चुनावों में जनहित के मुद्दों की जगह लेती अभद्र टिप्पणियां**

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निर्मल रानी**

       गुजरात व हिमाचल प्रदेश राज्य जहां इस समय विधानसभा चुनावों से रूबरू हैं वहीं 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों की आहट भी अभी से सुनाई देने लगी है। केंद्र में सत्तारुढ़ यूपीए की सबसे बड़ी घटक कांग्रेस पार्टी इस समय चारों ओर से संकट से जूझती दिखाई दे रही है। यूपीए 2 के वर्तमान शासनकाल में भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार उजागर होने के साथ-साथ दिन दोगुनी रात चौगुनी की दर से मंहगाई बढऩे जैसे मुद्दे ने कांग्रेस पार्टी को संकट में डाल रखा है। परंतु भ्रष्टाचार के मामलों में केवल कांग्रेस पार्टी से जुड़े कई नेतागण ही शामिल नहीं हैं बल्कि ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं और आते जा रहे हैं जिनमें मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं। यहां तक कि एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी पर भी अपने पद व राजनैतिक संबंधों का दुरुपयोग कर अपने सहयोगियों को लाभ पहुंचाए जाने जैसा मामला सामने आया। गोया भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का सीधा हाथ होने का सुबूत मिल रहा है। यहां एक बार फिर यह याद दिलाना ज़रूरी है कि देश के राजनैतिक दलों में स्वयं को सबसे अलग,अनुशासित, राष्ट्रवादी तथा चाल-चरित्र व चेहरे वाला बनने वाली भाजपा देश की अकेली ऐसी राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टी बन गई है जिसके दो राष्ट्रीय अध्यक्ष भ्रष्टाचार में संलिप्त पाए गए हों। सर्वप्रथम बंगारू लक्ष्मण को रिश्वत की रकम अपने हाथों में लेते हुए पूरे देश ने टीवी पर एक स्टिंग आप्रेश के दौरान देखा था।

  ज़ाहिर है ऐसे वातावरण में जबकि भाजपा के खाते में भी एस येदिउरप्पा,बेल्लारी के रेड्डी बंधु, रमेश पोखरियाल निशंक, बंगारू लक्ष्मण, दिलीप सिंह जूदेव, किरीट सौमेया और नितिन गडकरी जैसे दागदार छवि के नेता प्रथम पंक्ति में मौजूद हों फिर आ$िखर भाजपा किस मुंह से कांग्रेस को भ्रष्टाचारी पार्टी साबित करे? इनके अतिरिक्त राज्य स्तर पर भी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक,उतरांचल व गुजरात जैसे राज्यों में भ्रष्टाचार, अवैध खनन, रिश्वतखोरी तथा सरकारी पद व संबंधों के दुरुपयोग के तमाम ऐसे मामले उजागर हो रहे हैं जोकि भाजपा के ‘पार्टी विद डिफरेंस’ के दावे को चुनौती देते हैं। ऐसे में निश्चित रूप से भाजपा के समक्ष इस बात को लेकर बड़ी दुविधा है कि पार्टी के नेता कांग्रेस से सत्ता छीनने के लिए आखिर स्वयं को कांग्रेस पार्टी का विकल्प कैसे साबित करें? जहां तक मंहगाई का प्रश्र है तो भारतीय जनता पार्टी के पास भी मंहगाई को कम करने या उसे नियंत्रित करने का कोई फार्मूला नहीं है। न ही भाजपा सत्ता में आने पर मंहगाई कम करने के दावे कर रही है। और न तो भाजपा शासित राज्यों में मंहगाई नियंत्रित कर यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि पार्टी वास्तव में मंहगाई को नियंत्रित रखने की क्षमता रखती है तथा उसके पास इसके उपाय मौजूद हैं।

  ऐसे में भाजपा के नेताओं द्वारा जनहित से जुड़े मुद्दे जिनमें खासतौर पर सर्वोपरि मंहगाई,भ्रष्टाचार व सुशासन दिए जाने जैसे मुद्दे शामिल हैं, की बातें करने के बजाए जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने हेतु घटिया, ओछी व असंबद्ध टिप्पणियों का सहारा लिया जा रहा है। कभी सोनिया गांधी, राहुल व प्रियंका पर व्यक्तिगत् प्रहार किए जा रहे हैं तो कभी कांग्रेस पार्टी पर परिवारवाद को बढ़ावा देने जैसा घिसा-पिटा शस्त्र उपयोग में लाया जा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि ऐसी अभद्र टिप्पणियां करने में एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे आगे नज़र आ रहे हैं। असंबद्ध व गैरजि़म्मेदाराना तथा जनसमस्याओं से दूर तक का वास्ता न रखने वाली टिप्पणियों का नरेंद्र मोदी के मुंह से निकलना वैसे भी इसलिए आश्चर्यजनक है क्योंकि मोदी द्वारा स्वयं को देश के प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री के रूप में पेश किए जाने की ज़बरदस्त कोशिश की जा रही है। इसलिए उनके मुंह से किसी प्रकार की घटिया व ओछी टिप्पणीयां किया जाना न केवल मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करता है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी से सत्ता छीनने के लिए भाजपा कौन-कौन से हथकंडे अपना रही है।

