चार नज़्में – शायर : राजेश कुमार सिन्हा

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नज़्में

1. लम्हे
बीते हुए लम्हों की महक
उनके साथ न होने की कसक
बेमौसम बरसात का कहर
और उनकी बेवफ़ाई से रौशन होता नूर –ए-सहर (सुबह का प्रकाश)
आज एक साथ दस्तक दे रहे हैं
हा एक सू(ओर) नजर आती है
बस अक्स-ए-महबूब-ए-नजर
मेरे ज़ख़्मों के शजर(वृक्ष)
हरे होने लगते हैं
मुझे ऐसा लगता है
मानो, ये मंज़र मेरी यादों के मरकद से गुजर आए हैं
फिजा मे मजहूर बदन की आह फैल जाती है
हवा के झोंके भी दर्द का ऐहसास कराते हैं
खामोश मौसम के बेख्वाब दर्द
वफा के कंगनों की खनक ढूँढने लगते हैं
मेरा जहन बस बेजुबान नजरों से सबकुछ देखता है
सुनता है ,समझता है,खुद को समझाता है
बिखरते हुए तिनकों को चुनना चाहता है
दिल की सहमी हुई मोहब्बत को सलाम करता है
वह मुझे धीरे से कहता है
हर एक मौज किसी दर्द का मुक़द्दर है
वफा के तक्मील की उम्मीद
सियह रात का समंदर है
आप यकीन करो या न करो
गुलों की आंच पे भी दिल सुलगता है
फिजा मे फैली अपनी वफा की खुशबू को महसूस करो
यही वो शय है
जिसका ऐहसास आरज़ू को ज़िंदा रखता है
(तक्मील-पूरा होना/मरकद-कब्र/मज़हूर –वियोगी)

2. बेचैनी

क्या जबाब दूँ
अंदर बेचैनी सी होती है
तूफान सा उठता है
आनन फानन कुछ पन्ने रंग देता हूँ
शांति मिल जाती है
तभी दूसरा सवाल आ जाता है
कितने स्वार्थी हो तुम
सिर्फ अपना ही सोचते हो
तुम्हें मेरी पीड़ा का ख्याल नहीं आता
तुम्हारी पीड़ा ?
हाँ ,जब मुझे कोई नहीं पढ़ता
मुझे दर्द होता है
असहनीय पीड़ा होती है
मुझे अपना जन्म व्यर्थ लगता है
पर किससे कहूँ मै अपनी पीड़ा
मेरा सृजक ही मुझे दोबारा नहीं पढ़ता
रख देता है सहेज के
संकलन के इंतज़ार मे
ये तुम्हारी नहीं मेरे धैर्य की परीक्षा होती है
माना,मै अच्छी नहीं बनी
क्या ये मेरा क़ुसूर है ?
ज़ाहिर है नहीं
फिर मुझे इसकी सज़ा क्यों ?
मेरा अपमान क्यों ?
सवाल मुझे उद्वेलित कर देता है
मै निरुत्तर हो जाता हूँ
निःशब्द हो जाता हूँ
सोचता हूँ,मौन ही रहूँ

3. काश

तुम समझ पाते
मेरे मोहब्बत की रिफ़अत को
खामोशी से जलते उस चिराग को
अधखुली आंखों से दिखे उस सपने को
तब शायद तुम महसूस कर पाते
मै कोई गुलफ़रोश नहीं
जो अपने कूचा-ए-दर्द मे
बेचने निकला हूँ,,,,, उलफत को
अपने ज़ख़्मों के शजर को
जिसे तलाश है एक अदद खरीददार की
जो बंद आँखों से अतराफ़ को महसूस कर सके
पर सच कुछ और है मेरे दोस्त
मै इश्क़ की इबादत करता हूँ,,,,,,
जिसकी रगों मे मोहब्बत की मय दौड़ती है
मेरे दिल की हर धड़कन
उससे हर रोज़ रूबरू होती है
उसकी आवाज़ को साफ साफ सुनती है
उसकी सरगोशीयों को भी महसूस करती है
कभी कभी तो ऐसा भी होता है
उसके गर्म सासों की ख़ुशबू
जाने कैसे मेरे वजूद मे उतरने लगती है
उसका नशा सर चढ़ कर बोलने लगता है
खुदा मेरा गुनाह माफ़ करे
तब मेरा दिल मेरे महबूब को आवाज़ देता है
मुसकुराता हुआ,,,एक बार गौर से देखो तो सही ,,,,,,,,,,,,
आवाज़ देर तक सुनाई देती रहती है ,,
कोई हलचल नहीं ,,,,कोई आहट भी नहीं ,,,,,
फिजा मे ,,,,,एक सन्नाटा सा बिखर जाता है
क्या इस आवाज का मक़सूम अब जबाब भी नहीं ??
खामोशी बेकरार दिल को तोड़ सी देती है
इंतज़ार अपनी फितरत मे नहीं
दिल ,,,,दिल से कहता है
हर एक मौज़ किसी दर्द का मुकद्दर है
तमन्नाओं के साये मे हमेशा सियह रात ही होती है
गुलों की आंच मे भी दिल सुलगता है
बीते लम्हे भी कई बार यूं ही रुला जाते हैं
बस,आरज़ू का दिया जलता रहता है
यही तक्मील है मोहब्बत की
यही सलीब है मोहब्बत की
यही दुआ है मोहब्बत की ,,,,,,,,,,,,
(रिफ़अत-ऊंचाई/अतराफ़-दिशा/गुलफ़रोश-फूल बेचने वाला/मक़सू

