चीन विष्वास के लायक नहीं

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images{संजय कुमार आजाद**,,}

विष्व के दो सर्वाधिक जनसंख्या वाले देष एक दूसरे के पड़ोसी होते हुए भी मीलों दूर रहते आ रहें है। दोनों हीं देष हजारों साल पुरानी जीवान्त संस्कुति के वाहक है।भारतीय और चीनी संस्कृति को कमोवेष एक दूसरे का प्रतिरूप माना गया है। किन्तु दोनों देषों का स्वभाव और तासिर एक दूसरे से जुदा रहा है।वर्तमान संदर्भ में यदि तुलना किया जाय तो इस्लाम का तालीवानीकरण प्रवृति और चीन की प्रवृति दोनो एक ही धारा में वह रही है। जिस तरह इस्लाम अपने हर सुधारवादियों या आलोचनावादियों को मौत का घाट उतारकर तथाकथित इस्लाम की जिहादी संस्करण से विष्व को रूवरू करवाता उसी तरह चीन की तथाकथित साम्यवादी शासन परम्परा भी उसी रक्तरंजित पदचिहों पर चलकर चीन की सुरक्षा का ढ़ोल पीटता आ रहा है। इस्लाम की भांति चीन भी हरवक्त तथाकथित रक्षात्मक कवच धारण किये रहने वाला देष जहां सुधार कुफ्र है और जो हर विदेषी को वैसा ही शत्रु मानता है जैसा इस्लाम हर काफिर को मानता रहा है।

वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय परिदृष्य में भारत और चीन दोनों विपरित ध्रुव हैं। भारत की हजारों किलोमीटर की लम्बी सीमारेखा चीन के साथ जुड़ा हुआ है।अपने 15 पड़ोसी देषेंा से घिरा चीन 14 देषों के साथ चीन ने अपनी सीमाई समस्या का लगभग समाधान कर लिया किन्तु सदियों से चली आ रही भारत के साथ का सीमा विवाद आज भी जस की तस बनी है। स्मरण हो कि जब चीन एक निर्वल देष था उससमय 1913 में अंग्रजों ने साीमा समस्या समाधान का प्रयास किया किन्तु बह उस समय भी ड्रैगन ने समझौते पर हस्ताक्षर करने इंकार कर दिया था।

भारत सदैव चीन के साथ अपने सदियों पूर्व सांस्कृतिक विरासत का दुहाई देता दोस्ती की हाथ बढाता आया किन्तु कुटिल चीन ने हमेषा दोस्ती की आड़ में हाथ मरोडने का हीं काम किया है।हिन्दी चीनी भाई भाई जैसा भावनात्मक भाव की आड़ में चीन ने 1962 में भारत की हजारो मील जमीन कब्जा कर विष्व पटल पर भारत को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा । उसने भारत के साथ सदैव व्यापारिक रिष्तों को ही तरजीह दिया। जैसे-जैसे चीन में बर्वर साम्यवादी शक्ति  का विकास हुआ उसने भारत ही नही विदेषी धरती पर भी भारत को अपमानित करने का भारत के दुष्मन देषों को तरजीह देने ममें कोई कोताही नही बरती। भारत और चीन के बीच बफर स्टेट के रूप में तिब्बत को उसने वैसे ही विनाष किया जैसे इस्लामी आतातायियों ने नालन्दा को किया था। बौद्धधर्म के तांत्रिक शाखा ब्रजयान के अनुयायी तिब्बती समुदाय पर बर्वर सैनिक बल प्रयोग कर आज तिब्बत को जिस मुकाम पर ला खड़ा किया है उससे चीन का तालिवानी चेहरा स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है तथा बर्वरता में चीन ने तालीबान को भी पीछे छोड़ दिया है।

भारत में नेहरूवादी विकल्प ( सत्ता सुख मिले चाहे देष रसातल में जाए या टुकड़े में बंटे) और चीन में माओवादी विकल्प दक्षिण एषिया में एक अलग माहौल पैदा किया है। गुट निरपेक्ष आन्दोलन के दिवा स्वप्न में नेहरूवादी विदेष नीति की कमजोर नींव का खामियाजा आज भी भारत भुगत रहा है। चीन ने पाकिस्तान पर जो नीति अपना रखी है बह भारत के लिये सदैव कष्टदायी और आतंरिक एकता के लिये खतरा है। वर्ष 1957-58 आते आते तो ड्रैगन का हौसला इतना बढ़ गया कि भारतीय सीमा पर सैनिकों के साथ मुठभेड़ भी करना शुरू कर दिया था। दोनों देषों के बीच रिष्तों में तल्खी तब और आई जब 1959 में में तिब्बत से भागकर आये शरणार्थी -दलाईलामा को भारत ने शरण दिया।1962 में तो चीन ने सारे नीति और समझौतों को कुड़ेदान में डालकर भारत पर आक्रमण किया। इस युद्ध में चीन ने अक्साई चीन नामक क्षेत्र के 30-35 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर जबरन कब्जा जमा लिया है। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू और उनके साम्यवादी चीनी एजेन्ट कृष्णमेनन के कारगुजारियों के चलते हीं चीन ने ऐसी हिमाकत की। चीन ने कभी भी भारत के साथ ख्ुाले मन से दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया और ना हीं उसने कभी मैकमोहन रेखा को भारत-चीन सीमा रेखा के रूप में अपनी स्वीकृति दी है। इतिहासकारों का मानना है कि – भारत को सीमा विवाद सुलझाने का सबसे अच्छा मौका 1950 में था जिसे नेहरूवादी हठ ने गंवा दिया।वर्ष 1962 के बाद भारत ने 43180 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र चीन के हाथों गंवा दिया। पाकिस्तान और नेपाल में जिस तरह की दमदार उपस्थिति चीन ने दर्ज करा रखी है वह भारत के लिये अत्यन्त घातक है। साम्यवादियों और इस्लामी आतंकियों ने जिस तरह ड्रैगन की शह पर भारत में नीति अपना रखी है वह देष की एकता के लिये गंभीर खतरा है। खतरे को नजरअंदाज कर भारतीय राजनयिक और नौकरषाह जिस तरह चीन की खैरमकदम में लगा है वह खतरनाक है।

