चंद्रसेन मिश्र की पाँच कविताएँ

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चंद्रसेन मिश्र की पाँच  कविताएँ 

1. जीवन फैला है टुकड़ों में

थोड़ा-सा उसमें हम हैं
हम में है वह थोड़ा सा
थोड़ा-सा जीवन
उसकी आँखों के चमक में भी है
कुछ कविता की पंक्तिओं में लिपटा है
कुछ बिड़ला होस्टल के कमरे में छूट गया है
कुछ उन जगहों में
जहाँ हम खेला करते थे दिन दिन भर
कुछ उन पेड़ों में
जिसे मैंने सींच कर बड़ा किया
कुछ उस स्कूल में
जंहा मै डरा डरा सा
जाता था कभी कभी
कुछ उस मंदिर के चबूतरे पर
रह गया है
जहाँ हम बैठा करते थे घंटों, बेवजह
कुछ औपचारिक से रिश्तों
से उलझा, अटका पड़ा है
थोड़ा सा जीवन
थोड़ा सा जीवन
उसके अधरों पर छूट गया है
थोड़ा सा ख्वाबों में
रह गया उसके पास
थोड़ा उसके घर में
जहाँ वह बेकार के सामान रखा करता है
लावारिस पड़ा है
एक टुकड़ा जीवन का
कबाड़े के बीच!!
एक टुकड़ा उस मासूम से दोस्त के पास भी है
जिसने उस टुकड़े को और टुकड़ा होने से बचाया था
उसने उस टुकड़े को सहेजा है
रखा है उसे अपने आँचल में बांध कर .
अभी होने है
न जाने कितने टुकड़े
जीवन के
और न जाने कहाँ कहाँ
बिखर जाना है जीवन को
और न जाने कितनों में!!

2. तुम आजाद हो!

ऐ! भारत के दरिद्र किसानों
तुम आजाद हो आत्महत्या करने केलिए.
ऐ! भूखे नंगे नौनिहालों
तुम आजाद हो रेलवे ट्रैक पर
प्लास्टिक की फेंकी गयी बोतल बीनने केलिए.
ऐ! लाखों पढ़े लिखे बेरोजगारों
तुम आजाद हो सल्फास की गोली निगलने के लिए.
ऐ! नन्हीं सी बच्चियों
तुम आजाद हो इन चाहरदीवारियों पर
सर पटकने केलिए.
ऐ! जंगलवासियों.
तुम जंगल में नहीं,
शहर की सड़कों पर भटकने केलिए
आजाद हो.
पर खबरदार!!
तुम आजाद नहीं हो,
आवाज उठाने के लिए
हथियार उठाने केलिए
हमारी नींद में दखल देने केलिए
हमारी विदेश यात्राओं में रूकावट केलिए.
कतार में खड़े हो जाओ
और बोलो, चिल्लाओ
जय हिन्द!!!!
बस यही आज़ादी है तुम्हारी.

3 .विभ्रम

भगवान मर चुका है
मंदिरों में पड़े हैं सिर्फ उनके लाश
भला लाश कैसे सुन सकते हैं
तुम्हारी प्रार्थना!!!
लाश पर थूको
जल चढाओ
या फुल डालो
इन पत्थरों के लाशों को
कोई फ़र्क नही पड़ता
इन लाशों से सिर्फ इसलिए
सड़ांध गंध नही आती
क्योंकि ये पत्थरों के हैं
तुम्हारी आह, तड़प
सब बेकार है इन लाशों के सामने
और उनके मुह पर भी थूक दो
जो कहते हैं भगवान की लीला है ये संसार
ऐसा विभ्रम फ़ैलाने ये सब हैं
संतो के वेश में पिशाच
अपनी अकर्मयता को
कब तक लाशों से छिपा पाओगे
बंद करो अपना ये ढोंग
मत दो दुहाई पत्थरों के लाश का
कठोर बनो वज्र सा!!!!
और उनसब के खिलाफ टूट पड़ो!!!!
जो ख़त्म कर रहे हैं इंसानियत
मनुष्यत्व ही कर पायेगा
तुम्हारे मरे हुए भगवान की प्राण प्रतिष्ठा
पर बिना मारे अन्दर और बाहर के पिशाच को
मत चढाओ फूल
मंदिरों में पड़े लाशों का.
मत मांगो रहम बहरे अल्लाओ से
झुको मत!!!! किसी विभ्रम के सामने
मंदिरों के लाश, शूली पड़ टंगा जीसस,
दंगाई पिशाच अल्लाह ये सारे विभ्रम
नही कर पाएंगे मदद तुम्हारी
भगवान मर गया
जीसस मर गया
आतंकी अल्लाह भी नही रहा
बची हैं तो सिर्फ उनकी लाशें
ए ढोंगी अकर्म्य मन !!!!
तू कब तजेगा
इस विभ्रम को
ढोंग को
इस झुठ को

4 .वे क्रांतिकारी हैं.

