**घातक है कर्तव्यनिष्ठता पर भ्रष्टतंत्र का हावी होना?

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**तनवीर जाफरी
पिछले दिनों हमारा देश जश्र व गम के संयुक्त वातावरण के दौर से गुज़रा। पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जहां विजयश्री प्राप्त करने वाले दल व नेता तथा सत्ता हासिल करने वाले लोग खुशी के मारे आपे से बाहर होते दिखाई दिए। सत्ता परिवर्तन होने वाले इन राज्यों की जनता में भी इस परिवर्तन के कारण सुशासन की आस जगी। वहीं दूसरी ओर देश के दो होनहार आईपीएस अधिकारियों को भी इसी भ्रष्ट व्यव्स्था की भेंट चढ़ा दिया गया। नतीजन कुशासन व भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े इन अधिकारियों के परिवारों व इन के गांव व कस्बों में शोक व गम की लहर छाई रही। इन घटनाओं के बाद देश को भ्रष्टाचार व कुशासन से मुक्ति दिलाने की आस लगाए बैठे राष्ट्रभक्त देशवासियों के मन में एक बार फिर यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि कर्तव्यनिष्ठता,ईमानदारी तथा देशभक्त लोगों पर कहीं भ्रष्टतंत्र,गुंडा व माफया राज हावी होने तो नहीं जा रहा?

इस समय देश में जिस प्रकार युवाओं का रुझान देखने को मिल रहा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि संभवत: भारत का भविष्य योग्य,होनहार,ईमानदार तथा देश को आगे ले जाने की चाहत रखने वााले युवाओं के हाथों में हैं। देश में जहां भारतीय युवा मतदान में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते दिखाई दे रहे है वहीं शिक्षा के दर में होने वाली बढ़ोतरी भी इस बात का सुबूत है कि देश का युवा पहले से अधिक शिक्षित व आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। यह भी माना जा रहा है कि युवाओं की यह नई $फौज पारंपरिक भ्रष्ट राजनीति व पारंपारिक लचर शासन प्रणाली में लगी दीमक से तंग आ चुकी है और वह इस व्यवस्था में शामिल होकर अपने हाथों से व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाह रही है। परंतु जब भी देश के किसी कोने से किसी होनहार व ईमानदार अधिकारी द्वारा भ्रष्टाचार के विरूद्ध आवाज़ उठाने की कोशिश की जाती है तो भ्रष्ट राजनीति व राजनीतिज्ञों को संरक्षण प्राप्त माफया उस आवाज़ को खामोश कर देता है। देश में इस तरह की एक दो नहीं बल्कि दर्जनों घटनाएं ऐसी हो चुकी हैं जिन्हें देखकर वह राष्ट्रभक्त युवा वर्ग भी सहमा सा प्रतीत हो रहा है जोकि भविष्य में इसी व्यवस्था में शामिल हेकर इसमें सुधार करना चाह रहा है।

मध्य प्रदेश राज्य के मुरैना जि़ले के बानमोर क्षेत्र में एस डी ओ पुलिस के रूप में तैनात भारतीय पुलिस सेवा के युवा अधिकारी नरेद्र कुमार को 8 मार्च को होली के दिन उस समय खनन माफया के क्रोध का शिकार होना पड़ा जबकि वे होली के दिन रंग खेलने के बजाए पत्थरों के अवैध खनन को रोकने के लिए उस क्षेत्र में जा पहुंचे जहां अवैध रूप से ट्रैक्टर ट्राली में भरकर अवैध खनन से निकाले गए पत्थरों को निकाला जा रहा था। नरेंद्र कुमार ने ऐसे ही एक ट्रैक्टर की जांच-पड़ताल हेतु उसे रुकने का इशारा किया। परंतु ट्रैक्टर चालक तीस वर्षीय मनोज गुर्जर ने नरेंद्र कुमार की ओर ट्रैक्टर का रूख कर उनपर पत्थरों से भरी ट्रैक्टर-ट्रॉली चढ़ा दी। इस घटना में उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

