ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ी हैलो की आवाज़

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संतोष ठाकुर 

शहरी क्षेत्रों के मुकाबले हमेशा से हाशिए पर रहने वाला ग्रामीण भारत भी अब सरकार की उदारवादी नीतियों की वजह से दूरसंचार घनत्व के मामले में नया इतिहास रच रहा है । पिछले कई साल से तमाम प्रयासों के बावजूद दो से तीन प्रतिशत पर ही रहने वाला ग्रामीण टेलीफोन घनत्व वर्ष 2009 में बढक़र 16.54 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जबकि दूसरी ओर पिछले सालों की वृध्दि दर का आकलन करते हुए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2010 तक ग्रामीण टेलीफोन घनत्व को चार प्रतिशत तक करने का लक्ष्य तय किया था ।

ग्रामीण टेलीफोन दर में आए इस उछाल को देखते हुए केन्द्रीय दूरसंचार मंत्रालय ने इस दर को और आगे ले जाने के उद्देश्य से कई अन्य महत्वपूर्ण कदमों की घोषणा की है । इसमें ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेजों की संख्या बढाने के साथ ही शहरी व ग्रामीण दूरसंचार क्षेत्र में सरकारी कंपनियों के माध्यम से 2009-10 में करीब 14,000 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश का कार्यक्रम भी बनाया है । सरकार ने अपनी नई विस्तारित नीति और निवेश के सहारे 2012 तक ग्रामीण टेलीफोन की घनत्व दर 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य तय किया है । यही नहीं, दूरसंचार मंत्रालय का आकलन है कि अगर इसी रपऊतार से ग्रामीण दूरसंचार घनत्व बढता रहा तो इसके अगले दो सालों में वर्ष 2014 तक ग्रामीण टेलीफोन घनत्व रिकार्ड 40 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर सकता है । दूरसंचार मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 31 मई, 2009 तक ग्रामीण टेलीफोन की संख्या 135.42 मिलियन यानि साढे तेरह करोड़ से अधिक थी ।

 यह दूरसंचार क्षेत्र की लगातार वृध्दि का एक नमूना मात्र है कि पिछले तीन साल में ही इस क्षेत्र में करीब सौ करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है । यह राशि सरकारी कंपनियों बीएसएनएल और एमटीएनएल के निवेश से अलग है । अगर सरकारी कंपनियों के निवेश को भी जोड़ लिया जाए तो यह राशि करीब सवा सौ करोड़ रुपये से अधिक हो जाती है । दूरसंचार विशेषकर ग्रामीण टेलीफोन घनत्व बढाने के लिए सरकार ने वर्ष 2009-10 में दूरसंचार क्षेत्र में दोनों सरकारी कंपनियों के माध्यम से 14015 करोड़ रुपये के निवेश का कार्यक्रम तय किया है । दूरसंचार मंत्रालय के अधिकारियों को उम्मीद है कि इस निवेश से शहरी ही नहीं बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी टेलीफोन घनत्व बढेग़ा ।

सरकार ने ग्रामीण टेलीफोन घनत्व बढाने के लिए जो कार्यक्रम तय किए हैं उनमें से सबसे प्रमुख है देश के 27 राज्यों के पांच सौ ऐसे जिलों में 7,000 से अधिक नए मोबाइल टॉवर लगाना । यह ऐसे जिलें हैं जहां स्थाई मोबाइल वायरलेस कवरेज नहीं है या फिर एक बार सिगनल मिलने के बाद तुरंत गायब हो जाते हैं । दूरसंचार मंत्रालय ने इन जिलों में दूरसंचार कंपनियों से वसूले जाने वाले यूनिवर्सल ऑब्लीगेशन फंड की राशि से करीब 7440 टॉवर लगाने के लिए नियमानुसार रियायत देने का निश्चय किया है । इन टॉवरों के अलावा मंत्रालय ने अगले चरण में करीब 10128 नए टॉवर लगाने का भी निर्णय किया है, जिससे दूरसंचार घनत्व को और मजबूती दी जा सके ।

 दूरसंचार मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर सरकार की संवेदनशीलता का असर यह रहा है कि यहां लगातार टेलीफोन घनत्व बढा है । वर्ष 2005-06 में ग्रामीण टेलीफोन की संख्या 14.77 मिलियन थी, जबकि इसके अगले वर्ष 2006-07 में यह संख्या 47.10 मिलियन, उसके अगले साल 2007-08 में 76.50 मिलियन, 2008-09 में 123.51 मिलियन थी, जबकि 31 मई, 2009 तक यह संख्या 135.42 मिलियन हो गई थी । दूरसंचार विभाग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन घनत्व को इस कदर उत्साहित स्तर पर ले जाने में वायरलेस ऑन लोकल लूप, जिसे डब्ल्यूएलएल सेवा भी कहते हैं, का महत्वपूर्ण स्थान रहा है ।