  उदाहरण के तौर पर नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में एक चुृनावी जनसभा के दौरान शशि थरूर को पुन: मंत्रिमंडल में शामिल करने पर चुटकी लेते हुए जनता की ओर देख कर बड़े ही व्यंग्यपूर्ण ढंग से यह पूछा कि-‘क्या आपने कभी 50 करोड़ की गर्लफेंड देखी है? उनका इशारा शशि थरूर की महिला मित्र रही व अब उनकी पत्नी बन चुकी सुनंदा थरूर की ओर था। ज़रा सोचिए कि चुनाव के दौरान ऐसी टिप्पणी से आम जनता का क्या वास्ता? मोदी को उनकी इस टिप्पणी का माकूल जवाब भी संबंधित पक्ष यानी शशि थरूर व सुनंदा थरूर द्वारा साथ ही साथ दे दिया गया। शशि थरूर ने जहां अपनी पत्नी सुनंदा को बेशकीमती बताया वहीं सुनंदा ने नरेंद्र मोदी पर वार करते हुए कहा कि गुजरात की महिलाएं नरेंद्र मोदी को वोट हरगिज़ न दें क्योंकि यह आदमी जिसने कि एक महिला पर मूल्य टैग लगा रखा है वह व्यक्ति चुनाव जीतना चाह रहा है। सुनंदा ने देश की महिलाओं से पूछा है कि क्या वे ऐसे इंसान को अपना नेता बनाना चाहेंगी? सुनंदा ने नरेंद्र मोदी पर वार करते हुए यह भी कहा कि मैं बहुत हैरान हूं कि गुजरात जोकि महात्मा गांधी व सरदार पटेल जैसे महान लोगों की धरती है वहां अब ऐसे (नरेंद्र मोदी)भी लोग हैं। गौरतलब है कि इससे पहले भी नरेंद्र मोदी गुजरात की लड़कियों के कुपोषण का शिकार होने की खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए कह चुके हैं कि गुजरात की लड़कियां इसलिए दुबली-पतली हैं क्योंकि वे डायटिंग करती हैं तथा राज्य की लड़कियों में दुबलेपन की समस्या फैशन के कारण है न कि कुपोषण के चलते।

  नरेंद्र मोदी द्वारा किसी पर घटिया टिप्पणी किए जाने का यह पहला मौका नहीं है। वैसे भी जनता के बीच लोकप्रिय होने के लिए वह इसी प्रकार के व्यंग्यबाण भरी भीड़ में छोड़ा ही करते हैं। कभी वे जनता से हाथ उठवाते हैं, कभी हां या ना करवाते हैं, कभी सौगंध या शपथ दिलवाने लगते हैं। कुल मिलाकर भोली-भाली जनता को अपने पक्ष में करने, उसे हंसाने, गुदगुदाने और उसका मनोरंजन करने का कोई भी अवसर वे व्यर्थ नहीं जाने देते। वे ऐसे अवसरों पर यह भी भूल जाते हैं कि भले ही हिमाचल प्रदेश व गुजरात में जाकर कुछ भी बोलने के लिए वे स्वतंत्र क्यों न हों पर उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे देश के दो बड़े राज्यों में उनका चुनाव प्रचार करना कल भी संभव नहीं था और भविष्य में भी इसकी संभावना कम ही दिखाई दे रही है। ऐसे में किसी गर्लफ्ऱेड की कीमत 50 करोड़ रुपये लगाने वाला देश का तथाकथित अनुशासित,प्रगतिशील व राष्ट्रवादी नेता उत्तरप्रदेश व बिहार जैसे देश के दो सबसे बड़े राज्यों के रहमोकरम के बिना क्या देश का प्रधानमंत्री कभी बन भी सकता है यह सोचने का विषय है।

  इसके पहले भी नरेंद्र मोदी सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमला बोलते हुए उन्हें कई बार अपमानित करने के प्रयास कर चुके हैं। गुजरात में सांप्रदायिक दंगों को संरक्षण देकर हज़ारों लोगों को दंगों की भेंट चढ़वाने का आरोप झेलने वाले मोदी को जब सोनिया गांधी ने मौत का सौदागर कहकर उनकी सत्ता को चुनौती दी थी उसके बाद नरेंद्र मोदी तिलमिला उठे थे। उन्होंने उसके बाद कई बार सोनिया गांधी पर आक्रमण करते हुए यह कहा कि देश को रोम राज्य नहीं बल्कि राम राज्य चाहिए। मोदी के इस प्रकार के गैरजि़म्मेदाराना व्यंग्यपूर्ण वक्तव्य को भी भारतीय महिलाओं ने अपने गले से नहीं उतारा। बल्कि मोदी का यह आह्वान 2004 व 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस व सोनिया गांधी के पक्ष में ही गया। उसी दौरान उन्होंने सोनिया गांधी के विषय में यह भी कहा था कि उन्हें तो कोई अपना मकान भी किराए पर नहीं देगा जबकि राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए देश के इस तथाकथित भावी प्रधानमंत्री ने यह कटाक्ष किया था कि इसे तो कोई अपनी गाड़ी का ड्राईवर तक रखना नहीं चाहेगा।

  सत्ता की जंग के यह अनमोल वचन किसी ऐसे व्यक्ति के मुंह से निकल रहे हैं जो देश के प्रधानमंत्री बनने के सपने ले रहा हो ऐसा विश्वास नहीं होता। परंतु यह आज की हकीकत है। क्या अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी से लेकर पंडित नेहरू तक के किसी भी नेता के मुंह से ऐसी बातें सुनी गई हैं? प्रधानमंत्री पद के लिए लालायित नरेंद्र मोदी के अतिरिक्त देश का कोई और नेता जनता के बीच जाकर उनके हाथ उठवाकर मसखरेपन व अभद्र व्यंग्यबाण छोडऩे जैसी मोदी शैली का प्रयोग करता है? इस प्रकार के चुनावी वातावरण को देखकर ऐसा लगने लगा है कि अब चुनावों में जनहित के मुद्दों के बजाए व्यक्तिगत व अभद्र टिप्पणियां उनकी जगह लेती जा रही हैं। 

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*निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
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Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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