चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का अर्थशास्त्र

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– डाॅo रोहित राय –

अर्थशास्त्र के नियम कहतें हैं कि बाजार भावनाओं से नहीं चलता बल्कि लाभ और लागत से चलता है। एक आम आदमी जब बाजार जाता है तो वो केवल यही सोचता है कि उसे कम दाम में उसकी मनपसंद वस्तुयें मिल जायं,वो प्रोडक्ट को पलट के नहीं देखता कि उस पर “मेड इन चाइना” लिखा है या “मेड इन इंडिया”। फिर क्या जीवन गुजारा आय पर निर्वाह करने वाला एक गरीब भारतीय चीनी उत्पादों का सही मायने में बहिष्कार कर पाएगा??। भारतीय अर्थव्यवस्था आज एक वैश्विक अर्थव्यवस्था में तब्दील हो चुकी है। 2002 के बाद से डब्ल्यू0 टी0 ओ0 का सदस्य होने के नाते विदेशी वस्तुओं के भारतीय आगमन पर सभी प्रतिबंध समाप्त हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में यदि हमें ड्रैगेन को जवाब देना है ,तो उसकी आखों में आंखे डाल के बात करना होगा। हमें चीनी उत्पादों को एक चुनौती और अवसर के रूप में देखना होगा।

जैसे चीन के लिए भारत एक बड़ा बाजार है ठीक वैसे ही भारत के लिए भी चीन एक बड़ा बाजार है। चाहे मानव संसाधन हो,कृषि योग्य भूमि हो, खनिज संसाधन हो,समुद्री क्षेत्रफल हो ,हर मामले में हम चीन को टक्कर देने की स्थिति में हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा, मजबूत, बहुलवादी, बहुसांस्कृतिक लोकतंत्र है, जिस पर पूरी दुनिया विश्वास करती है। जबकि चीन की स्थिति ठीक इसके विपरीत है। भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के क्रम में है। भारत का “मेक इन इंडिया” कार्यक्रम चीनी विनिर्माण क्षेत्र को कड़ी चुनौती दे रहा। सेवा क्षेत्र में भारत ने पहले से ही अपना वैश्विक दबदबा कायम कर रखा है। ऐसे में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि हम चीनी बाजार को फतह करें। इसके लिए एक दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति की आवश्यकता है।

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परिचय – : 

डाॅo रोहित राय

लेखक व् शिक्षक 

 

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर- अर्थशास्त्र  राजकीय महाविद्यालय, खलीलाबाद, संत कबीर नगर-272175

 

संपर्क – : 
मोo नं0- 9140690067 , ई- मेल- rairohit.au@gmail

 

लेखक के अपने निजी विचार।

 

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