गुरू वह पक्षपात न करे : महंत हेमंत दास

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रोहतक,
गुरू की महिमा का वर्णन करना आसान नहीं है, गुरू के प्रति वह आस्था और विश्वास ही है जो मनुष्य को गुरू से मिलाता है। गुरू एक शब् है कोई शरीर नहीं । चूंकि जो गद्दी पर व्यक्ति बैठता है तो उसकी पहचान उसी गद्दी और पद से होती है। पद की गुरू की  गरिमा से बनती है । गुरू मार्ग दिखाता है और मनुष्य उसका अनुसरण करता है। इसलिए गुरू का कर्तव्य है वह मनुष्य को सही मार्ग दिखाए । ये विचार श्री सतजींदा कल्याणा सेवक समिति , रोहतक की ओर से आयोजित श्रीराम कथा चिंतन में महंत हेमंत दास जी ने व्यक्त किए। रोहतक के मातूराम कम्यूनिटी सेंटर में चल रही श्री राम कथा में ज्ञान गंगा की अमृतवर्षा करते हुए महंत हेमंत दास जी ने कहा कि गुरू चाहे कोई कटु वचन भी बोले उसे शिरोधार्य करना चाहिए, चूंकि गुरू कभी अपने शिष्यों का अहित नहीं करते। किसी का पक्षपात नहीं करते। जो पक्षपात करता है तो वह गुरू नहीं हो सकता। गुरू द्रोण के एकलव्य से अपने प्रिय शिष्य अर्जुन के लिए अंगूठा मांग लेने के प्रसंग का उल्लेख करते हुए महंत हेमंत दास ने कहा कि शायद यह पक्षपात ही था जो एक समय पर उनका शिष्य ही उनके सामने धनुष उठाता है। गुरू का कर्तव्य है कि वह पक्षपात नहीं करे। गुरू मध्यमार्गी होगा तो वह ज्ञान दे सकता है। गुरू वचनों का महत्व एक गीत के माध्यम से महंत हेमंत  दास जी ने कहा:

गुरू वचनों को रखना संभाल के, हर शब्द में छिपा बलिदान है।
जिसने जानी है महिमा गुरू की, वही दुनिया में सच्चा इंसान है ।।

महंत हेमंत दास जी ने आज श्री राम कथा चिंतन हनुमान जी व श्रीराम जी के प्रसंगों के माध्यम से गुरू व सेवक की भक्ति से सेवाभाव का अद्भुत वर्णन किया । उन्होंने कहा कि राम का नाम ही परमात्मा है। चूंकि शताब्दियों से धर्म का प्रचार प्रसास है, मगर सबका मूल तो एक ही नाम है वह परमात्मा । उसका नाम कोई राम लेता है, तो कई अल्लाह , तो कोई ओंकार। महंत हेमंत दास जी ने कहा कि इसलिए राम शब्द ही नहीं बल्कि परमात्मा से संबंध है। हनुमान की भक्ति को  श्रेष्ठ बताते हुए महंत जी ने कहा कि यह गुरू के प्रति सेवाभाव का प्रसाद था कि किसी भी मंदिर में आपको रामजी हनुमान के बिना नहीं मिलेंगे। हनुमान जी के आपको अलग मंदिर मिल जाएंगे, भक्त मिल जाएंगे, मगर रामजी बिना हनुमान के नहीं मिलेंगे। कथा में महंत हेमंत दास जी ने कहा कि दृष्टि ऐसी होनी चाहिए जो सभी से प्यार करे। उन्होंने  कहा कि राम का नाम किसी तर्क, बुद्धि, वाणी का विषय नहीं बल्कि यह तो परमात्मा से संबंध है । वे कहते हैं कि समाज में आपसी भाईचारा कितना अच्छा है इसी से व्यक्ति की पहचान होती है। इसलिए  जीवन में प्रेम व सद्व्यवहार को अपनाना चाहिए। अपनों से नफरत करने वाले भगवान को गुरू को क्या प्यार करेंगे? मानव को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा कि जो बड़ों का सम्मान करता है। देवी-देवताओं का नमन करता है वही तो आगे बढता है। मगर यह साधना और सुमिरन के बिना संभव नहीं है। साधना का संबंध चिंतन से है। चिंतन से ही संबंध स्थापित होता है। तभी गुरू मार्ग प्रशस्त करता है।

सज्जनता को मनुष्यता का गहना बताते हुए महंत हेमंत दास ने कहा कि सद्गुण सज्जनता को अच्छे लोग कभी त्यागते नहीं है और अवगुणों का गुलाम नहीं तजते। इसलिए कहा हैकि कर्मों का फल तो भोगना पड़ता है। अच्छे करम करने से ही सज्जनता और सद्गुण आते हैं । इसलिए व्यवहार में समानता आनी चाहिए। चूंकि सभी में प्रभु को मूल समाया है। इसलिए मानव-मात्र के भीतर प्रभु हैं और   उसको महसूस किया जा सकता है।

कथा के दूसरे दिन सतजींदा कल्याणा गद्दी, कलानौर के बावा खुशहाल दास जी ने भी अमृत वर्षा की। उन्होंने शिक्षा और साधना को जोड़ते हुए कहा कि शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान नहीं है। शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास है, जिसमें मानसिक, शारीरिक व आध्यात्मिकता का विकास जरूरी है। उन्होंने साधना के मार्ग को प्रशस्त करते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन में अनेक बाधाएं होती है, मगर वह साधना व विश्वास से उन पर जीत पाता है। गुरू की महिमा को आगे बढाते हुए उन्होंने कहा कि जैसे कक्षा में शिक्षक बच्चे को शिक्षित करता है, उसी प्रकार जीवन में सफलता दिलाने व भवसागर से पार कराने में गुरू ही समर्थ होते हैं।

तीन अक्तूबर से ग्यारह अक्तूबर तक रोजाना तीन से छ बजे तक होने वाली कथा के दूसरे दिन श्रीरामचरित मानस की आरती में मुख्य अतिथि के तौर धर्मपाल परूथी व गुलशन परूथी ने आरती की । कथा में अश्विनी जुनेजा, पूर्ण लाल बत्रा, आनंद प्रकाश अरोड़ा, महेंद्र खुराना, गौरव जुनेजा, अमर अरोड़ा, कमल लूथरा, रविंद्र प्रसाद ईश, रामसरूप पोपली सहित शहर के अनेक गणमान्य लोगों ने यहां सेवा की । कथा की अमृतवर्षा में भीगने का आनंद लेने वालों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।
चित्र सहित

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