वे क्रांतिकारी हैं.
फासीवाद और पूंजीवाद के एकदम खिलाफ़!
खांटी मार्क्सवादी!
उनके शब्द
बम जैसे फूटते हैं
कागजों और सेमिनारों में.
वे क्रांतिकारी हैं.
शोषितों के हितैषी
और मजदूरों के दर्द को महसूसने वाले.
बियर और खुबसूरत लड़कियों
के आँखों में डूब कर वे लाते हैं क्रांति.
कबाब और शराब अन्दर जाते ही
वे और हो जाते हैं साम्यवादी.
शोषितों के दर्द को बेचकर
शब्दों से खेलने वाले छद्म साम्यवादी
लेते हैं पुरस्कार और सम्मान
पूंजीपतियों से हीं,
मुस्कुराते हुए, गले मिलते हुए!
उनके बच्चे पढ़ते हैं अंग्रेजों के स्कूल में
और सीखते हैं ‘मैनेजमेंट’.
उनके घर में ही है सबसे उम्दा एयर कंडीशन!
उनके महलनुमा घर सजा है
गुलाब के गमलों और गुलदस्तों से.
वे क्रांतिकारी हैं,
लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था
के तमाम मजे लेने के बाद!
उनके उब का परिणाम है
उनका साम्यवाद!!!

 5. एक दुनिया सपनों वाली

कोलाहल है बाहर
और अन्दर है एक जबरदस्त सन्नाटा
इतना की महसूस किया जा सके इसे
एक हल्के स्पर्श की तरह
इस सन्नाटे के अन्दर है एक प्यारी सी
दुनिया
इस दुनिया मे रहते हैं
कुछ सपने
कुछ उम्मीदें और
कुछ अजीब सी  ख्वाहिशें
और कभी कभी आ जाती हो इसमें
तुम भी
सचमुच सबकुछ अचानक ही होता है यहाँ
जैसे तुम्हारा मेरे इस दुनिया मे आना।
फैल जाती है एक खुशबू आस पास
जब होती हो तुम मेरे पास
महसुसता हूँ मैं तुम्हें
लेकिन तुम्हारा चेहरा….?
मेरे इस दुनिया मे साधिकार आने वाली
कौन हो तुम?
ठहरो….
सुनो तो…
जो भी हो तुम
आती रहना
सच में अच्छा लगता है तुम्हारा आना
जब तुम नहीं आती हो
पुछते हैं मुझसे सपने और उम्मीदें
कहते है वे भी चले जायेंगे
गर नहीं आयी तुम तो…
अजीब लगता है सच मे
जब रुठ कर चले जाते है
सपने और उम्मीदें…..
मेरे लिए न सही
इनके लिए ही
आ जाना
कुछ पल के लिये ही।
आओगी न
मेरी इस दुनिया में
———————–

चंद्रसेन मिश्र,कवि चंद्रसेन मिश्र,चंद्रसेन मिश्र कवि ,लेखक चंद्रसेन मिश्र, चंद्रसेन मिश्र लेखकपरिचय – : 

चंद्रसेनजीत मिश्र

  कवि व् लेखक 

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता में स्नाकोत्तर की उपाधि

बीएचयू के हिंदी विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका “संभावना” में कविताएँ प्रकाशित

संपर्क – : नगरपंचायत वार्ड स.14, मिश्रटोला ,जिला शिवहर ,बिहार , 843329

 ई-मेल  – deepakbhu2@googlemail.com –
mobile no. 7398790100, 8409839025

3 COMMENTS

  1. कविताएँ पढ़ीं!कुछ ज्यादा ” लाउड ” ! कवि की चिंता झलकती है। लेकिन विभ्रम कविता खुद विभ्रम की शिकार दिखती है। मनुष्यता मरे हुए भगवान की प्राणप्रतिष्ठा क्यों करे। फिर अल्लाह के पहले आतंकी का प्रयोग?

    • asmurarari ji..
      manusya mre hue bhgvan ki pran pratistha is prakar kr skta hai kyoki manusyata ka dusra nam hi ishwar hai…
      aur jaha rk aatanki allah ka prashn hai.. isme mai kisi vishesh dhrm ka virodh ya samrthn nhi kr rha.. isme jisus bhgavan sb ka jikr hai…vaise kya dhrm ke nam pr logo ko aatnkit nhi kiya ja rha..
      kavita kabhi jabhi bahut pida ke kshno me likhi jati hai…isi se thori bhasha utni mulayam nhi rh pati sb kavitao me..

  2. आप की कविता पढ़ कर बीएचयू की यादें ताजा को गयी, ऐसा लगता है अभी कल ही की बातें है….
    काश वो सब फिर से जीने को मिल पाता… काश जीवन का एक टुकड़ा…

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