4. कभी कभी सोचता हूँ

कमाल के पेच-ओ –खम हैं जिंदगी मे
अजीब हैरतकदा है ये
कभी भरी महफिल मे रुलाती है
कभी तसव्वुर मे हँसाती है
कोई मंज़र भूले नहीं भूलता
कोई पल भर मे फना हो जाता है
कभी ये लौ
हवा की साज़िशों का शिकार होती है
कभी हवाओं का रुख मोड देती है
कभी जिंदगी की गाड़ी
बेइंतेहाँ तेज भागती है
कभी रुकती ,,,तो फिर चलती ही नहीं है
कभी रिश्तों की गिरहें टूटती ही नहीं
कभी टूटती हैं तो जुड़ती नहीं
किसी की जुस्तजू मे उम्र बीत जाती है
कोई पास होके भी दूर रहता है
कभी बेसबब रोना आता है
कभी आँसू सूख जाते हैं
कभी सरगोशियां भी सुन ली जाती हैं
कभी चीखें अनसुनी रह जाती हैं
कभी झुक के भी सुकून नहीं मिलता
कभी टूटना भी सुकून देता है
कभी तनहाइयाँ हमसफर बनती हैं
कभी दोस्त भी अजनबी लगते हैं
कभी सारी काविशे बेकार जाती हैं
कभी मंज़िल बुलाती है
पशोपेश मे हूँ
आखिर ये मांजरा क्या है
समझ नहीं पाता हूँ
क्या एक अंजान पगडंडी पर
बिना गिले शिकवे के
तमाम मुश्किलों के साथ
बढ़ते जाना ही फलसफा है
इस जिंदगी का ??

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राजेश कुमार सिन्हा

लेखक , कवि व् शायर

संप्रति -एक सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनी मे बतौर वरिष्ठ अधिकारी कार्यरत

प्रकाशन –-राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं मे 500 से ज्यादा रचनाएँ प्रकाशित

फिल्म प्रभाग के लिए दो दर्जन से ज्यादा डॉक्यूमेंटरी फिल्मों ,के लिए लेखन तथा एक डॉक्यूमेंटरी ( The Women Tribal Artist)को नेशनल अवार्ड

बीमा से संबन्धित लगभग 12  पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद

हिन्दी सिनेमा के सौ साल पर एक पुस्तक —अपने अपने चलचित्र -प्रकाशित

संपर्क -10/33 ,जी आई सी अधिकारी निवास ,रेक्लेमेशन , बांद्रा (वेस्ट) मुंबई -50,  मोबाइल -7506345031

6 COMMENTS

  1. बहुत बहुत बधाई राजेश सिन्हा जी। आपकी चारों नजमे बहुत ही अच्छी हैं। आशा है भविष्य में भी इसी प्रकार पढने को मिलेंगी ।शुभकामनाएं आपको ।

  2. प्रिय मित्र श्री राजेश कुमार सिन्हा जी,
    आपकी बेहतरीन रचनाओं के लिए धन्यवाद
    आपको हमारी ओर से दिल की शुभकामनाएं
    पंकज त्रिवेदी
    संपादक – विश्वगाथा

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