दूरसंचार मंत्रालय ने वर्ष 2006-07 में ग्रामीण टेलीफोन घनत्व बढाने के उद्देश्य से 1104200, जबकि इसके अगले साल 2007-08 में 1372000 तथा 2008-09 में 584050 डब्ल्यूएलएल कनेक्शन प्रदान किए । गांवों में टेलीफोन की घंटियों का घनत्व लगातार बढे ऌसके लिए पिछले तीन साल में दूरसंचार मंत्रालय ने एक रणनीति के तहत पिछले तीन साल में ग्रामीण क्षेत्र में निवेश कार्यक्रम को जारी रखा । दोनों सरकारी कंपनियों एमटीएनएल और बीएसएनएल के आंकड़ों के अनुसार उन्होंने 2006-07 में ग्रामीण इलाकों में 1581.37 व ट्राइबल इलाकों में 276.24 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि 2007-08 में ग्रामीण व ट्राईबल इलाकों में क्रमश: 1202.17 व 206.18 तथा 2008-09 में इन क्षेत्रों में क्रमश: 1239.06 व 243.66 करोड़ रुपये खर्च किए ।

बीएसएनएल ने ग्रामीण व पहाड़ी तथा वनों की सघनता वाले ऐसे क्षेत्र जहां नियमित टेलीफोन टॉवर-लाइन बिछाना संभव नहीं है वहां डिजीटल सैटैलाइट फोन टर्मिनल से सर्विस उपलब्ध कराने का कार्यक्रम भी बनाया था, जिससे इन क्षेत्रों में भी दूरसंचार क्रांति आ सके । एक आंकड़े के अनुसार इस तरह के करीब 1309 सैटेलाइट टेलीफोन सिस्टम फिलहाल कार्य कर रहे हैं । इनमें सबसे अधिक उड़ीसा में 520 हैं, जबकि सबसे कम 16 जम्मू-कश्मीर में हैं । इस तकनीक से बीएसएनएल ने सरकार की पऊलैगशिप योजना भारत निर्माण के अंतर्गत 4077 नए विलेज पब्लिक टेलीफोन या ग्रामीण सार्वजनिक टेलीफोन लगाने का कार्यक्रम भी तय किया है । इससे भी ग्रामीण क्षेत्रों में टेलीफोन घनत्व बढने क़ी उम्मीद है । सरकार के दस्तावेजों के मुताबिक इस तरह के दुगर्म क्षेत्रों में सैटैलाइट टेलीफोन सिस्टम स्थापित करने के लिए 2007-08 में 51.14 करोड़ रुपये, 2008-09 में 23.72 करोड़ रुपये व 2009-10 में 27.53 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं ।

 ग्रामीण क्षेत्र में टेलीफोन नेटवर्क को बढाने के उद्देश्य से सरकार ने आने वाले समय में 15 नए ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेंज भी स्थापित करने का निश्चय किया है । इस साल जनवरी से 30 जून तक 10 ऐसे एक्सचेंज स्थापित किए थे, जबकि इससे पूर्व 2006-07 में 86, 2007-08 में 53 व 2008-09 में 36 ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किए गए थे । दूरसंचार मंत्रालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में ग्रामीण टेलीफोन घनत्व बढाने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में वायरलेस ऑन लोकल लूप टेलीफोन की मांग को पूरा करने के लिए बीएसएनएल को एक्सचेंज से 5 किलोमीटर की दूरी तक केबल बिछाने के लिए कहा था । पहले यह मापदंड 2.5 किलोमीटर का था । इस योजना का लाभ यह होगा कि इससे न केवल कवरेज क्षेत्र बढेग़ा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में कॉल ड्रॉप की समस्या में भी कमी आएगी । दूरसंचार मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार इन तमाम योजनाओं के इतर, मंत्रालय लगातार खराब हो रहे सार्वजनिक ग्रामीण टेलीफोन को बदलने का कार्यक्रम भी चलाता रहता है, जिससे इन फोनों की खराबी से ग्रामीण क्षेत्र में दूरसंचार संकट न उत्पन्न हो ।

(लेखक दैनिक भास्कर में वरिष्ठ संवाददाता हैं)

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