चीनी सामान के प्रति हमारी भक्‍ति ?

0
10

–  डॉ. मयंक चतुर्वेदी –

Dr.-Mayank-Chaturvedi,-Dr.-इसे लालच की कौन सी पराकाष्‍ठा माना जाए ?  कुछ समझ नहीं आता । चीनी सामान के प्रति हमारी भक्‍ति किस स्‍तर तक है, इसका एक बड़ा उदाहरण जबलपुर में बनी बोफोर्स तोप के स्वदेशी संस्‍करण धनुष में सीधेतौर पर देखने को मिला है। जिसमें कि देश के साथ सुरक्षा के स्‍तर पर भी कर्तव्‍यनिष्‍ठ स्‍वदेशवासियों ने गंभीरता से विचार नहीं किया। लालच की यह पराकाष्‍ठा निश्‍चित ही अशोभनीय और देशद्रोह जैसा कर्म तो है ही, किंतु इसके साथ यह इस विचार के लिए भी प्रेरित करता है कि आखिर हम भारतीयों को हो क्‍या गया है ?  जिनके लिए जननी और जन्‍म भूमि स्‍वर्ग से भी महान रही है और है। (रावण के निधन के बाद श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं: अपि स्वर्णमयी लंका मे लक्ष्मण न रोचते, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । वाल्मीकि व अध्यात्मरामायण में तो नहीं, किंतु अन्‍यत्र किसी अन्‍य रामायण में उल्‍लेखित)

भारतीय सीमाओं पर चीन हमें आँखे दिखा रहा है। भारत के 43 हजार 180 वर्ग किलोमीटर पर चीन ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस भू-भाग में वर्ष 1962 के बाद से हमारी भूमि का 38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र चीन के कब्जे में है। इसके अतिरिक्त 2 मार्च 1963 को चीन तथा पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित तथाकथित  चीन-पाकिस्तान ‘सीमा करार’ के अंतर्गत पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर के 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अवैध रूप से चीन को दे दिया था ।

चीन किस तरह से हमें मूर्ख बनाता है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि लोकसभा में प्रस्‍तुत दस्तावेजों में विदेश मंत्रालय ने स्‍वीकारा कि वर्ष 1996 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति च्यांग चेमिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली के कदम के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर किए थे ।  जून 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में से प्रत्येक ने इस बारे में विशेष प्रतिनिधि नियुक्त करने पर सहमति जताई थी ताकि सीमा मुद्दे के समाधान का ढांचा तैयार करने की संभावना तलाशी जा सके । उसके बाद इस विषय पर अब तक दोनों पक्षों की कई बैठकें हो चुकी है लेकिन चीन सीमा विवाद पर भारत के आगे होकर लाख सकारात्‍मक प्रयत्‍नों के बाद भी कोई प्रगति होने नहीं देना चाहता। वह तो कश्‍मीर से लेकर अरुणाचल तक जहां-जहां चीन के साथ भारतीय सीमाएं लगती हैं, कई किलोमीटर अंदर भारतीय क्षेत्र पर भी अपना कब्‍जा बता रहा है। उल्‍टे हमें ही कहता है कि फलां क्षेत्र पर भारत ने कब्‍जा जमा रखा है, उसे भारत शांति के साथ चीन को सौंप दे। यानि कि उल्‍टा चोर कोतवाल को डांटे (एक कहावत) यहां चरितार्थ हो रही है। दूसरी ओर व्‍यापार के नाम पर हम इतने लालची हैं कि थोड़े से मुनाफे के लिए चीन का बहुतायत माल खरीदकर उसकी आय में रात-दिन बढ़ोत्‍तरी करने में लगे हैं।

पिछले वर्ष एक आंकड़ा आया था, उसके अनुसार भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़कर 46.56 बिलियन डॉलर (3 लाख करोड़ रुपए) तक जा पहुंचा था। चीन का भारत में निर्यात वर्ष 2016 के वित्त वर्ष में 58.33 बिलियन डॉलर था। 2015 के मुकाबले निर्यात में 0.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। दूसरी तरफ भारत का चीन में निर्यात 12 प्रतिशत गिरकर 11.76 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचा था। वर्ष 2017 साल के पहले 4 महीने में व्यापार घाटा 14.88 अरब डॉलर रहा। बीते साल कुल व्यापार घाटा लगभग 52 अरब डॉलर का रहा था, जबकि कुल द्विपक्षीय व्यापार 70 अरब डॉलर से कुछ अधिक का रहा।

