वाले मानवीय अधिकारों के लिए काम करती हैं। इन संस्थाओं ने ऐसे इलाकों में ‘बाल सक्ष्म केन्द्र’ तैयार किए हैं, यहां बच्चों को पढ़ने-लिखने का मौका देने और विभिन्न कलाओं मे उनकी दिलचस्पियों को प्रोत्साहित किया जाता है। यहां चेन्या जैसे ही कई दोस्तों में बदलाव लाने के लिए उनकी पसंदगी/नापसंदगी और ताकत/कमजोरियों के बारे में पूछा जाता है। यहां बच्चे, उनके परिवार वाले और शिक्षक एक साथ बैठकर- आपसी समस्याओं पर चर्चा करते हैं। यहां से ही बड़ी तादाद में बस्ती के बच्चों को बाम्बे महानगर पालिका के स्कूल में दाखिल करवाने का अभियान चलाया जा रहा है।
– – – –
शिरीष खरे ‘चाईल्ड राईटस एण्ड यू’ के ‘संचार-विभाग’ से जुड़े हैं।
mailgooglecom

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here