नरेंद्र कुमार की पत्नी मधुरानी तेवतिया भी मध्यप्रदेश में ही एक आईएएस अधिकारी हैं। शीघ्र ही वे नरेंद्र कुमार के पहले बच्चे की मां भी बनने वाली हैं। नरेंद्र कुमार भी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। इस घटना का एक दर्दनाक पहलू यह है कि जब नरेंद्र कुमार की हत्या पर उसकी पत्नी व परिजन विलाप कर रहे थे तथा इस घटना के लिए राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे थे उसी समय मध्यप्रदेश के एक जि़म्मेदार,बहुचर्चित व कई घोटालों को लेकर चर्चा में रहे राज्य के मंत्री विजयवर्गीय ने बड़े ही हैरतअंगेज़ ढंग से यह कह डाला कि ‘यदि सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जाती है तो हमने भी चूडिय़ां नहीं पहन रखी हैं’। ज़रा कल्पना कीजिए कि जिस परिवार का इकलौता आईपीएस बेटा भ्रष्टाचार की बलि बेदी पर चढ़ा दिया जाए उसकी मौत के बाद खुलेतौर पर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाला एक भ्रष्ट व बदनाम मंत्री मीडिया से रूबरू होकर इस प्रकार की अनर्गल बयानबाज़ी करे तो ऐसे बयानों से देश का भविष्य समझे जाने वाले युवाओं पर आखर क्या प्रभाव पड़ेगा? परंतु मज़े की बात तो यह है कि ऐसी बेशर्मी की बात करने के बावजूद ऐसे ही लोग ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की ध्वजा भी लेकर चलते दिखाई देते हैं। यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कदम ज़रूर सराहनीय था कि उन्होंने नरेंद्र कुमार की पत्नी व उनके परिजनों की मांग को स्वीकार करते हुए इस घटना की सीबीआई जांच का ओदश दे दिया है और मामले की सीबीआई जांच शुरु भी हो चुकी है।

उपरोक्त घटना को बीते हुए अभी पूरा सप्ताह भी नहीं बीता था कि छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जि़ले के एक और 37 वर्षीय आईपीएस अधिकारी राहुल शर्मा ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से अपने सिर में गोली मार कर आत्महत्या कर ली। 2002 बैच का यह आईपीएस अधिकारी जोकि दंतेवाड़ा जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में सफलतापूर्वक काम कर चुका है, अपने स्वभाव, खुशमिज़ाजी तथा अच्छे व्यवहार के लिए स्थानीय लोगों में बहुत लोकप्रिय था। वह गत् दो वर्षों से पुलिस अधीक्षक बिलासपुर के रूप में तैनात थे। उनकी कार्यशैली के बारे में जानने वाले लोग भी यही बताते हैं कि वे अत्यंत ईमानदार तथा बिना किसी दबाव के स्वविवेक से काम करने वाले व्यक्ति थे। उनकी आत्महत्या के बाद जो सुसाईड नोट बरामद किया गया उससे यह पता चलता है कि उनपर अपने उच्चाधिकारियों का नाजायज़ दबाव तो था ही साथ-साथ उच्च न्यायालय में चल रहे एक मुकद्दमे को लेकर भी वे काफी तनाव में थे। देश में पहले भी इस प्रकार की कई घटनाएं सुनने को मिली हैं जबकि स्वाभिमानी, ईमानदार तथा अपने विवेकाधिकार से काम करने वाले अधिकारियों को नाजायज़ दबाव सहने करने के परिणामस्वरूप आत्महत्या करनी पड़ी। यह घटना भी हमारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार तथा दबाव डालकर गलत काम करवाने का ही एक नतीजा है। निश्चित रूप से ऐसे हादसे भी देश के उन युवाओं के मनोबल को तोड़ रहे हैं जोकि भविष्य में शासन व्यवस्था में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं।

भ्रष्टाचार व कुशासन की भेट चढऩे का यह सिलसिला कोई नया नहीं है। बिहार के गया जि़ले में 27 नवंबर 2003 को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के ईमानदार इंजीनियर सत्येंद्रनाथ दूबे की बहुचर्चित हत्या भी देश भूला नहीं है। दूबे ने गया में 2003 में निर्माणधीन राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में हो रही उस धांधली की पोल खोली थी जिसमें कि प्रसिद्ध निर्माण कंपनी एल एंड टी ने अपने ठेके को माफियाओं के हाथों चलने वाली छोटी कंपनियों के हाथों में उक्त ठेके के रूप में हस्तांरित कर दिया था और माफियाओं के यह छोटे गु्रप निर्माण कार्य में धड़ल्ले से अनियमितताएं बरत रहे थे। सत्येंद्र दूबे ने इस धांधली को लेकर राजमार्ग प्राधिकरण के उच्चाधिकारियों को अवगत कराया।