वर्ष 1988 में चीन के साथ सीमाई विवाद सुलझाने के लिये दोनों देषों के बीच संयुक्त कार्य समूह बनाया गया लेकिन यह समूह ढ़ाक के तीन पात साबित हुआ। भारत के नीति निर्धारण में सदैव वामपंथी विचारधारा का वर्चस्व रहा जिसके कारण भारत हरमोर्चा पर चीन से पटखनी खाता आया। भारत में ही रहने बाले वामपंथी विषधरों के रहते चीन को भारत को धमकाने में ज्यादा मषक्कत नहीं करनी पड़ती है। साम्यवादी का नंगा नाच विष्व में चीन ने फैला रखा है जिसका षिकार भारत भी है। 1993 मेे भारत और चीन ने सीमा पर शांति बहाल के लिये पुनः समझौता किया। यह समझौता सीमाई विवाद पर कम व्यापार पर ज्यादा केन्द्रित था। विष्व जिस उदारवादी व्यवस्था में चल रहा है वहां व्यापार के लिये हर देष अपनी शर्तो को रख रहा है। दक्षिण एषिया में भी भारत आज एक वृहत बाजार के रूप मेें देखा जाता है। इस देष की गलत आद्यौगिक नीति ने उत्पादन का वो हश्र किया कि प्राकृतिक संसाधन से भरपुर होते हुये भी हमारा बाजार चीनी मालों से पटा है। चीन भारत के साथ हर समझौते में सीमीई विवाद के आड़ में अपना व्यापारिक हित साधता रहा और भारत एक उपभोक्ता की तरह लुटता रहा है।

एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री चीन के दौरे पर हैं।जनवरी 2008 में भी श्री मनमोहन सिंह चीन के साथ दोस्ती का पैगाम लेकर बीजिंग गये थें।क्या मिला सबको पता है।उस समय श्री मनमोहन सिंह और चीनी समकक्ष हू जिनताहो के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ जिसका नाम था-‘‘ इक्कीसवीं सदी के लिये चीनी और भारतीय गणराज्यों की सोच’’। इस समझौते में चीन ने फिर व्यापारिक हितों को तरजीह दी और सीमा समस्या को ठण्डे बस्ते में डाल दिया। ध्यान रहे कि वर्ष 1998 में चीन का भारत में व्यापार 1.9 अरब डालर था वह 2010 में बढ़कर 60 अरब डॉलर पार गया ।चीन भारत में अमेरिका के बाद अंतराष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण साक्षेदार बन गया। अपने समझौते के बाद भी सीमा पर घुसपैठ करना अरूणाचल प्रदेष के लिये नत्थी वीजा देना भारत के अधिकारियों को मानवाधिकार के नाम पर वीजा नही देना एवं वैष्विक स्तर पर भारत को घेरने की कोई मौका चीन नही छोड़ता फिर भी भारत चीन से सबक नही सीखा। इस बार भी श्री मनमोहन सिंह अपनी आखिरी पारी में चीन के साथ गलवहियां डालने को अति उतावलें है।इस फिर एक नया समझौता ‘‘ सीमा सुरक्षा सहयोग समझौता’’ की गुंज सुनायी दे रही है। ये वही चीन है जिसने पंचषील की आड़ में भारत को 1962 का युद्ध दिया था। वैष्विक बाजार के इस माहौल में चीन भारत को भौगोलिक से घेरना शुरू कर दिया है।भारत सरकार की ढुलमुल विदेष नीति ने चीन को पांव पसारने का मौका दिया है। नेहरूवादी लकवाग्रस्त विदेष नीति के सहारे भारत आज अपने हर पड़ोसी देष के साथ मात खाता आ रहा है। भारत सरकार चीन के हर कारनामे को नजरअंदाज कर भारत की संविधान और एकता के साथ खिलवाड़ कर रही है। प्रखर राष्ट्रवादी सोच के अभाव में हम अपने आपको सत्त चीन के हवाले करते जा रहें है।भारत के प्रति चीन का अवतक का रवैया यह दर्षाता है कि चीन कभी भी विष्वास के लायक पड़ोसी नही रहा है इसपर विष्वास करना देष के लिये आत्मघाती कदम होगा।साम दाम दण्ड और भेद की नीति पर चलने बाला चीन के साथ भारत की यह प्रवृति संदेहास्पद है।

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sanjay-kumar-azad1**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002

मो- 09431162589
(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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