वस्‍तुत: यहां इससे सीधेतौर पर समझा जा सकता है कि भारत को कितना अधिक व्यापार घाटा हुआ है और निरंतर हो रहा है। कुछ अर्थप्रधान लालची विद्वान यह कहकर इस विषय की गंभीरता को समझना नहीं चाहते कि चीन के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत है। अगर चीनी माल का भारत में बहिष्कार हो भी जाता है तो उससे चीन की अर्थव्यवस्था पर इतना असर नहीं पड़ेगा जिसे दबाव बनाकर भारत अपनी बात मनवा सके। किंतु क्‍या यह पूरा सच है ? इसके पीछे के सच को भी जानना चाहिए। भारत में जो 2 प्रतिशत निर्यात की बात कही जाती है, वह पूरी तरह सच नहीं, क्‍योंकि जितना माल कानूनी स्‍तर पर 1 नम्‍बर में चीन से भारत आता है, उससे कई गुना अधिक चीनी माल भारत की सीमाओं में अवैध रूप से आता है । इसलिए भले ही चीनी माल के बहिष्कार का वहां की अर्थव्यवस्था पर तुरंत कोई असर न पड़े लेकिन इसका असर बाद में बहुत व्‍यापक स्‍तर पर दिखेगा, यह तय मानिए।

वस्‍तुत: चीन अपने व्‍यापारिक माल के जरिए ही 21वीं सदी में महाशक्ति के रूप में उभरना चाहता है,  इसलिए वह अपने इस स्‍पप्‍न को इन दिनों ‘वन बेल्ट वन रोड’ के जरिए साकार करने में लगा है । इसके जरिए चीन आर्थिक तरीके से दुनिया पर राज करने का प्लान बना रहा है। जिसका कि पिछले दिनों मोदी सरकार ने विरोध किया था। किंतु इस सब के उपरान्‍त भी सरकार को यह समझना ही होगा कि वह अपनी निर्भरता क्‍यों चीन के सामने बनाए रखना चाहती है। क्‍या जरूरत है, सरकार को उसके सामने व्‍यापारिक हितों के नाम पर खड़े होने की ? यह इसीलिए भी कहा जा रहा है, क्‍योंकि आज जिस मोदी सरकार ने चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ नीति का विरोध किया है, उस मोदी सरकार के लिए बहुत अच्‍छा तब ओर होता जब वह चीन से पेट्रोल, डीजल का आयात करने से भी बचती। पहली बार ही सही किंतु इसी वर्ष मार्च 2017 तत्‍कालीन चालू वित्‍तवर्ष के नौ माह में चीन से 18,000 टन पेट्रोल और 39,000 टन डीजल का आयात किया गया। जिसे कि स्‍वयं पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में स्‍वीकार्य किया । हालांकि उन्‍होंने दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उपभोक्ता देश भारत के खपत के बड़े अंतर को देखते हुए यह निर्णय लिए जाने की बात कही थी । किंतु इसी के साथ देश को यह भी जानना चाहिए कि भारत में पेट्रोल और डीजल का कुल उत्पादन घरेलू खपत से ज्यादा है । इसी समय के अंतराल में अप्रैल से दिसंबर 2016 अवधि में देश में 2.71 करोड़ टन पेट्रोल का उत्पादन किया गया, जबकि इस दौरान खपत 1.80 करोड़ टन रही। जहां तक डीजल की बात है इसका घरेलू उत्पादन 7.65 करोड़ टन और खपत 5.72 करोड़ टन रही थी ।

इस सब के बीच सच तो यह भी है कि हमारे पास चीन के अलावा भी तमाम विकल्‍प मौजूद हैं । जब आवश्‍यकता के अनुरूप भारत में पिछले चालू वित्त वर्ष अप्रैल से दिसंबर अवधि में कुल मिलाकर 8,20,000 टन डीजल का और 4,76,000 टन पेट्रोल का आयात किया गया।  इन नौ महीनों में सिंगापुर के मुकाबले यूएई ने सबसे अधिक 2,43,000 टन पेट्रोल की आपूर्ति की गई थी और डीजल में भी यूएई से सबसे अधिक 3,80,000 टन डीजल आयात किया गया था, जबकि सिंगापुर से 1,69,000 टन पेट्रोल आयात किया गया था। फिर चीन की ओर देखने का औचित्‍य क्‍या है ? यानि कि इतने अधिक विकल्‍प होने के बाद भी हमारा चीन की ओर देखना कहीं न कहीं हमारी राष्‍ट्रभक्‍ति पर भी प्रश्‍नचिह्न खड़े करता है।

