खुशहाली तो पसीने की बूंद से निकलती है

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जय श्री राठोर,,

आई.एन.वी.सी,,

चंडीगढ़,,

साहित्यिक संस्था ‘मंथन’ द्वारा यहां सैक्टर 37-सी, भगवान परशुराम भवन, में एक साहित्यिक कार्यक्रम शायर जनाब जयगोपाल ‘अश्क’ की अध्यक्षता में हुआ। इसमें मुख्यातिथि के तौर पर कथाकार व समीक्षक ‘नरेन्द्र निर्माेही’ ने शिरकत कीेे। मंच संचालन सुशील ‘हसरत’ नरेलवी ने किया।

कार्यक्रम के पहले चरण में कथाकार मदन शर्मा ‘राकेश’ के कहानी संग्रह ‘‘अनाम रिश्तों का सफऱ’ पर विस्तृत चर्चा की गई। उनके कहानी संग्रह पर पर्चा पढ़ते हुए समीक्षक नरेन्द्र निर्माेही ने कहा, ‘‘मदन शर्मा ‘राकेश’ के कहानी संग्रह ‘अनाम रिश्तों का सफऱ’ की कहानियाँ मानवीयता एवं सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत हैं, चेतना, संवेग व संवेदना के स्तर पर खासतौर से। इनकी अधिकांश कहानियों में नारी-संघर्ष, सीमा, और आस्था को रचनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हुए नारी के अन्तर्मन, अन्तद्र्वन्द्व की थाह लेते हुए पुरुष प्रधान समाज से समानता का नया रिश्ता क़ायम करने की कशमकश है। सुशील ‘हसरत’ नरेलवी के मतानुसार ‘अनाम रिश्तों का सफऱ’ की कहानियों का कथानक अपनी परिणति के सफऱ तक शैलीगत तौर पर एक कसी हुई बुनावट लिए हुए है, जिसमें स्त्री चेतना मुलत: व मुख्यत: पाठक के समक्ष मुखर होती है। संवाद एवं मनोहारी भाषा इन कहानियों का आकर्षण हैं।

पे्रम विज के अनुसार मदन शर्मा ‘राकेश’ की कहानियों के नारी पात्रों में टकराव व संघर्ष के साथ समर्पण �ाी है। डा0 शशिप्र�ाा के विचार से ‘अनाम रिश्तों का सफऱ’ की कहानियों का कथ्य आशावादी होने के साथ पाठक के लिए रुचिकर है। उपन्यासकार ओमप्रकाश सोंधी के मतानुसार ये कहानियाँ एक स्त्री के दिल को अच्छे से उजागर करती हैं। कथाकार मदन शर्मा ‘राकेश’ ने कहा कि ‘‘मैं पात्र के परिवेश, सोच, व्यक्तित्व, रहन-सहन को सामने रखकर लिखता हूँ। अधिक संवेदनशील हूँ व साहित्यिक संस्था ‘मंथन’ के संपर्क में आने के बाद मेरी लेखनी में पुन: गति व गहराई आई है। अध्यक्षीय भाषण में जयगोपाल ‘अश्क’ ने कहा कि मदन शर्मा राकेश ने अपने कहानी संग्रह ‘‘अनाम रिश्तों का सफऱ’’ में नारीत्व को प्रधानता दी है व उसके संघर्ष को एक नई चेतना।’’

गोष्ठी के दूसरे चरण में ‘हिन्दी दिवस पर हुए कवि दरबार की शुरुआत कवि पवन बतरा की हिन्दी को समर्पित कविता से हुआ जिसमें उन्होंने कहा ‘‘माँ के लिए स�ाी दिशाएं एक हैं’’, तत्पश्चात कवि अश्विनी ने ‘‘चंडीगढ़ में रिमझिम हैं बरसे’’, कवि सतनाम सिँह ने ‘‘ऐ मातृ-भाषा हिन्दी तुझे कोटी-कोटी नमन्’’, कवयित्री व चरित्र अभिनेत्री उर्मिला कौशिक ‘सखी’ ने कविता ‘दो मज़दूरन’ के माध्यम से कहा ‘‘देस हो या परदेस/�़ाुशहाली तो/ पसीने की बूँद से निकलती है’’, मदन शर्मा ‘राकेश’ ने गज़़ल में ‘‘लाए हैं फिर जि़न्दगी को मोडक़र’’, दीपक खेतरपाल ने ‘‘�ाो गई है जाने कहाँ हिन्दी की बिन्दी’’, सुशील ‘हसरत’ नरेलवी ने कविता ‘‘बन्दर �ाी देखता है आईना/कभी उचककर, कभी उछलकर, कभी मचलकर$$$$$’’, कवयित्री वीणा ढ़ींगरा ने हिन्दी को समर्पित कविता में कहा ‘‘अतुल्य भारत की पहचान है हिन्दी’’, कवि प्रेम विज ने कविता ‘यात्री’ में कहा ‘‘यात्री था वह जीवन भर चलता रहा’’, कवयित्री डॉ0 शशिप्रभा ने ‘‘कुछ बातें संग हवाओं के दूर तक आती-जाती है तो शायर जयगोपाल ‘अश्क’ ने गज़़ल का मतला कुछ यूँ कहा ‘‘दिल में न जाने कौन से ज़ज़्बे मचल पड़े/कल बैठे बैठे आँखोंं से आँसू निकल पड़े’’ सुनाकर तालियाँ बटोरकर माहौल को खुशग़वार बनाया व श्रोताओं की वाह-वाह लूटी। इसके अतिरिक्त कवि आर0के0 भगत, कवि आर सी चन्द्रा, कवि सन्नी चंदेल, कवि आर0 के0 मल्होत्रा की उपस्थिति ने आयोजन को और भव्यता प्रदान की।

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