परिणामस्वरूप मामले पर कार्रवाई होने या धांधली पर रोक लगने के बजाए उलटे दूबे को ही धमकियां मिलने लगीं।आखिर इंजीनियर सत्येंद्र दूबे ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक गुप्त पत्र भेजकर उसमें यह बताने की कोशिश की कि किस प्रकार जनता के धन को मा$िफयाओं द्वारा बड़ी कंपनियों की मिलीभगत से दोनों हाथों से लूटा जा रहा है। उसी पत्र में दूबे ने प्रधानमंत्री को यह भी लिखा कि यदि आपको लिखा गया यह पत्र ‘लीक’ हो गया तो मेरी जान को भी खतरा हो सकता है। अब ज़रा इस दुर्भाग्यशाली व्यवस्था को देखिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचे उस पत्र की जानकारी भ्रष्ट माफयाओं तक पहुंच गई। परिणामस्वरूप इस लुटेरे माफिया ग्रुप ने सत्येंद्र दूबे की गोली मार कर हत्या कर दी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठने वाली आवाज़ हमेशा के लिए खामोश कर दी गई।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के गोला गोकरणनाथ नामक कस्बे में 19 नवंबर 2005 को इसी प्रकार की घटना घटी थी जबकि षणमुगम मंजुनाथन नाम का एक अत्यंत ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ व भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुखर रहने वाला प्रथम श्रेणी का अधिकारी पेट्रोल में मिलावट करने वाले पेट्रोल पंप मा$िफयाओं के हाथों बेरहमी से $कत्ल कर दिया गया था। मंजुनाथन ओ एन जी सी में मार्केटिंग मैनेजर था। उसने दो पेट्रोल पंप में की जा रही मिट्टी के तेल की मिलावट के सैंपल चेक किए थे। उसने इन मिलावटख़ोर तेल माफियाओं को चेतावनी भी दी थी कि वे अपनी इस आदत से बाज़ आ जाएं परन्तु राजनैतिक संरक्षण प्राप्त इन मिलावटखोरों के हौसले इतने बुलंद थे कि उन्होंने उस ईमानदार अधिकारी को गोलियों से भून डाला। तथा हत्या करने के पश्चात उसकी लाश भी गायब कर देने की नीयत से उसे घटनास्थल से दूर सन्नाटी जगह पर ले जा रहे थे। परंतु हत्यारे पुलिस की नज़रों से बच नहीं सके अन्यथा मंजुनाथन की लाश का भी पता नहीं चलना था। कुछ ऐसा ही हादसा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर महाराष्ट्र के नासिक जि़ले में उस समय घटा था जबकि एक अतिरिक्त जि़ला अधिकारी यशवंत सोनावने को इसी प्रकार के पेट्रोल में मिलावट करने वाले मा$िफया ने जिंदा जला डाला। उनका भी यही कुसूर था कि उन्होंने पेट्रोल में हो रही मिलावटखोरी का विरोध किया था तथा सरेआम की जा रही मिलावटख़ोरी की वीडियो फिल्म अपने मोबाइल के द्वारा बना ली थी। उन मिलावटख़ोर दरिंदों ने उस अधिकारी को तेल छिडक़कर जि़ंदा जला डाला।

इस प्रकार की घटनाएं न केवल ईमानदार युवाओं के लिए बल्कि राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए भी चिंता का विषय हैं और निश्चित रूप से ऐसी घटनाएं युवाओं के दिलों में भय, निराशा व चिंता का वातावरण पैदा कर रही हैं। सवाल यह है कि यदि देश की सरकारें व देश की राजनैतिक व्यवस्था इस प्रकार की घटनाओं में स्वयं ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भागीदार हैं, फिर तो देश के भविष्य का भगवान ही मालिक है। और यदि यही सरकारें स्वयं को लोकहितकारी, राष्ट्रभक्त व सांस्कृतिक राष्ट्रवादी आदि बताती हैं तो इन्हें ऐसे ईमानदार, होनहार व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के हत्यारों, इस साजि़श में शामिल लोगों को तथा इन्हें राजनैतिक संरक्षण प्रदान करने वाले नेताओं को सार्वजनिक रूप से बेनकाब करना चाहिए तथा उन्हें यथाशीघ्र कठोर से कठोर सज़ा दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे वाले इन अधिकारियों के सम्मान में नियमित पुरस्कारों की घोषणा की जानी चाहिए ताकि प्रतिभाशाली युवाओं के हौसले टूटने न पाएं।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC


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