वस्‍तुत: इस संदर्भ में राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ और उससे जुड़े कई संगठन जो बार-बार चीनी सामान के बहिष्कार की मांग दोहराते आए हैं, प्रयोग के तौर पर वे अपने स्‍तर पर चीनी माल के इस्‍तेमाल से भी बचने का भरसक प्रयत्‍न करते रहे हैं, और समय-समय पर अपने स्‍वयंसेवकों को चीनी सामान के बहिष्कार करने का संकल्प दिलाते हैं। उसे पूरे देश को समझना होगा। यह केवल स्‍वदेश प्रेम से ही नहीं जुड़ा है, यह इसलिए भी जरूरी है कि 500 अरब डालर के अनुमानित नकली और पायरेटेड वस्तुओं के वैश्विक आयात में 63 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ चीन शीर्ष पर है। हमारे मुल्क को चीन घटिया ही नहीं, कई जहरीले उत्पाद भी निर्यात कर रहा है। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओइसीडी) की रिपोर्ट से भी यह प्रमाणित हो चुका है।  ओइसीडी ने अपने अध्ययन में यह भी माना है कि हैंडबैग व परफ्यूम से लेकर मशीनों के कलपुर्जे तथा रसायनों तक, सब के नकली उत्पाद बन रहे हैं। यानि की जिस कंपनियों के विदेशी लेवल लगे होने पर भारतीय उपभोक्‍ता बड़े ही शान से माल खरीद रहे हैं, अधिकांश में वह उसे खरीदकर ठगे जा रहे हैं। क्‍यों कि उन्‍हें चीन बना रहा है और उनकी खरीदारी का भारत सबसे बड़ा बाजार है। वास्‍तव में चीन हमें दो तरह से ठग रहा है, हम सस्‍ते के चक्‍कर में भी ठगे जा रहे हैं और महंगी चीजों में चीन का बना नकली सामान लेकर भी धोखा खा रहे हैं।

चलो, देश इस धोखे को भी झेल लेगा, किंतु क्‍या इससे भी मुंह मोड़ा जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के बाजार में चीनी उत्पादों की सस्‍ती बाढ़ आने से इसका बुरा असर देसी उत्पादकों पर पड़ा है। कई छोटी इकाइयों पर चीनी उत्‍पादनों के कारण ताले लग चुके हैं। कई बड़ी इकाइयां अपने उत्पाद बनाने के लिए दूसरे विकल्पों को तलाश रही हैं जिससे कि चीनी माल से मुकाबला किया जा सके। इस अंतर्विरोध का जो सबसे दुखद पक्ष है वह यही है कि एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया पर जोर दे रहे हैं तो दूसरी ओर केंद्र व राज्‍यों के कई विभाग हैं जोकि अपनी पूर्ति चीन के सामान से करने में लगे हुए हैं। वस्‍तुत: आज भी भारतीय परियोजनाओं के लिए अस्सी फीसद ऊर्जा संयंत्रों के उपकरण चीन से मंगाए जा रहे हैं। यह एक अकेला मामला नहीं, ऐसे तमाम विभाग और परियोजनाएं गिनाई जा सकती हैं।

इस पर अंत में इतना ही कहना है कि चीनी समान के प्रति हमारी भक्‍ति जब तक नहीं टूटेगी और हम यह नहीं देख और समझ पाएंगे कि आखिर मेरे देश के हित में क्‍या है, तब तक भारत भक्‍ति के लाख प्रयत्‍न कर लिए जाएं, प्रधानमंत्री मोदी मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के अभियान को सफल बनाने के लिए अपना संपूर्ण अस्‍तित्‍व झोंक दे। राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जैसे तमाम संगठन अपना सर्वस्‍व समर्पण मातृभूमि के लिए कर दें लेकिन उनके यह प्रयत्‍न सफल नहीं होने वाले हैं। देश में बोफोर्स तोप के स्वदेशी संस्‍करण धनुष जैसी सुरक्षा के स्‍तर पर भी लालच की पराकाष्‍ठा देशद्रोह जैसा कर्म होता रहेगा । वस्‍तुत: देश के प्रत्‍येक नागरिक को इस विषय पर गंभीरता से एक बार अवश्‍य विचार करना चाहिए।

_____________

Dr.-Mayank-Chaturvediपरिचय -:

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

वरिष्‍ठ पत्रकार एवं सेंसर बोर्ड की एडवाइजरी कमेटी के सदस्‍य

डॉ. मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है।

सम्प्रति : न्यूज एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार के राज्य ब्यूरो होने के साथ सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं।

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here